🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
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अब तक आपने पढ़ा…….
राजवीर के सामने सारी कलियां धीरे-धीरे जुड़ने लगी थी। सालों पहले कॉलेज में दीया के साथ जो भी घटना घटी, उन सब का दोषी वह प्रोफ़ेसर था जिसने 3–3 हत्याएं की। अब बस उस दोषी को समाज के सामने लाना बाकी था। इसी बात का पता करने राजवीर उस प्रोफेसर के घर गया पर आगे में नेमप्लेट देखकर सन्न रह गया। वह जया के घर के आगे खड़ा था। अब अंदर जाकर ही पता चलेगा कि आखिर माजरा क्या है? जया और प्रोफ़ेसर के बीच आखिर क्या रिश्ता है यही सब सोचते हुए राजवीर उस अधेड़ उम्र की महिला के साथ अंदर गया। अब आगे…….
राजवीर के कदम जैसे ही हॉल में पड़े, एक चिरपरिचित आवाज ने उसे चौंका दिया। कौन है मम्मी,ये सम्बोधन सुनकर पीछे से आती आवाज की ओर राजवीर पलटा। व्हीलचेयर पर कमरे से निकल रही जया को देखकर वह हैरत से भर उठा। जया ने भी जब राजवीर को अपने घर पर देखा तो आश्चर्यचकित रह गई।
जया– अरे! राजवीर तुम, यहां कैसे आना हुआ? कैसे हो तुम? सुषमा कैसी है? शादी–वादी हुई कि नहीं, क्या कर रहे हो आजकल , आदि जैसे अनगिनत सवाल उसने राजवीर के सामने खड़े कर दिए।
जया की आवाज में नम्रता देखकर राजवीर ने दांतों तले उंगली दबा ली। क्या ये वही आवाज़ है,जो मैं कॉलेज के दिनों में सुना करता था। ना उस आवाज़ में कोई अकड़ थी और ना ही घमंड। वह चुपचाप बोलती जया को देखे जा रहा था। जया ने उसकी मनोस्थिति भांपते हुए बोला कि सब भाग्य का खेल है राजवीर।
आदमी किस्मत का गुलाम होता है, जब समय की मार पड़ती है तो सारे अक्ल ठिकाने आ जाते हैं। तभी राजवीर की नजर सामने दीवार पर टंगे हार चढ़ी एक फोटो पे पड़ी। वह जया की ओर सवालिया नजरों से हैरत से देखने लगा था। राजवीर! ये मेरे पापा हैं, जिनकी फैक्ट्री की धौंस मैं सब पे जमाती थी और जिनके पैसे का रौब मेरे सर पे छाया रहता था, उसी फैक्ट्री में अचानक से आग लग गई। जाने कितने मजदूर मारे गए। उसमें मेरे पापा की भी जान चली गई। कहते हुए जया सिसकने लगी।
राजवीर ने आगे बढ़कर उसे ढांढस बंधाया। मन ही मन वह सोच भी रहा था कि एक बात तो साफ हो गई कि वह प्रोफेसर जया के पापा नहीं हैं तो फिर उनका इस घर से क्या रिश्ता है। उलझन भरे स्वर से उसने बोला कि, रो मत जया, सब कुछ अपने हाथ में नहीं होता।
तभी उसकी मम्मी दोनों के लिए चाय लेते आई और चुपचाप से रख कर वहां से चली गई। उनका व्यवहार राजवीर को बहुत अजीब लगा। ना कुछ पूछताछ,ना कोई बातचीत ,बस सूनी और सधे कदमों से जैसे आई थीं,वैसे ही अपने कमरे में भी चली गईं। उनके व्यवहार से ऐसा प्रतीत हुआ कि बेटी से उनको कोई मतलब ही नहीं है एकदम खोई–खोई सी।
जया राजवीर की शंकाओं को तुरंत समझ गई। उसने कहा कि पापा के जाने के बाद मम्मी गुमसुम रहने लगी हैं। दो बार उन्हें मानसिक दौरे भी आ चुके हैं। इलाज करवाया पर कोई सुधार नहीं हुआ है। डॉक्टर का कहना है कि मानसिक आघात से ये अपने संवेदनक्षमता खो चुकी हैं। बस ये हमेशा कोशिश करें कि अब कोई दूसरा आघात इनके मतिष्क पे ना पड़ें,वरना ये बर्दाश्त ना कर पाएंगी।
मम्मी को तो कभी– कभी ये भी नहीं याद रहता है कि मैं उनकी बेटी हूं। तो कभी इतना लाड दिखाती हैं कि मन करता है,इस पल को ऐसे ही संजो लूं,कहते हुए जया सुबकने लगी।
राजवीर ने सहानुभूति वाला स्पर्श उसके सर पर रखा। उसकी हालत पे राजवीर को भी बुरा लग रहा था। जया तुम्हारी यह हालत कैसे हो गई, कुछ बीमारी हो गई थी क्या? राजवीर ने फिर से उस पर सवाल दागा।
इस बात पर जया अचानक से सहम गई, मानों उसने कोई भूत देख लिया हो। बहुत लंबी कहानी है राजवीर। समय ने मुझ पर बहुत बड़ा तमाचा मारा । उस रात सुषमा को मैंने कमरे में जो बंद कर दिया था, उसकी सजा मैं आज भुगत रही हूं। मुझे कुछ समझ नहीं आता कि मैं क्या करूं? आखिर मेरे साथ क्या हो रहा है? यह बात मेरी समझ से बाहर की है।
मम्मी को बता नहीं सकती। तुमसे कहकर शायद जी हल्का हो जाए। जया सूनी आंखों से अपना दर्द बयां करने लगी। सालों पहले वाली घटना उसकी आंखों के सामने चित्रवत चलने लगी। उस दिन जब सुषमा उस बंद कमरे से बाहर निकली थी, तब उसने मुझे आग्नेय नेत्रों से देखा था। उसका यह रूप देखकर मैं सिहर गई। वह सबके साथ नॉर्मल रहती पर मेरे साथ उसके व्यवहार ही बदल जाते। उस समय मैं भी अपने शरीर में कुछ अलग सी हरकत महसूस करती थी।
इस चीज को मैं तब समझ नहीं पाई और हल्के में लिया। मतलब उस दिन के बाद से जब मैं घर आई तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं एक नहीं बल्कि दो हूं। मैं आगे चलती तो मुझे एहसास होता कि कोई मेरे साथ भी चल रहा है, पर वह मुझे दिखाई नहीं देता।
एक दिन तो मैं हैरान रह गई, जब मैं नहाने के लिए बाथरूम में घुसी तो शीशे में मुझे अपना चेहरा ही नहीं दिखाई दिया । घबराहट में मैंने आप को छूकर देखा पर सामने मेरा अक्स ना था। डर के मारे चिल्ला रही थी पर मेरी आवाज शायद बाहर ही नहीं जा रही थी।
तभी अचानक से शीशे में मैं दिखने लगी। उस समय बाथरूम की सब वस्तुएं हवा में लहराने लगी।फिर अचानक से सब शांत हो गया। अचानक से नीचे देखा तो किसी के पैरों के चलने के निशान थे,पर कोई नज़र नहीं आया।
जब रात में सोती तो मेरे सिरहाने मुझे एहसास होता कि कोई और भी सोया हुआ है। एक रात जब अचानक से नींद खुली तो मैं बिस्तर के नीचे ज़मीन पे लेटी हुई थी। हड़बड़ा कर मैंने पलंग पर चढ़ने की कोशिश की तो लगा किसी ने मुझे धक्का मार दिया हो। अब तो यह रोज की बात हो गई।
उस दिन मुझे बहुत भूख लगी थी। मैंने मम्मी से खाना मांगा तो वह आश्चर्य से मुझे देखने लगी। मैंने सवालिया नजरों से उनकी ओर देखा तो वह बोली कि अभी तो मैंने तुझे भरपेट खाना खिलाया है, फिर से तुझे कैसे भूख लग गई। मैं सब समझ गई थी कि खाना किसने खाना खाया होगा पर मैंने मम्मी से कुछ कहा नहीं और हंसकर वहां से चल दी।
मम्मी की मानसिक हालत को ध्यान में रखते हुए मैंने यह सब घटना अभी तक उनसे नहीं कहा था, पर वह अंदर ही अंदर नासूर बनके मुझे खोखला कर रहा था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि वह मुझे दिख ही नहीं रहा था। आखिर कौन है, जो मेरे साथ यह खेल खेल रहा था। एक दिन तो हद ही हो गई, मैं जीने पे चढ़ने की कोशिश कर रही थी पर ऐसा लगा मानों किसी ने मेरे पैर पकड़ लिए हो।
मैं पसीने से नहा उठी ,उस दिन मम्मी भी घर पर नहीं थी। सबसे आश्चर्य वाली बात यह होती थी कि यह सब घटनाएं मम्मी के सामने नहीं होती। तभी अचानक से कॉलबेल बजी । मैंने सोचा कि मम्मी होगी, जाकर दरवाजा खोला तो एक लड़की खड़ी थी। गोरी और कंधे तक बाल थे, उसके पेट के उभार से प्रतीत हुआ कि शायद वह प्रेग्नेंट होगी। उसने मुझे ऐसे देखा, मानो वह मुझसे खफा हो,जबकि मैंने उसे आज से पहले कभी देखा नहीं था।
मैंने पूछा कि, कहिए! किससे मिलना है आपको? तभी हवा में एक गूंजती हुई आवाज मेरे कानों में पड़ी। तुझसे ही तो मिलने आई हूं, तेरे साथ रहने आई हूं। मैंने स्पष्ट देखा कि उस लड़की के होंठ नहीं हिल रहे थे पर मुझे अट्टहास करती हुई आवाज जरूर सुनाई दी।
फिर देखते ही देखते वह लड़की अचानक से हवा में विलीन हो गई। ऐसा लगा उसे जमीं ने खा लिया या हवा ने निगल लिया। अचानक से मुझे अपने शरीर में कुछ भारीपन महसूस हुआ। मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मेरे साथ क्या हो रहा है? डर के मारे मैं वहीं जमीन पे गिर पड़ी।
उस दिन के बाद से मेरी कमर के नीचे हरकत होना बंद हो गया। अब मैं, मेरी व्हील चेयर और मेरे आस-पास अनजाना साया हमेशा साथ रहता है। आज तक मैंने यह बात अपनी मम्मी तक को भी नहीं बताई थी। आज तुम्हें देखा तो सारा पिछला किया कराया याद आ गया और मैं अपने आप को रोक नहीं पाई।
इस घर में एक वीरानी सी छा गई है। मम्मी अपने कमरे में ही रहना ज्यादा पसंद करती हैं। पापा चले ही गए। मेरी हालत तो देख ही रहे हो। एक ताऊ जी हैं जो यूएसए से मदद भेजते रहते हैं। सालों पहले वे अमेरिका जाकर बस गए। इतना कुछ हमारे साथ हो गया। घर संभालने वाला कोई नहीं है,पर India आना ही नहीं चाहते। वहीं से मदद भेजते रहते हैं। उन्होंने घर को संभालने के लिए एक केयरटेकर रखा है जो हर काम करती है और हमारे साथ ही रहती है।
आज वह किसी काम से बाहर गई हुई है तभी तो मम्मी को चाय बनाना पड़ गया। बहुत साल हो गए,मैंने भी ताऊ जी को नहीं देखा है। जया की कहानी सुनकर राजवीर को कुछ– कुछ समझ आने लगा ,बस ताऊ जी का नाम जानना बाकी था। इस बात को निश्चित करने के लिए,उसने जया से जब उनका नाम पूछा तो उसके मुंह से निकले शब्द सुनकर सारी गुत्थियां आपस में जुड़ गई।
जिस बात का पता करने राजवीर आया था, उसमें वह सफल हो गया। अब केवल अंतिम रूप देना बाकी था। इसके लिए प्रोफ़ेसर को यहां बुलाना जरूरी है,यही सब सोचते हुए उसने जया की ओर कुछ कहने के लिए अपने कदम बढ़ाए।
राजवीर– जया! तुम्हारी कहानी सुनकर बहुत दुःख हुआ,पर अभी और भी कुछ सुनना बाकी है तुम्हारे लिए। इसके लिए अपने आप को तैयार कर लो। फिर उसने कॉलेज में घटी घटना से लेकर सुषमा के साथ जो कुछ भी हुआ,सब ज्यों की त्यों बयां कर दी।
जया हैरत से सब सुने जा रही थी। उसे अपने कानों पे भरोसा ही नहीं हुआ। आज के युग में भी ऐसा हो सकता है क्या,पर वह खुद भी तो इस सजा से भुगत रही थी।
राजवीर–उस रात जब सुषमा को तुमने बंद किया था और अगले दिन वह बाहर निकली,तो उसके साथ एक नहीं बल्कि दो दो आत्माएं आसपास थीं। सुरेंद्र जी ने सुषमा को इस कहानी का माध्यम बनाया,तभी तो इसका सच पता चल सका। दूसरी ओर दीया ने तुम्हें पकड़ा,क्योंकि उसका अपराधी तुम्हारे ताऊ जी ही थे।
जिसतरह से तुमने उस लड़की की रूपरेखा बताई है,वह दीया के अलावा कोई और हो ही नहीं सकता। इसी को तो भाग्य का खेल कहते हैं। तुम्हारे ही परिवार के सदस्य ने अपराध किया और उसी परिवार के दूसरे सदस्य ने इस घटना को सामने लाने के लिए पहल किया।
मंशा जो हो तुम्हारी,ना तुम सुषमा को बंद करती और ना ही ये कहानी बाहर आ पाती। पाप कभी छुपता नहीं। बाहर आने का वह अपना माध्यम किसी न किसी तरीके से बना ही लेता है। यही तो भाग्य का खेल है। कहानी तुम्हारे ताऊजी ने शुरू की थी तो खत्म भी उन्हें ही करना होगा।
जया मूक होकर बस सुने जा रही थी। जब तक विश्वनाथ जी यहां आकर अपने गुनाह कबूल नहीं कर लेते, दीया यूं ही घूमते रहेगी। सुषमा तो इस घटना से जुड़ी हुई नहीं थी पर फिर भी उसने कितना कुछ सहा है।
प्रोफ़ेसर को इन सब का जवाब देना ही होगा। राजवीर की बातों ने जया के पैरों तले जमीन ही खिसका दी। जिस खानदान पर वह गुमान करती थी, उसी ने उसे पैरों तले रौंद दिया। थोड़ा संयत होकर राजवीर ने जया को समझाया कि अपने ताऊ जी को किसी ना किसी बहाने से यहां बुलाओ,तभी इस घटना का पटाक्षेप होगा।
जया (सोचते हुए) –हमारे साथ इतना कुछ हो गया,उनके भाई चले गए तब तो वे आए ही नहीं। कैसे उन्हें बुलाऊं?वह इसी सोच विचार में पड़ गई। फिर अपने आप को तैयार करके फोन घुमाया और अपनी मां की बीमारी का हवाला देकर और अपनी असमर्थता का जिक्र करके मजबूर किया।
दूसरी तरफ से उनकी हां का इंतजार करते हुए जया ने रिसीवर को थामे ही रखा। पहले तो उन्होंने थोड़ी आनाकानी की,पर कुछ पल के बाद वे मान गए। फोन रखते ही ये बात जया ने राजवीर को बताई तो उसके चेहरे पे सुकुनता भरी मुस्कान फैल गई।
करीब एक हफ्ते बाद वो यहां आए। उस दिन जया ने राजवीर को भी अपने यहां बुलवा लिया था।कितने सालों बाद विश्वनाथ जी भारत आए थे। जया ने राजवीर का परिचय अपने दोस्त के रुप में करवाया था। वह और ताऊ जी आपस में बात करने लगे।
बातों ही बातों में राजवीर ने दीया की बात छेड़ दी। अचानक से उसका नाम सुनते ही वे सकपका गए। फिर तो उन्हें राजवीर और जया ने चारों तरफ से घेर लिया। अपनी बदकिस्मती की कहानी बताई, सुषमा के साथ जो हो रहा था, वह भी बताया।
अपना किया हुआ जगजाहिर होते देख अब उनके पास इसे स्वीकारने के सिवा और कोई चारा नहीं था। अपने हृदय पे लगे बोझ को अब वे सह नहीं पाए और फूट-फूट कर रो पड़े ।
विश्वनाथ जी– यहां से जाने के बाद वहां भी मैं खुश नहीं रह पाया। एक अपराधबोध भरा जीवन जीना मेरे लिए अब असहाय हो रहा था। अपने आप को कानून के हवाले करना अब मंजूर है मुझे। राजवीर को एक बात अब भी समझ में नहीं आ रही थी कि कॉलेज के उस कमरे में सुरेंद्र जी की आत्मा कैसे आ गई,जबकि उनकी मृत्यु तो वहां नहीं हुई थी।
प्रश्नवाचक दृष्टि से उसने विश्वनाथ जी की ओर देखा,तो उन्होंने एक और रहस्य उजागर किया। विश्वनाथ–दीया की मृत्यु के बाद सुरेंद्र मुझपे दबाव डालने लगा कि मैं अपने आप को पुलिस के हवाले कर दूं,वरना वह खुद सच्चाई कह डालेगा। मेरे सामने उसे रास्ते से हटाने के सिवा और कोई चारा नहीं था।
एक दिन मैंने उसे धोखे से उसी कमरे में बुलाया और थोड़ा मनुहार करते हुए नशे की गोली पानी में डालकर पिला दी।फिर जब उसपर नशा होने लगा तो उसका गला दबा दिया। जब मैंने राघवेंद्र को मदद के लिए बुलाया था,उस समय उसकी लाश जमीन पे पड़ी हुई थी,पर ये बात मैंने राघवेंद्र से छुपा ली। वो तो पैसों पे बिका हुआ था ही।
उससे बस इतना ही कहा कि इसे ठिकाने लगाना है,अभी बेहोश पड़ा हुआ है। ये सुनकर राजवीर और जया एक दूसरे का मुंह देखने लगे। कितना घिनौना काम किया था इन्होंने।
अगले दिन पुलिस स्टेशन जाकर उन्होंने सारी कहानी बताई और अपने आप को गिरफ्तार करवा लिया। उधर राजवीर ने दीया और सुरेंद्र जी के नाम पे शांति पूजा करवाई और ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर उनकी आत्मा को तृप्त किया। अब डर का साया तो खत्म हो गया था,पर जया शायद ही अपनी परेशानियों से उबर पाए। हां! जिस डर में वो जी रही थी, वो खत्म हो गए।
उधर सुषमा धीरे धीरे नॉर्मल होने लगी थी। राजवीर ने उसका हर कदम पे साथ दिया था। उससे बढ़कर और कोई अच्छा जीवनसाथी उसके लिए हो ही नहीं सकता था। राजवीर का भी इंतज़ार खत्म हुआ।
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Bahut shaandaar aur suspicious story thi aapki….sare part jabardast lage….bahut acha likha aapne 👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼
Was waiting for the last part eagerly. Now after reading it I m like why it’s ending so early.. Very nice writing.. Keep up the good work and keep entertaining us with ur writing..
Iss last part ka bahot hi wait kr rhi thi…kafi jaandaar story thi …