तलाश(वैंपायर लव–स्टोरी)अंतिम भाग
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
अब तक आपने पढ़ा––––———
सुषमा द्वारा बिताए एक रात की उस कमरे की कहानी सुनकर राजवीर हैरान रह गया था। उसके बाद घटी सुषमा की शादी की घटना भी कम आश्चर्यचकित करने वाली नहीं थी। राजवीर के सामने कई सारे सवाल थे,जिनके समाधान के लिए वो रास्ते ढूंढने की कोशिश करने लगा। अब आगे…………..
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3.भाग्य का खेल(Part –3)
सुषमा की मानसिक हालत ठीक नहीं थी। वह वास्तविकता और काल्पनिकता में फर्क करना ही भूल गई। हर समय खोई– खोई सी रहती। डरना उसका अभी भी कम नहीं हुआ था। उधर राजवीर को भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां से शुरुआत करें। इस रहस्य पर से पर्दा उठाना जरूरी था। पर कैसे? यही सब वह अपने ऑफिस में बैठे-बैठे सोच रहा था। सुषमा अब इस हालत में नहीं थी कि वह उससे कुछ और पूछे।
दिल के किसी कोने में राजवीर को अभी भी उसकी वापसी का इंतजार था। अब तो परिस्थितियां भी उसके अनुकूल हो गई। सुषमा की शादी एक मायाजाल निकली। पर इन हादसों को सुषमा तब तक नहीं भुला सकती,जब तक सच्चाई से वह रूबरू ना हो जाए।
राजवीर के दिमाग में एक बात कौंधी कि इस समस्या की शुरुआत कॉलेज से हुई थी तो रास्ता भी मुझे वहीं से मिलेगा। सबसे पहले उसने अपने ऑफिस में छुट्टी की अर्जी दी। फिर लग गया समस्या के समाधान खोजने में।
अगले दिन पहुंच गया कॉलेज। ज्यादा साल नहीं हुए थे वहां से निकले हुए, पर कितनी बदल गई है ये जगह। अतीत की यादें उसका पीछा करने लगी। सुषमा और वह यहीं पे तो पहली बार मिले थे। कॉलेज के प्रांगण में वह चहलकदमी करने लगा, तभी अचानक से उसके कदम ठिठके। वह बंद कमरा आज भी अपने सन्नाटे में सिमटा हुआ खड़ा था। जाने कौन सी कहानी इसके अंदर जकड़ी हुई है,मन ही मन बुदबुदाया।
कहां से शुरुआत करूं, किससे पूछूं, यही सब सोच रहा था तभी राजवीर एक लड़के से टकराया । सॉरी सर, सॉरी सर! कहते हुए, उस लड़के ने राजवीर के सामने हाथ जोड़ लिए। बातचीत से पता चला कि वह उस कॉलेज का चपरासी था। राजवीर ने अंधेरे में तीर मारने की सोची।
थोड़ी बहुत बातचीत करने के बाद बातों को घुमा फिरा कर कुछ मालूमात करने की कोशिश की।उसकी ये योजना व्यर्थ नहीं गई। उसी से पता चला कि उसके दादाजी इसी कॉलेज में काम करते थे। फिर उनकी जगह पर उसके पिताजी आए और अब वह यहां काम कर रहा था।
राजवीर ने अभी तक ऐसा कोई चेहरा नहीं देखा, जिसे वह जानता हो। जिससे वह टकराया, उसका नाम कमलेश रावत था। वह तो खुद इस कॉलेज में नया आया था, उसे यह बात कहां से पता होती। राजवीर निराश होकर बाहर की ओर मुड़ने लगा,तभी कमलेश की आवाज़ से उसके कदम सहसा रुक गए।
कमलेश–सर! मेरे दादाजी ने भी यहां काम किया था। हो सकता है कि यहां घटने वाली घटनाओं से वे वाकिफ हों। फिर उसने अपने दादाजी के बारे में बताया। साथ में राजवीर को ये बात भी पता चली कि उसके पिताजी की बीमारी के कारण कुछ साल पहले ही मृत्यु हो गई थी। घर में वह और उसके दादाजी ही थे, जिन्होंने बिस्तर पकड़ा हुआ था।
कमलेश के पिता की मृत्यु की बात सुनकर राजवीर ने संवेदना जताई। फिर अगले दिन घर पे आने को कहकर वहां से चला गया। राजवीर कमलेश से उसके घर का पता लेना नहीं भुला। घर पहुंचा तो देखा कि मां घर के आगे बेचैनी की अवस्था में चहलकदमी कर रही हैं।
जैसे ही उन्होंने राजवीर को देखा, उनकी जान में जान आई ।असल में सुबह-सुबह ही वह बिना बताए घर से निकल गया था। मां को उसने कुछ नहीं बताया था।
मां– क्या बात है बेटे! इधर कुछ दिनों से देख रही हूं, तू बड़ा परेशान है। कोई बात हो तो बता दे। टाल– मटोल करते हुए उसने बात को घुमाने की कोशिश की।
राजवीर– कोई बात नहीं है, मां! जरा ऑफिस के काम से बाहर चला गया था। तू सो रही थी,इसलिए तुझे उठाया नहीं। और कोई बात नहीं है।
फिर थोड़ी देर के बाद खाना खाया और सो गया। अगले दिन उसे कमलेश के घर जाना था। नियत समय पर वह उस पते पर पहुंच गया। उस समय कमलेश घर पर ही था। जैसे ही उसने राजवीर को देखा,तुरंत पास आ गया। साब! आइए, यह मेरा छोटा सा घर है, जहां मैं अपने बीमार दादा जी के साथ रहता हूं।
राजवीर ने घर के अंदर कदम रखा। आसपास नजर दौड़ाई तो घर बहुत व्यवस्थित लगा। तभी अंदर के कमरे से खांसने की आवाज आई। कमलेश उसे अंदर ले गया। राजवीर ने देखा कि एक बेड पर कोई बुजुर्ग लेटे हुए हैं। वो हिल– डुल भी नहीं सकते थे। उनके शरीर के आधे भाग में लकवा मार दिया था, सो बेड से उठना बैठना भी बंद था। बस जिंदगी की लौ बुझने का इंतज़ार था उन्हें।
कमलेश ने उनके पास जाकर राजवीर के बारे में बताया। उनसे सारी कहानी बताई। ये सुनकर उनके चेहरे का रंग ही उड़ गया। राजवीर उनकी मुखाकृति के बदलते रूप को ध्यान से देखने लगा। राजवीर ने तभी समझ लिया कि हो ना हो इस बात की जरूर जानकारी है उन्हें।
पहले तो वे साफ मुकर गए कि उन्हें कुछ भी मालूम नहीं है। पर जब राजवीर ने सुषमा की हालत के बारे में बताया,तब वे माने। जिंदगी किस तरह से अपनी सच्चाई को सामने लाती है,ये मैंने आज प्रत्यक्ष देख लिया । भाग्य का खेल इसी को तो कहते हैं। सभी को यहीं अपने कर्मों का हिसाब देना पड़ता है,कहते हुए दो बूंद आंसू उनके झुर्रिदार चेहरे पे अटक गए।
राजवीर उतावला होकर पास की कुर्सी खींचकर उनके पास बैठ गया। कांपती आवाज़ से उनकी कहानी शुरू हुई–– मेरा नाम राघवेंद्र रावत है। मैं उस कॉलेज में चपरासी हुआ करता था। सभी प्रोफेसर का मुंहलगा था मैं। उनलोगो के घर के काम भी कर दिया करता कभी –कभी। मेरे स्वभाव के कारण वे लोग कभी-कभी मेरी आर्थिक मदद भी कर दिया करते थे।
उन्हीं में से एक थे– प्रोफेसर विश्वनाथ सिंह,जैसा नाम,वैसी पर्सनेलिटी, जो भी पहली बार देखता, सकते में आ जाता। कड़क तो थे,पर रंगीन मिजाज़ भी थे उनके। छात्राओं के साथ उनकी पटरी ज्यादा जमती थी। कॉलेज के छात्र उनसे बहुत डरा करते। पढ़ाई के मामले में थोड़े सख्त भी थे। क्लास खत्म होने के बाद वे कितने छात्रों को ट्यूशन भी देते।
उन पढ़ने वालों में से एक लड़की थी दीया,उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। प्रोफेसर ने बहुत बार उसकी मदद की थी इसलिए वह उनके एहसान के नीचे दब गई थी। दीया इतनी खूबसूरत तो नहीं थी पर उसके चेहरे की मासूमियत से जरूर कोई आकर्षित हो जाता। कंधे तक बाल और गोरे रंग की दीया पर प्रोफेसर साहब थोड़े ज्यादा मेहरबां रहते।
ये बात पूरे कॉलेज में प्रसिद्ध थी। दीया पैसे की तंगी के कारण किताबों की व्यवस्था भी नहीं कर सकती थी, इसलिए प्रोफेसर ने अपने नाम के बल पर लाइब्रेरी के इंचार्ज से ये सांठ– गांठ बनवा ली थी कि जब भी दीया को किताबों की जरूरत हो,तुरंत उसे मिल जाए। यहां तक कि किताबों को लौटाने की भी कोई समय– सीमा दीया के लिए निश्चित नहीं की गई।
बहुत सारी सुविधाएं दीया को उनके द्वारा मिली थी। मैंने खुद अपनी आंखों से उनका यह आकर्षण देखा है। दीया ऐसे भी एहसान के नीचे दबी थी, इसलिए कोई प्रतिकार नहीं कर पाती। प्रोफेसर कभी– कभी उसे अपने दूसरे बंगले पर भी बुलाया करते थे।
कभी-कभी कॉलेज के सारे लोगों की छुट्टी हो जाती,पर दीया उनके साथ पढ़ती रहती । पर वही हुआ जिसका डर था। दोनों की नजदीकियां दोनों पर भारी पड़ गई। दीया प्रेग्नेंट हो गई। उस गरीब लड़की का रो– रो कर बुरा हाल था। प्रोफ़ेसर उसे बार-बार समझाते और बच्चा गिराने को कहते। पर मासूम दीया ये मानने को तैयार ही नहीं थी।
अब तो प्रोफेसर के लिए संकट का समय हो गया। उन्हें अपनी प्रतिष्ठा धूल में मिलती दिखाई देने लगी। अपने रुतबे पर आए संकट से निपटने के लिए उनके पास बस एक ही रास्ता था– दीया को अपने रास्ते से हटाना।
दीया और उनके बीच के रिश्ते के बारे में मुझे और लाइब्रेरी इंचार्ज को ही अधिक जानकारी थी। मैं ठहरा गरीब आदमी, पैसे के लालच में मैंने गलत काम में सहायता करना मंजूर कर लिया। इसी पाप की सजा तो मुझे मिली है कि मैं एक जिंदा लाश बन गया हूं। मेरे बेटे की अकाल मृत्यु हो गई,कहते हुए राघवेन्द्र जी की आंखें डबडबा गई।
कमलेश चुपचाप हैरत से यह सारी कहानी सुन रहा था । फिर उन्होंने अपनी कहानी को आगे बढ़ाते हुए बोला कि वह दिन मैं कभी नहीं भूल सकता । कॉलेज में अगले दिन गर्मी की छुट्टी होने वाली थी। पर प्रोफेसर के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था। इस काम में उन्होंने मुझे और लाइब्रेरी इंचार्ज को भी शामिल कर लिया। लाइब्रेरी इंचार्ज ने साथ देने से मना किया तो उन्हें धमकी देने लगे।
दीया उस दिन कॉलेज आई तो, पर वापस घर नहीं जा सकी। प्रोफ़ेसर ने उसे किसी बहाने से कॉलेज के एक कमरे में बंद कर दिया। अगले दिन कॉलेज बंद ही हो गया। किसी को कुछ पता नहीं चला, बस मुझे और उस इंचार्ज को ही इस बात की जानकारी थी। कॉलेज बंद हो गया और बंद हो गए दीया के जीवन की ज्योति भी।
अंधेरे और अकेले कमरे में एक प्रेग्नेंट लड़की कब तक जिंदा रहती। किसी को कुछ पता नहीं चला। जब कॉलेज खुला तो पूरा कॉलेज एक अजीब गंध से भरा था। जब उस कमरे को खोला गया तो दीया की लाश जमीन पर पड़ी हुई थी और पूरी तरह सड़ गई थी। कमरे की दीवारें जगह-जगह पर उतरी हुई थी, मानो उसे खोदा गया हो। जगह –जगह पर खून के निशान पड़े हुए थे,जो सूखे मिले।
लाश इस कदर सड़ी हुई थी कि उसमें कीड़े लग गए। अपनी जिंदगी बचाने की उसकी जद्दोजहद उस दीवारो पे स्पष्ट दिख रही थी। कॉलेज के स्टेटस को ध्यान में रखते हुए मामले को वहीं दबा दिया गया। ऐसे भी दीया गरीब लड़की थी। उसके पिता कहां फरियाद करते और कौन ध्यान देता।
यह बात फिज़ा में फैल गई कि गलती से वह लड़की बंद हो गई होगी कमरे में। किसी का भी ध्यान उन पर नहीं गया। पर उनकी काली करतूतें अभी तक रुकी नहीं थी। चोर को हमेशा अपनी चोरी के पर्दाफाश होने का डर रहता है।
ऐसा कुछ भी सुराग वो अपने पीछे नहीं छोड़ना चाहते थे। उन्होंने लाइब्रेरी के इंचार्ज को भी अपने रास्ते से हटाने को सोची। बेचारे कुछ महीनों बाद रिटायर होने वाले थे,पर जिंदगी से ही रिटायर हो गए। मेरे साथ मिलकर उन्हें भी रातों– रात गायब करवा दिया और दूर किसी खाई में फेंक दिया। तभी तो उनका अब तक पता नहीं चल पाया है।
मैं ठहरा गरीब आदमी, पैसे से मेरा मुंह बंद हो गया। पर कुदरत की मार से मैं बच नहीं पाया। समय के साथ उस घटना को भी लोग भूलते गए। एक दिन मैं उस कमरे की सफाई करवा रहा था, तभी मुझे लगा कि किसी ने मेरी गर्दन पर हाथ रखा। मैं पीछे पलटा तो एक साया मेरे पास से गुजरा।
तभी अचानक से मुझे अपनी गर्दन की नस तनी हुई लगी,मानों कोई मेरा गला दबा रहा हो और मैं वहीं पर धम्म से गिर गया। जब होश आई, तो पता चला कि मैं हॉस्पिटल में हूं और मुझे लकवा मार गया है। अब बिस्तर ही मेरी जगह है। मुझे मेरे कर्मों की सजा मिल गई,कहते हुए राघवेन्द्र जी सुबकने लगे। उनकी बेबसी इस कदर थी कि वे अपने आंसू पोंछने के लिए भी अपना हाथ नहीं उठा सकते थे।
राजवीर के सामने सारे रहस्य खुलने लगे थे। उसने जब लाइब्रेरी इंचार्ज का नाम पूछा,तो उन्होंने सुरेंद्र प्रताप सिंह बताया। अब राजवीर को समझ में आने लगा कि सुरेंद्र जी ने सुषमा को माध्यम बनाया ताकि दुनिया को दीया की हकीकत पता चले और दोषी को सजा मिले।
अब बस उस प्रोफेसर की जानकारी बची थी,मतलब वो कहां रहते हैं और क्या कर रहे हैं,क्योंकि उस घटना के कुछ महीनों के बाद उन्होंने भी कॉलेज छोड़ दिया था। अब वे कहां हैं,ये राघवेन्द्र जी को भी नहीं पता था।
राजवीर ने राघवेन्द्र जी से उनके घर का पता लिया और वहां से जाने के लिए मुड़ा। उन प्रोफेसर पे उसे बड़ा क्रोध आ रहा था, जिन्होंने दो– दो नहीं बल्कि एक अजन्मे बच्चे की भी हत्या की थी। करे कोई, भरे कोई वाली कहावत चरितार्थ होने लगी यहां।
लेकिन अब बस। अगले दिन ही वह उस पते पर पहुंच गया। बाहर नेमप्लेट लगा हुआ था,जिस पे काशीनाथ सिंह खुदा हुआ था। ये पढ़कर तो राजवीर के पैरों तले जमीन खिसक गई। ये तो जया के पापा का नाम है जिसे उसने जया के मुंह से कभी– कभी सुना था,क्योंकि इसी नाम का तो रोब वह सब पर झाड़ती रहती थी। तो क्या उसके पापा इन सब के जिम्मेवार हैं।
पर उसके पिता तो बिजनेसमैन थे,और जिस दोषी को वह ढूंढने आया है,वह तो एक प्रोफेसर है। कहीं मैं गलत पते पे तो नहीं आ गया,सोचते हुए उसने पते वाले कागज को बार– बार पढ़ा।पता तो यही है,राजवीर बहुत दुविधा में था। अब सब कुछ अंदर जाकर पता चलेगा।
कई सारे सवालों के साथ उसने कॉलबेल बजाई। दरवाजा एक अधेड़ औरत ने खोला, सवालिया नजरों से उसने राजवीर की तरफ देखा।
वह औरत कौन थी , जया का उस प्रोफेसर से क्या संबंध है? क्या उसके पिता भी इन सब कार्यों में लिप्त थे । जया का हाल क्या है? यह सब जानने के लिए पढ़ें मेरी कहानी का अगला भाग………
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
अब तक आपने पढ़ा–– जयंत को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे कैसे पता करें निधि के बारे में? हर दिन ...
अब तक आपने पढ़ा...... जयंत के सामने हर दिन नई– नई सच्चाई सामने आ रही थी। वह निधि से पीछा छुड़ान...
अब तक आपने पढ़ा…… हर दिन घटने वाली नई-नई घटनाऐं अब जयंत को परेशान करने लगी थी...
Excellent and suspicious story..waiting for next……….
👍👍😯
Please post the next part ASAP. It us getting interesting…Eagerly waiting..