तलाश(वैंपायर लव–स्टोरी)अंतिम भाग
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
🪑खिड़की से सटी मेरी मेज़ और वहीं पास में बैठी मै कुर्सी पे, बार– बार हाथ कलम📝 को पकड़े कागज़ पे टिकाती,थोड़ी– सी लिखती,फिर बंडल बनाकर उस कागज़ को पास में ही पड़ी कूड़े की बाल्टी🗑️📃 में डाल देती। कुछ नया लिखने की कोशिश में दिमाग को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या लिखूं🥴
अपने पाठकों के मन को गुदगुदाने की कोशिश में कागजों के बंडल कूड़ेदान🗑️📃 में उठते ही जा रहे थे। असल में मुझे कुछ लतीफे लिखने थे,पर समझ नहीं आ रहा था कि किस सिरे को पकडूं, तभी दरवाज़े के सांकल के बजने की आवाज़ हुई🚪। अनमने ढंग से उठी 🤯,मेरे समय को बांटने अब कौन आ गया? दरवाजा खोला तो सामने मनसुख लाल जी ,ओह! गलती से उनका प्रचारु नाम निकल गया,दांत निपोरते हुए खड़े थे 😁। वे मेरे पिताजी के साथी हैं,शायद उन्हीं के बारे पे पूछने आए होंगे।
पर उन्हें देखकर मेरे दिमाग की बत्ती अवश्य जल उठी💡💡। मुझे लिखने का कोई माध्यम तो मिला। पिताजी से उनके बारे में बहुत कुछ सुन रखा था।चलो,आज उन्हें ही अपनी कलम का साथी बनाती हूं,सोचकर मंद– मंद मुस्करा उठी।
गूंगे का गुड़
मनसुखलाल जी हमारे पड़ोस में ही रहते हैं। इनकी बातें भी गजब की होती हैं, अब इनके नाम सुनकर अचरज ना करना😀😳। मां– पिता ने बहुत सोच– समझकर इनका नाम मानिक चंद्र रखा था पर इनकी खुद की आदत ने ही इनके नाम को बदल डाला। अब ये दुनिया में मनसुख लाल के नाम से ख्याति पाए हुए हैं।
उम्र लगभग 50 –55 की होगी । दांतों ने तो हिलना भी शुरू कर दिया है ,पर अपने आप को किसी जवान से कम नहीं समझते। थोड़े रसिक मिजाज के हैं, औरतों को ताड़ने में इन्हें बहुत मज़ा आता है। वैसे इस नाम को रखने में किस्मत ने भी खूब साथ दिया । एक एक्सीडेंट में उनकी एक आंख का ब्रेक फेल हो गया,मेरा मतलब है कि उनकी एक आंख हमेशा मटकती रहती है। खास करके जब औरतें सामने से गुजरती है, तो मानो आंखों का ढक्कन अपने संतुलन को ही खो देता है और कोशी नदी में आए बाढ़ की तरह बेकाबू हो जाता है। अपने किनारों को बांधने की वे खुद भी कोशिश नहीं करते।
खुलने और बंद होने का सिलसिला जो शुरू होता है, वह शताब्दी एक्सप्रेस की चाल में बस दौड़ता ही रहता है🚉।
उनकी इस आदत पर औरतों को गुस्सा तो आता है पर अपनी इस बीमारी के वायरस का उन्होंने इतना प्रचार– प्रसार किया है कि किसी को बोलते नहीं बनता। मोहल्ले के कुछ सड़कछाप लड़कों ने ही अपनी बिरादरी का समझकर उनका नाम बदलकर मनसुखलाल कर दिया। ऊपर से जो दिखावा करें, पर अपनी इस नए नाम को सुनकर वे अंदर ही अंदर कमल की तरह खिल जाते हैं।
मन को सुख देने वाली उनके नयन उनके अरमानों को बढ़ावा देने में हमेशा लगे रहते हैं👁️👁️। ऐसे ही उनके कुछ खट्टे– मीठे कारनामे हैं,जिन्हे मैं यहां लिखना चाह रही हूं। मेरे पिताजी तो उनसे छिपे ही रहते हैं। पता नहीं,उनकी किस आदत के कारण वे शर्मिंदा हो जाएं,यही डर मन में छाया रहता है।
मनसुखजी को गाने का बहुत शौक था, भले ही उनके गले से निकलने की आवाज फटे बांस की तरह निकले,पर अपने आप को वे रफ़ी से कम नहीं समझते। सुबह– सुबह उनके कानफोड़ू रियाज़ से घरवाले परेशान ही रहते🎤🥁🎸🎺🎷🎶🎼🔊। एक तो गाना,ऊपर से उनका शायराना अंदाज़ बातों का , उनकी धर्मपत्नी कमला हमेशा चिढ़ी रहतीं।
हर चीज को सीधे तरीके से बोलना उन्होंने सीखा ही नहीं था। उनके गाने के बोल साधारण वाक्य में हमेशा घुसे रहते। एक सुबह कमला ताई उठी तो पास के बिस्तर पर देखा पतिदेव नहीं दिख रहे हैं। इतनी सुबह कहां चले गए,माथा ठनका,कहीं आंख मटकाने तो नहीं निकल गए। सावन के अंधे को हर चीज़ हरी ही दिखाई देती है,ये कहावत तो सुना होगा आपने।
उनकी भावभंगिमा को देखकर कमला ताई के मुंह से अचानक से निकल गया कि इतनी बेचैनी से आप टहल क्यों रहे हैं, फिर झट से अपने मुंह पर हाथ रख दिया। ओह, ओह! मैंने तो बिल्ली के गले में घंटी ही बांध दी। मनसुखलाल जी तो जैसे इसी का इंतजार कर रहे थे।
अब सुनिए मनसुखलाल जी का जवाब– चलती है पेट में कुछ ऐसी लहर, लगता है कि इन्हें किसी किनारे की तलाश हो। इतना सुनते ही बौखलाते हुए कमलाताई अंदर चली गई और मनसुख जी वापस अपनी चहलकदमी पे लग गए।
नित्यक्रिया से निवृत्त होकर बाहर दालान में पेपर लेकर वे बैठ गए। पर पेपर पे आंखें कम रहती, बाहर आती-जाती औरतों पे ज्यादा तांका– झांकी करते हुए मिलती। जब कमला ताई आसपास दिखती तो मन को सुख देने वाली अपनी आंखों को पेपर पर टिका लेते।
पर शायद प्रकृति के नियम को शायद वे भूल रहे थे। पत्नी तो कूलर जैसी होती है ठंडक कम, आवाज ज्यादा और तो और रिमोट भी नहीं होता, पर पति स्प्लिट एसी की तरह होते हैं बाहर जितना शोर करो, घर के अंदर एकदम शांत और ठंडे रहते हैं। ऐसी ही स्थिति दोनों के वैवाहिक जीवन में कमोवेश ऐसी ही चल रही थी।
बाहर अपनी आंखों को चाहे जितना मटकाले पर कमलाताई के सामने उनकी आंखें हिलना ही बंद कर देती। एक बार मनसुख जी सजधज के घर से बाहर निकले ,यह कहते हुए कि जरा लैला की मां से मिलकर आता हूं । उनके इस बात पर कमला ताई तो भड़केगी ही,पीछे से बहुएं भी खिलखिला पड़ी कि बाबू जी यह क्या कह रहे हैं।
इससे पहले कि बादल फटे और बारिश हो जाए, उन्होंने इस मामले को वहीं पर रफा– दफा कर दिया। अब जरा उनकी शायराना पंक्तियां तो सुन लीजिए। उन्होंने शॉपिंग मॉल की तुलना लैला की मां से की थी। मॉल में यही तो होता है, इतना तामझाम, इतनी चमक इतना दिखावापन कि लोग जिसे लैला समझते हैं, वह लैला की मां निकलती है।
उनकी इस सफाई को सुनकर कमलाताई ने वहीं माथा हाथ रख लिया। खैर इन सबसे बेखबर मनसुखलाल धोती का एक सिरा पकड़ कर घर से बाहर निकले। पत्नी से खास हिदायत मिली थी कि आंखों को खुली छूट ना दें।
सुबह के निकले मनसुखलाल रात के 8:00 बजे तक घर नहीं पहुंचे तो परिवार को चिंता होने लगी। कमला ताई ने बेटे को शॉपिंग मॉल भेजा देखने को। बेटा शॉपिंग मॉल में पिताजी को ढूंढ रहा था कि तभी पिताजी को एक लाइन में खड़े देखा, दौड़ते हुए उनके पास आया । बेटे को देखते ही वे फट पड़े।
यहां मैं सुबह से लाइन में लगा हूं,पर ये तीनों साहब जैसे हटने का नाम ही नहीं ले रहे हों। सुबह से रात हो गई पर लाइन वही की वही है। उनकी इस बात पर बेटा तो अवाक रह गया। पिताजी जिसको आदमी समझ रहे थे वह तो पुतला था तो फिर लाइन कैसे हटती।
पर बेटा अभी उन्हें समझाकर मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता था। पिताजी का हाथ पकड़ा और बाहर निकलने लगा,तभी मनसुख जी सामने स्वचालित सीढ़ियों की ओर इशारा करते हुए बोले कि अरे बेटा! रुक ना ,ये लैला की मां बहुत जादू भी दिखाती है। देख तो सही,सीढियां कैसे अपने आप चल रही हैं।
उनकी बात सुनकर मॉल(लैला की मां)में खड़े सारे लोग हंस पड़े। पर बेटे को अपनी इज़्ज़त प्यारी थी, सो पिताजी को आनन– फानन में वहां से निकाला। घर जैसे ही पहुंचे,कमला ताई दरवाजे पे ही बाट जोह रही थीं। पर जब बेटे ने सारा वाकया सुनाया तो उनका चेहरा देखने लायक था। उधर मनसुख जी कभी अपनी आंखें ऊपर करते तो कभी नीचे। पत्नी और सूर्य में यही तो समानता है कि आप दोनों को घूर नहीं सकते।
कमला ताई उनकी इस हरकत पे बोली कि ये मेंढक की तरह अपनी आंखें क्या नचा रहे हो। काश! तुम अदरक होते!!😳 कसम से,जी भर के कूटती!!😵😵।मनसुखजी कमला ताई की बातों पे हंसते हुए गाना गुनगुनाते अंदर चले गए,मानों कुछ हुआ ही ना हो।
इसी तरह से हर दिन दोनों के बीच में नोंक– झोंक होती रहती। एक दिन तो उन्होंने हद ही कर दी।कमलाताई उनपे हर दिन की तरह उबल रही थीं,तभी उनके मुंह से निकल गया कि काश! मैं लव मैरिज करता,कम से कम पहले इस्तेमाल करें,फिर विश्वास करें वाली बात तो फिट हो जाती🤒🥵 ये अरेंज्ड मैरिज की यही तो side effect है कि बिका हुआ माल वापस नहीं होता😇😇।
उसके बाद तो मनसुख जी की खैर नहीं रही। वो तो भला हो पड़ोसन का जो कुछ काम लेकर वहां प्रकट हो गई,पर मनसुख जी की आंख वहां दगा दे गई।फिर तो जो तूफ़ान घर में उठा,वो किसी बवंडर से कम ना था। 🌪️🌪️
उनके कारनामे ऐसे– ऐसे होते हैं कि मेरा कागज़ कम हो जाए,पर उनकी हरकतों पे लिखना रुकता नहीं। लिखते– लिखते पेट में मरोड़ सी होने लगी थी। अरे भाई! कुछ गलत मत सोच लेना,मुझे किसी किनारे की तलाश नहीं है। वो तो गुदगुदी पैदा हो गई अंदर।
पर अब कितना लिखूं,पर एक मिनट ,एक वाक्या याद आ गया, जाते– जाते यहां प्रस्तुत करना चाहूंगा। मनसुख जी थोड़े कंजूस प्रवृति के हैं। एक पंथ,दो काज पे ज्यादा भरोसा करते हैं।हुआ यूं कि उनके घर और बाहर पहनने वाली दोनों चप्पलों ने देहावसान कर लिया। अपने बेटे के साथ उनका काफिला चला चप्पल लेने।कमला ताई ने बेटे को पहले ही सावधान कर दिया था।
पर वहां भी दुकानवाले से उलझ पड़े।दुकानवाला घर की अलग और बाहर की अलग चप्पलें दिखाता,पर वे ज़िद पे अड़े रहे कि एक ही चप्पल लेनी है और वो भी बाहर वाली। बाहर वाली चप्पल waterproof भी होनी चाहिए ताकि घर में भी प्रयोग की जा सके ,वो भी गारंटी के साथ। दुकानदार उन्हें समझाते– समझाते थक गया कि एकाध बार पानी में चला जाए तो ठीक है,पर बाहर वाली चप्पल हमेशा पानी में कैसे टिकी रह सकती है।
बस क्या था,बेटे के साथ बैरंग वापस आ गए। बेटे ने तो वहां अपना मुंह भी नहीं खोला। कौन अपनी जग हसायीं करवाता।घर आए तो एकदम तमतमाए हुए थे। कमला ताई ने पूछा कि ये टमाटर की तरह लाल क्यों हो रहे हो😡। तुरंत पलटवार करते हुए बोला कि शादी के पहले तुझे देखने गया था, तो तेरी आवाज रेडियो से भी हल्की थी,पर शादी के बाद अपनी आवाज़ में कौन से एम्प्लीफायर लगा ली?🤯😇🥵😡। उस दिन जो आरोप– प्रत्यारोप का दौर चला,वो किसी मैराथन से कम ना था।
तो ऐसे ही थे हमारे पड़ोसी मनसुख जी।उनकी कहानी तो चलती ही रहेगी। अब अपने लतीफे में कुछ और बातों को सम्मलित करती हूं।
कम से कम इनके कारण मुझे लिखने का जरिया तो मिल गया। लिखने के इस सफ़र में कुछ और मुसाफ़िर,कुछ और दास्तान को शामिल करती हूं। मेरे लतीफे के अगले भाग का इंतज़ार जरूर करना………
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