तलाश(वैंपायर लव–स्टोरी)अंतिम भाग
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
अब तक आपने पढ़ा––
जयंत को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे कैसे पता करें निधि के बारे में? हर दिन नई– नई घटनाएं उसके साथ घटित होती रहती । उसके खुद के घर पर भी निधि का धीरे-धीरे कब्जा हो गया था। अब एक ही रास्ता बचा था, इस सिरे की शुरुआत जहां से हुई थी वहीं अब खोज करना जरूरी था ।अब आगे –––
जयंत ने ऑफिस पहुंचकर अपनी मां के पास फोन लगाया और सारी बातें बताई। उसकी मां तो यह सब सुनकर अवाक रह गई।
मां–– बेटा जिस दिन वह लड़की यहां पे आई थी, पता नहीं क्यों कुछ अजीब सी गंध पूरे घर में फैल गई थी। कुछ अजीब सा व्यवहार मुझे हैरत में डाल देता। जैसे कि उसके पैर और हाथ दोनों ढके हुए थे। मुझे आश्चर्य तो तब हुआ,जब वो बाथरूम की ओर मुड़ी,जैसे कि उसे पता था कि हमारे घर का बाथरूम किधर है। जब वह चली गई तो दरवाजे के बाहर कुछ अस्पष्ट से निशान नजर आए। ध्यान से जब देखने की कोशिश की तो निशान पता नहीं कहां गायब हो गए।
तू भी तो उसके पीछे पागल था। क्या कहती तूझसे। मैंने भी मन का भ्रम समझकर उसे दिमाग से हटा दिया था, पर आज तुम्हारी बातों को सुनकर लगता है कि काश! उस समय मैं ध्यान देती तो आज तुम्हारी यह हालत नहीं होती। तेरी जबान भी तो केवल निधि– निधि रटते रहती थी।
जयंत– मां! मुझे अब कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मैं कैसे पता करूं। निधि से मेरी पहली मुलाकात गांव जाने समय ही हुई थी। वहीं से कुछ सुराग हाथ लगेगा। मैं कुछ दिनों की छुट्टी लेकर घर आ रहा हूं। आजकल मेरी तबीयत भी ठीक नहीं रहती है। बहुत कमजोरी सी महसूस होती रहती है। थोड़ी देर के बाद दोनों का फोन कट हो गया।
शाम को जयंत ऑफिस से घर लौटा तो देखा घर के दरवाजे खुले हुए थे। ये निधि कहां चली गई और घर भी खुला रखा है। अंदर गया तो निधि कहीं नहीं थी। रात के 8:00 बज गए, पर कोई अता-पता नहीं। चलो, इसी बहाने से कम से कम मेरे घर से निकली तो सही।
खाना– वाना खाकर जयंत सोने की कोशिश करने लगा, पर दिमाग निधि की तरफ ही लगा हुआ था। आखिर गई तो गई कहां? तभी उसे अपने बगल में निधि लेटी हुई नजर आई। वह उछलकर नीचे जा गिरा। वहां पे देखा तो बेड के नीचे भी निधि लेटी हुई थी।
डर के मारे वह चिल्लाने लगा और भागा बाहर की ओर, तभी सामने से उसे निधि आती दिखाई दी। निधि ने जब उसे बाहर अजीबोगरीब हालत में देखा तो पूछने लगी। बदहवास–सा जयंत कभी उसकी ओर देखता तो कभी पीछे की ओर। ना उगलते बन रहा था और ना ही निगलते।
अगर कुछ पूछता तो निधि को उस पर शक हो जाता, फिर गांव जाने में जरूर बाधा डाल देती। बेचैनी सी महसूस होने लगी उसे, इसीलिए कुछ बोला नहीं, मैं आता हूं थोड़ा बाहर घूमके, कहते हुए जयंत जाने लगा।
सुनसान रास्ते पे कोई नजर नहीं आ रहा था। उसका घर भी मुहल्ले से थोड़ा हटकर ही था। चारों तरफ घने पेड़ और बीच में उसका घर, शांत और सुरम्य वातावरण के कारण उसने यह घर पसंद किया था।
आदमी का आमद–रफ्त बहुत ही कम होता। पर अभी यही अकेलापन उसे बहुत खल रहा था। घर जाने का उसका मन ही नहीं हो रहा था। कदम उसके आगे की ओर बढ़ रहे थे, पर वह जिधर भी मुड़ता उसे अपना घर ही नजर आता, मानों दुनिया गोल हो गई हो और गोले का केंद्र बिंदु उसका घर ही बन गया हो।
थककर वापस अपने घर की ओर ही मुड़ गया। अंदर आकर देखा तो निधि आराम से सोफे पे पैर पे पैर चढ़ाए बैठी थी, मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। जैसे ही जयंत पे नज़र गई, तपाक से बोली कि बाहर से घूम आए हो। ऐसा लग रहा था कि उसे चिढ़ा रही हो। अंदर ही अंदर उबल रहा था जयंत।
अब कल ही गांव जाऊंगा। कुछ ना कुछ बहाना करके इसे समझा लेता हूं,सोचते हुए अपनी बात रखते हुए जयंत बोला कि निधि मैं एक हफ्ते के लिए ऑफिस के काम से बाहर जा रहा हूं। अपना ध्यान रखना यहां।
उसकी बातों को सुनकर पहले तो ठिठकी,फिर एकदम से शांत हो गई। अगले दिन जयंत गांव जाने की तैयारी करने लगा। सामान पैक कर रहा था तो कपड़ों के बीच में वही लाल कपड़ा फिर से मिला। इस बार उसके तीन ही सिरे थे,चौथा गायब था । पर जयंत ने उस टुकड़े को फेंका नहीं, बल्कि अपने सामान के साथ रख लिया।
जाते समय हिदायत देने के बाद निधि को ध्यान से देखा, फिर अपना सामान उठाया और चल पड़ा। ऐसी खोज में जिसका कोई ठौर– ठिकाना नहीं था। बस शाम की थी, पर सुबह ही निकल गया। बाहर बैठना ज्यादा मुनासिब लगा उसे।
शाम को बस आई, एकदम खचाखच भरी हुई। सीट मिल तो गया,पर बस में भीड़ बहुत थी। कुछ समय के बाद जब भीड़ थोड़ी कम हो गई,तो ठंडी हवा ने जयंत को राहत पहुंचाई । कुछ समय के लिए वह पहले वाली सारी बातें सोचने लगा, कैसे निधि से मुलाकात हुई थी। अचानक से उसे लगा कि निधि बगल में बैठी है और उसके कंधे पे हाथ रख रही है।
उस ओर देखने लगा जयंत और अपने बगल में एक बूढ़ी औरत को बैठा पाया, जो अपने सड़े और बड़े दांत निकाले उसी की ओर एकटक देख रही थी। किसी तरह से उसने अपने आप को जल्दी से संभाला। होले– होले बस चल रही थी और वह भी नींद के आगोश में चला गया, तभी बस ने ब्रेक लगाई और जयंत की नींद टूट गई।
आंख खुली तो देखा बस एकदम खाली थी। भौचक्का होकर पागलों की तरह इधर से उधर देखने लगा। बस अपनी रफ्तार से आगे बढ़े जा रही थी,केवल ड्राइवर वाली सीट पर कोई बैठा था। जयंत चिल्लाने लगा तो ड्राइवर पीछे पलटा। अरे!यह तो वही बूढ़ी औरत है और बस के सारे लोग गए कहां।
पर बस तो आगे बढ़ती ही जा रही थी। जयंत बस से उतरने की कोशिश करने लगा,पर दरवाजे खुले ही नहीं। सामने घुप्प अंधेरा और उसको चीरती हुई बस पता नहीं कहां आगे बढ़ रही थी। अचानक से ब्रेक लगी और बस रुक गई। दरवाजा भी अपने आप खुल गया। सब कुछ ऑटोमैटिक ढंग से चल रहा था।
जयंत जल्दी से नीचे उतरा,तो सामने जो मकान खड़ा था,उसे देखकर चौंका। काली रात में उल्लुओं की आवाज़ दहशत पैदा कर रही थी। मोबाइल को देखा तो उसकी भी बैटरी खत्म हो गई थी। मतलब चारों तरफ से वह अपनी दुनिया से अलग एक वीराने में खड़ा था। पर इतने अंधेरे में भी उस घर में बिजली पता नहीं कैसे थी। मरता क्या ना करता,कदम आगे बढ़ाने पड़े उसे। पता नहीं,अब उसके साथ क्या होने वाला है,जीवित लौटेगा भी या नहीं , उस मकान को जयंत क्या जानता है यह जानने के लिए पढ़े मेरी कहानी का अगला और अंतिम भाग…….
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
अब तक आपने पढ़ा...... जयंत के सामने हर दिन नई– नई सच्चाई सामने आ रही थी। वह निधि से पीछा छुड़ान...
अब तक आपने पढ़ा…… हर दिन घटने वाली नई-नई घटनाऐं अब जयंत को परेशान करने लगी थी...
अब तक आपने पढ़ा–– निधि का एकाएक जयंत की जिंदगी में आना आश्चर्यजनक प्र...
🧟😢
Bhsgoooo….bhooott