अब तक आपने पढ़ा…… निधि के ख्यालात जयंत के दिमाग से उतर ही नहीं रहे थे। यहां तक कि अपने साथ घटने वाली अजीबोगरीब घटनाओं से भी उसे कोई सरोकार नहीं था। पर शरीर के दर्द और बढ़ती कमजोरी ने उसका ध्यान इस ओर किया। एक दिन अचानक से विषम परिस्थितियों में निधि से उसकी मुलाकात होती है अब
दिल का एक हिस्सा जिस निधि की यादों से भरा हुआ था, वही आज आंखों के सामने उसकी हाथों में बेहोश पड़ी हुई थी। आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी से जयंत ने निधि को हॉस्पिटल पहुंचाया। डॉक्टर ने चेकअप किया तो कोई खास बात नहीं निकली। भूखे रहने की वजह से ऐसा हुआ था, जो 1–2 घंटे के बाद होश में आ जाएगी। जब उसे होश आया और अपने सामने जयंत को देखा तो उसके चेहरे पर भी खुशी के भाव आ गए। जयंत के मुंह से तो शब्द ही नहीं निकल रहे थे, जैसे ही कुछ पूछने के लिए उसने मुंह खोला, उसी समय निधि भी बोल पड़ी,फिर तो दोनों खिलखिला पड़े। जयंत ने थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए बोला कि तुम अब तक कहां थी? और यहां कैसे पहुंची। अपनी जमीन तुम्हें मिली या चाचा– चाची अभी भी कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। यह बात सुनकर निधि फफक– फफक कर रो पड़ी। जयंत! चाचा– चाची ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। मेरे चरित्र पर कीचड़ उछाल कर उन्होंने मुझे गांव से बाहर ही कर दिया। अब ना मेरे पास जमीन है और ना अपना गांव वाला घर ही। गांव वाले मुझसे नफरत करने लगे थे। एक मिनट भी गांव में रहना दुश्वार हो गया। फिर मैं वहां पे कैसे रह पाती। जो थोड़े– बहुत पैसे थे, वही लेकर मैं गांव से निकल पड़ी थी। पर कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जाऊं कहां? यही सोच रही थी कि तभी एक बस आती दिखी,जो शहर की तरफ जा रही थी। बिना सोचे– विचारे उस पे चढ़ गई। लेकिन मेरे दुर्भाग्य ने यहां भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा। वह बस किसी दूसरी गाड़ी से टकरा गई। ड्राइवर डर के कारण उसी समय भाग गया। फिर मैं वहां से नीचे उतरी। पैदल ही आगे बढ़ने लगी थी, बहुत देर से कुछ खाया नहीं था,सो चक्कर खाकर गिर पड़ी। उसके बाद क्या हुआ, मुझे कुछ पता नहीं। संयोग से आंखें खुली तो सामने तुम थे, कहते हुए वह जयंत को उम्मीद भरी निगाहों से देखने लगी। निधि की कहानी सुनकर जयंत को दुख तो बहुत हुआ पर पता नहीं क्यों, उस पर पूरा विश्वास नहीं कर पा रहा था। गांव में निधि के व्यवहार ने उसे संशय में डाल रखा था। लेकिन परिस्थितियां आज ऐसी बन गई कि निधि को यहां अकेला कैसे छोड़ता। अंत में उसने निश्चय किया कि चाहे जो हो , पर निधि को अपने घर लेकर ही जाएगा।
हॉस्पिटल से बाहर निकल कर एक ऑटो बुलाया और निधि को सहारा देकर बिठाया और फिर दोनों एक ही गंतव्य दिशा की ओर बढ़ गए। एक अकेले लड़के के साथ एक अकेली लड़की का इतनी आसानी से एक ही घर में रहना, जयंत को उलझा रहा था क्योंकि घर चलने की जब बात हुई तो निधि ने कोई आनाकानी नहीं की।
खैर ऑटो ठीक घर के दरवाजे के पास लगी। जयंत निधि को सहारा देकर अपने घर की तरफ आया। पर कुछ बातें उसे परेशान कर रही थीं। पहले निधि को देखने के लिए उसका दिल परेशान रहता था और आज जब वह सामने है तो उसे उतनी खुशी नहीं मिल रही है,आखिर क्यों? क्या निधि को अपने घर लाकर वह ठीक कर रहा है, यही सोचते हुए उसके कदम बढ़ रहे थे। परिणाम चाहे जो हो,पर एक लड़की को अकेला कैसे छोड़ता। निधि को सोफे पे बैठाया और खुद पानी लाने अंदर चला गया। आज ऑफिस से छुट्टी ले लेता हूं। निधि के साथ थोड़ी बातचीत भी हो जाएगी। शायद इससे उसका दुख भी हल्का हो जाए! सोचते हुए चाय का पतीला गैस पर चढ़ा दिया, तभी हवा में फैली वही अजीब, जानी– पहचानी गंध नथुनों में घुसी और उसे उल्टी आने लगी। जल्दी से वह वॉशरूम की तरफ भागा। थोड़ा संभालने के बाद जयंत चाय लेकर निधि के पास आया। निधि बहुत खुश लग रही थी। अब जयंत को भी धीरे-धीरे अच्छा लगने लगा। अंधेरा होने लगा था, जयंत को कुछ सामान लाने के लिए बाहर जाना पड़ा। कुछ हिदायत देकर वह घर से बाहर निकल पड़ा। जब घर वापस आया तो देखता है कि निधि है ही नहीं। कहां चली गई, कुछ बताई भी नहीं, मन में तरह-तरह की शंका आने लगी। बहुत देर के बाद निधि घर वापस आई। जयंत के सवालिया निगाहों के प्रतिउत्तर में निधि ने बोला कि घर में अकेले– अकेले अकुलाहट होने लगी थी, इसलिए थोड़ा बाहर चली गई।
उस रात खाना-वाना खाकर दोनों सोने चले गए। जयंत ने अपना बिस्तर ड्राइंग रूम में लगा लिया था। अगले दिन निधि ने जयंत को एक कमरे का घर देखने को कहा, साथ ही साथ अगर उसके ऑफिस में ही काम मिल जाता तो उसे बहुत बड़ा सहारा मिल जाता। जयंत ने हां में सिर हिलाया, पता नहीं किन ख्यालों में खोया था या कुछ और दिमाग में बातें चल रही थी। हुआ यूं कि जब वह कल शाम को सामान लेकर घर लौट रहा था तो उसने एक गली में एक लड़की को जाते देखा, जिसकी चाल– ढाल निधि के जैसी ही थी। वह लड़की जिस गली में घुसी, वहां केवल बूचड़खाना था। पहले तो जयंत ने सोचा कि निधि वहां क्यों आएगी? वह तो ठीक से चल भी नहीं रही थी,इतनी दूर कैसे आएगी,सोचते हुए दिमाग को झटका दिया। पर जब घर आकर देखा तो सच में वह घर पे नहीं थी। जयंत को कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है? अगली रात को खाना खाकर दोनों अपने-अपने बिस्तर पर सोने चले गए। करीब आधी रात को अचानक लगा कि उसके बगल में बिस्तर पर कोई चल रहा है। आंखें खोली तो कोई नहीं था। डर के कारण उसने आंखें बंद कर ली। तभी उसे एहसास हुआ कि कोई पीछे से उसे पकड़ा हुआ है। किसी की गर्म– गर्म सांसों का एहसास भी हुआ उसे। फिर गर्दन पे कुछ नुकीली चीज गड़ी। दर्द से आंखें खोलने की कोशिश की, पर उसकी हिम्मत जवाब दे गई और जोर-जोर से चिल्लाने लगा ।
दूसरे कमरे से निधि दौड़ते हुए आई तो देखा जयंत पसीने से तरबतर था। उसने जयंत की तरफ पोंछने के लिए कपड़ा बढ़ाया तो उसे देखकर और चिल्लाने लगा,क्योंकि निधि ने उसकी तरफ वही लाल कपड़ा बढ़ाया था। आखिर जयंत इतना डरा हुआ क्यों था? वह सब कुछ सपने में देख रहा था या हकीकत में उसके साथ घटना घटी । उस गली में निधि क्या करने गई थी, वह लाल कपड़ा क्यों उसके इर्द –गिर्द घूमता ही रहता है, यह जानने के लिए पढ़ें, मेरी कहानी का अगला भाग……..
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