मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
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वर्तमान परिपेक्ष्य में देखा जाए तो आंदोलन का शाब्दिक अर्थ कहीं खो -सा गया है | स्थिति तो यहाँ तक आ गयी है कि जरा भी कुछ हुआ नहीं और लोग सड़कों पर उतर आये आंदोलन के लिए | जब यही आंदोलन देश के अंदर कलह का रूप ले ले तो स्थिति भयावह हो जाती है | आज के समय में हमारे देश में अपने -अपने प्रदेशों को लेकर जो विरोध उत्पन्न हो रहा है ,वह शोचनीय है | चलिए मान लेते हैं कि कुछ आंदोलन देश -हित में भी होते हैं | जैसे निर्भया काण्ड के बाद जब लोग सड़कों पर उतर आये ,तो इसतरह से न्याय के लिए संगठित होना जायज़ था | दूसरे शब्दों में आप समझ सकते हैं कि अपने अधिकारों के लिए एकजुट होना कोई गलत बात नहीं है | सरकार की नीतियों के विरोध में आंदोलन करना भी एकबारगी हमारा अधिकार बनता है | बस विरोध का रुख सही -गलत के आधार पर ही होना चाहिए ,ना कि दलगत के आधार पर | फिर मैं किस तरह के आंदोलन की चर्चा यहाँ करूँ या यूँ ही इस मुद्दे को जाने दूँ ।
सदियों से हमारे देश में सत्ता -तंत्र की व्यवस्था से उपजे शोषण और अन्याय के विरोध में सुनियोजित तरीके से आंदोलन का प्रादुर्भाव होता रहा है ,जिसके मूल में हमेशा सुधार की प्रक्रिया ही रही है | चाहे वह आंदोलन आजादी के लिए लड़ा गया हो या किसी अन्याय के विरोध में उसका आगाज हुआ हो | ध्येय हमेशा यही रहा है कि अन्याय के खिलाफ़ प्रदर्शन | अगर सरसरी नजऱ दौड़ाया जाए तो आंदोलन पानी के लिए भी हुए हैं तो वहीँ दूसरी ओर पेड़ों को बचाने के लिए भी | सिक्के के दूसरे पहलू को देखा जाए तो स्वस्थ आंदोलन ने हमेशा देश का भला किया है | आंदोलन तो एक विचारधारा है ,जिसके बहाव में हम सुधार लाने की कोशिश करते हैं |
जब एकजुटता की बात हो रही है तो क्यों न छात्र -आंदोलन की चर्चा की जाए ,जो हमारे देश के भविष्य हैं | अगर वे ही अपने कर्तव्यों से इतर दलगत ,जातिगत भावनाओं का आगाज़ करेंगे तो फिर उस देश का भगवान् ही मालिक है |
जेपी आंदोलन का तो नाम सुना ही होगा ,जिसने देश की राजनीति की दिशा ही बदल दी | ये छात्र -आंदोलन बिहार के छात्रों द्वारा बिहार सरकार के अंदर फैली भ्रष्टाचार के विरुद्ध शुरू हुआ था ,जिसने अपना रुख आगे चलकर उस समय की केंद्र सरकार के तरफ मोड़ लिया था | इसकी अगुवाई जयप्रकाश नारायण ने की थी ,जिन्होंने देश के राजनीतिक पटल को लगभग बदल ही दिया| वर्षों से चली आ रही कांग्रेस की सरकार को मुंह की खानी पड़ी और देश को एक नयी पार्टी के संचालन का मौका मिला ,तभी तो इसे संपूर्ण क्रान्ति आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है |
आप सोच रहे होंगे कि इतिहास की बात क्यों उठ रही है ? लेकिन कहते हैं ना कि इतिहास की नींव पर ही वर्तमान की मंजिल खड़ी होती है | पर बात अब पहले जैसी रही नहीं | अब छात्र -आंदोलन सत्ता से प्रेरित हो गया है | छात्रों ने अपनी वैचारिक दिशा ही बदल दी है |
जरा आप वर्तमान को ही देख लीजिए | देश की राजधानी दिल्ली और वहां का कॉलेज J N U,जो शुरू से ही छात्र -आंदोलन की जननी रहा है | इसके प्रांगण में कई आंदोलन उपजे ,जिसने देश ही नहीं विश्व के मानस पटल पर भी अपनी छाप छोड़ी | यही J N U आज अपनी ही कुछ छात्रों द्वारा हिंसा का शिकार हो रहा है और इसका खामियाजा इसके समर्थन में उतरे देश के और दूसरे कॉलेज भी भुगत रहे हैं | छात्रावास की बढ़ी हुई फ़ीस और कॉलेज की कुछ समस्याओं को मुख्य मुद्दा बनाकर अपने अब तक के इतिहास में सबसे बड़ा आंदोलन बना दिया है ,जिसकी परिणीति परीक्षा -बहिष्कार और कॉलेज के अंदर हिंसा के रूप में हुई |
9 फ़रवरी 2016 के बाद J N Uको देश विरोधी नारे लगाने वाले परिसर के रूप में पहचाना गया ,क्यूंकि यहाँ कुछ छात्रों की तरफ से आतंकवादी अफजल गुरु को लेकर कार्यक्रम किया गया | और यह हमेशा से होता आया है कि जब भी इस तरह के विरोध हुए हैं तो कुछ असामाजिक तत्वों ने अपनी -अपनी रोटी सेंकी है | यहाँ भी वही हुआ | कुछ नकाबपोश छात्रों ने देश -विरोधी नारे लगाए ,जिसके कारण पुलिस ने तात्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया | इसका असर एक महीने तक पूरे कॉलेज में अकादमिक गतिविधियां प्रभावित रहीं ,देखने को मिला |
बात यहीं पर समाप्त नहीं होनी थी| उसी कॉलेज के पी एच डी के छात्र नजीब की गुमशुदगी ने इस विरोध को और हवा दी | कहने का मतलब यह है कि कॉलेज की बहुत सारी समस्याओं को मद्देनजर नज़र रखते हुए छात्र आंदोलित हुए | इसके लिए भूख -हड़ताल हुई ,परीक्षाओं का बहिष्कार किया गया ,सर्वर रूम पर छात्रों का कब्ज़ा रहा | ऐसी -ऐसी कितनी सारी घटनाओं ने J N Uको पूरे देश -भर में चर्चा का विषय बना दिया |
कहते हैं न कि गेहूं के साथ घुन भी पीस जाता है ,यहाँ पर भी वहीँ हुआ | अन्य छात्रों की पढ़ाई बाधित हुई | जाने कितने महीने से कॉलेज में कोई अकादमिक गतिविधि आयोजित नहीं हो पायी है | हद तो तब हो गयी ,जब कुछ नकाबपोश लोगों ने कॉलेज में प्रवेश करके वहां के विद्यार्थियोँ के साथ मारपीट की और university के सरकारी संपत्ति को भी नुक्सान पहुँचाया | शिक्षा के मंदिर का ऐसा हिंसक रूप भी देखने को मिलेगा ,अचंभित कर देता है |
आंदोलन का ऐसा विभत्सय रूप कल्पनातीत है | सदियों से हमारे देश में भेड़ -चाल की परंपरा रही है | J N Uकी ख़बरों ने पूरे देश के कॉलेजों पर अपनी छाप छोड़ी | यहाँ के छात्रों पर हुए हमले के विरोध में कई कॉलेज एकजुट होकर सड़कों पर उतर आये ,जिसमें मुम्बई ,कोलकाता ,अलीगढ ,पुणे की यूनिवर्सीटियाँ प्रमुख रहीं ,जहाँ छात्रों के साथ अध्यापकों ने भी एकजुटता का प्रदर्शन किया |
अगर स्थितियों पर गौर करें तो पाएंगे कि आंदोलन के मूल में फ़ीस – वृद्धि का जो मुद्दा उठा था , वह कॉलेज की अन्य समस्याओं को भी अपने साथ उठाने में कामयाब रहा | विरोध का आधार गलत नहीं था | गलत तो तब हो जाता है, जब कुछ असामाजिक तत्व आंदोलन में घुसकर अपनी रोटी सेंकने में कामयाब हो जाते हैं | फिर इसी आंदोलन का राजनीतिकरण हो गया , जिसके परिणाम में हिंसा शुरू हो गयी ,देश -विरोधी नारे लगाए गए | यहाँ तक कि हिंसावादियों ने सरकार की कई नीतियों को चपेट में ले लिया और उसे भी इस आंदोलन का हिस्सा बना दिया ,जो नहीं होना चाहिए था | शिक्षा के मंदिर में ऐसी गुटबाजी होना सही बात नहीं है ।
छात्रसंघ आंदोलन ने हमेशा देश की राजनीति को प्रभावित किया है | यह एक राजनितिक विचारधारा है ,जो कि सत्ता से प्रेरित नहीं होनी चाहिए | पर बात अब पहले जैसी रही नहीं | पहले के आंदोलन लोकतांत्रिक समाज में परिवर्तन की लहर विकसित करते थे | पर आज की गहमागहमी को देखकर मन में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह आंदोलन भी देश में राजनीतिक बदलाव का वाहक बनेगा ?
चलो मानते हैं कि सरकारी नीतियों के लिए जनमानस में अलग -अलग आक्रोश उठते हैं और ये स्वाभाविक भी है | हमारे लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की आजादी है | पर जब इस अधिकार को दलगत ,जातिगत का अमलीजामा पहनाया जाता है तो बात विपरीत हो जाती है | फिर क्या होता है ,देश अलग -अलग विचारधाराओं में विखर जाता है | social media पर भी विचारधाराओं की खट -पट होती रहती है | कोई कुछ बोलता है तो कोई कुछ | आग में घी का काम करता है , जब कोई सेलिब्रिटी या बड़ी हस्ती समर्थन में उतरती है |
फिर ये समर्थन की आवाज किसी को जायज़ लगती है तो किसी को नाजायाज | आगे क्या होता है — विरोध की लहर को राजनितिक रंग में रंग दिया जाता है | धीरे -धीरे सारा देश इस लहर की चपेट में आने लगता है | देश गुटों में बंट जाता है ,जो आगे चलकर आंतरिक कलह को जन्म देता है |
J N U में भी यही तो हो रहा है | छात्र आंदोलन किस लिए हुआ — “बढ़ी हुुई फ़ीस को लेकर” | पर बात आगे बढ़ती गयी और सत्ता के रंग में रंगती गई।इसने सरकार की नीतियों को भी अपने विरोध के रंग में रंग लिया,जो नहीं होना चाहिए था।
देश की राजधानी दिल्ली यहां कुछ भी आंंदोलन होगा , उसका असर पूरे देश में देखने को
मिलेगा, चाहे वह J N U हो या जामिया मिलिया case हो या शाहीन बाग़ का उपद्रव। सबकी नज़रें यहां पर टिकी होती हैं।
शाहीन बाग़ को ही ले लीजिए। जाने कितने दिनों से प्रदर्शनकारी सरकार की नीतियों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। बिना कानून को समझे उसे आड़ेे हाथों लेना गलत बात है। देश – विरोधी नारे लगना, हिंसक उपद्रव होना इन आंदोलनों का हिस्सा बन जाते हैं। सत्ता- पक्ष वालों का कहना है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम
पर जहर घोला जा रहा है, तो वहीं विपक्षी पार्टियों को आंदोलनकारियों का सहारा मिला होता है। पथ- जाम होते हैं , पुलिस और जनता के बीच हाथा – पाई होती है । बात तो इतनी बढ़ जाती है कि प्रदर्शन स्थल पर एक व्यक्ति हथियार लेकर पहुंचता है और आंदोलनकारियों को धमकी देता है। यहां तक कि उसने किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े होने का दावा भी किया है। अब इससे बदतर स्थिति और क्या हो सकती है जब इस विरोध में पार्टियां रोटी सेंकने का काम कर रहीं है।
मेरे कहने का तात्पर्य बस इतना है कि आंदोलन के शाब्दिक अर्थ को समझा जाए और उसे जनकल्याण के हित में जोड़ा जाए ।इस तरह के प्रदर्शन में निहित स्वार्थ की संभावना के दुरुपयोग से भी इंकार नहीं किया जा सकता है । चाहे कोई भी आन्दोलन हो , देशहित के मद्देनजर हो ।इसे सत्ता के रंग में ना ढाला जाए सो ही बेहतर है । प्रदर्शनकारियों का हुजूम ऐसा हो जाता है ,जिससे देश की व्यवस्था ही चरमरा जाती है। और तो और महिलाओं और बच्चों का बिना जाने समझे शामिल होना केवल भेड़चाल को दिखाता है । परिस्थितियां तो ऐसी हो गई है कि इसतरह के जमघट में देश विरोधी नारे लगने लगे हैं ,जिससे देश में आंतरिक कलह की स्थिति उत्पन्न हो गई है ।
आज हमारा देश कोरोना जैसी माहामारी से जूझ रहा है । सभी घर के अंदर हैं।ऐसे में इस विषय से हटकर किसी और चीज पर लिखना उचित तो नहीं है ।पर जिस तरह से कोई भी काम नहीं रुकता है ,उसी तरह से हमारे लिए भी यही उचित होगा कि अपनी लेखनी से लोगों को रूबरू कराते रहें। ये जो देश के अंदर आंतरिक आंदोलन होते रहते हैं ,वो भी तो एक वायरस की ही तरह ही है,जो एक – दूसरे को अपने चपेट में ले लेता है। कोरोना का तो इलाज भविष्य में निकल सकता है ,पर देश की उपद्रवी मानसिकता का क्या करें ।कैसे कहें —–– Stop violence,save country
शायद आंदोलन का सही अर्थ भविष्य में निकल जाए ।
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Bahut badiyan jii…kya khub socha hai aaapne….
“Read a thousand books, and your words will flow like a river.” ― Lisa See
Above sentence is for your writing skill…
Wow…what a great thought…need to think about this is must for everyone.
Student protest .. nice