मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
...
कभी मीठी तो कभी सुहानी होती हैं बचपन की यादें
नैराश्य जीवन में भी हमेशा गुदगुदी ला दे
यादें बचपन की वो निश्चल वाली
कभी धूल मिट्टी से सने हाथ, तो कभी टिद्दियों के पैरों में धागे बांधती वो हाथ शरारत वाली
गलियों में नंगे पैर टायरों के पीछे भागना
तो कभी किसी के बगीचे से फलों को चुराना
माली के आ जाने से धम्म से पेड़ों से कूद जाते थे
मिट्टी, कीचड़ से सने पैर घर की ओर भागते थे
यारों उस समय मां की झिड़कियां भी चाशनी से कम नहीं लगते थे
क्या खूबसूरत वो दिन थे जब दो उंगलियां जुड़ने से दोस्ती फिर से शुरू हो जाती थी
आज हालात ऐसे हैं कि थोड़ी- सी बातों की चुभन रिश्तो को झंकृत कर देती हैं
उस समय बारिश में कागज की नाव चलाया करते थे
आज हाइजेनिक के नाम पर घर में घुस जाया करते हैं
रिश्तो के एकाकीपन में आशियाने जल जाते हैं तन्हाई की आग से
तो दोस्तों उस समय बचपन के घरौंदे की वो मिट्टी याद आती है पग पग पे
न रोने की वजह मिलती थी, न हंसने का बहाना ढूंढते थे
क्यों हो गए हम इतने बड़े, दिल के कोने में बचपन का वो जमाना ढूंढते हैं
बचपन में झूठ बोल कर भी हम सच्चे हो जाया करते थे
ये उस समय की बात है जब हम बच्चे हुआ करते थे
गर्मियों में खुले आसमान के नीचे लंबे से बिस्तर पर सभी का साथ सोना
फिर लेटे-लेटे तारों की यूं उंगलियों पर गिनती करना
आज गाड़ी है, बंगला है, पैसा है पर बचपन का वो सुकुनियत भरा इतवार नहीं है
जब रंगोली महाभारत को देखने लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता था
ब्लैक एंड व्हाइट टीवी से दीवार टीवी तक का सफर दिल को सालता रहता है
पता नहीं दादी- नानी के किस्से कहां चले गए
शायद टेक्नोलॉजी की भीड़ में कहीं खो- से गए
बचपन की वो अमीरी पता नहीं कहां खो गई, जब पानी में हमारे भी जहाज चलते थे
ना कुछ पाने की आशा थी, ना खोने का कोई ग़म, बस अपनी ही धुन में चला करते थे
क्या बेफिक्री वाले दिन थे
मां की गोद थी और पापा के कंधे थे
खाना खेलना और सो जाना यही लाइफ के फंडे थे
जवानी ने झांसा देकर बचपन को छीन लिया
मुड़ कर देखा तो रास्तों ने अनजानों का रूप अख्तियार कर लिया
भविष्य की चिंता में जाने कहां खो गए
ना जाने क्यों बचपन हमसे बेगाने हो गए
कोई लौटा दे उन मीठी यादों को जो भविष्य की चिंता में खो गए हैं
वो निश्चल हंसी,वो बेफिक्री जीवन शायद हमारे अंतस के कोने में ही सिमटे हुए हैं
वो सरसता भरी यादें,वो मासूम बचपन
यादें, यादें और सिर्फ यादों भरी आंगन।
निम्मी! अरी! ओ निम्मी, कहां रह गई है रे, आवाज देते हुए मिताली ने बिस्तर से उठने की कोशिश की, पर उसकी बीमार...
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे ...
अब तक आपने पढ़ा–– जयंत को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे कैसे पता करें निधि के बारे में? हर दिन ...
Very well written Di 👌👌…. sometimes we used to had similar fun… recalled and refreshed of childhood memories.. great one Di..
Wah very nice … Inspired
Mujhe to gilli danda ki yaad aa gayee….Lattoo ki bhi aur Kanche ki bhi yaad aa gayee…..Kya khoob likha hai….👏👏👏
Bachpan ki dher saari yaaden taja ho gayee. Cycle ke tyre ko haath mein pakde lakdi se chalate hue galiyon mein chakkar lagana…👍👍
Jaane kaha kho wo sab kuch.. Jise aapne yaado me daal diya..
Kash n.a. Bachpan ek baar fir mil jaye…
Childhood ki yaaden aaj v man ko khusiyon se bhar deti hai…kya din the….💃💃
Awesome poetry… Seriously those were the days.. Tension free… Corona free… Childhood is the best days of life.. & Hats off to ur writing…
जाने कहाँ …
गए वो दिन, कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे
जाने कहाँ …
गए वो दिन, कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे
चाहे कहीं भी तुम रहो, चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे