🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Part –9)🌶️🌶️🥵
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अब तक आपने पढ़ा–––
कुछ दिनों की छुट्टियां बिताने के बाद जयंत शहर वापस लौट गया, पर दिल उसका अभी भी गांव में लगा हुआ था। अपने साथ घटने वाली अजीबोगरीब घटनाओं को अपने मन का वहम समझकर हवा में उड़ाने की आदत हो गई उसे। गंभीरता से सोचता तो ये सब बातें मन में शंका तो पैदा करती,पर फिर वह बेपरवाह हो जाता। अब आगे……
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जयंत को घर पहुंचते-पहुंचते रात हो गई थी। दिन भर बस में बैठे– बैठे काफी थक भी गया था,सो खाना होटल से ही पैक करवा लिया। इतने दिनों के बाद अकेले रहना पड़ेगा,सोच– सोचकर ही उसका मन खट्टा हो चला था।
पर रहना तो उसे अकेले ही है। यही बड़– बड़ाता घर की तरफ कदम जैसे ही बढ़ाया , तभी पीछे से सरसराहट महसूस हुई उसे। शायद किसी की पदचाप🤔👣👣, पीछे मुड़ा तो कोई नहीं था। घनघोर अंधेरा🌚👀 साथ में सायं सायं की आवाज़। वातावरण डरावना प्रतीत होने लगा,पर जयंत ने अपने आप को स्थिर किया और मोबाइल के प्रकाश से घर का दरवाजा खोला।
अंदर जैसे ही पैर बढ़ाए, उड़ता हुआ एक चमगादड़ चेहरे को छूकर निकल गया। लड़खड़ा गया जयंत, पता नहीं कहां से और कैसे घर में घुस गया। मैंने तो अच्छी तरह से देखभाल करके खिड़कियां और दरवाजे बंद किए थे, मन ही मन सोचते हुए सामान को एक किनारे रखा और थोड़ी सफाई के बाद फ्रेश होने के लिए वॉशरूम में घुस गया।
थकान बहुत हो गई थी,सो खाना खाया और बेड पे आ गया। निधि की कमी बहुत खल रही थी। उदास मन से जबरदस्ती नींद लाने की कोशिश करने लगा। तभी लाइट में उसने देखा कि बगल में वही लाल कपड़ा पड़ा हुआ है। चिंहुक कर बिस्तर से उठ बैठा जयंत। अरे! यह तो मेरे पॉकेट में था ,जिसे धोने के लिए वॉशरूम में रख दिया है, फिर यहां कैसे पहुंच गया?
झुंझला उठा जयंत,आनन– फानन में उस कपड़े को खिड़की से बाहर फेंक दिया। रात बहुत हो गई थी। थका तो था ही, जल्द ही नींद ने घेर लिया। कुछ समय के बाद जयंत को पैरों में सरसराहट महसूस हुई और कुछ चुभने सा भी प्रतीत हुआ ।
आंखें खोली तो कुछ नहीं था। पर पैरों में अचानक से दर्द होने लगा। बिस्तर पर खून की कुछ बूंदे भी गिरी हुई थी। मेरे पैरों में क्या चुभ रहा था? सोते समय तो ठीक ही था। बहुत कमजोरी लगने लगी उसे। आखिर मेरी तबियत को हो क्या रहा है। इतनी कमजोरी तो मुझे हुई नहीं कभी।
अकेला होना कितना मजबूर बना देता है। अभी मां होती तो रात भर मेरी देखभाल कर रही होती। किसी तरह से उठा और जाकर कोई पेन किलर खा लिया। बहुत बेचैनी भी हो रही थी उसे। बस, फिलहाल अभी इस दर्द से छुटकारा मिल जाए,फिर किसी डॉक्टर से दिखला लूंगा कल।
इस तरह से इन घटनाओं के साथ उसकी रात बीती। सुबह दूध वाले की घंटी ने उसकी नींद में खलल डाला। अधखुले आंखों से किचन में जाकर बर्तन उठाया और दरवाजे की ओर बढ़ गया।
दूधवाला––– अरे साब ! कितना दिन रह गए गांव में। आया भी तो बताया नहीं। वो तो भला हो उस लड़की का,जिसने बताया कि आप वापस आ गए हो। उसी ने मुझे यह लाल कपड़ा भी दिया आपको देने के लिए। फिर उसने जयंत की तरफ वही लाल कपड़े का टुकड़ा सामने कर दिया।
जयंत को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, मगर दूधवाले के सामने अपने आप को काबू में रख लिया। वह दूधवाले से पूछना चाह रहा था कि कौन लड़की उसे रास्ते में मिली,पर उसकी बकबक ने जयंत को रोक लिया। ऐसे भी उनींदी आंखों से क्या पूछताछ करता। होगी कोई मुहल्ले की,जिसने मुझे देखा हो,पर जयंत तो रात में आया था। फिर कौन है,जिसने दूधवाले को उसके बारे में बताया? दिमाग उसका चकराने लगा।
उसके जाने के बाद जयंत ने अपना सर पीट लिया। ये कपड़ा तो मेरी जान के पीछे ही पड़ गया है। चलो! देखता हूं आगे क्या करूंगा इसका। फिलहाल तो ऑफिस के लिए निकलूं। आज मुझे डॉक्टर के पास भी जाना है,ये सोचते हुए जयंत तैयार होने के लिए भागा।
ऑफिस से लौटते हुए सीधे डॉक्टर के पास चला गया । अपनी सारी समस्या डॉक्टर के सामने रखी । चेकअप हुआ और साथ में कुछ टेस्ट भी। उसका हिमोग्लोबिन बहुत ही कम आया था। साथ ही उसके पैरों में और हाथों में दो निशान भी नज़र आए,जिन्हें देखकर लग रहा था कि कुछ नुकीली चीज़ घुसाई गई हो।
जयंत को खुद ही नहीं पता था कि उसके साथ ऐसा कब हुआ है। कुछ जरूरी सलाह और दवा लेकर वह घर आ गया। इस तरह से गांव से आए हुए उसे 1 हफ्ते हो गए । इन दिनों में ना उसने निधि को फोन किया और ना ही निधि का कोई कॉल आया।
एक बात पर जयंत बहुत दिनों से गौर कर रहा था कि जो अजीब गंध गांव में आती थी,वही अब उसके शहर वाले घर में भी आने लगी। बहुत सफाई की,स्प्रे किया पर कोई फायदा नहीं हुआ।
एक दिन ऑफिस के लिए घर से निकला,तो बस पकड़ने में लेट हो गई । बस छूट गई थी, लिहाजा उसे ऑटो लेना पड़ा,जो बड़ा महंगा पड़ जाता है। लो! अब भाड़ा दुगुना दो, यही सोचते हुए जयंत जा रहा था तभी ऑटो वाले ने अचानक से ब्रेक लगा दी।
जयंत–– अरे भाई !मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रही है, जरा ऑटो जल्दी चलाओ।
ऑटो वाला–– क्या करूं साहब! आगे भीड़ लगी हुई है। देखता हूं कि माजरा क्या है, कहते हुए वह ऑटो से नीचे उतर गया। जयंत भी उसके पीछे– पीछे चल पड़ा। भीड़ को ठेलते हुए जयंत आगे बढ़ा तो देखता है कि एक लड़की औंधे मुंह बेहोश पड़ी हुई है। सभी तमाशबीन होकर केवल एक दूसरे का मुंह ताक रहे हैं। पर कोई उसे हॉस्पिटल नहीं पहुंचा रहा है।
जयंत को देखा नहीं गया और तुरंत उसने लड़की को सीधा किया। जैसे ही लड़की पे उसकी नज़र गई,हैरत से आंखें फटी की फटी ही रह गई। अरे! ये तो निधि है। यहां और इस हाल में? पर ये सोचने का समय नहीं था,तुरंत अपने ऑटो वाले को बुलाया और हॉस्पिटल की तरफ मोड़ने के लिए कहा।
इतने दिनों तक निधि की कोई ख़बर नहीं थी। फिर अचानक से जयंत का उससे मिलना ,क्या कोई आने वाले खतरों का संकेत था या यूंही बात थी। जयंत के आसपास ही घटनाएं क्यूं घट रही थीं? ये जानने के लिए पढ़ें मेरी कहानी का अगला भाग……..
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Very interesting 👌
Nice , padh kar bahut maza aaya
👌👌👌👌