🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Part –9)🌶️🌶️🥵
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अनकही बातें
मन में है घुमड़ते
मेरे जज़्बात
कर रहे थे आपस में बात
प्लस– माइनस,नफा– नुकसान
रहते हैं जिंदगी भर परेशान
जो आज हम हैं करते
कल उसी को तो हैं भरते
आते– जाते कहीं पे अटकी
तभी एक बूढ़ी औरत को देख ठिठकी
ठक– ठक करती लाठी उनकी
कमर भी थोड़ी झुकी– झुकी
एक कदम चलती, दूसरे कदम बैठती
उम्र की ढलान ऐसी ही है होती
पड़ोस के मकान में थी रहतीं
आते– जाते लोगों को ताका करती
जीवनसाथी का साथ छूटा
बेटे– बहू से अरमान टूटा
यूं ही हर दिन अनजानों को देखती
परायों में अपनों को ढूंढती
आज पहली बार बूढ़ी अम्मा के साथ
देखा बेटे का हाथ
दिल में छाई खुशी
बूढ़ी आंखों ने भी अपनों की प्रीत देखी
पर सच तो कुछ और था
बेटा मां को वृद्धाश्रम ले जा रहा था
बूढ़े कंधों का आश्रय छीन रहा था
ढहते ख़्वाबों के साथ घरौंदा टूट रहा था
सूनी आंखें,कोई ना साथी
बस बची है डगमगाती बुढ़ापे की लाठी
जिन उंगलियों को थाम के चलना सीखा
आज उसी ने बाहर का रस्ता देखा
उन चार दीवारों में,
हर दस्तक पे इंतज़ार करती है
बेटे के पदचाप की ध्वनि सुनती है
उनकी अनकही बातें,
अनसुने जज़्बात
बस करते हैं आपस में ही बात।।
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Nicceee..
👌👌