तलाश(वैंपायर लव–स्टोरी)Part –8
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एक छोटा सा कस्बा रामपुर, जो आज सफाई की प्रतिमूर्ति बना हुआ था। सुबह से आज हर जगह सफाई कर्मचारी कस्बे को साफ करने में लगे हुए थे।जो जगह कचरे फेंकने का स्थान समझा जाता था ,आज वहां गंदगी का एक तिनका भी नजर नहीं आ रहा था। कहीं-कहीं पे लोगों की कुछ भीड़ लगी थी, जो आपस में खुसुर – फूसुर कर रही थी। उन्हीं लोगों से मालूमात करने पर पता चला कि नेताजी की पदयात्रा होने वाली है।
चुनावी गहमागहमी का माहौल था, तभी तो कस्बे को दुल्हन की तरह सजाया गया था। लाउडस्पीकरों पर गाने बज रहे थे। मनलुभावने गाने जो नेताजी की प्रशंसा में चार चांद लगा रहे थे। जहां नेताजी अपने मुखारविंद से जो कहने वाले थे उसे तो मानो फूलों से ही सजा दिया गया हो। वह शहर के M L A थे- नाम था पंडित राम शरण गुप्त।चुनाव जीते तो अरसा हो गया था पर शायद ही कभी अपने कार्यक्षेत्र का चक्कर लगाए हो। अब जबकि सीएम के पद की मगजमारी चलने लगी,तो अचानक से ध्यान उन जगहों पर जाने लगा जहां के दीदार करने को उन्होंने कभी सोचा ना था ।उसी में से एक था रामपुर, जो आज अपने नेता के दर्शन को आतुर था। भाषण शुरू होने से पहले ही नेता जी ने अपने अर्दलियों को गांव भेज दिया था, ताकि वहां पर माहौल तैयार हो सके। बड़े अदब से पेश हो रहे थे नेताजी के लोग। इस दोस्ताना व्यवहार से गांव वाले बड़े गदगद हो गए। छोटी जाति से लेकर अनुसूचित जनजातियों को बड़ा तवज्जो दिया जा रहा था।
तभी अचानक से खलबली मच गई।स्पीकर जो थोड़ा रुक- रुक कर बज रहे थे एकाएक अपना राग तेज धुन में अलापने लगे। नेताजी का काफिला बस आने ही वाला था। लोग एक दूसरे पर चढ़कर देखने की कोशिश करने लगे कि आखिर हमारा नेता दिखता कैसा है? बड़ी ही शालीनता से अर्दलियों ने नेताजी के रास्ते को साफ करवाया। लोग तो बड़े ही भाव- विभोर हो रहे थे। फूल- मालाओं से नेताजी ढंक गए। दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए पंडित जी की डगर आगे बढ़ रही थी। अब स्टेज पर उनका भाषण शुरू हो गया। तरह-तरह के प्रलोभनों से लबरेज़ वे बोलते ही जा रहे थे।मसलन 24 घंटे बिजली मिलेगी, सड़कों का पुनरुद्धार होगा, पानी की व्यवस्था होगी, कारखानों की स्थापना करके बहुतेरे बेरोजगार को अपनी बेरोजगारी से छुट्टी मिलेगी, औरतों की दशा में भी सुधार किया जाएगा आदि आदि। इस तरह के लुभावने वाक्यों को सुनकर गांव- वासी बड़े ही गदगद हो रहे थे। उनके मन मस्तिक में यह बात प्रवाहित होने लगी कि चलो हमारे गांव का भी उद्धार होने वाला है।
यह जनता भी कितनी भोली होती है। एक बार भी उसने सवाल नहीं उठाया कि अब तक आप कहां थे? और आप के सुधारवादी सिद्धांतों को किसने बंद कर दिया था जो कि आप इधर नजर नहीं आए थे?
तभी भीड़ को चीरता एक छोटी जाति का बूढ़ा सा आदमी मैले – कुचले कपड़े पहने नेताजी की तरफ बढ़ने लगा। अर्दलियों ने रोका भी पर नेताजी अपने आप को बड़ा करने से कैसे चूकते।उन्होंने उसे आगे आने को कहा। यहां पर आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नेताजी जाति से पंडित हैं और इनके नाज़- नखरे छुआछूत को लेकर कितने बड़े होंगे यह तो आप हम समझ ही सकते हैं।
पर उन्होंने अपनी मनोदशा को अपने क्रियाकलापों पर हावी नहीं होने दिया। उस बूढ़े ने अपनी धोती की ओट में फंसे एक थैली को बाहर निकाला जिसमें से दो लड्डू निकले। नेताजी किंकर्तव्यविमूढ़ होकर बूढ़े की ओर देखने लगे। बूढ़े ने कांपती आवाज में कहा कि माई बाप! आप ही के रहमों करम पर हम लोग हैं। जब से पता चला कि गांव में नेताजी आने वाले हैं मन में लालसा बढ़ गई थी कि आप को देखूं। असल में कोई राजनीतिक पार्टी चुनाव जीतने के बाद हमारे गांव में झांकने की जहमत नहीं उठाती थी। वोट मांगने के लिए हाथ जोड़ते थे और जीत के बाद नजर ही नहीं आते थे। जब से यह बात कान में गई कि नेताजी, जो जाति से पंडित भी है, शायद अपने ब्रह्मनात्व का मान रखते हुए अपने लुभावने वादों पर खरे उतर सकें और गांव के उद्धार के लिए काम करें यही सब सोचकर मैं भागा भागा आपके पास आया हूं। मेरी बूढ़ी पत्नी ने आपके लिए दो लड्डू भी भेजे हैं, यह कहकर लड्डू को आगे कर दिया।
नेताजी तो यह सब सुनकर लज्जा से गड़े जा रहे थे । खींसे- निपोरते हुए उन्होंने अपना हाथ लड्डू लेने के लिए आगे बढ़ाया। ऐसे भी बूढ़े के सवालों ने नेताजी को बंगले झांकने को मजबूर कर दिया था। उनके हाथ आश्वासन के लिए आगे बढ़े और यह भरोसा दिलाया कि उनकी सारी बातें सच साबित होंगी, भले ही वह खुद इस गांव में पहली बार आए हों।
भाषण समाप्त हो गया था। नेताजी का काफिला अगले गांव में जाने की तैयारी करने लगा। अपनी कार में बैठते ही नेता जी ने झट से शीशा ऊपर करवाकर A C चालू करवाया। ठंडक ने उनके दिमाग को भी शांत किया। शीशे के बाहर लोगों की भरोसा करने वाली आंखें टकटकी लगाकर नेताजी को जाते हुए देख रही थी। जाने ये दस्ता अब कब नजर आएगा। सड़कों पर सरपट भागती गाड़ी को अचानक से नेताजी ने रुकवाया। सामने एक कुत्ता नजर आ रहा था। कोट से दोनों लड्डू निकाले और कुत्तों के आगे फेंक दिया ।ये वही लड्डू थे,जो बूढ़े की पत्नी ने एक वक्त का खाना बचाकर खरीदा था,जो अब कुत्तों का ग्रास बन गया था।नेताजी ने ड्राइवर को गाड़ी आगे बढ़ाने को कहा। घर पहुंच कर उन्हें अपने कपड़े को लॉन्ड्री में देना था,क्योंकि छोटी जाति के द्वारा दिए हुए लड्डू जो इसमें रखे हुए थे। वाह री !नेताओंके नक्काशीदार रूपों का असली चेहरा।
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Ugliest truth of Politicians in our great country. Very nicely written by you. Nobody can argue…Great..👍👍
Bilkul satik lafjon mein likha hai…Aaj hamare saare neta log aiese hii hain…Mukh mein Ram Rahim aur bagal mein chhuri…Bahot achchha likha hai…
Ye hamare politician ka ganda chehra hai
…hamare leader election me kuch aur aise kuch aur…good topic
🙏👍