🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
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अब तक आपने पढ़ा–––
जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता नहीं किस दिशा में आगे बढ़ती ही जा रही थी। एकाएक एक मकान के पास आकर बस रुकी। जब उस मकान को जयंत ने देखा,तो हैरान रह गया।अब आगे–––
1तलाश (वैंपायर लव–स्टोरी)Part –1
जयंत चकित हो कर सामने खड़े मकान की ओर देखने लगा। अरे! यह मकान यहां कैसे? यह तो वही मकान है जिसका पता निधि बहुत मशक्कत के बाद बताई थी और यह तो गांव की सीमा पर था, अभी यहां कैसे और वह भी जंगल में। जयंत यह सब बस से उतरकर सोच ही रहा था कि उसके सामने वही बूढ़ी औरत आकर खड़ी हो गई।
उसके सड़े और बड़े– बड़े दांत बहुत भयानक लग रहे थे। बिना कुछ बोले वह औरत पलटी और सामने खड़े मकान की ओर बढ़ने लगी। जयंत चिल्ला रहा था, अरे रुको! यहां मुझे क्यों लाई हो और मुझसे क्या चाहती हो? पर वह औरत रुकी नहीं। जयंत भी उसके पीछे– पीछे चल पड़ा।
औरत के वहां जाते ही मकान का मुख्य दरवाजा अपने आप खुल गया। जैसे ही दोनों अंदर गए, फटाक से दरवाजा बंद हो गया, मानो स्वचालित हो। जयंत हक्का-बक्का होकर देखने लगा। मकान के अंदर वही दुर्गंध फैली हुई थी जिसका एहसास उसे हर समय होता था।
बाहर से मकान प्रकाशमय था, पर अंदर अंधेरे के सिवा कुछ नहीं था। अरे! वह औरत कहां गई, जयंत को कुछ दिख नहीं रहा था। अंधेरे में ही नजरें इधर– उधर दौड़ाई। ऊपर के माले से एक झीनी– सी रोशनी दिखाई दी और वह उसी ओर जाने लगा। रोशनी एक कमरे से आ रही थी। दरवाजे के होल में झांक कर देखा तो पूरे कमरे में धुआं फैला हुआ था।
थोड़ा धुआं छंटा तो जमीन पर तीन आदमी लेटे हुए थे। अभी कुछ और देखने की कोशिश करने लगा जयंत तो दरवाजा अपने आप खुल गया और वह गिरते– गिरते बचा। तभी उसकी नज़र ऊपर छत पर गई और वह चिहुंक उठा। वह बूढ़ी औरत छत से लटकी हुई नजर आई।
जयंत की सांस ऊपर की ओर ही अटक गई। ये सब देखकर वह वहां से भागने की कोशिश करने लगा तो उसके कंधे पे लटक गई। उस समय उसके सारे दांत एकदम लंबे-लंबे थे। फिर उसने अपने दांत जयंत की गर्दन में गड़ा दिए । जयंत दर्द के मारे चिल्लाने लगा और वहीं पर गिर पड़ा।
जाने कितने देर के बाद उसे होश आया, कुछ पता नहीं। आंखें खोली तो सामने निधि खड़ी थी। डरी हुई नज़रों से वह इधर-उधर देखने लगा। पर बूढी औरत दिखी नहीं उसे। किसे खोज रहे हो जयंत, मेरी तलाश तो पूरी हो गई और तुम्हारी भी यहां आकर खत्म हो जाएगी। सालों इंतजार किया है मैंने इस एक दिन के लिए।
तुम खुद ब खुद यहां तो आए नहीं हो, इतना कहते हुए अट्टहास करने लगी और उसका रूप एकदम से बदल गया। अब उसकी जगह पर वही बूढ़ी औरत खड़ी थी। जयंत यह देखकर हक्का– बक्का रह गया। सामने घट रही सारी घटनाएं उसकी समझ से बाहर हो रही थी।
तभी एक आश्चर्यजनक घटना देखी उसने। जो तीन आदमी जमीन पर लेटे हुए थे, उसमें से एक उठकर खड़ा हो गया। जयंत ने वहां से भागने की कोशिश की तो सारे दरवाजे फटाक से बंद हो गए। अब उसके सामने निधि खड़ी थी। उसके जोर-जोर से हंसने की आवाज पूरे कमरे में प्रतिध्वनि पैदा करने लगी।
जयंत कहां जा रहे हो? मेरे बारे में जानना नहीं चाहोगे कि मैं कौन हूं और तुम्हारे पीछे क्यों पड़ी हूं? कहते हुए वह बूढ़ी औरत फिर से निधि बन गई । उसने अपने हाथों और पैरों के आवरण को हटा दिया। यह देखते हुए जयंत की चीख निकल गई। उसके विकृत हाथों और पैरों में लंबे– लंबे नाखून थे, जिसे वह आज तक दस्ताने से छुपाते आई थी और एलर्जी का कारण बताया था।
निधि ने एक तरफ इशारा किया तो हवा में तैरता वही लाल कपड़ा जयंत के सामने आ गया। इस बार कपड़े के दो ही सिरे थे। तीसरा और चौथा सिरा गायब था। कपड़े का इस तरह से रूप बदलना आश्चर्य वाली बात थी। उस कपड़े से खून की बूंदे नीचे गिर कर जयंत की तरफ बढ़ने लगी।
इसके बाद निधि ने कहानी बताना शुरू किया। जयंत अभी तुम जहां रहते हो, सालों पहले वहां पर एक दोमंजिला घर हुआ करता था। इसमें एक औरत अपने पति और चार बेटों के साथ रहा करती थी। उस औरत का पति शराबी और शक्की था। बात-बात में अपनी पत्नी से झगड़ा करना, मारना– पीटना यही उसका हर रोज का काम होता । यहां तक कि उसने यह भी इल्जाम लगाया कि उसके चारों बेटे उसके नहीं है।
अगर वह औरत किसी भी मर्द से हंस कर बात कर लेती तो उसका खून खौल जाता। इधर कुछ दिनों से उसका पति कुछ अजीब व्यवहार करने लगा था। कभी किसी जानवर को पकड़ कर लाता, उसे छटपटा कर मार देता, फिर उसके खून को किसी बर्तन में इकट्ठा करके कोई पूजा– पाठ करता था। पता नहीं,कौन सी साधना उसकी चलती रहती। उस समय कोई अंदर नहीं जा सकता था। उस औरत ने ये सारी क्रियाएं की– होल से देखी थीं।
अपने हाथ को काटकर खून की बूंदे अग्नि को समर्पित करता। जब वह बाहर जाता,उस कमरे में ताला लटकी रहती। एक रात बहुत मूसलाधार बारिश हुई। अपने पति के इंतज़ार में वह औरत अपने चारों बेटों को पकड़कर खिड़की के पास खड़ी थी कि तभी दूर से उसका पति आता दिखा। बारिश के कारण कुत्ते के रोने की आवाज बहुत आ रही थी।
दरवाजा खोला तो देखा कि उसका पति कुत्ते को पकड़े हुए है। पता नहीं उसने क्या मंत्र पढ़ा, कुत्ता वहीं छटपटा कर गिर पड़ा। एक रात वह अपने बच्चों के साथ सोई हुई थी कि उसे कुछ घुटन महसूस हुई। यह देखने के लिए उठी तो उसी कमरे से धुआं निकलता दिखाई दिया। पता नहीं आधी रात को उसका पति कौन– सा साधना कर रहा था।
अगले दिन उस औरत ने सवाल किया तो बदले में मार के सिवा उसे कुछ नहीं मिला । अब तू मेरी चोरी-छिपे तलाशी ले रही है कि मैं क्या करता हूं, कहां जाता हूं, कहते हुए उसे मारने लगा। वह औरत चीखती रही, चिल्लाती रही। पर उस आदमी को तरस नहीं आया।
उसके चारों बेटे दूर– सहमे हुए अपनी मां की पिटाई होते हुए देख रहे थे,पर मासूम कर भी क्या सकते थे। इसी तरह से जीवन की गाड़ी आगे बढ़ रही थी। जब अपने दर्द देते हैं तो इंसान बाहरी दुनिया में खुशी तलाशने की कोशिश करता है। यही बात उस औरत पर भी लागू हुई।
उसके घर से थोड़ी दूरी पर एक शिक्षक रहा करते थे। अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए उस औरत ने वहां पर भेजना शुरू किया। वह शिक्षक वहां पर अकेले ही रहा करते। बातों ही बातों से पता चला कि उनकी पत्नी को गुजरे चार साल हो गए हैं। धीरे–धीरे दोनों में बातचीत होनी शुरू हुई।
वह भी दुख की मारी औरत थी। दोनों ने दुख– सुख बांटना शुरू कर दिया। पढ़ाई के बहाने दोनों का मिलना– जुलना होता रहा। दर्द पे जब मरहम लगा तो उसका असर चेहरे पे साफ दिखने लगा। डरी– सहमी आंखें अब खुश– खुश दिखने लगीं।
अपनी पत्नी में आए बदलाव को उसके पति ने भी महसूस किया और यही बात उससे बर्दाश्त नहीं हो सकी। शक्की तो था ही, एक दिन उसने इस बात का पता लगा ही लिया। उसके बाद जो कांड हुआ, उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते।
एक दिन जब वह औरत अपने बच्चों को शिक्षक के पास छोड़ने गई तो पीछे से उसका पति भी पहुंच गया। पता नहीं उसके हाथ में कुछ अजीब सा यंत्र था, पहले तो उसने शिक्षक को खरी-खोटी सुनाई और उस यंत्र से शिक्षक को बांध दिया। फिर ऐसा निशाना लगाकर उस शिक्षक पर वार किया जिससे उसकी खोपड़ी धड़ से अलग होकर दूर जा गिरी और खून के फव्वारे उस औरत के चेहरे पर पड़ते हुए जमीन पर गिरने लगे।
उस यंत्र ने शिक्षक के खून की कुछ धाराओं को अपने अंदर समेट लिया। बच्चे चिल्ला रहे थे और वह औरत मूर्तिवत बन कर तमाशा देखने लगी। अपना होश– हवाश खो बैठी। उसके चेहरे से शिक्षक के खून टप– टप के नीचे गिरने लगे। कुछ खून की बूंदे तो उसके मुंह के अंदर चली गई ।
जब उसे उबकाई आने लगी,तब उसका ध्यान टूटा। कुछ ही देर में हंसता– खेलता घर वीराने में तब्दील हो गया। पर उस आदमी के चेहरे पर शिकन तक ना आई। अपनी पत्नी को खींचते हुए घर लाया। ऐसे भी उसका घर मुहल्ले से थोड़ा हटकर था इसलिए लोग बहुत कम दिखाई देते। उस घटना का असर उस औरत पर ऐसा हुआ कि उसने दूसरे लोगों से मिलना– जुलना ही छोड़ दिया। आवाज़ मानों उसकी गुम हो गई हो।
इसी तरह से साल बीतते गए। जिंदगी को बस जिए जा रही थी। उसका पति किसी काले जादू में फंस गया था, अपने घर को उसने तंत्र– स्थल बना दिया । अजीब तरह की गंध, खून के छींटे घर में फैले हुए मिलते रहते। उसके चारों बेटे भी अब बड़े हो गए थे, पर उसने एक पिता की नजर से उन चारों को कभी नहीं देखा ।
शक का कीड़ा उसके मन में दबा रहता ही। पता नहीं उसके पति की क्या चाहत थी और उसे अपनी पत्नी से इतनी नफरत क्यों थी? उम्र के पड़ाव में भी यह नफरत नहीं बदली। एक जिंदा लाश की तरह वह अपनी जिंदगी की गाड़ी खींच रही थी ।
ऐसे तो वह कभी बाहर नहीं निकलती थी, पर उस दिन कुछ सामान लेने के लिए उसे बाहर जाना पड़ा। घर लौट के आई तो देखा उसके चारों बेटे जमीन पे मरे पड़े हैं और वह आदमी वहीं पे आग जलाकर साधना कर रहा है । अब तो वह औरत चुप नहीं रह सकती थी, उसके बच्चे ही उसके जीने के आधार थे और आज उनका साथ भी छूट गया।
जयंत! जरा सोचो, उस औरत पर क्या गुजर रही होगी। उसका बुढ़ापा कैसे कटता। वह पागलों की तरह चीखने लगी । जयंत निधि की बातें बहुत ध्यान से सुन रहा था, पर उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि यह सब कहानी उससे क्यों कहा जा रहा है। इन सब बातों का उस से क्या रिश्ता है? क्यों निधि उसका पीछा नहीं छोड़ रही है?
अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए निधि बोलती गई। उस औरत के सामने उसके चारों जवान बेटे मरे पड़े थे। असल में उसके पति को कई तरह के सिद्धियों का स्वामी बनना था। इसके लिए उसने कितने निर्दोष लोगों को अपने तंत्र जाल में फंसाया ।अपने काम को पूरा करने के लिए उसे कुछ आदमियों की जरूरत थी, जिनकी आत्मा को कैद करके उनके शरीर पर कब्जा जमाना था।
बचपन से ही अपने बेटों से नफरत करने वाले पिता को इनके अलावा और आदमी कहां मिलता। उस दिन शिक्षक को उसने जिस यंत्र से बांधा था, वह निर्मूल नहीं था। शिक्षक के खून को उसने उस यंत्र में कैद किया था। फिर उसने कपड़े का एक टुकड़ा लिया और उसे उसी खून से लाल किया। वह कपड़ा कोई साधारण टुकड़ा नहीं था। उसने उस कपड़े के चार सिरे बनाए और काट दिए फिर उसने कटे टुकड़े को चारों बेटों की आत्माओं के साथ बांध दिया।
यह सब बातें जब उस औरत को पता चली तो पागल हो उठी । सबसे पहले उसने पानी लाकर आग बुझा दिया। अपनी साधना को अचानक से विफल होते देख उसका पति पागल हो उठा और अपने तंत्र जाल से कुछ उठाया और उस औरत की तरफ वार किया।
जा! पागल औरत तू भी अपने बेटे के पास चली जा। मैंने तो सोचा था कि जब मैं ताकतवर बनूंगा तो तुझे भी उसमें शामिल कर लूंगा । पर तू मौत के ही काबिल है, इतना कहते हुए वह वार उस औरत की तरफ मुड़ा और वहीं पर उसने अपनी उसने जान दे दी।
जयंत! वह औरत कोई नहीं , मैं ही हूं, हंसते हुए वह अपने असली रूप में फिर आ गई। चूंकि, मेरी मौत काले जादू से हुई और मैं अपने बेटों के प्यार से बंधी थी, इसलिए मैं पिशाचनी बन गई।
सालों से मैं इसी जमीन से अपने आप को बांधी हुई हूं। मेरे चारों बेटों के शरीर को मेरे पति ने इस वीराने में काले जादू से कैद किया हुआ था और उनकी आत्माओं को उस लाल कपड़े से,जो उस शिक्षक के खून से रंगे थे। मेरे पति की भी दर्दनाक मौत हो गई क्योंकि काला जादू अपना बदला ले ही लेता है।
पर मैंने अपने चारों बेटों के शरीर का पता लगा लिया था और उन्हें अब तक संभाले रखा था, क्योंकि एक मां का भरोसा कि एक ना एक दिन वे सब जरूर उठेंगे। मेरी सोई भावना उसी दिन जगी थी, जब तुम पहली बार गांव जाने के लिए घर से बाहर निकले थे और तुम्हारी उंगली में कील घुस गई ,जिससे गिरते खून की बूंदों ने मुझे बहुत कुछ एहसास दिलवाया।
मैं एक पिशाचनी हूं,खून मुझे बहुत आकर्षित करते हैं। मैं ये जान गई कि तुम उस शिक्षक का अगला जन्म हो, क्योंकि तुम्हारे खून को मैंने अपने हलक में डाला था और उस दिन भी जब तुम्हारी उंगली कटी थी मैं वहीं पर थी। अपने चारों बेटों को इसी सुनसान और घने जंगलों के बीच में संभाल कर रखा हुआ है और तुम्हारे खून ही इनमें जान डालेंगे,ये कहते–कहते उसके दांत बड़े होते गए।
पिशाचिनी के साथ एक शर्त होती है कि चाहे वह कोई भी रूप धर ले पर उसके हाथों– पैरों के नाखून लंबे ही होते हैं, उनकी शक्ल नहीं बदलती, इसलिए मैं हमेशा दस्ताने पहना करती थी। लाल कपड़ा, जो हमेशा तुम्हारे आसपास रहता है, तुम्हारे ही खून से रंगा हुआ है। उसके चारों सिरों में से दो तो आजाद हो चुके हैं, मतलब मेरे दो बेटे जीवित हो चुके हैं और इन्हें तुम्हारे ही खून ने जिंदगी दी है।
अब तूम सोच रहे होंगे कि मैं पैथ लैब में क्या करने गई थी तो सुनो मैंने अपने मायाजाल से खून की कुछ बोतलें उठाई थी और कब्रिस्तान में ले कर गई,जहां कुछ बुरी शक्तियां मेरी सहायता कर रही थी। उन्होंने ही मुझे अपने बेटों के जीवित करने का तरीका बताया था पर बदले में उन्हें समय-समय पर खून की जरूरत पड़ती थी ताकि उनकी शक्ति हमेशा बनी रहे।
जब मैं जीवित थी, एक सीधी-सादी औरत रही, पर जीते जी मैंने नरक से भी ज्यादा यंत्रना भोगी है। इसलिए मरने के बाद बची हुई लालसा ने आग का रूप ले लिया। तुम्हारे खून को मैंने कितनी बार अपने गले में उतारा है, उससे मुझे शक्ति मिलती है।
गांव जाते तुम्हारा पीछा करना, झूठी कहानी गढ़ कर तुम से सहानुभूति प्राप्त करना, फिर धीरे-धीरे तुम्हारे दिल और तुम्हारे घर में अपनी जगह बनाना मेरी ही सुनियोजित योजना थी। मैं सालों से यहीं निवास कर रही हूं,पर कभी तुम्हें एहसास नहीं हुआ होगा।पर तुम्हारा खून ही तुम्हारा दुश्मन निकला।
देखो दुनिया सही में गोल है, तुम्हारे खून की बूंदों ने मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचा दिया । जो भी तुम्हें भ्रम होता था, वह सब वास्तविकता थी। तुम तक मुझे पहुंचना था, इस रूप में नहीं आती तो फिर तुम मेरे पास कैसे आते।
जो आदमी गाड़ी खराब होने का बहाना लेकर आया था, वह मेरा बड़ा बेटा था जो मुझसे मिलने आया था और आज मेरा दूसरा बेटा भी जीवित हो उठा। उस आदमी ने तुम्हारे खून के साथ मेरे बेटे की जिंदगी भी बांधी थी। इसलिए तो वह कपड़ा हमेशा तुम्हारे आसपास ही रहता था।
इस समस्या से निकलने का तरीका भी कब्रिस्तान में रहने वाले मेरे साथियों ने ही बताया था तभी तो इनके खाने का इंतजाम करते रहती थी। गांव के बाहर जिस मकान को तुम देखे थे, वह तो भ्रम था। वास्तविक में तो वह मकान वहां था ही नहीं।
वह मकान तो यहां वीराने में खड़ा है। मुझे पता चल गया था कि तुम सच्चाई जानना चाहते हो,इसलिए तो तुम्हें यहां लेकर आई,कहते हुए वह हवा में उड़ने लगी। जयंत ये सब बातें सुनकर पागलों की तरह अपनी जिंदगी बचाने के लिए भागने की कोशिश करने लगा। कभी मोबाइल की तरफ देखता तो कभी दरवाजे की तरफ। पर निधि हर जगह होती। वह गिड़गिड़ा रहा था,अपनी जिंदगी की भीख मांगने लगा,पर निधि कहां मानने वाली थी।
सालों से जिस चीज की प्रतीक्षा कर रही थी,उसे कैसे जाने देती। तभी हवा में वही लाल कपड़ा लहराया और जयंत की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। फिर तो जयंत को लगा कि चारों तरफ से उसकी गर्दन कसी जा रही है। उसका दम घुटने लगा ,जिससे मुंह से खून बाहर आकर उस लाल कपड़े पे गिरने लगा।
जयंत के प्राण पखेरू उड़ चुके थे और वह लाल कपड़ा साधारण टुकड़े में तब्दील हो गया। उसके बचे दो सिरे भी गायब हो गए। इस तरह से यंत्रणा की दबी आग ने अपनी तलाश पूरी की।
बेचारा!जयंत किस इकतरफा प्यार की तरफ आकर्षित हुआ और उसकी यह अधोगति हुई। एक वैंपायर की बदले की आग का कितना वीभत्स रूप सामने आया।
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