🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
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सुषमा की शादी के बाद राजवीर बहुत मायूस रहने लगा था। पर जिंदगी तो यहीं पर खत्म नहीं होती है। अपने आप को व्यस्त रखने के लिए वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा। घर के खर्चे चलाने भी जरूरी थे।पिताजी इस दुनिया में नहीं रहे। परिवार में मां और एक छोटी बहन थी।
मां कहते– कहते थक गई कि बेटा शादी कर ले। मरने से पहले बहू का मुंह देखना चाहती हूं।पर राजवीर ने तो जैसे शादी न करने की कसम ही खा ली थी। उस रात वह ही ऑफिस से देर रात काम करके घर लौट रहा था,जब सुषमा उसकी गाड़ी से टकराते– टकराते बची।
विचारों के झुरमुट में उलझकर कब वह घर तक आ गया,स्वयं खुद को भी पता नहीं चला। नियति ने दूसरी बार उसकी प्रेयसी से उसे मिलाया था। पर वह चाहकर भी पुराने दिन नहीं लौटा सकता। अब सुषमा किसी की ब्याहता थी। उसके रास्ते अलग जा रहे थे।
गाड़ी को घर के नीचे खड़ी करके उसने नौकर को आवाज दी। फिर उसके सहारे से सुषमा को पिछली सीट से उठाया और घर के अंदर ले गया। मां ने एक अनजान लड़की को राजवीर के साथ देखा तो चौंक पड़ी। कई सारे सवाल मन में घुमड़ने लगे। राजवीर ने मां को इशारे से चुप कराया और फिर सुषमा को अंदर के कमरे में लिटा दिया।
खुद वहीं सिरहाने बैठ कर उसके होश में आने का इंतजार करने लगा। कंखियो से वह सुषमा के मासूम चेहरे को निहारे जा रहा था। इसी लड़की की मुस्कुराहट और सादगी पर फिदा था वह। कितने हसीन पल थे वे कॉलेज के दिनों के। जब सुषमा उसकी जिंदगी से चली गई थी तो कितना हताश हो गया था वह। पर उसने अपने आप को किसी तरह संभाला।
पिताजी के जाने के बाद आखिर मां और छोटी बहन का वही तो सहारा था, फिर अपनी जिम्मेदारियों से कैसे पीछा छुड़ाता। पर अपने साथ नाइंसाफी कर गया। सुषमा के अलावा दिल में किसी और लड़की को जगह नहीं दे पाया राजवीर।
मां कहती रही कि शादी कर ले बेटा, पर उसने तो जैसे कसम खाई थी शादी ना करने की। अचानक सुषमा की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी। सुषमा आश्चर्य से उस कमरे की सभी चीजों को देखने लगी, मानो किसी को खोज रही हो, तभी राजवीर की आवाज से वह उसकी तरफ मुखातिब हुई।
जैसे ही राजवीर को उसने देखा, एक बच्चे की भांति उसके गले से लिपट गई। चंद साल ही तो हुए थे दोनों को एक– दूसरे से अलग हुए। राजवीर ने भी उसे अपने से चिपका लिया। सहानुभूति का मार्मिक स्पर्श सुषमा को अंदर तक छू गया।
तभी अचानक से सुषमा ने अपने आपको राजवीर से अलग किया,शायद दोनों को अपने-अपने दायरे का भान हो गया था। राजवीर के सामने बहुत सारे प्रश्न थे, जिसका जवाब वह कई सालों से ढूंढ रहा था।कमरे में बंद होने की घटना से लेकर आज तक की सारी घटनाएं उसके लिए एक प्रश्नचिन्ह बनी हुई थी।
पर अभी सबसे बड़ा सवाल यह था कि आखिर सुषमा अपने ससुराल से क्यों भागी? चंद दिनों में ही ऐसा उसके साथ क्या घटित हो गया। तब सुषमा ने एक ठंडी सांस लेते हुए जो बातें बताई,वह वाकई में खून जमा देने वाली बात थी। कितने अजीबोगरीब हालात में सुषमा की जिंदगी गुज़र रही थी। कितना कुछ सहा उसने।
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2.रहस्यमयी लायब्रेरी(Mystery of Library)
कभी नींद में बड़बड़ाती तो कभी एकांत में अपने आप से ही बात करती रहती। मां– पिताजी परेशान रहने लगे। एक आकृति को मैं हमेशा अपने आसपास महसूस करती रहती । शायद वो साया मेरे से कुछ कहना चाहता हो या कुछ करवाना चाहता हो।
पर एक बात तो मैं निश्चित रूप से कह सकती थी कि वह साया एक आदमी का था। एक रात मैं अपने कमरे में नींद का इंतजार कर रही थी। करवट बदलते– बदलते आधी रात बीत गई,पर नींद आने का नाम ही नहीं ले रही थी। अचानक से एक तेज हवा का झोंका मेरे पास से गुजरा और मेरी कान की बाली को छू गया। अपने कानों में मैंने सुषमा– सुषमा की ध्वनि स्पष्ट सुनी। मैंने इधर–उधर देखा,पर
मैं मुंह से मां मां की आवाज निकालना चाहती थी पर आवाज गले में ही अटक गई। अचानक मेरे सामने एक आकृति हवा में लहराई और डर से वहीं बेहोश हो गई। फिर सुबह जब आंख खुली तो मैं अपने बिस्तर पे थी और मेरे पास ही मेरी मां चिंतातुर होकर बैठी हुई थी।
पिछले रात वाली घटना मैं मां को बताना चाहती थी पर कुछ सोचकर चुप रह गई। इन घटनाओं को बतलाकर मैं उन्हें और परेशान नहीं कर सकती थी। अपनी जिंदगी से तंग आ गई थी मैं।
अगले दिन मेरी जिंदगी के किताब के पन्ने बदलने वाले थे। मेरे लिए एक महेंद्र नाम के लड़के का रिश्ता आया। वो रिश्ता कैसे और किसके द्वारा आया,ये बात ना मेरे घर वालों को और ना ही मुझे पता चली। पिताजी ने घर और खानदान देखा और मुझे ब्याह दिया।
मैने भी सोचा कि,चलो मेरी जिंदगी में भी खुशियां दस्तक देंगी। अपनी भावी जिंदगी से मैं अंदर ही अंदर प्रफुलित होने लगी। पर पिक्चर का क्लाइमेक्स तो अभी बाकी था। सुषमा कंपकंपातीकांपती हुई बोले जा रही थी और राजवीर ध्यान से सुन रहा था।
विदाई के बाद जब मैं अपने ससुराल गई तो मुझे वहां का माहौल बड़ा अटपटा लगा। जैसे कि शादी वाले घर में भी दो– तीन लोगों के अलावा और कोई रिश्तेदार शरीक नहीं हुआ। महेंद्र के पिताजी का देहांत कुछ साल पहले हो गया था। घर में मेरी सासू मां और पति के अलावा बस मैं ही थी।
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मेरी सासू मां अजीब नजरों से मुझे हमेशा घूरती रहतीं। एक चीज़ और आश्चर्यचकित कर रही थी कि मां और बेटे को मैंने बातचीत करते कभी नहीं देखा। पति महेंद्र शादी की पहली रात को पता नहीं कहां चले गए। जब मैंने अपनी सासू मां से ये बात पूछी तो मुझे ऐसे देखने लगीं,मानों मैने पूछकर कोई गुनाह कर दिया हो।
मैं अपने कमरे में आ गई। इंतज़ार करते-करते कब आंख लग गई,पता नहीं। जब उठी तो देखा कि महेंद्र बिस्तर पर औंधे मुंह लेटे हुए हैं। एक अजीब सी छुअन का एहसास हमेशा होते रहता मुझे।
हां! एक बात मुझे सकते में डाल रही थी। जिस आकृति को मैं शादी के पहले कभी– कभी महसूस करती थी वह इस घर में हमेशा उसके अस्तित्व का एहसास मुझे मिलने लगा। अगले दिन शादी के बाद जब मैं अपने ससुर जी के फोटो के सामने खड़ी होकर प्रणाम कर रही थी, तभी मुझे लगा कि उनकी आंखें हिल रही हैं।
डर के कारण मैं जैसे ही मुड़ी ,तभी कानों में सुषमा– सुषमा की आवाज़ गूंजने लगी। मैंने इस बात का जिक्र भी महेंद्र से किया,पर मेरी बातें उन्हें बचकानी लगी। एक रात मैं सोई थी, तभी मुझे लगा कि कोई मेरा नाम लेकर पुकार रहा है।
मैं अर्धनिंद्रा की अवस्था में बिस्तर से उठी और कमरे से निकलकर गलियारे में जाने लगी।तभी मेरे सामने एक साया प्रकट हो गया। मैंने भागने की कोशिश की,तभी मेरे ससुरजी की तस्वीर हवा में लहराने लगी।मैं चिल्ला रही थी,पर कोई मेरी मदद के लिए नहीं आया।
पता नहीं वो लोग किस दुनिया में खोए रहते थे। शादी के तीसरे दिन की ही बात है। मैं खिड़की के पास खड़ी अपने विचारों में खोई पौधों को देख रही थी। मेरी सासू मां पौधों को पानी दे रही थीं। तभी मैंने देखा कि वो किसी से बात कर रही हैं,पर मुझे कोई आसपास नज़र नहीं आया।
उस दिन मैंने उन्हें पहली बार मुस्कुराते देखा था। मैं दौड़कर उनके पास गई तो मुझे देखते ही उनके चेहरे के रंग ही बदल गए और एक खामोशी की चादर पुनः चेहरे पे आ गई। तभी मुझे लगा कि कोई हठात वहां से गुजरा हो।
महेंद्र से भी बताने का कोई फायदा नहीं था। उस दिन के बाद से मैं अपनी सासू मां पे नजर रखने लगी। इतना तो मैं समझने लगी थी कि मेरे साथ जो कुछ भी हो रहा था, ये लोग इस बात से अनजान नहीं थे, बल्कि अनजान बनने का दिखावा कर रहे थे।
महेंद्र को भी इन सब बातों का पता जरूर होगा, पर मेरे सामने हमेशा अनजान बने रहते थे। यहां तक कि मां– बेटे भी आपस में बातचीत नहीं करते। वो रात मैं कभी नहीं भूल सकती,जिसके कारण मुझे इस घर से पलायन होना पड़ा।
उस रात एक अजीब सी बेचैनी से मेरी आंखें अचानक से खुल गईं।पास में देखा तो महेंद्र कहीं दिखे नहीं। आखिर इतनी रात को कहां गए होंगे,सोचकर बिस्तर से उठी। मुझे प्यास भी लग रही थी। मैं पानी पीने के लिए किचन की तरफ जाने लगी,तभी मैंने सासू मां के कमरे में लाइट जलते देखा।
सोचने लगी कि इतनी रात को जग क्यों रही हैं। मैं उनके कमरे की तरफ मुड़ी। कमरा अंदर से बंद था। की– होल में मैंने जाकर देखा कि महेंद्र और उनकी मां आपस में बातचीत कर रहे थे। पर वहां आसपास कोई तीसरा भी था, जिसके साथ उनकी बातचीत चल रही थी।
आसपास देखा पर कोई नजर नहीं आया।तभी सामने के शीशे में एक उभरती आकृति दिखाई दी। उस साए को देख कर मेरे गले से आवाज निकलनी ही बंद हो गई। जो तीसरा आदमी था वह मेरे ससुर जी थे जो अपनी पत्नी और बेटे से बातचीत कर रहे थे।
मेरा पूरा शरीर ठंडा हो गया। इसका मतलब था कि जिस आकृति का एहसास मुझे हमेशा होता रहता था, वह मेरे ससुर जी ही थे और यह बात इन दोनों को ही पता थी। आखिर वह मेरे पीछे क्यों पड़े हुए थे? यह सब देख कर मैं इतनी घबरा गई कि तुरंत वहां से भाग निकली।
मेरे हाथों से अभी मेरी मेंहदी भी नहीं छूटी थी और अपने ससुराल से मेरा पलायन हो गया। उस रात मैं भागती ही जा रही थी कि तुम मेरे सामने आ गए। मेरे दिमाग में वो सारी चीजें इस तरह से बैठ गई है कि मुझे हमेशा लगता रहता है कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। दो आंखें मुझे हमेशा घूमती रहती हैं। मैं किसी से बात करती हूं,पर बाद में पता चलता है कि वहां पर तो कोई है ही नहीं।
कहते– कहते सुषमा रो पड़ी। पता नहीं, क्यों मेरे साथ ऐसा हो रहा है? अपनी जिंदगी में इतनी खुश थी। तुम्हारा साथ मुझे इतना भाता था, पर उस एक रात ने मेरी जिंदगी की सारी कहानी ही बदल दी। आखिर जया का मैंने क्या बिगाड़ा था?
राजवीर ने सुषमा को ढांढस बंधाया और बोला कि हमें यह पता लगाना पड़ेगा कि महेंद्र के पिताजी क्यूं तुम्हारे पीछे पड़े हुए हैं और यह सब बातें उनके घर से ही पता चलेगी। तभी अचानक से राजवीर के दिमाग में एक बात कौंधी और सुषमा से पूछने लगा कि आखिर उस रात कमरे में ऐसा क्या तुमने देखा, जिसने तुम्हारे सारे अस्तित्व को ही बदल दिया।
यहां तक कि तुम्हारी शादी का भी इस कमरे से ही संबंध लगता है। उस बंद कमरे की सच्चाई आखिर क्या थी? महेंद्र के पिता का उस कमरे से जरूर कुछ ना कुछ समानता है,तभी तो ये सारी घटनाएं उस रात से ही शुरू हुई थी। राजवीर की बातों ने सुषमा को चौंका दिया। वह पसीने से नहा उठी।उसका सारा शरीर कांपने लगा। अगर राजबीर उसे नहीं संभालता तो वह वहीं पे गिर जाती।
उस रात का जिक्र उसने किसी के साथ नहीं किया था। फटी आंखों से उसने बोलना शुरू किया …………..
आखिर उस बंद कमरे की सच्चाई क्या थी? सुषमा ने ऐसा क्या देखा,जिसे वह अपने शब्दों में बयां नहीं कर पा रही है? महेंद्र के पिता का उस कमरे से क्या संबंध था ?जानने के लिए पढ़ें मेरी कहानी का अगला भाग…………
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Surprise Surprise aur kitna Surprise rakenge aap…Ab jald hi next part bhi likh dijiye……achi story hai
😮😱
Awesome story…👁👁👍👍
Abhutpurva writing skill…Awesome..👍