बलात्कार – “एक अनचाहा दंश “
देश की राजधानी दिल्ली सन्न 2012 मानवता का ऐसा विभत्सय चेहरा देखने को मिला ,जो रोंगटे खड़े कर देने वाली थी | gang-rape का ऐसा न...
पूरे देश में महिला आरक्षण की बात फैली हुई थी। अगर देश को आगे बढ़ाना है तो महिलाओं की भी सत्ता में भागीदारी आवश्यक है। देश की आधी आबादी यूं अपने अधिकार से वंचित रह जाए, हमें यह स्वीकार नहीं–इसी तरह के नारों से देश गूंज रहा था। राजनीतिक पटल पर ये मुद्दा विपक्षी पार्टी गेंद की तरह उछाल रहे थे। पर शायद वे लोग यह भूल जाते हैं कि जिनके घर शीशे के हों,उन पर पत्थर नहीं मारा करते, अर्थात् जब बाजी अपनी पारी में होती है तो देश हित का ध्यान नहीं रहता है। खैर,सत्ता पक्ष वाले की तरफ का नजारा देखते हैं।
मंत्री चंपू पांडे के बंगले के सामने जनता जोर-जोर से महिला आरक्षण के नारे लगा रही थी। अजी! मंत्री के बंगले को छोड़िए, पूरी सड़क भीड़ से भरी हुई थी। विपक्षी दल के कार्यकर्ता इस मुहिम में आगे बढ़– चढ़कर हिस्सा ले रहे थे। महिलाओं के हित की बात हो या ना हो पर इस मुद्दे को उछाल कर सत्ता पक्ष को जरूर कटघरे में खड़ा किया जा सकेगा,ऐसी योजना के साथ मुस्तैदी से काम हो रहा था।
माथे से टपकते पसीने को पोछते हुए मंत्री जी बार बार मुख्य दरवाजे की तरफ देखे जा रहे थे। चहल– कदमी करते हुए मानों उन्होंने चार कोस की दूरी नाप ली हो। कहीं सात पुश्तों को बैठाकर खिलाने का सपना धूल में ना मिल जाए,यही शंका बार बार मन को शंकित कर रही थी।
अब बस मंत्री जी को एक ही आसरा नज़र आ रहा था। उनका एक मुंहलगा था, जिसका नाम खुशामदी लाल था। अपने नाम के अनुरूप ही अपने काम को अंजाम देना,ये इन महाशय के लोलुपता भरे जीवन के उसूल थे। मुंह में पान और बगल में एक छोटा सा पर्स रखना उनके parsonality को चार चांद लगाता था। सरकारी महकमे के तलवे चाटना इनका पुश्तैनी शौक रहा है। इनके दादा– परदादा भी यही काम संभाले हुए थे,तभी तो शानों– शौकत से जिंदगी चल रही थी।
मंत्री जी को इन पर बहुत भरोसा था और हो भी क्यों ना हो हर बनते काम को सुधारने की कला जो इनके अंदर थी। पर भैंस किस करवट बैठेगा यह खुद खुशामदी लाल को भी पता नहीं होता।
शायद मंत्री जी इन्ही का बेसब्री से इंतजार कर रहे हों। तभी पान चबाते खुशामदी लाल ने मंत्री जी के घर में प्रवेश किया। जैसे ही इनके दीदार हुए, मंत्री जी दौड़े–दौड़े इनके पास आए। इतना तो कोई अपनी नई– नवेली दुल्हन का भी इंतजार नहीं करता,जितना मंत्री जी ने इनका किया। खुशामदी ,कैसी मुसीबत में मैं फंस गया हूं। ना उगलते बनता है,ना निगलते। पूरे देश में महिलाओं के आरक्षण की बात हो रही है। विपक्षी दल वालों ने तो हंगामा मचा दिया है। उधर मेरी पार्टी भी इस मसले पे एकमत नहीं है। कुछेक ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर ये बिल पास हो गया तो मैं अपना समर्थन वापस ले लूंगा।अरे! औरतों को अधिकार देने की क्या जरूरत है। अब क्या संसद में आकर वह मर्दों का काम संभाल लेगी। घर की रसोई तक ही उनकी सीमा निश्चित होनी चाहिए। मेरे घर में तो अभी से ही अधिकारों की हाय–तौबा हो रही है।
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अभी से ही इनके मिजाज नहीं मिल रहे हैं तो बिल पास कर देने पर क्या हाल होगा ,भगवान ही जाने। पर समस्या यह है कि अगर मैं बिल पास करता भी हूं तो मेरी पार्टी का समर्थन मिलना जरूरी है जो मुझे नहीं मिल सकता।
अरे! औरतों को कोई अधिकार देना ही नहीं चाहता है सभी कहते हैं कि अब क्या औरतें मर्दों की बराबरी करेंगी। एक ही सांस में बिना थूक निगले हुए मंत्री चंपू जी का यह व्याख्यान सुनकर खुशामदी पान चबाते हुए अचानक से उसे निगल गए।देश की आबोहवा को बखूबी समझ रहे थे वे। अब तुम ही कुछ करो खुशामदी। इस हंगामे को अधर में ही लटका दो। बस बिल का मुद्दा तो अपने आप ही रुक जाएगा। ये जनता भी ना,5 साल के लिए पद पे क्या बैठा दी,मानों हमसे हर काम ही करवा लेगी।तभी तो वोट मांगते समय किए गए वादों को हम समय के साथ भूल जाते हैं,कहते हुए एक फीकी मुस्कान अधरों पे आ के लौट गई,क्योंकि सामने संकट जो पसरा हुआ था।
विपक्षी दल वालों ने तो नाक में दम कर दिया है , खुद सत्ता में होते तो टालमटोल करते रहते। बस मैं इस कुर्सी को छोड़ना नहीं चाहता यार, बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं यहां तक पहुंचने के लिए। अब जब तक मेरे सात पुश्तों का उद्धार नहीं हो जाता मैं यहां से हिलने वाला नहीं हूं। पर विकट समस्या यह है कि अपने दल के लोगों को भी नाखुश नहीं कर सकता।
खुशामदी लाल एक गहरे चिंतन की भांति सोचनीय अवस्था में बैठे रहे, पर मंत्री जी की चिंता में नहीं बल्कि अपनी चिंता में। अरे! परिस्थितियां अपना मिजाज नहीं दे रही थी कि ऊंट किस करवट ले। ताकि खुशामदी का काम भी बन जाए और किसी को पता भी ना चले। बेचारे मंत्री जी तो यही सोच रहे थे कि खुशामदी उन्हीं की चिंता में खोया है। खुशामदी की खुशामद में मंत्री जी ने सामने टेबल पे शहर की सारी मिठाइयां इकट्ठे कर दी।
तभी एक गहरी सांस लेते हुए काले रसगुल्ले को अपने मुंह में डाला और मंत्री जी की तरफ मुखातिब होते हुए लाल– लाल दांत निपोरते हुए खुशामदी ने बोला कि आप चिंता ना करो। मेरी तरकश में ऐसे– ऐसे तीर हैं, जो हर समस्या के समाधान पे निशाना लगा दें। अपने दादा– परदादा की लाज तो रखनी ही होगी मुझे। इस बात को सुनकर मंत्री जी हुए निश्चिंत और खुशामदी लाल जी ने डकार लेते– लेते एक और बर्फी को हलक में डाल ही दिया। फिर पान का एक बीड़ा उठाते हुए घर से निकल पड़े।
थूक फेंकने के लिए आसपास नजर दौड़ाई, तभी सामने एक दीवार पर लिखा था– यहां थूकना मना है। एक लंबी सी पिचकारी छोड़ते हुए कुटिल मुस्कान के साथ वहां से शान से चल पड़े। एक जगह की याद आ गई थी उन्हें। कहीं गए थे खरीदारी करने। पर जैसे ही सीढ़ियों पे कदम रखा,उबकाई आ गई गंदगी देखकर। पर दुकान में घुसना था नंगे पैर। वाह! रे स्वच्छ भारत अभियान,आगे गंदगी फैली है और अंदर जाने के लिए जूते को त्यागना पड़ता है।
मन ही मन मुस्करा उठे खुशामदी। अपने देश की तो यही बात बहुत अच्छी है कि सारे नियम– कानून बहुत ही लचीले हैं।
खुशामदी जैसे लोग किसी एक के विश्वास पे नहीं टिक सकते। विपक्षी वालों के साथ भी टाका भिड़ा हुआ था उनका।जरा टोह लेने की कोशिश करते हुए पहले तो वह विपक्षी दल वाले के पास गए। वहां जाकर महिलाओं के अधिकार को लेकर इतना लंबा– चौड़ा भाषण दिया, मानो महिलाओं के लिए वह कितना सजग है। सत्ता पक्ष वालों की थू– थू कर दी वहां पर। साथ में उनके मन को टटोलने की भी कोशिश की कि शायद यह सब नारेबाजी को वह भूल जाएं। पर बात बनी नहीं, अब क्या किया जा सकता है? सत्ता पक्ष वाले इस बिल को पास नहीं करेंगे और विपक्षी दल वाले इस बिल को लेकर अपने हंगामे को रोकेंगे नहीं।
इधर कुआं और उधर खाई वाली स्थिति सामने आ गई थी खुशामदी के सामने। अब क्या करें सियासी लहर को कैसे दबाया जाए🤔। वैसे देखा जाए तो इन्हें भी महिलाओं की बराबरी पे रंज था। इस आरक्षण की ज्वाला कहीं मेरे मंसूबों पे पानी ना फेर दे। अब क्या पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी संसद में मोर्चा संभाल लेगी क्या? ऐसे ही अनुत्तरित प्रश्न मन में उठने लगे।
शतरंज की चाल चलता खुशामदी का दिमाग अचानक से जल उठा। आनन-फानन में मंत्री जी के तलवे चाटने पर जो बड़ी सी गाड़ी मिली थी उसमें जाकर धम्म से बैठ गए और ड्राइवर को गाड़ी आगे बढ़ाने को कहा। गाड़ी मंत्री जी के बंगले के सामने आकर रुकी अपना कपड़ा झाड़ते और पान चबाते उनके कदम मंत्री जी के घर के दरवाजे की तरफ तेजी से मुड़ गए।
ऐसे भी ये दरवाजे इनके लिए हमेशा खुले होते थे। चंपू जी ने जब खुशामदी को आते देखा तो उनकी बांछें खिल गई। फिर जब उन्होंने जो उपाय बताया, वह सचमुच में उनके दिमाग की बलिहारी थी। सालों से भारतीय राजनीति को समझते आए थे खुशामदी। बस इतना कहा कि आप जनता का ध्यान कहीं और भटका दो मतलब कहीं पर आंदोलन करा दो या कोई दूसरा मुद्दा ही संसद में उछाल दो, बस फिर देखो तमाशा।
मंत्री जी शायद आप भूल रहे हैं कि देश में कोई भी बिल पास होने में सदियों लग जाते हैं, फिर यह तो देश की आधी आबादी के अधिकारों की बात है। ऐसे कितने लोग देश में भरे पड़े हैं जो महिलाओं को अधिकार देना ही नहीं चाहते हैं।महिला सशक्तिकरण किसी को रास नहीं आता है। फिर आपको चिंता करने की जरूरत ही नहीं रहेगी। जनता का ध्यान इसलिए बांटना है ताकि विपक्षी वालों के मुंह बंद हो जाएं।
अब जनता ने आपको 5 साल, नहीं– नहीं पता नहीं कितने सालों तक के लिए मंत्री पद पर बैठाया है तो आपका भी तो फर्ज बनता है कि जनता का समय-समय पर मनोरंजन करें,कहते हुए आंखें मटकाई। खुशामदी लाल ने मंत्री जी की तरफ तिरछी नजर से देखा और दोनों की नजरें चमक गई।
3 दिन के बाद अखबार में खबर छपी की धर्म के नाम पर देश में कई जगह दंगे– फसाद हुए। अगर देश में कुछ खलबली करवानी है तो धर्म को आड़े हाथों ले लो। बस तवा गर्म हो ही गया है,रोटी पकने में देर थोड़े ही ना लगेगी। वैसे घटनाओं की तो कोई कमी नहीं है अपने देश में। खबर पढ़कर खुशामदी की बांछें खिल गई। तभी एक नौकर उनके सामने हाथ जोड़ते हुए आया, सरकार एक बड़ी एलईडी टीवी लेकर कोई आया है और जबरदस्ती अंदर घुसने की कोशिश कर रहा है। आपने मंगवाई है क्या? पर खुशामदी को तो पता ही था कि यह नजराना आया किधर से है। ऐसे ही नज़रानों से तो घर अटा– पटा है।
भाइयों! मजे की बात यह है कि कितने सालों से महिला आरक्षण की मांगे अधर में लटकी हुई है, शायद इस इंतजार में कि आज नहीं तो कल यह बिल संसद में पास हो जाए। बाकी ऊपर वाले और हमारे नेताओं की मर्जी। वैसे आरक्षण अपने आप में ही एक कमजोरी है चाहे जिसके लिए हो। जिस को लाभ मिलना चाहिए उसे मिलता नहीं तो फिर काहे का आरक्षण। रहा महिलाओं के अधिकारों की बात तो वह तो मिलनी ही चाहिए पर उसे आरक्षण का नाम ना देकर उनके हित की, उनके अधिकार की, संज्ञा दी जाए तो बेहतर होगा। 👇👇
असली आरक्षण की जरूरत तो इन्हें है।
देश की राजधानी दिल्ली सन्न 2012 मानवता का ऐसा विभत्सय चेहरा देखने को मिला ,जो रोंगटे खड़े कर देने वाली थी | gang-rape का ऐसा न...
Bahot khub.. 👌👌