जज़्बात
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घूंघट में छिपी मुस्कान
अधरों में फंसी है सबकी जान
वो चंचल चितवन
जैसे हिरनी स्वछंद विचरती वन
नैनों की तीक्ष्ण कतार
हृदय को भेदे आर पार
चरित्र पे ना कोई दाग
पर उसके दिल में लगी थी आग
आखिर कोमलता और भीष्णता का क्या था रहस्य
सौम्यता और रुद्रता का मेल था अवश्य
सालों पहले की है बात
विस्मरण होती नहीं हकीकत
गांव की स्वच्छंदता में जी रही थी अपना जीवन
बाल्यकाल से यौवन तक का आवागमन
थी वो शहरी जीवन से अनजान
मुसीबत का कभी उसे ना हुआ भान
एक राहगीरी उसके जीवन में आया
आंखों की धारों में मछलियों से रंगीन सपने छोड़ दिया
प्यार की उम्मीदों में सपने खिलने लगे
आस और विश्वास के दिए जलने लगे
भरोसे पे सब कुछ गंवा बैठी
अपनों से ही बगावत कर उठी
पर जैसे चिराग तले होता है अंधेरा
वैसे ही जा रहा था उसके जीवन से सबेरा
बहलाकर,फुसलाकर
ले आया गांव से दूर
अपनी इज्जत नीलाम करने को हो गई मजबूर
सफेद आंचल पे लग गया दाग
पर हृदय में लगी थी उसके आग
किसी सन्नाटे में शामिल ना रहूंगी
पर तेरे चंगुल से छूटकर जरूर जाऊंगी
ना रुकूंगी
ना डरूंगी
बस अपने लिए लड़ते रहूंगी।।
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Bahot acha.. 👌👌