खुद की तलाश
अगर मगर और काश में हूं,मैं खुद अपनी तलाश में हूंदिन के उजालों को सहने की नही है ताकत,इसलिये मैं बुझते हुए दीये की प्रकाश में हूंखेलती है दुखों के साथ,ज़िन्...
एक रोज सुबह जब मैं उठा,
मेरा घमंड जैसे पल भर में टूटा,
जब देखा मैने आईना,
मेरी नजर फिर आईने की नजर से टकराई ना,
कल रात जिस चेहरे को देखा था मैं,
जिस चेहरे पर कभी घमंड करता था मैं,
वो तो मुझे आईना में दिखा ही नही,
बदला सा अन्जाना सा जैसे कभी मेरा था ही नहीं,
अजनबी चेहरे को देखकर बिजली सी गिरी मुझपर,
ये क्या हो गया है मुझे, कहीं स्वप्न तो नही देख रहा मैं,
मैंने देखा ये खुद की बाहों में एक तेज चिकोटि काटकर,
ये मैं ही था,
कुछ समझ नही आया,
फिर किसी ने मुझे याद दिलाया,
मैं अस्पताल में था, मेरी मंगेतर मेरे पास ही थी,
उसके भी चेहरे पे एक अन्जानी सी आशंका भरी परछाई थी,
उसने फिर मुझे अपना प्यार दिखाया हमदर्दी नही,
उसने मुझे गिरकर उठना सिखाया, फिर से गिरना नही,
अब फिर मैंने आईना को देखा और देखकर कहा,
मुझ जैसे इंसान तुझे अब मिलेगा कहाँ,
मैं वक्त नही जो गुजर जाऊंगा,
मैं कोई मशीन नही जो चलूंगा और रुक जाऊंगा,
मैं तो बस मैं हूँ जो फिर आऊंगा,
एकबार नही बारबार आऊंगा।
अगर मगर और काश में हूं,मैं खुद अपनी तलाश में हूंदिन के उजालों को सहने की नही है ताकत,इसलिये मैं बुझते हुए दीये की प्रकाश में हूंखेलती है दुखों के साथ,ज़िन्...
Waah…Very nicely written….
Niccceeee….
…
Nice one 👌
Dil ko chu liya aapne