मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
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हर रात की तरह आज रात भी मानवी नींद में बड़बड़ाती जा रही थी, चले जाओ यहां से, मेरे पास मत आओ,कहतेे– कहते अचानक से उठ बैठी। लंबी– लंबी सांस लेते हुए इधर– उधर देखने लगी। उसके चिल्लाने की आवाज़ सुनकर बगल वाले कमरे से उसकी मां दौड़ते हुए आई तो देखा कि मानवी ठंड के मौसम में भी पसीने से नहाई हुई है और आंखें हैरत से फटी हुई है,मानों अंधेरे में किसी को देखने की कोशिश कर रही हो। जैसे ही उसने मां को देखा फफक– फफक कर रो पड़ी।
मां! बचपन से ही मैं यह डरावने सपने क्यों देख रही हूं? आंखें बंद करती हूं तो डर लगता है कि फिर से वो आकृतियां कहीं दिखने ना लग जाएं। अब तो नींद के नाम से ही घबराहट होती है, कहते-कहते रो पड़ी मानवी।
उसकी मां, अनीता क्या जवाब देती उसे तो खुद समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इसका रहस्य क्या है। मानवी और अनीता बस दो ही लोगों का परिवार था। मानवी के माता-पिता का तलाक हो गया था । जब मानवी का जन्म हुआ था उसके बाद उसके पिता के व्यवसाय में घाटा होने लगा था जिसका दोषी वह अपनी बेटी को मानते थे। इस सोच का फायदा उन्हीं के ऑफिस में काम करने वाली तान्या ने उठाया।
उसने मानवी के पिता के व्यवसाय में पैसे लगाने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे दोनों के बीच में नजदीकियां आनी शुरू हो गई। कानों– कान ये खबर अनीता के पास भी पहुंच गईं।अब दोनों के रिश्तों के बीच में खटास आनी शुरू हो गई। आए दिन मानवी के पिता देर रात घर लौटते या कभी-कभी तो लौटते ही नहीं। जब अनीता ने टोका– टाकी किया तो उसे यह सुनकर अपना मुंह बंद करना पड़ा कि तुम्हारे और तुम्हारी बेटी के कारण मैं फल– फूल नहीं रहा था।
जब किसी ने मेरी मदद करनी चाही तो तुमसे मेरी बढ़ती हुई उन्नति नहीं देखी जाती है।अनिता के होश फाख्ता हो गए ये सुनकर। अब तो आए दिन घर में कलह होती रहती, जिसका असर नन्ही सी बच्ची मानवी पे पड़ा। माता पिता के झगड़े ने स्वभाव से उसे अंतर्मुखी बना दिया।
अकेले बैठकर जाने क्या– क्या सोचा करती। ऊपर से उसके डरावने सपने उसकी मानसिक संतुलन को बिगाड़ दिए थे। हर दिन वह एक डर के साए में जीती। अनीता ने अपनी बेटी के भविष्य की खातिर तलाक लेने का निश्चय कर लिया। उस समय मानवी 15 साल की थी। घर के खर्चे के लिए अनीता ने काम करना शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे दोनों की जिंदगी पटरी पर आने लगी पर अनीता को यह पता नहीं चल पा रहा था कि आखिर मानवी को डरावने सपने आते क्यों हैं।वह याद करने लगी कि ये सिलसिला कब शुरू हुआ था। मानवी ने बताया था कि सपने भी धुंधले होते थे, पर आकृति से यह जरूर पता चलता था कि वह आकृति एक स्त्री की है जो बेतहाशा भागती रहती थी और उसका पीछा एक भीमकाय काली आकृति करती थी। उन लोगों का चेहरा साफ नहीं दिखता था।
कभी सपने में वो स्त्री झूले पर बैठे नजर आती,तो कभी बच्चे का खिलखिलाना गूंजता।कभी बंद दरवाजा दिखता तो कभी किसी के सिसकने की आवाज़ आती। इन सबके बीच में अचानक से वो भीमकाय आकृति प्रकट हो जाती थी। सपने में घट रहे रुदन– क्रदन से मानवी बदहवाश सी उठ जाती। फिर तो सारी रात मां– बेटी बैठे– बैठे ही काट लेते।
मानवी की मानसिक अवस्था बिगड़ती ही जा रही थी।अनीता अब चुप नहीं बैठ सकती।वह इस सपने के शुरुआती दौर के बारे में सोचने लगी। सपने आने का सिलसिला 5 साल की उम्र से शुरू हुआ था। उस समय अनीता का अपने पति से भयंकर झगड़ा हुआ , जिसके कारण वह रूठकर अपने मायके चली गई। लगभग 6 महीने उसने मायके में गुजारे।
मां के घर के पास ही एक घर था, जो सालों से बंद था। एक अजीब सन्नाटे का वातावरण छाया रहता उसके आसपास। एक दिन मानवी घर के बाहर खेल रही थी और अनीता वहीं उस घर को लेकर असमंजस की अवस्था में देख रही थी, तभी एक औरत उस घर से बाहर निकलती दिखाई दी।अनीता की आंखें फटी की फटी रह गईं। जो घर सालों से बंद था,उसमें अचानक किसी का आकर रहना चकित कर देने वाली बात थी।
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वह औरत अनीता को देख कर मुस्कुराई।फिर उसकी नजरें मानवी के तरफ ठहर गईं। दोनों में बातचीत शुरू हो गई। अब तो आए दिन मुलाकात हो जाती। मानवी धीरे-धीरे औरत के साथ खुलने लगी थी। उस समय मानवी को डरावने सपने नहीं आते थे। वह औरत मानवी के लिए कभी खिलौने लाती तो कभी चॉकलेट।
अनीता अगर मना करती तो बोलती कि मेरा कोई बच्चा नहीं है।आपकी बेटी से ही हर शौक पूरे कर रही हूं।फिर तो अनीता की बोलती ही बंद हो जाती। मानवी भी उसके साथ घुलमिल गई ,इतना कि उसके साथ खेले बिना मानवी को चैन ही नहीं मिलता। पर हैरत की बात यह थी कि उस औरत के अलावा उस घर में और कोई नहीं दिखता। एक दिन अनीता मानवी को पुकार रही थी। पूरे घर में देख लिया लेकिन उसका पता नहीं चला। अपनी मां से पूछा तो उन्होंने बोला कि जा उस औरत के घर देख आ।जरूर वहीं खेल रही होगी।
इससे पहले अनीता कभी उसके घर नहीं गई थी। मानवी– मानवी की आवाज लगाते उसने उस औरत के घर में प्रवेश किया तो मानो लगा एक सर्द हवा का झोंका उसके पास से गुजरा। इतनी सर्दी में भी वह पसीने से नहा उठी। आसपास नजरें दौड़ाई तो मानवी कहीं नहीं देखी। घर भूल– भुलैया की तरह लग रहा था।
अनीता को एक चीज सोचने पे मजबूर कर रही थी कि घर में जो भी समान था,उस पर धूल ऐसी बैठी हुई थी,मानों वहां कोई रहता ही ना हो।अनीता को उस औरत के आलसपन पे बहुत क्रोध आया। तभी सामने के कमरे से खिल खिलाने की आवाज आई। देखा तो बिस्तर पर वह औरत औंधे मुंह लेटी हुई थी और मानवी वहीं जमीन पर बैठकर खिलौनों से खेल रही थी।
उसके बातचीत करने के तरीकों से लग रहा था कि वहां और भी कुछ लोग हैं जिनसे वह बात कर रही हो। पर अनीता को वहां कोई नजर नहीं आया। जब अनीता ने मानवी– मानवी आवाज दी तो झट से वह औरत उठ कर बैठ गई। ना कुछ बातचीत और ना ही कोई पूछताछ, झट से मानवी का हाथ पकड़ा और वहां से निकल पड़ी। घर ज्यादा बड़ा नहीं था लेकिन उसे बाहर पहुंचने में काफी वक्त लग गया। बाहर आई तो अनीता को ऐसा लगा मानो दूसरी दुनिया से आई हो।
मानवी ने मां को बताया कि उस आंटी के तीन बच्चे हैं जिन्हें वह अलमारी में बंद करके रखती है। पता नहीं और क्या– क्या बोले जा रही थी मानवी। अनीता के दिमाग में तो कुछ और ही सोच चल रही थी। अगले दिन से ही उसने उस घर से तौबा कर लिया। मानवी रोती रहती पर उसे वहां जाने ही नहीं देती अनीता।
एक हैरत वाली बात यह भी थी कि जो औरत मानवी से मिलने के लिए बेचैन रहती थी, उस दिन के बाद से नजर भी नहीं आई। इस बात को बीते दो महीने हो गए। एक दिन अनीता अपने घर से सामने वाले घर की ओर देख रही थी ।सोचा, बहुत दिन हो गए, चलो उस औरत को देख आती हूं। बहुत दिन हो गए नजर भी नहीं आई।
अनीता ने जब उस घर की ओर कदम बढ़ाया और दरवाजे के पास पहुंचकर कुंडी खटखटाई तो एक अनजान औरत ने दरवाजा खोला जिसे अनीता जानती भी नहीं थी। फिर दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई।
दूसरी औरत–आपको किससे मिलना है?
अनीता– यहां एक औरत रह रही थी जिससे मेरी अच्छी जान पहचान हो गई थी। बहुत दिन से देखा नहीं तो मिलने आ गई।
दूसरी औरत–(अनजान बनते हुए) यह क्या कह रही हैं आप। मैं तो सालों से ही रह रही हूं, आपको जरूर कोई भ्रम हुआ होगा।
अनीता क्या कहती, असमंजस में पड़ कर खुद पर भी विश्वास नहीं रहा। जब उसने यह बात अपनी मां को बताई तो वह भी आश्चर्य में पड़ गई,क्योंकि इतने सालों से घर बंद पड़ा था,फिर उसमें उस रहस्यमई औरत का दिखना, फिर अचानक से उसका गायब होना। फिर उस घर में दूसरी औरत का दिखना,ये सब बातें अनीता की मां भी पचा नहीं पा रही थीं। आखिर माजरा क्या था?
पर सबने इस बात को ज्यादा महत्व नहीं दिया। धीरे-धीरे अनीता इस बात को भूल गई। कुछ दिन और रहने के बाद वह वापस अपने घर आ गई थी। बस वहां से वापस आने के बाद से ही तो मानवी सपनों से परेशान रहने लगी थी।
हो ना हो ये सपने जरूर मेरे मायके से ही जुड़े हुए हैं।मुझे एक बार फिर वहां जाना होगा। उधर मानवी की मानसिक अवस्था धीरे धीरे असंतुलित होने लगी। सुन्न में पता नहीं कहां खोई रहती।अब अनीता चुप नहीं रह सकती थी। जहां से इस सपने की शुरुआत हुई थी, वहीं पर फिर से जाने का निश्चय किया। अब तो मां भी वहां नहीं रहती। भाई के साथ दूसरे शहर में रहने लगी है।
अनीता के लिए उस घर की सच्चाई मालूम करना जरूरी था। एक बार फिर वह उसी मकान के सामने खड़ी थी।दरवाजे पे दस्तक दी तो वही औरत बाहर आई। अनीता को देखते ही उसके चेहरे का रंग ही उड़ गया। पहले तो वह अनजान सी बनी रही। पर अनीता ने जब अपनी जिंदगी की दास्तां उसको बताई और मदद की आशा से उसकी ओर देखने लगी,तब उस औरत ने अपना मुंह खोला।
आपकी बेटी के सपने में जो औरत दिखाई देती है, वह मेरी सौतन थी। मेरे पति ने अपने माता-पिता की जिद के कारण उससे शादी किया था पर दोनों में हमेशा झगड़ा होता ही रहता। इन दोनों के 3 बच्चे भी थे,जो तीनों लड़के ही थे। जब मेरे पति काम पर जाते तो पीछे से दरवाजे को बंद कर दिया करते। उसे घर में नजरबंद करके रखा जाता,ताकि पड़ोसियों को भी वह अपनी कहानी ना कह सके।
बच्चों से भी उन्हें कोई खास लगाव नहीं था। हर दिन दोनों की लड़ाई होती रहती। बात पीटने तक भी आ गई थी। नापसंदगी के कारण मेरे पति हमेशा उसकी बातों में नुक्स निकाला करते थे। फिर एक दिन मैं इनकी जिंदगी में आ गई। हम दोनों के प्यार के चर्चे मेरी सौतन तक भी पहुंच गए थे। अब तो आए दिन घर में झगड़ा होता ही रहता। मेरे पति शराब पी के घर आते और फिर बेल्ट से उसकी पिटाई करते। कई– कई दिन तक कोठरी में बंद करके बाहर से ताला लगा देते। तीनों बच्चे अगर बीच में आते तो उनकी भी पिटाई हो जाती।
जब भी मेरे पास आते, उस से पीछा छुड़ाने की बात कहते थे। मेरे सर पर भी उनके प्यार का भूत चढ़ा हुआ था। मैंने भी एक बार भी नहीं सोचा कि मैं एक शादीशुदा आदमी का घर बर्बाद कर रही हूं। इसी की सजा तो मुझे आज भी मिल रही है। मैं एक जिंदा लाश बन गई हूं,जिसकी जिंदगी वीरानों से भरी है।
फिर एक दिन अत्याचारों से तंग आकर मेरी सौतन ने तीनों बच्चों को जहर खिला कर आलमारी में बंद कर दिया और खुद भी जहर खा लिया। उस समय मेरे पति 2 दिन के लिए शहर से बाहर गए हुए थे। जब वापस लौटे तो घर में चार– चार लाशें पड़ी हुई थी। फिर अपना पाप छुपाने के लिए इसी मकान के आगे में गड्ढे खोदकर रातों– रात मामला को रफा– दफा कर दिया।
पड़ोसियों के सामने बात फैला दी कि वह चरित्रहीन थी और अपने प्रेमी के साथ बच्चों को लेकर भाग गई। फिर जब मामला ठंडा हो गया तो मुझसे शादी कर ली। ये कहानी सुनकर अनीता ने गुस्से भरी नज़र से उसकी ओर देखा और खूब खरी– खोटी सुनाई।
पर अनीता को एक बात समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर उसकी बेटी ने उसका क्या बिगाड़ा था,जो उसे परेशान कर रही थी। उस औरत ने रोते हुए बोला कि मेरी सौतन की आत्मा को शांति नहीं मिली है। पूरे घर में उसकी और बच्चों के रोने की आवाजें आती रहती हैं। मैं तीन बार गर्भवती हुई,पर किसी न किसी कारण से बच्चा पेट में मर जाता। कुछ दिन के बाद ही एक सड़क दुर्घटना में मेरे पति की भी दर्दनाक मृत्यु हो गई।
मैं इतने बड़े घर में अकेले रहती हूं। पर उसका साया हमेशा मेरे साथ होता है। जब भी मैंने इस घर को बेचकर कहीं और जाने का फैसला किया,हर समय उसने मेरा रास्ता रोका। ना मैं किसी से बात कर सकती हूं और ना ही कोई इधर आता – जाता है। लोगों को लगता है कि यह घर बंद पड़ा है। मैं इस घर में बंध गई हूं। बस किसी तरह से जी रही हूं। शायद अपनी मृत्यु की हकीकत सबको पता चले,इसलिए उसने आपकी बेटी को इसका माध्यम बनाया हो।
इसलिए तो वैसा घर का वातावरण भी तैयार किया था। उसकी आत्मा अभी भी भटक रही है।अपने पे हुए जुल्मों का हिसाब कर दिया उसने हमारे साथ। अनीता तो ये सब बातें सुनकर अवाक हो गई।
फिर उसने अपनी मां को सारी बातें बताई तो उन्होंने वहां किसी पंडित से सलाह मशविरा किया और अपनी व्यथा भी बताई। फिर उनके कहने पर कुछ लोगों को बुलाकर घर के आगे की मिट्टी खुदवाई । चार– चार लाशें मिट्टी से निकाली गईं। दिल पे पत्थर रखकर किसी मां ने अपने बच्चों को जहर दिया होगा,सोचकर अनीता कांप गई। उन सब लाशों को विधिवत जलाया और उनका अंतिम संस्कार किया।
उस औरत ने भी अपनी गलतियों की माफी मांगी।एक शादीशुदा की जिंदगी में दखल देने का पाप किया था उसने। जिंदगी भर नितांत अकेले रहने की सजा मिली थी उसे।उधर अनीता वापस घर लौटते समय यही सोच रही थी कि मृत औरत और उसकी जिंदगी भी तो एकसमान ही है। दूसरी औरत एक शादीशुदा का घर बर्बाद कर देती है। गलती तो उस पुरुष की होती है,जिसे अपना सबकुछ मान लेने की गलती हम जैसी औरतें करती हैं।
और इन सब में बच्चे की जिंदगी पीस जाती है। अनीता का मन मानवी से मिलने के लिए व्याकुल हो रहा था,जिसे उसने अपने दूर के रिश्तेदार के यहां छोड़ के आई थी।दोनों मां– बेटी अपने घर पहुंचे।अनीता बहुत व्यथित हो रही थी। पर किसके कंधों का सहारा ढूंढे। एक गहरी सांस लेते हुए उसने मानवी को अपने सीने से चिपका लिया। उस रात को मानवी ना तो चिल्लाई और ना ही उसकी नींद टूटी।सालों बाद एक मीठी नींद में उसने रात गुजारी।
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