मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
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अपने केबिन में बैठे – बैठे शायद रमा की आंख ही लग गई होगी, तभी तो विचारों का तूफान उसके अंतस को झकझोर दिया था, वरना जागती आंखों के पास इतना समय कहां जो उसके जीवन के घटनाक्रम को यूं जोड़ें।एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के एक बड़े से ओहदे पर बैठी रमा ने विकास की सीढ़ी चढ़ने के क्रम में शायद अपने अस्तित्व को ही गौण कर लिया था, तभी तो उसके पास अपने लिए भी समय नहीं था।
एक औरत की भी अपनी जिंदगी होती है ,अपना अस्तित्व होता है जिसे जिंदा रखने का उसे हमेशा भरसक प्रयत्न करना चाहिए, जो रमा ने नहीं किया। अपने मुकाम को पाने में उसने अपने आप को ऐसे व्यस्त कर लिया मानो व्यस्तता के सिवाय अंतर्मन में और कोई कामना ही न हो।
पर शायद अपने अस्तित्व की लड़ाई वह बचपन से ही लड़ रही थी । दकियानूसी परिवार में जन्मी , जहां लड़कों को लड़कियों के ऊपर रखा जाता था ।जब रमा का जन्म हुआ तो लड़की देख कर उसके माता-पिता मायूस हो गए थे ।फिर लड़के की प्रतीक्षा में दो और बहने दुनिया में आ गई। संयुक्त परिवार में रहने वाली रमा और उसकी बहनों पर समय-समय पर वाणी की बौछार होती रहती थी। इन सब में उसके माता-पिता भी शामिल रहते थे । बेचारी लड़कियां अपना दुख लेकर किसके पास जाती ।शायद इन लड़कियों के दुख ने भगवान को हिला दिया था और एक भाई उनकी दुनिया में आ गया। कहते हैं ना कि तलवार का घाव मिट सकता है पर कड़वी बोली सीधे दिल में लगती है , जो नासूर बनकर रमा के दिल में घर कर गई थी।
पूरे परिवार में खुशी की लहर छा गई थी ,उनके वंश को बढाने वाला जो आ गया था ।शीतकाल में सूर्य की किरणें उदीयमान होकर जो खुशी देती है शायद यही मुस्कान रमा के परिवार वालों की अधरों पे भी आ गई थी, वर्षों की तपस्या जो उनकी सफल हो गई ।
इन सबके बीच पीसा कौन ?रमा और उसकी बहने । सारा दिन माता पिता उसके भाई के इर्द-गिर्द घूमते रहते थे उसकी हर छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखा जाता था ।इन सबके बीच में लड़कियां कहीं खो – सी गई थीं।
बालपन का कोमल मन इस पक्षपात को अपनी सूनी आंखों से बस देखता ही रहता था।कहीं बाहर घूमने की बात होती या नए खिलौने आते घर पर लेकिन ये सब चीजें लड़कियों की पहुंच से दूर ही होती ।भाई गलती करता पर डांट लड़कियां खाती ।एक गहरी खाई बनती जा रही थी रमा और उसके माता-पिता के बीच में।
मन कितना निष्ठुर होता है? एक मां भी ऐसा कर सकती है ख्यालों से ऊपर की बात है ।9 महीने बेटे भी रहते हैं पेट में और 9 महीने बेटियां भी रहती हैं ।फिर मानस में इतना विभाजन क्यों? क्यों निष्ठुरता हमेशा बेटियां ही सहती हैं ?आखिर समाज उसके विचार कब बदलेंगे ? कब बेटियां अपने जन्म को सार्थक समझेंगी?
धीरे-धीरे समय ने करवट ली और स्कूल में नामांकन की बारी आई । जहां रमा और उसकी बहनें एक साधारण से स्कूल में पढ़ती थी , वहीं भाई का दाखिला शहर के एक नामी – गिरामी स्कूल में हुआ। यह बात रमा के जेहन में बैठ गई थी।उसका स्वाभिमान खुद से ही सवाल पूछने लगा था। बचपन के कोमल मन पे जब टिस लगती है तो उसकी वेदना जिंदगी भर सालती रहती है। यही चीज रमा के साथ भी हुआ। पर उसने हालात के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि दुगने जोश के साथ अपनी पढ़ाई में जुटी रही । उसने इस मिथक को तोड़ दिया कि नामचीन स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थी ही उच्च स्थान पाते हैं।
शनै: शनै:समय बीताऔर रमा जवानी की दहलीज पर आ गई ।बाल मन पर पड़े कुठाराघात ने उसे एक नई ताकत दी थी। समय ने उसे एक बड़ी सी कंपनी में एक बड़ा ओहदा दिला दिया था । अच्छे-अच्छे रिश्ते आने शुरू हो गए ।उसके माता – पिता भी उसकी सफलता के आगे झुक गए। दोनों बहनें भी पढ़ाई में काफी अच्छी थी ।बस जो नाज उसके माता-पिता भाई पर कर रहे थे, उसी पर गाज गिरी ।अत्यधिक लाड प्यार ने उसे गलत संगत में डाल दिया ।उसकी बुद्धि कुंठित हो गई थी।
फिर एक दिन एक अच्छा रिश्ता देखकर रमा की शादी हो गई ।रमा को वो सारी खुशियां मिल गई थी जो बचपन में उसे नहीं मिल सकी । पति भी ऊंचे ओहदे पर थे। रमा अपनी दुनिया में खुश थी। पर कहते हैं ना कि बचपन की टीस पूरी जिंदगी लगती रहती है । रमा सफलता की आंधी में ऐसी उड़ी कि खुद के लिए भी समय नहीं निकाल सकी ।उसका तो बस एक ही सपना था – आगे बढ़ना ,इतना आगे बढ़ना कि कोई उसे छू ना पाए । वह मर्मस्पर्शी लम्हे जिनसे बचपन में वंचित रही थी ,सफलता ने उसे इससे दूर कर दिया ।बस वह थी और था उसका आत्माभिमान।पति को लगता था कि उसकी पत्नी दो मिनट शांति के साथ बैठकर बातें करें ,साथ रहें।पर रमा अपने पति की व्यथा को समझ ही ना सकी या यूं बोले कि समझना ही नहीं चाहती थी।
समय ने करवट ली और वह एक बेटी की मां बन गई । पर अपनी बच्ची के लिए भी उसके पास कहां समय था? घर में सारी सुख – सुविधाओं के रहते हुए भी एकाकीपन एक दूसरे के मन में घूम रहा था । चक्रव्यूह में रमा के पति और बच्ची फंसे हुए थे जिसे केवल रमा ही निकाल सकती थी ।बच्ची को तो जन्म लेते ही काम वाली के भरोसे छोड़कर काम पर जाना उसकी फितरत ही हो गई । बच्चा क्या करता है कैसे रहता है उसे कहां पता होता था ?पति ने कई बार उसे टोका भी। पर इस ओर उसने ध्यान ही नहीं दिया ।वह भी तो वही कर रही थी जो उसके माता पिता ने उसके साथ किया था । कम से कम बचपन में उसके माता-पिता उसके साथ तो थे ।नफरत में ही सही पर मां की छांव तो मिली ही थी उसे।
पर अब क्या हो गया? कहते हैं कि अतीत से आदमी या तो सीखता है या उससे बिगड़ता है ।बेटी अब बड़ी हो रही थी।ऐसे समय में जब उसे अपनी मां की सबसे ज्यादा जरूरत थी ,उस स्थिति को समझने की रमा ने कभी कोशिश ही नहीं की।
किसी भी रिश्ते की बुनियाद आपसी समझ और विश्वास पर टिकी होती है ।एक दूसरे के संबंध को समझने में रमा ने बहुत बड़ी गलती कर दी थी। बात तलाक तक आ गई। बेटी ने भी ,जो बचपन से देखा और महसूस किया था,अपने आप को पिता के साथ इस लड़ाई में सहयोग दिया।
परिस्थितियों ने एक झटके में ही रमा को नीचे जमीन पर ला दिया । मुठ्ठी से फिसलते रेत की तरह उसके अपने भी फिसल रहे थे ।किसी भी रिश्ते को अगर बचाना है तो अपने अहम को अपने स्वाभिमान को दरकिनार करना होगा ,जो रमा के मन में नहीं आया । आखिरकार दोनों अलग हो ही गए।अब रमा के पास भौतिकता से भरपूर सारी चीजें थी और थी तो स्तब्ध घर में बस सायं – सायं की आवाज ।लेकिन कहते हैं ना कि जीवन की संध्या बेला में जब इंसान अपने कामों के पीछे भागते – भागते थक जाता है तो उसे भी एकबारगी अपनों की याद अवश्य आती है या यूं कहिए कि इंसान कितना भी अपने आप से झूठ बोल ले,पर दिल के किसी कोने में उसे वैसा दुख जरूर सालता है ,जिसे रहते हुए कभी उसने कद्र ही न की हो ।
सुबह उठना ,ऑफिस जाना दिनभर अपने आपको काम में खपाना फिर संध्या बेला में सन्नाटों के बीच रात गुजारना ,यही तो जिंदगी बन गई थी उसकी ।संध्या के निस्तब्ध आकाश में तारों की झिलमिलाती रोशनी की आगाज का जो प्रादुर्भाव होता है ,ठीक वैसे ही रमा भी अपने जीवन की सांद्य – बेला में अपनी खुशी को वापस देखना चाहती थी ।
आखिर उसका अंतर्मन भी तो यही चीत्कार कर रहा था ।तभी तो काम करते-करते उसे झपकी आ गई और वही खयाल उसके मन में चक्रवात की तरह घूम गया था जिसे जागती आंखों से कभी उसने देखने की कोशिश ही नहीं की ।
बचपन से ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी वह। पर अब वह थक गई है ।जिंदगी ने उसे पीछे देखना भी सिखा दिया क्योंकि वह अपने अस्तित्व को पाने में इतना ऊपर पहुंच गई कि उसे अपने नजर ही नहीं आ रहे थे पर अब बस ।उसने मन में ठान लिया था कि अपने पति और बेटी से माफी मांग कर उसे फिर से अपनी जिंदगी में वापस लाएगी ।शीशे से छनकर आती सूर्य की गतिमान किरणों ने उसके चेहरे से वो भाव शून्यता हटा दी जो उसे वर्षों से बंधन में जकड़ी हुई थी ।अपने पति से बात करने के लिए वह इतनी उतावली हो रही थी कि उसे इंतजार ही नहीं हो पा रहा था ।शायद अपनी गलतियों को ठीक करने की उसकी यह कोशिश कामयाब हो जाए। अपने अस्तित्व को सही मुकाम तक पहुंचाने में ईश्वर उसकी मदद करें और यही उसकी आखिरी लड़ाई हो।
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Dil ko chuu jaati hai aaapki likhawat.
Bahut hi achha katha hai e..Trendy kahani hai e…isi Tarah likhte rahyie aap aur hmara manoranjan karte rahyie.
Good job done mumma.
Wah kahani toh waqai achha hai..
That’s a very nice story……Excellent 👍👍👍👏👏👏👏
This is not only a story but an inspirational thought for all the working women. What a amazing writer you are…Maja aa gaya..👍👍👏👏
Khud mein itna na kho jaye koi ki saare pichhe chhut jaye. Bahut badhiya.
Incredible quality in your writing. Just love it.
Nicely written by you. Great skill..👍👏👏👏
Ur way of writing is very good 👌👌 Di…… Really appreciated….🙏🙏
Such an inspirational story… Very well written…
I am a great fan of your writing mohtarma….
Nah it Sundar Bhai byakt karti hai aap.. Krista aise hi apni kala ko nikharte rahiye….
Beautiful and heart touching story…👌👌