🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Part –9)🌶️🌶️🥵
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गतांक से आगे……✍️✍️
रघुवीर सहाय यंत्रवत चलते हुए आगे आए। सबसे पहले उनके मुंह से यह निकला कि,बच्चों! तुम लोग का यहां स्वागत है। मेरे लिए सबसे सुखद बात तो यही है कि तुम सब के जेहन में आज भी मेरा अस्तित्व है। आवाज सुनकर सभी चौंके, क्योंकि आवाज ऐसी लग रही थी,मानों बहुत दूर गहरी खाई से आ रही हो।
तेजस ने रघुवीर जी की तरफ ध्यान से देखा, वह पता नहीं किस दिशा में देख रहे थे। उनकी आंख की पुतली भी स्थिर थी,चेहरे पे बिल्कुल भावशून्यता, सभी को यह देख कर बहुत हैरानी हुई। फिर उनकी आवाज पूरे कमरे में गूंजायमान होने लगी।
रघुवीर सहाय ने बोलना शुरू किया। मेरी और मेरे भाई के विचार कभी एकमत नहीं हुए। उसकी महत्वाकांक्षा हमेशा बढ़ती रहती थी। उसने मेरे पे दबाव बनाना शुरू किया कि मेरे आगे– पीछे कोई नहीं है,इसलिए मैं अपनी सारी प्रॉपर्टी उसके नाम कर दूं। मेरे अकेले होने का उसने फायदा उठाना चाहा था।
अभी तुम लोग जिस कंपनी में काम कर रहे हो, उस समय यह कंपनी नंबर वन पे चल रही थी। कई Investor इसमें अपना पैसा लगाना चाह रहे थे। कितनी कंपनियां तो इसे takeover भी करना चाह रही थी । पर मैं इस बात के लिए कभी सहमत नहीं हुआ।
अंत में जब उसने देखा कि घी सीधी उंगली से नहीं निकल रही है तो उसने उंगली टेढ़ी करनी चाही। एक दिन सुबह-सुबह राजवीर के बड़े बेटे का फोन मेरे पास आया। बहुत घबराई हुई आवाज थी। मेरा दिल भी थोड़ा पसीज गया। उसने बोला कि पिताजी की तबीयत रात से ही कुछ ठीक नहीं लग रही है । पता नहीं क्या बड़बड़ाते जा रहे हैं।
मुझे भी लगा कि जरूर कुछ सीरियस बात होगी, तभी मुझसे आया है कहने। एक भाई का प्रेम सभी असहमत विचारों पे भारी पड़ गया। मैं दौड़ते हुए उसके घर गया, वहां जाकर देखा तो सचमुच में वह काफी बीमार लग रहा था । मुझे देखते ही फफक– फफक कर रोने लगा और मेरे गले लग गया।
उस समय मुझे थोड़ा भी अंदेशा नहीं था कि इन आंसुओं के पीछे एक गहरी साजिश काम कर रही थी। उस दिन से मेरी बहुत आवभगत होने लगी उसके घर। हर काम मेरे से पूछके किया जाता। मैं भी हर दिन राजवीर का हाल-चाल लेने उसके घर चला जाता। किसी ने सच ही कहा है कि सांप की दोस्ती कभी ठीक नहीं होती,क्योंकि वह अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ता।
राजवीर की तबीयत ठीक नहीं होने के कारण उसके सारे पेपर वर्क मैं ही कर रहा था। एक तरह से मैं आंखें मूंदकर विश्वास करने लगा।यहां तक कि कंपनी के सारे अधिकार भी उसने मुझे दे दिए, मतलब फैसले लेने का। मैं भी आत्मविभोर हो रहा था उसके बदलाव को देखकर। एक रात यूं ही अपने कमरे में टहल रहा था और राजवीर के बदलाव के बारे में सोच– सोच कर मन ही मन पुलकित होने लगा।
चलो, मेरे बाद राजवीर प्रॉपर्टी की बहुत अच्छी तरह देखभाल कर लेगा । तभी फोन की घंटी बजी । राजवीर की पत्नी घबराई हुई आवाज में रोए जा रही थी । मैं एक पल भी देरी किए बिना उसके घर पहुंच गया । देखा तो राजवीर पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ किए जा रहा था। मुझे देखते ही एकदम से शांत हो गया। दिल को तसल्ली मिली उसे ठीक देखकर।
राजवीर की पत्नी ने एहसान के रूप में मेरे पैर ही छू लिए। तभी एक दूसरे कमरे से राजवीर का बेटा एक फाइल लेकर मेरे पास आया। मैंने उसकी तरफ प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा तो उसने बोला कि फाइल के अंदर के पेपर पे सिग्नेचर करना है बड़े पापा। पापा तो अब हर काम आपसे ही करवाते हैं ना। मैंने फाइल को लेने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि लाइट चली गई।
मैंने उससे कहा भी कि यह फाइल मुझे दे दो , कल सुबह मैं पढ़ कर उस पर साइन कर दूंगा। पर उसने अपनी मीठी– मीठी बातों में फंसाकर बिना पढ़े उसपे साइन करवा लिया और मैंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी और आखिरी भूल कर दी। इस बात पे समीर सर की तरफ देखने लगा और उनके कहने का आशय समझने की कोशिश कर रहा था। दूसरी तरफ रघुवीर सहाय पता नहीं किस दिशा में बस देखे ही जा रहे थे। फिर उनकी कहानी आगे बढ़ने लगी।
अगले दिन अचानक से राजवीर की तबीयत पूरी तरह से ठीक हो गई। उसके तेवर ही बदल गए। अब तो वह मेरी कुछ नहीं सुनता था। जब मैंने अपने अधिकार की बात कही तो ऐसे हंसा, मानो मैंने कोई जोक मार दिया हो। फिर उसने जो मुझे दिखाया, उससे मुझे ही अपनी आंखों पे भरोसा नहीं हुआ। मेरा अपना खुद का भाई इतनी बड़ी साजिश का शिकार मुझे बना लेगा, मैं सोच भी नहीं सकता। इस काम में पूरा का पूरा परिवार ही शामिल था।
क्रमश……✍️✍️
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