मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
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छोटी– छोटी चार– पांच लड़कियों का हुजूम गांव के इस पुराने बरगद के पेड़ के नीचे खेलने में व्यस्त था। एक– दूसरे को पकड़ने की होड़ लगी हुई थी कि तभी एक तेज आवाज़ ने उनके खेल को भंग कर दिया। भंवरी, अरी ओ! भंवरी कहां मर गई है। जब देखो तब खेल ही सूझता रहता है इसे,कहती हुई एक औरत अचानक से धमक पड़ी। तभी उस झुंड से एक बच्ची अपने नाक से निकलते बुलबुलों को अपने उल्टे हाथ से पोंछते हुए उस औरत के सामने जाकर खड़ी हो गई। का हुआ माई, काहे चिल्ला रही हो?
पहले से ही बौखलाई वह औरत उस बच्ची की आवाज़ पे खीझ उठी। बड़ी ज़बान चलती है तेरी,कहते हुए कान मरोड़ते हुए बच्ची को घर तक खींच लाई । काहे री!,घर में कछु काम ना है का । जब देखो खाली मटरगस्ती करती रहती है। जा,जाकर बर्तन धो। पूरे घर के काम बचे हैं। हम जात हैं जंगल में लकड़ियां चुनने खातिर।काम खत्म करके फिर दौड़ मत लगाइयो। बाबू वहीं ओसारा में सुतल है। तनी ध्यान रखियो,कहकर वह औरत जंगल की ओर मुड़ गई।
शहर से काफी दूर बसा था बलाई गांव। अज्ञानता और अंधविश्वास की चादर ओढ़े उस गांव में रहने वाले लोगों को अपनी दुनिया बहुत प्यारी लगती ।लड़के और लड़कियों के बीच में इतना फर्क करते ये लोग,मानों ईश्वर ने लड़कियों को धरती पे भेजकर गुनाह किया हो। शिक्षा से कोई मेल– मिलाप नहीं था इनका।
इसी गांव का एक किसान वंशीलाल था। दिनभर मेहनत– मजदूरी करता तो दो वक्त की रोटी जुटा पाता। उसकी पत्नी सुगना को हर समय उससे शिकायत रहती। उसकी ज़बान कैंची की तरह चलती थी।उसी की बेटी थी भंवरी और एक बेटा भी था, जो सुगना की आंखों का तारा था।
भंवरी जब पेट में थी,तब गांव की कुछ अनुभवी औरतों ने उसके मन में ये बात बैठा दी थी कि ये चीज़ खाओ तो बेटा पैदा होगा। पर उस समय वंशीलाल की औकात उतनी नहीं थी,जो सुगना की इच्छाओं को पूरा कर सके। इसका उलाहना आज तक वंशीलाल को मिलता रहता है। भंवरी पर उसने कभी अपनी ममता की छाया ही नहीं पड़ने दी। इसलिए जब दूसरी बार मां बनी तो वह अपने मायके चली गई। ज्यादा तो नहीं पर थोड़ी देखभाल अवश्य हो गई वहां पर।
कुदरत का खेल तो देखो, अबकी बार उसने चांद सा एक बेटा जना। अब तो उसे वंशीलाल को सुनाने का मौका मिल ही गया। भंवरी उसके लिए बस उसकी देखभाल के गलत तरीके का परिणाम थी। सुगना चाहती थी कि भंवरी घर के सारे काम करे और वह बस अपने बेटे के साथ खेले। बेचारी छोटी–सी–बच्ची मां की नज़र से बचकर खेलने चली जाती तो सुगना तमतमाने ही लगती। वंशीलाल तो सब कुछ देखकर भी चुप बना रहता।
घर के सारे काम खत्म करने के बाद भंवरी बहुत थक गई थी। एक बार बाबू को देखा तो वह सोया हुआ था। बस वहीं पर उसको देखते– देखते पलकें कब झुक गईं ,स्वयं उसे भी पता नहीं चला। उधर बाबू अचानक से रोने लगा और रोते– रोते खाट से गिर पड़ा।ठीक उसी समय सुगना माथे पे लकड़ियों का गट्ठर उठाए घर में घुसी। बाबू को नीचे ज़मीन पे रोता देख सन्न्न रह गई। आव ना देखा ताव,चूल्हे से जलती लकड़ी उठाई और भंवरी के पैर पे दाग दिया।
बेचारी बच्ची नींद में ही अचानक से कराह उठी और मुंह से शब्द निकला भी तो उई मां! कहकर। बाबू लगातार रोए जा रहा था। सुगना तो आगबबूला हो रही थी। और उसे देखकर भंवरी को अपना जला पैर भी याद नहीं रहा। क्यों री!तुझे कहा था ना,बाबू का ध्यान रखना। उधर भंवरी लगातार रोए जा रही थी। पैर में उसके फफोले बन गए थे पर मां का दिल नहीं पिघला।
एक छोटी सी बच्ची यह सोचने पे मजबूर हो गई कि आखिर मां उसे प्यार क्यों नहीं करती और बाबू पे जान क्यों छिड़कती है। बापू भी कुछ नहीं बोलते। कुछ दिन तक तो उससे चला ही नहीं गया। पर मां को खुश करने के लिए उसने घर के सारे काम भी घसीट-घसीट कर किए।
बलाई गांव बहुत ही पिछड़ा था। लड़कियों के लिए शिक्षा स्वप्न की भांति थी। इसलिए कोई भी अपनी लड़की को स्कूल नहीं भेजता। उस दिन भंवरी अपनी सहेलियों के साथ अपनी गुड़िया का ब्याह रचा रही थी।जिस सहेली के गुड्डे के साथ उसकी गुड़िया का ब्याह हो रहा था,उसने बोला कि अब तेरी गुड़ियां मेरे घर रहेगी।शादी के बाद लड़कियों को ससुराल जाना ही पड़ता है।लड़कपन में ही सही पर उस बच्ची ने समाज के यथार्थ नियमों को सामने लाया था।
भंवरी ये सुनकर फूट– फूट कर रो पड़ी।अब उसकी गुड़िया उसके साथ नहीं रहेगी। पर उसने अपनी सहेली से विनती की कि उसकी गुड़िया का हमेशा ख़्याल रखेगी। भंवरी ये सोचने लगी कि क्या वह भी अपने मां– बापू को छोड़कर दूसरे घर चली जाएगी। पर वह तो अभी बहुत छोटी है।
उस दिन भंवरी बहुत उदास थी। उसकी गुड़िया की विदाई जो हो गई। घर पहुंची तो उसने मां से सवाल किया कि क्या मैं तुझे छोड़कर दूसरे घर चली जाऊंगी? क्या मेरी भी शादी हो जायेगी? इस अप्रत्याशित सवाल को सुनकर सुगना हड़बड़ा गई।
ऐसा लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो। भंवरी अभी केवल 13 साल की थी। पर पैसों के लालच में आकर सुगना और उसके बापू ने मिलकर उसका विवाह पास के ही गांव के एक विधुर के साथ पक्का कर दिया था। उस आदमी की उम्र 50 साल होगी।हाल ही में उसने अपनी पत्नी को खोया था। उसके दो छोटे बच्चे थे,जिसके लालन– पालन के लिए उसे किसी ऐसी लड़की की तलाश थी,जो घर के साथ –साथ उसके बच्चों को भी संभाल सके।
एक दुकान पे वंशीलाल और उस आदमी की भेंट हो गई। बातों ही बातों में ये रिश्ता पक्का हो गया।इसके एवज में वंशी को मोटी रकम मिली थी। आज दोनों ने अपनी बेटी का सौदा किया था। एक छोटी सी बच्ची की शादी एक अधेड़ के साथ कर दी। भंवरी के अचानक से उठे सवालों के जवाब में आज पहली बार सुगना ने उसे पुचकारते हुए अपने पास बैठाया।
देख छोरी!, हर लड़की को शादी के बाद अपने मां– बाप के घर से जाना ही पड़ता है। तेरे पति का घर ही तेरा घर है। मैंने और तेरे बापू ने एक अच्छा सा दूल्हा तेरे लिए देखा है। उसके पास ढेर सारे पैसे हैं। बड़ा सा घर होगा, अच्छा– अच्छा खाना मिलेगा। खेलने के लिए जीता– जागता खिलौना मिलेगा। तू बहुत खुश रहेगी वहां।
एक छोटी सी बच्ची जिसे शादी का मतलब पता नहीं था,उसे खाने और गुड़ियों का लालच देकर शादी को समझाया जा रहा था। इतनी बड़ी बात वह क्या समझती। ऐसे भी बलाई गांव के लिए ये कोई नई बात नहीं थी। लड़कियों का छोटी उम्र में ब्याह कर देना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।
आखिर भंवरी की भी शादी हो गई।मां ने जो सपने आंखों में दिखाए थे,उसे लेकर वह ससुराल पहुंची। पति का तो चेहरा पहले देखा नहीं था। ससुराल में ही उसके दर्शन हुए। देखा कि उसके बापू से भी उम्र में बड़ा लग रहा था। आगे के दो दांत भी टूटे हुए थे। सास ने उसकी आरती उतारी। तभी छोटी मां,छोटी मां कहते हुए दो बच्चे दौड़ते हुए उसके पास आए।
वह इधर– उधर देखने लगी। उसने देखा कि 7–8 साल के दो बच्चे उसे कौतूहल भरी दृष्टि से देख रहे थे। भंवरी को लगा कि उसे खेलने के लिए दो जीते जागते बच्चे मिल गए हैं। उसने आव ना देखा ताव ,तुरंत बच्चों के पीछे लग गई। तभी उसकी सास ने घुड़की लगाई। कहां जा रही है तू इन बच्चों के पीछे । घर के कायदे सीख। तू इनकी मां बनकर आई है। इनकी देखभाल करना तेरा ही काम है।
बेचारी छोटी सी बच्ची इतनी बड़ी बात कहां से समझ पाती। मां के रूप में तो उसने अपनी मां को देखा था। खुद मां कैसे बन जाती। अब हर दिन उसके साथ घर में हंगामा होता ही रहता। कभी सास डांट लगाती तो कभी पति सोटे से पिटता। हद तो तब हो गई जब उनका एक बच्चा बीमार पड़ गया। इसके लिए उसकी सास ने उसे जिम्मेवार ठहराया और उसे बहुत पीटा।
उस दिन भंवरी अकेले में बहुत रोई। मायके में जब बाबू को चोट लगती थी तो भी वही जिम्मेवार होती थी और ससुराल में भी यही हाल है। आखिर कौन– कौन सी जिम्मेवारियों को पूरा करें वो बच्ची। देखते– देखते दो साल बीत गए। ना मायके वाले ने कभी खबर ली और ना ही ससुराल वालों ने उसे वहां भेजा। रोज– रोज के अत्याचार से तंग आकर एक दिन भंवरी वहां से अपने गांव भाग गई।
अपने घर का दरवाजा खटखटाया तो सुगना ने कुंडी खोली। देखा सूजे हुए चेहरे लेकर भंवरी खड़ी है। तू यहां कैसे,जमाई राजा कहां हैं,क्या ससुराल से भागकर आई है आदि कितने सारे सवालों की झड़ी लगा दी उसने। ना बेटी का हाल– चाल पूछा ना पानी। भंवरी फफक– फफक कर रो पड़ी।
मां, मैं अब वहां नहीं जाऊंगी। वहां मेरी हर दिन पिटाई होती है। सास हमेशा ताने सुनाते रहती है।सुगना के लिए ये कोई आश्चर्यवाली बात ना थी। आखिर बेटी को तो उसने खुद ही गड्ढे में डाला था। पर मां इतनी निष्ठुर होगी, ये भंवरी ने भी नहीं सोचा था। सुगना ने उसका हाथ पकड़ा और उसे घर के चौखट तक खींचते हुए ले आई। अब तेरा यहां कोई नहीं है। तेरा जीना– मरना सब वहीं है। पति के घर से केवल तेरी अर्थी ही बाहर आएगी। जा,चली जा यहां से। भंवरी तो बस देखती ही रह गई अपनी मां को।
रोते हुए वहां से चल दी। पर अब वह अपने ससुराल नहीं गई। उसके कदम पता नहीं किस अनजानी डगर पे बढ़ते ही गए। ख्यालों में खोई बढ़ती ही जा रही थी। दो साल ही तो बीते थे जिंदगी के। अभी वह केवल 15 साल की थी,पर परिस्थितियों ने उसे बड़ा कर दिया।जीवन को समझने की कोशिश करने लगी वह मासूम।
जब तंद्रा टूटी तो अंधेरा हो चुका था। अब कहां जाएगी वह। रात के अंधेरे उसे डराने लगे।तभी दूर प्रकाश की रोशनी दिखाई दी,जिसका सहारा लेकर वह बढ़ते गई। रोशनी में उसने देखा कि चार– पांच लोगों का समूह वहां आग जलाकर बैठा है। एक बच्ची को इतने रात में अकेला देखकर वो लोग भी सकपका गए। वो डाकुओं का समूह था,जो कहीं से डाका डाल कर आराम कर रहा था।
उसमें से किसी एक ने भंवरी को अपने पास बुलाया और उसे प्यार से पूछा। डरी– सहमी बच्ची के सब्र का बांध टूटा और दिल खोलकर रो पड़ी। बड़ी मुश्किल से वह चुप हुई। फिर अपनी सारी कहानी उसने बयां कर दी।
चुप हो जा बेटी,इंसानों की खाल में छुपे शैतानों से कहीं अच्छी तो हमारी जिंदगी है। कम से कम हम गरीबों, मजबूरों का पैसा तो हज़म नहीं करते। अपने बीच इंसानियत अभी भी रखते हैं। तू हमारे पास रह। यहां तुझे सुकून मिलेगा,जिसकी चाहत तुझे बचपन से ही थी।
अब भंवरी उन डाकुओं की चहेती बन गई। उन्होंने उसे बहुत सारे दांव– पेंच भी सीखा दिए।समय के साथ– साथ अब वो भी जवानी की दहलीज पे पहुंच गई थी। कभी अकेली होती तो बचपन के वो क्षण भूल नहीं पाती। एक लड़की होने का दर्द उसने झेला था।उसके जैसी ना जाने कितनी लड़कियां ऐसे हादसों का शिकार होती होंगी। कितनों की शादी बूढ़े से हो जाती होगी साथ में मानसिक प्रताड़ना झेलती होगी ही।
मां– बाप पैसों के लालच में आकर अपनी बेटी को बेच देते हैं किसी अधेड़ के हाथों। एक विचार को अपने मन में लाया और उन डाकुओं के सरदार से अपनी मन की बात कही। एक अजीब –सा डर गांव वालों को घेरे रहता। आस– पास के गांवों में जहां भी बाल– विवाह होता,उसी समय डाकू भंवर सिंह का हमला हो जाता। फिर वहां से उस बच्ची को वह डाकू अपने साथ ले जाता।
डाकू भंवरसिंह का आतंक लोगों के बीच में इतना फैल गया कि लोग छोटी बच्चियों की शादी कराने से डरने लगे। भंवरी ही पुरुष वेश में लड़कियों को बचा रही थी। एक तरह से उसने लड़कियों का दल इकट्ठा कर दिया। जो बचपन वह झेली, कम से कम इनको वह ना सहना पड़े,इसके लिए उसने लड़कियों के पढ़ाने की व्यवस्था की। डाकुओं का सहारा तो था ही। अपने मंसूबों को उसने समाज कल्याण से बांध दिया। तरीका उसका भले ही गलत था,पर मंसूबे गलत नहीं थे।
समाज के लिए डाकू भंवर सिंह भले ही बदनाम हो पर उन बच्चियों को दलदल से निकालने वाली भंवरी किसी देवी से कम ना थी। इस भाग– दौड़ में कभी उसने अपने बारे में सोचा भी नहीं। एकांत में कभी सुगना को याद कर लिया करती थी। बापू की आवाज़ तो कभी अपने लिए सुनी नहीं थी,सो ध्यान ही नहीं जाता।भाई कैसा होगा?यही सब सोच कर आंखें भर आई उसकी।
एक दिन उसे ख़बर मिली कि पास के गांव में एक बच्ची की शादी हो रही है। तुरंत दल– बल के साथ वह पहुंच गई। पहले तो विरोध करने वालों को खूब पीटा।फिर उस बच्ची को अपने साथ लेते आई। लौटते समय बीच में उसका गांव पड़ता था। सोचा,एक बार देख आऊं।मां बापू किस हाल में हैं। अपने चेहरे को तो उसने दुनिया की नजर से छुपाया था। ऐसे भी सालों बीत गए थे।अब वह बच्ची से बड़ी हो गई थी। कौन उसे पहचानता। स्वयं जन्म देने वाले भी पहचानते तो बड़ी बात होगी।
उसने डाकुओं को वापस ठिकाने पे भेज दिया और खुद लड़की वेश में अपने गांव में प्रवेश किया। एक डाकू के वेश में तो आना– जाना किया था,पर खुद को सालों बाद सार्वजनिक किया। गांव का वह बूढ़ा बरगद ,जहां अभी भी कुछ लड़कियां खेल रही थीं।इनमें से एक मैं भी थी,सोचकर मन भर आया उसका। आगे बढ़ी तो देखा,जो झोपड़ा कभी उसका घर हुआ करता था,आज जर्जर अवस्था में पहुंचा है। अंदर घुसी तो खाट पे एक बूढ़ा दयनीय हालत में लेता हुआ था,मानों खाट से चिपक गया हो। वो बापू ही थे,देखकर मन व्याकुल हो गया। इधर– उधर नजर दौड़ाई तो मां कहीं नज़र नहीं आई।
बापू इस हालत में नहीं थे कि उनसे कुछ पूछा जाए। घर में समान के नाम पे केवल एक खाट और कुछ टूटी फूटी चीजें ही पड़ी थीं।
बहुत देर इंतजार करने के बाद एक अधेड़ उम्र की काया ने झोपड़े में प्रवेश किया।अंदर एक अनजान युवती को देखकर चौंकी। पर शायद मां का दिल उसे पहचानने की कोशिश कर रहा था। कभी मां तो नहीं बन पाई पर भंवरी तो सुगना को देखकर फूट– फूट कर रो पड़ी। अपनी बेटी को सामने देख सुगना हतप्रभ थी। फिर दोनों मां– बेटी ने अपने गिले– शिकवे दूर किए।
सुगना ने बताया कि उसके जाने के बाद उसका पति कुछ गुंडों के साथ आया था। पर तुझे यहां न देखकर बहुत गुस्सा हुआ। फिर जो पैसे उसने दिए थे,उसके एवज में घर की बहुत सारी चीजों को ले गया। तेरे बापू तो मजदूरी करते– करते कंकाल बन गए। उन्हें टीवी हो गया है। घर का खर्च चलाने के लिए मैं घर– घर जाकर काम करती हूं।
फिर जो समय मिलता है,उसमे थोड़ी– बहुत मजदूरी भी कर लेती हूं,जिससे दवा– दारू का खर्च भी निकल जाए। जब भंवरी ने भाई के बारे में पूछा तो सुगना ने बड़ी ही बेदर्दी से जवाब दिया कि, भाग गया बुजदिल। अपने मां– बाप को संभालने की शक्ति ना थी उसमे।आए दिन झगड़ा करता रहता। कभी अपनी किस्मत को कोसता तो कभी हमलोगों को। फिर एक दिन पता नहीं कहां चला गया।
हमदोनो ने तुम्हारे साथ जो गलत किया था, उसकी सजा तो मिलनी ही थी। तुझे जन्म देकर तेरे बापू को हमेशा कोसती रही कि उसके कारण ही लड़की पैदा हुई। तेरे बापू को जिंदगी भर उलाहना देते आई तो तेरे भाई ने हमें उलाहना दिया। कुछ पैसों के लालच में अपनी छोटी सी बच्ची की शादी एक बुड्ढे के साथ तय कर दी। पाप की सजा तो मिलनी ही थी। कभी बेटी के साथ बैठकर प्यार से बात नहीं किया। हमेशा बाबू– बाबू करते गई और बेटी दूर होती गई।
मैं तो इतना नीचे गिर गई थी कि जब तू ससुराल से भाग कर आई थी तो मैंने एक बार भी तेरे सर पर प्यार से हाथ नहीं रखा। ना कभी जानने की कोशिश की कि तेरे साथ क्या हो रहा है। मैं बहुत बड़ी पापिन हूं। सुगना की बातों को सुनकर भंवरी रो पड़ी। फिर उसने अब तक की घटी सारी घटनाओं का विवरण सुनाया। समाज के लिए अपनी बेटी को ऐसा काम करते देख वह खुशी से फूली नहीं समाई। आज उसने भंवरी को पहली बार निश्चल मन से गले लगाया।
उस दिन तो भंवरी वापस अपने ठिकाने लौट आई। पर सुगना और वंशीलाल के दिन फिरने लगे। समाज के काम को उसने रोका नहीं। जहां तक हो सका ,लड़कियों के लिए हर संभव काम किया भवरसिंह के रूप में।
निम्मी! अरी! ओ निम्मी, कहां रह गई है रे, आवाज देते हुए मिताली ने बिस्तर से उठने की कोशिश की, पर उसकी बीमार...
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