तलाश(वैंपायर लव–स्टोरी)अंतिम भाग
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
एक अजन्मी बच्ची अपनी मां से गुहार लगाती हुई अपने करुण शब्दों में अपना दर्द बयां करती हुई यूं बोलती है ——
हे मां!मुझे अपने से अलग नहीं करो
मैं बोझ नहीं हूं ,यूं कोख में न मारो
एक सवाल पूछती हूं आखिर क्या गलती है मेरी
बस लड़की हूं ,क्या यही सजा है मेरी
मुझ पर न सही,खुद पर तो विश्वास करो
मेरी सांसों की डोर तुम्हारे हाथों में है ,ये आस भरो
बेटों से कहीं कम ना दूंगी इज्ज़त
हर कदम पर अपने जन्म को करूंगी सार्थक,यही है उल्फत
मेरा शंकित मन हर घड़ी देख रहा है अपने मिटते जीवन पर छाए अंधकार को
मेरे जीवन की डोर को मां यूं मत तोड़ो ,बस जीने का अधिकार दो
हे ईश्वर!ये कैसा न्याय है ,जहां एक नारी ही नारी को छलती है
मेरी जीवन – ज्योति भी क्यूं किसी के हाथों से जलती – बुझती है
इस सुंदर सी दुनिया में मुझे भी है सांस लेना
समझ सको तो समझो मां ,मेरी किलकारियों के बिना भी है सुना तेरा अंगना
मेरे अस्तित्व को तुम यूं मत नकारो मां
ईश्वर की इस रचना को भी है जन्म लेना ,इस सत्य को मत झुठलाओ मां
मेरा अंतस मन भी तुम्हारे गोद में आने को व्याकुल हो रहा है
बस मुझे भी जीने दो,दिल यही विनती बार – बार कर रहा है
बस मां ,मृत्यु के भय को टाल दो
तुम्हारे ही कलेजे का टुकड़ा हूं,”जन्म से पहले मुझे ना मारो।”
ऊपर लिखी हुई व्यथा हमारे समाज की उस जमीनी हकीकत को जाहिर कर रही है, जहां लड़के – लड़कियों की असमानता का सबसे प्रमुख कारण कन्या भ्रूण हत्या है।
हमारे देश का सामाजिक ढांचा लड़के- लड़कियों के बीच के विभेद में मानों जकड़ा हुआ है और यह समस्या आज की नहीं बल्कि वर्षों से चली आ रही है। हमारी परम्पराओं ने इस खाई को बस आगे बढ़ाने का ही काम किया है,जो कन्या – भ्रूण हत्या जैसे अपराध को जन्म दी है। लड़के पैदा करने के इंतजार में लोग या तो लड़कियों की लाइन लगा देते हैं या उसे पैदा होते ही मार दिया जाता है।
हमारे देश की यह कैसी विडंबना है कि जहां एक ओर कन्याओं को देवी समझकर पूजा जाता है वहीं दूसरी तरफ कोख में पल रहे बच्चे का लिंग परीक्षण करवाकर जन्म लेने से पहले ही सांस की डोर खींच ली जाती है। एक अनुमान के तहत भारत में पिछले 10 सालों में करीब डेढ़ करोड़ लड़कियों को जन्म से पहले ही मार डाला गया। अगर खुदा- ना – खास्ता जिंदगी उन्हें मिल भी गई तो उसकी अवधि बस कुछ महीने या कुछ वर्षों तक ही सीमित रहती है। इतने प्रगतिशाली युग में जहां लड़कियां लड़कों से कंधे मिलाकर चल रही है, फिर ये दोयम दर्जे का व्यवहार आखिर क्यों?
ऐसा नहीं है कि केवल ये अपराध अनपढ़ और कम पढ़े – लिखे लोग ही कर रहे हैं ।यह स्त्री – विरोधी नजरिया किसी भी रूप में गरीब परिवारों तक ही सीमित नहीं है ।समाज के कुलीन वर्ग भी कन्याओं की हत्या में शामिल रहते हैं ।आखिर इन बच्चों की क्या गलती है जो उन आंखों को खोलने से पहले ही मूंद दिया जाता है। इन्हें भी तो बाहरी दुनिया में आने का हक है। मां की गोद इन्हें भी तो नसीब होनी चाहिए।
पिछले कुछ वर्षों से इतनी कन्या भ्रूण हत्याएं हुई है, जिसे सुनकर जेहन में यह सवाल जरूर खड़ा होती है कि जन्म से पहले इन मासूमों की हत्या क्यूं कर दी जाती है? अगर जन्म ले भी लेती हैं तो उन्हें कूड़े पर, सड़कों पर, कुत्तों के आगे, अनाथाश्रम के आगे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। सरकारी आंकड़े तो जो बताते हैं वह अलग हैं।छोटे – छोटे जगहों पर दाइयों, दलालों, डॉक्टरों की मिलीभगत से इन बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता है। कितनी शर्म की बात है कि सरकार की अथक कोशिशों और नए कानूनों के प्रावधानों से भी इन हत्याओं पर रोक नहीं लग पाई है। आए दिन ये कर्मकांड समाचार की सुर्खियां बनते रहते हैं। हम आप क्या करते हैं,खबर पढ़ते हैं,थोड़ी देर के लिए अफसोस जताते हैं फिर बात आई गई हो जाती है।
उदयपुर को ही ले लीजिए, जहां झील में कन्या भ्रूण मिलने से सनसनी फैल गई। इसके पहले भी यहां झीलों में कई कन्या भ्रूण मिल चुके हैं। कोटा में एक निजी नर्सिंग होम के पास 6 महीने का कन्या भ्रूण मिला। छानबीन करने पर पता चला कि एक महिला इसे यहां फेंक कर गई है। समझ में नहीं आता है कि एक मां भी इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है? 9 महीने कोख में रखकर फिर उसे मौत के हवाले कर देना लड़के और लड़कियों के बीच में और दीवार खड़ी कर रहा है।
एक खबर और सुन लीजिए। एक मां – बाप ने 7 दिन जन्मी बच्ची के सिर पर पत्थर रख उसे मारने का असफल प्रयास किया। सूत्रों से पता चला कि इस औरत की इससे पहले भी 5 लड़कियां थी। वो तो इस बच्ची को छोड़कर भागने की फिराक में थे मगर पकड़ लिए गए। ऐसी- ऐसी खबरों की कोई कमी नहीं है हमारे देश में।
पुत्र प्राप्ति के लिए कहीं यज्ञ किए जाते हैं तो कहीं मंदिरों- मस्जिदों के चक्कर लगते हैं। अनाथाश्रम में आप आंकड़े उठाकर देख लीजिए तो लड़के- लड़कियों की जमीनी हकीकत खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी। अगर आप गोद लेना चाहते हैं तो लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा रहती है। मतलब तो यही निकलता है कि जन्म देने के साथ ही लड़कियों को बाहर छोड़ दिया जाता है।इनकी तुलना में लड़के कम छोड़े जाते हैं।
दिल्ली में रहने वाली मधुमति जब दो लड़कियों के बाद तीसरी बार मां बनी तो उसने जांच करवाया। यह पता लगते ही कि एक और कन्या है, उसने abortion करवा लिया। यह प्रक्रिया लड़के के इंतजार में उसने आठ बार दोहराई। ऐसा नहीं है कि इन मांओं पर परिवार का दबाव ही होता है कुछ अपनी भी संकीर्ण मानसिकता में जकड़ी होती हैं। बेटे की चाह इन्हें खुद भी रहती है।
चलिए मान लेते हैं कि भारतीय समाज में ऐसे बहुत सारे नकारात्मक तथ्य हैं जो लड़कियों के जन्म पर पाबंदी लगाने को बढ़ावा देते हैं मगर जेहन में ये बात जरूर आती है कि आखिर इन बेटियों का इसमें क्या दोष है? क्यों कोख में इन्हें मार दिया जाता है? समाज में लड़कियों की इतनी अवहेलना, इतना तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है। जहां की धरती पे स्त्री के त्याग और ममता की दुहाई दी जाती है, वहीं कन्या के जन्म पर मायूसी और शोक छा जाना यह कैसी विडंबना है।
बालक- बालिका दोनों का प्यार पर बराबर का अधिकार है और इसमें किसी भी तरह का भेद करना सृष्टि के साथ खिलवाड़ करना होगा। हमारी सामाजिक परंपरा और मान्यताएं भी लड़कियों के जन्म के खिलाफ कर देती हैं।
अजन्मी बच्ची जिसने अपनी आंखों को खोला भी नहीं है उसे पहले ही बंद कर दिया जाता है। चीख – चीख कर उसकी आत्मा चीत्कार कर रही है कि मुझे भी बाहर आने दो। कितनी निष्ठुरता होगी एक मां के अंतर्मन में,जो अपनी ही संतान को बाहर आने से रोकती है। मानवता तो उस समय और कराह उठती है जब कहीं- कहीं यह सुनने में आता है कि प्लास्टिक की थैली में एक मानव भ्रूण मिला है जिसे कुत्ता घसीटे जा रहा था। Tiolet के flush में मानव भ्रूण का मिलना दिल को दहला देता है। कचरे के ढेर पे 4 महीने की नवजात बच्ची मिली है या रेलवे स्टेशन पर एक 6 साल की बच्ची अपने माता-पिता को चारो तरफ ढूंढ़ रही थी। ऐसी- ऐसी खबरों से हमारा देश हमेशा गुलजार रहता है। कहीं किसी तालाब में कन्या भ्रूण मिलती है तो कहीं गैरकानूनी तरीके से उसे मां के गर्भ से हटा दिया जाता है।
एक नारी ही नारी को हटाती हैं। एक मां ऐसा काम कैसे कर सकती है कल्पना से ऊपर की बात है। लाख बंदिशें हो मां के ऊपर पर किसी जिंदगी को खत्म करने का उसका भी कोई अधिकार नहीं है। इस हत्या को मजबूरी, सामाजिक मान्यताओं की चादर ओढ़ाना कहां तक सही है। एक औरत ही औरत के अस्तित्व को खत्म करें,हमारी सामाजिक व्यवस्था पर लानत की बात है। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को समाज के कोने- कोने तक पहुंचाना अभी बाकी है। यही कारण है कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या पर रोक नहीं लग पा रही है। सोच बदलेगा तभी देश बदलेगा,इस कहीं हुई बात को अनसुना नहीं किया जा सकता है।
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
अब तक आपने पढ़ा–– जयंत को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे कैसे पता करें निधि के बारे में? हर दिन ...
अब तक आपने पढ़ा...... जयंत के सामने हर दिन नई– नई सच्चाई सामने आ रही थी। वह निधि से पीछा छुड़ान...
अब तक आपने पढ़ा…… हर दिन घटने वाली नई-नई घटनाऐं अब जयंत को परेशान करने लगी थी...
Your writing is quite insightful and thoughtful. No doubt this social evil needs to be curbed as soon as possible in order to keep gender balance intact.
Nice, well done blogger!
यदि सृष्टि हमें चलनी है,
तो कन्या संतान बचानी है!
Really a very emotional but dead fact is written by you…This is the worst thing is happening in 21st century…
Indian society ka worst face hai…aaj v is trah ki sachaai ko face krna pad rha hai…aapki writing kabile taarif hai…
Heart wrenching Superbly written article..
The biggest cruelty of this society is that being a woman, a woman gets ready to kill her girl child..
In any circumstances, in any pressure no mother has right to kill her child whether it is a girl or a boy..
Superb written. ….👏👏👏 …I want to say only………..”THERE IS NO HE WITHOUT SHE.”