🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
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अब तक आपने पढ़ा––
निधि और जयंत इत्तेफ़ाक से ही मिले थे,लेकिन जयंत अपने आप को उसके आकर्षण से रोक नहीं पाया। पर निधि की संदेहास्पद बातें उसे हर समय दुविधा में डाल देती। अब आगे……..
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मेरी छुट्टियां खत्म होने वाली थी। सोचा कि जाते –जाते निधि से मुलाकात कर लूं। फिर पता नहीं हम मिले ना मिले। इस बार मैंने सोचा कि मैं उसके घर पर ही मिलूंगा, देखूं तो उसके चाचा– चाची का स्वभाव कैसा है और वह किस हाल में रह रही है।
मैंने उसे फोन करके उसके घर का पता लिया। पहले तो उसने आना –कानी की पर जब मैं जिद पर अड़ा रहा तो उसने मुझे एक दिन अपने घर बुलाया। निधि का घर गांव की बाहरी सीमा पर था, जहां आसपास ना कोई घर और ना ही लोग दिख रहे थे। चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था।
जब घर के अंदर गया तो चारों तरफ अंधकार फैला था। ताज़्जुब की बात यह थी कि एक भी खिड़की नहीं थी उस घर में,जिसके कारण सूरज की रोशनी का एक कतरा भी घर में प्रवेश नहीं कर सकता था। एक अजीब सी गंध पूरे घर में फैली हुई थी।
दरवाजा खुला था, सो मैं अंदर आ गया पर अंदर तो कोई नहीं था। तभी दूसरे कमरे से निधि निकलकर आई । आजकल वह पहले की तरह खिली– खिली लगने लगी है। मैं घर की एक – एक चीज़ का मुआयना कर रहा था। एक अजीब – सी ऊर्जा वातावरण को बोझिल बना रही थी।
मेरी टकटकी निगाहों को ताड़ते हुए उसने बातों को बढ़ाने का रुख किया। बातों के क्रम में ही मैंने उससे चाचा– चाची के बारे में पूछा तो इधर-उधर की बातें बनाते हुए उसने कहा कि चाचा– चाची अपने बेटे से मिलने के लिए बाहर गए हुए हैं।
जबकि निधि ने शुरुआत में ही बताया था कि चाचा को बस दो लड़कियां ही है। जयंत सोचने पे मजबूर हो गया कि आखिर निधि झूठ क्यों बोल रही है? मुझे बैठकखाने में बैठा कर खुद चाय– नाश्ते के लिए अंदर चली गई। मैं वहीं पर बैठकर इंतज़ार करने लगा।
उस कमरे में बड़ी अजीब तरह की चीजें रखी हुई थीं। जैसे कि कुछ मूर्तियां,पर बिना सिर के। अंधकार के कारण ज्यादा कुछ पता नहीं चल पाया। बहुत देर हो गई थी। आखिर निधि अंदर कर क्या रही है,ये कहते हुए जैसे ही मैंने मुड़ने की कोशिश की, अचानक से आकर वो खड़ी हो गई।
ऐसा माहौल और एकाएक किसी का आ जाना, मैं तो अंदर तक कांप गया। निधि मेरे चेहरे पर 12:00 बजते देख खिल –खिला कर हंस पड़ी। थोड़ा संयत होकर फिर हम दोनों ने मिलकर चाय पी।
जब मैंने उसे बताया कि एक-दो दिन में जा रहा हूं तो ये सुनकर उसका चेहरा उदास हो गया। ऐसा लग रहा था, मानो उसकी इच्छा ही नहीं हो रही हो मुझे यहां से जाने देने की। उसके ये भाव मेरे दिल की घंटियों को बजाने के लिए काफी थे।
बहुत देर हो गई है निधि मैं जाऊंगा अब।मां भी खाने पर इंतजार कर रही होगी। फिर जब मैं जाने लगा तो उसने मुझे मीठा शरबत पिलाया। पीते ही एकाएक लगा कि मैं झूमने लगा हूं। मेरी आंखें खुद ब खुद मूंदने लगी। थोड़ी देर के बाद जब होश आया तो शरीर में बहुत पीड़ा हो रही थी। मैं वहीं सोफे पे लेटा हुआ था और पास में ही निधि चिंतातुर अवस्था में खड़ी थी।
क्या हुआ जयंत? तबीयत तुम्हारी ठीक है ना। तुम्हें चक्कर क्यों आ रहे हैं? एक मिनट के लिए तो मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे साथ हो क्या रहा है? कुछ नहीं कहते हुए, मैं अचानक से उठा और दरवाजे की ओर कदम बढ़ाया। मुझे बहुत कमजोरी लग रही थी, पर दिमाग शांत नहीं था। आखिर ये निधि कौन है? उसकी गतिविधियां इतनी रहस्यमय क्यों होती है?
कितना भी मैं उसे अपने दिल से निकालना चाहता, वो उतना ही मेरे दिल में भटका करती। मुझे अगले दिन ही शहर के लिए निकलना था। बैग पैक करते समय मुझे लाल रंग का एक कपड़ा मिला। उसे देखकर दिमाग पर जोर डालने लगा कि यह मेरे पास कैसे आया ?
कपड़ा भी बड़े अजीब तरीके का था। चौकोर तो था,पर उसके चारों सिरे कटे हुए थे मानो किसी ने जानबूझकर काटा हो। याद ना आने की अवस्था में झुंझलाकर वापस उसे बैग में ही रख लिया। अगली सुबह ही मेरी बस थी।
रात भर निधि मेरे विचारों में घूमती रही। मेरे दिल के कोने में छुपकर कैसे उसने अपनी जगह बना ली, मुझे भी नहीं पता चला। शायद उसकी हालत भी मेरी जैसी होगी, पता नहीं का सवाल साथ में लेते हुए नींद की आगोश में चला गया। मां की आवाज़ कानों में पड़ी तो हड़बड़ाकर बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। 10:00 बजे तक मुझे निकलना है और मैं अभी तक सो रहा हूं
जल्दी-जल्दी काम निपटाया और बस स्टैंड भागा। वहां पर पहले से बस लगी हुई थी। बार-बार आंखें मोबाइल पर चली जाती, शायद निधि का फोन आया हो। जाते समय ना मिलने आई और ना ही याद की। निराशा के साथ मैं बस में बैठने ही जा रहा था कि एक बूढ़ी औरत कटोरा लेकर सामने खड़ी हो गई।
मैंने पॉकेट में हाथ डाला और कोई सिक्का ढूंढने लगा। तभी हाथ में वही लाल कपड़ा आ गया। मेरे आश्चर्य की कोई सीमा नही रही। इसे तो मैंने बैग में रखा था,फिर ये यहां कैसे? खैर,दिमाग को झटका देते हुए पैसे दिए और बस में चढ़ गया।
निधि की मुझे बहुत याद आ रही थी। आते समय की मुलाकात मेरे जेहन में बार-बार दस्तक देती। बस ठसाठस भरी थी। रूआंसा होकर आंखें बंद कर ली। खिड़की से आती ठंडी हवा ने नींद ला दिया।
अरे! बस इतनी खाली कैसे हो गई। अभी तो इतने सारे लोग थे, कहां चले गए सबके सब? मुझे बहुत बेचैनी हो रही थी ,माथे पे पसीना छल– छला आया। जब खिड़की से बाहर नजर डाली तो बस के सारे लोग नीचे खड़े थे,पर वे सारे लोग कटे सिर वाले थे। बस को कौन चला रहा था,ये भी नहीं पता।
तभी बस रुकी और वे सारे लोग बस पे चढ़ने लगे। ये सब देखकर मैं डर के कारण जोर-जोर से चिल्लाने लगा। तभी किसी ने हिलाकर मुझे उठाया। इसका मतलब था कि मैं यह सब सपना देख रहा था। ठंड में भी मैं पसीने से नहा उठा। रुमाल तो था नहीं, उसी लाल कपड़े से पसीना पोंछा। मुझे अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि सच क्या है? जो देखा वो सच था या जो देख रहा हूं वह सच है? अनगिनत सवाल के साथ मन को थोड़ा स्थिर किया और बाहर के दृश्यों को देखने लगा।
इस लाल कपड़े का रहस्य क्या है? जयंत के पास यह कहां से आया? क्या जयंत निधि से वाकई प्यार करने लगा था,पर निधि अंतिम बार मिलने क्यों नहीं आई? ये जानने के लिए पढ़ें मेरी कहानी का अगला भाग ………..
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