मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
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आज हमारा देश कोरोना जैसी महामारी को लेकर Lock- Down जैसी स्थिति से गुजर रहा है ।कितने दिनों से लोग अपने-अपने घरों में बंद हैं । सरकार लगातार अपील कर रही है कि संक्रमण को रोकना है तो social distancing का पालन होना ही चाहिए और यह तभी संभव होगा जब जनता का आपस में संपर्क ही ना हो।
Lock- Down एक आपातकालीन व्यवस्था है ,जो किसी आपदा या महामारी के समय लागू किया जाता है जिसमें लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ही बाहर जाने की इजाजत मिलती है । बहुत ही मुश्किल होता है जब हम अपने आप को घरों में कैद कर लेते हैं । वैसे यह Lock-Down आत्मनिरीक्षण के लिए भी हो सकता है । किसी भी चीज का उजला पक्ष और काला पक्ष दोनों होता है । मेरा मतलब है एक सिक्के के दो पहलू होते हैं।बस बात समझने की है। यह lock – Down हमारे धैर्य की परीक्षा का द्योतक भी हो सकता है अगर हम इसे दूसरे नजरिए से देखें तो।
इस आपाधापी जिंदगी में जहां लोगों के पास सिवाय भागने के और कोई काम नहीं है ,वहां यह Lock- Down उनके लिए वरदान साबित हुआ है ,जिनके पास खुद के लिए भी समय नहीं होता है पता नहीं कब हम अपने परिवार के साथ एक – मुश्त समय बिताएं होंगे ।साथ खाना, आपस में बातचीत जाने ऐसे कितने पल हैं जो व्यस्त -सी जिंदगी में बिसूर से गए हैं ।घर के बड़े – बुजुर्गों के साथ समय बिताना यांत्रिकी जीवन में कहां हो पाता है ?जब हम ही खुद के लिए समय नहीं निकालते हैं तो हमारे बच्चे तो वही सीखेंगे जो देखेगें ।कम से कम इस Lock- Down ने परिवार के लोगों को आपस में जोड़ा तो है ना ।भले ही Social Distancing ज्यादा हो पर Family Distancing को कम करने में इसने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
आप बड़ी से बड़ी हस्तियों पर ही नजर दौड़ाइए न,उनके जीवन में अपने लिए कहां समय होता है ?मशीनी जीवन जीना उनकी फितरत हो जाती है ।चकाचौंध – सी जिंदगी कब अपनों की तलाश कर पाती है ।आज इस तालाबंदी में सभी अपने-अपने घरों में मूल्यवान समय व्यतीत कर रहे हैं ।उनके बच्चों को भी घर के बुजुर्गों की छांव मिल रही है। इसलिए तो यह समझने की जरूरत है कि आत्म निरीक्षण करो ।खुद में झांकों और सोचो कि इससे पहले कब खुलकर हंसे थे?कब साथ में खाना खाया था ?जाने ऐसे कितने पल हैं ,जिनकी यादें हमें विचलित कर देती हैं ।
ये तो हुई सिक्के के एक पहलू की बातें ।दूसरे पहलू के बारे में सोचिए तो अचानक आयी इस विपदा ने जाने कितने लोगों को एक दूसरे से मिलने के लिए रोक दिया है । जो जहां है वही बंद हैं । परिवहन की सुविधाएं बंद है ।ना कोई आ सकता है और ना जा सकता है । इन परिस्थितियों के बीच में जाने कितने लोगों की मनोदशा विकल हो रही है । पर ऐसी स्थितियों से तो गुजरना ही होगा । सरकार के पास कोरोना को रोकने के लिए Lock- Down के सिवा और कोई चारा नहीं है ।देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है ।ना ऑफिस खुल रहा है और ना ही कोई मॉल । हवाई जहाज , रेलगाड़ी ,बस ,ऑटो सब बंद हैं ।इस समस्या का बस एक ही इलाज है Social Distancing को maintain करना ।सभी काम घर से हो रहे हैं।
अगर आप उन लोगों को ध्यान में रखकर विचार कीजिए ,जो छोटे-छोटे शहरों से निकलकर बड़े शहरों में काम करने के लिए निकले हैं। जी हां! यहां मजदूरों ,कामगार लोगों की चर्चा की जा रही है।कारखाने बंद हो जाने से उनकी जिंदगी विवशता भरी हो गई है। न तो वे अपने घर जा सकते हैं और ना ही उनके पास इतने पैसे हैं जो महानगरों के रहने के खर्च को वहन कर सकें कितने लोग तो पैदल अपने घर के लिए निकल पड़े हैं।
बस चिंता इस बात की है कि इस महामारी का अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है । बस लोगों का आपस में दूरी बनाए रखना ही इस समस्या का हल हो सकता है ।आखिर सरकार करेगी तो क्या करेगी?
इस तालाबंदी ने हमारे चारों तरफ एक असाधारण पीड़ा का माहौल तैयार कर दिया है ।केवल वायरस के कारण ही नहीं बल्कि इससे बचाव के लिए भी जो समाधान तलाशे गए हैं जैसे Lock- Down,शारीरिक दूरी आदि के कारण भी खुद को घर में बंद करके लोगों के बीच में अकेलापन और परिवार में तनाव उत्पन्न हो रहा है ।वैसे तो ऑफिस के काम घर से भी हो रहे हैं पर आर्थिक मंदी से होने वाले नुकसान से नौकरी खत्म होने का डर जैसे मामले भी सामने आ रहे हैं।
हमें खुद के प्रति करुणा दिखाना होगा ।यहां यह बातें दयालु बनने के संदर्भ में ना होकर इस पीड़ा से बचने की कवायद है । इससे हम अपने मन को समझा सकेंगे कि हम अकेले नहीं हैं बल्कि हम एक हैं , उन सभी के साथ हैं जो इस समय मुश्किल समय से निकलने की कोशिश में लगे हैं।
लोगों को अपने घरों में बंद रहते – रहते एक बोरियत सी होने लगी है ।और यह कोई गलत बात भी नहीं है,बल्कि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । ऐसे समय में हमारे भीतर कई प्रकार की भावनाएं उभर रही हैं।कभी-कभी तो सरकारी नीतियों और तैयारियों को लेकर मन में कुंठा भी हो सकती है ।अगर हम इन भावों पर नियंत्रण रखें और इसके प्रति कड़ा रुख अपनाएं तो यह वर्तमान स्थिति से निपटने में और कहीं ज्यादा मददगार साबित होगा।
ऐसे कितने लोग होंगे जो Lock – Downके कारण घर में बैठ कर खुद को असहाय ,अनुपयोगी महसूस कर सकते हैं। उनकी मानसिक स्थितियां ऊपर – नीचे होती रहती हैं और यह स्वाभाविक भी है । पहले के अनुसार ना हमारी दिनचर्या होती है और ना ही कोई क्रियाकलाप । घर में रहते – रहते यह भाव उन्हें कुंठित कर देता है ।बड़ों को छोड़िए उनके विचार तो चलते रहते हैं।पर उन बच्चों का क्या जो घरों में रहते- रहते बोरियत अनुभव करने लगे हैं ।कम से कम पढ़ने, खेलने- कूदने, बाहर घूमने से वे भी तो वंचित हो ही गए हैं। छोटे-छोटे बच्चों को तो Lock- Down का मतलब ही समझ में नहीं आता होगा। क्या हम बड़े अपनी कुंठित भावनाओं को दरकिनार कर बच्चों के साथ सामंजस्य बिठाकर इन परिस्थितियों से नहीं उबर सकते हैं ?हम इसे दूसरे रूप में सोच सकते हैं कि बच्चों के साथ Quality Time बीताएं ,क्योंकि ऐसा मौका और समय बार-बार नहीं आता।इस बोरियत को दूर करने के लिए और घरों में टिकने के लिए ही तो हमारी संचार भारती ने रामायण और महाभारत जैसे पुराने सीरियल को फिर से संचालित किया है जो कभी एक जमाने में लोगों को बांधे रखते थे ताकि लोगों का मनोरंजन हो सके।
इस चीज को गहराई रूप से सोचा जाए तो हम समझ पाएंगे कि सिर्फ बाहरी स्थितियां ही कुंठित कर सकती हैं। हमें यह बात मन में बिठाना होगा कि हम Lock -Down का पालन इसलिए भी कर रहे हैं ताकि अपने साथ साथ समाज को भी इस बीमारी से बचा सके।यह केवल सरकार की ही समस्या नहीं है बल्कि पूरी मानव जाति की समस्या है और हम एकजुट होकर ही इसका निदान कर पाएंगे हमें यह सोचना होगा कि हमारे ऊपर जो बंधन लादे गए हैं वह देश हित में कारगर साबित हो सकता है ।हमें अपना शत-प्रतिशत देना ही होगा — मानसिक रूप से भी और भावनात्मक रूप से भी।
हमलोग तो अप्रत्यक्ष रूप से इस महामारी से लड़ रहे हैं मगर जरा उन लोगों की जिजीविषा पर भी गौर फरमाएं जो कोरोना जैसी बीमारी से सीधा लड़ाई करने को आमदा हैं । डॉक्टर,पुलिस,सफाई कर्मी सभी तो अपने – अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे हैं ।अपने – अपने घरों से दूर इस महामारी के समाधान में लगे हुए हैं ।हर समस्या समाधान के साथ आती है । भविष्य के बारे में सोच कर इसे और बड़ा ना बनाएं ।
आंकड़ों पर नजर डालें तो Lock- Down के बावजूद हर दिन नए – नए case सामने आ रहे हैं ।इतना मना करने के बावजूद भी भीड़ कहीं ना कहीं इकट्ठी होती ही रहती है। सोशल मीडिया समाज के हर कोने तक पहुंची हुई है,जो समाज को जागरूक करने में लगी है। बस कुछ लोग ऐसे हैं जो इसके सहारे Fake News समाज में फैला देते हैं ।और होता यूं है कि कहीं रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचती है तो कहीं लोग समूह में जमा हो जाते हैं। नतीजा क्या होता है पुलिस को बरबस लोगों पर डंडे बरसाने पड़ते हैं ।इन लोगों की तो दाद देनी पड़ेगी जो अपनी ड्यूटी पर लगे हुए हैं बिना संक्रमण के भय के।
हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम सरकार का सहयोग करें और आपस में Social Distancing बनाए रखें। जब कोरोनावायरस की बीमारी से पार पा जाएंगे तो भी कुछ संशय मन में रहेगा ही ।एक अनजाना डर को कोरोना को लेकर है, देखते हैं निकट भविष्य में क्या होता है ?कोविड-19 के बाद हमारे देश की स्थिति क्या होगी यह तो वक्त ही बताएगा। क्या यह पहले जैसी हो सकेगी या बाद के कई सालों तक भी लोगों को बंदिशों में ही रहना पड़ेगा ।अभी फिलहाल तो यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है। बस वर्तमान समय हमारे धैर्य की परीक्षा का समय है , करें जिसमें हमें खरा उतरना ही होगा तभी हम अपनी और अपने देश की रक्षा कर पाएंगे। बस एक वाक्य मन में बिठा लेना होगा कि “वक्त कभी टिक कर नहीं रहता, उसकी फितरत भी आदमी जैसी है “। चलिए देखते हैं कोविड-19 के बाद का समाज किस परिदृश्य में होगा यह तो भविष्य ही बताएगा ।अभी फिलहाल आपस में सामंजस्य बनाकर विपदा से लड़ने की तैयारी जारी रखते हैं।
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You once again wrote well…We should pay attention and follow both sides of the lock down…….👍👍👍👍
Looking at the current circumstances, you chose a very good topic……👌👌👏👏👏👏
Nice
To the point ..Jo bhinlikha Apne waqai Avi ke incidence ko dikhata hai
It felt like I´d been lying on that bed for a thousand years, tormented by every demon possible. But in current scenario we will have to follow the lockdown procedures for us and our families…
Nicely written by you…Really great…
Sach me lockdown me sare log aise hi situation ko face kr rhe hai…👌👌👌