🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Part –9)🌶️🌶️🥵
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भारी बारिश की वजह से सड़क पर अफरा – तफरी मची हुई थी।रेड लाईट पे गाड़ियों की ठेलम – ठेल हो रही थी।हर किसी को अपने गंतव्य स्थान जाने की जल्दी मची हुई थी ।पर इतनी ज्यादा ट्रैफिक थी कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। तिस पर गाड़ियों की भोंपू की आवाज़ एक – दूसरे के कानों में टीस मार रही थी। अब ऐसा तो था नहीं कि जितना ज्यादा हॉर्न बजाओगे,traffic का स्तर कम होता जाएगा। भइया ,शहरों का तो यही हाल है। जरा सी बारिश हुई नहीं कि जाम लगना शुरू हो जाता है।
पर किसे पता था कि उन गाड़ियों की अफरा – तफरी के बीच एक ऐसी गाड़ी भी थी, जो अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने के लिए बेचैन हो रही थी।
सुबह 10:00 बजे रमेश अभी ऑफिस पहुंचा ही था कि तभी घर से फोन आ गया। फोन के दूसरी तरफ रमेश के पिताजी थे, जो कंपकंपाती आवाज में बोले कि सरला अचानक बेहोश हो गई है।शरीर में भी कोई हरकत नज़र नहीं आ रही है। सरला रमेश की पत्नी थी ।घर में तीन ही लोग थे —– रमेश,सरला और रमेश के पिताजी। अचानक आए फोन ने रमेश के दिमाग को सुन्न कर दिया था। समझ में नहीं आ रहा था कि करे तो क्या करें। आनन-फानन में वह ऑफिस से निकल गया। उस समय बारिश भी हो रही थी।पर अभी उसके पास पानी की बूंदों के बारे में सोचने का समय नहीं था। किसी तरह से जाम को पार करते हुए वह घर पहुंचा। पिताजी को देखते ही वह फफक- फफक कर रो पड़ा। कुछ संयत होने के बाद वे लोग जल्दी- जल्दी सरला को लेकर हॉस्पिटल की ओर दौड़ पड़े।उसी रेड लाइट पर, जहां traffic लगा हुआ था। रमेश की तरह ही उस रेड लाइट पर ऐसी कई गाड़ियां होंगी, जिनके पास समय नहीं होता होगा रुकने का। शहरों की अव्यवस्था और जनसंख्या की वृद्धि कितना बड़ा संकट उत्पन्न कर सकती है, ऐसे ही नाजुक समय में पता चलता है।रमेश का हाथ बार – बार अपनी गाड़ी के हॉर्न की तरफ बढ़ रहा था।कभी एक दृष्टि आगे लाइन लगी गाड़ियों पर डालता तो दूसरी नजर पीछे सीट पर लेटी पत्नी पर होती। दिल जोर- जोर से धड़क रहा था।इतनी अकुलाहट हो रही थी उसके मन में ,मानों पूरे शहर का system आज ही बदल देगा।तभी हरी बत्ती जली। उसे देखकर मानो रमेश को लगा कि रेगिस्तान में पानी दिख गया हो। सरपट गाड़ी को भगाते हुए सीधे hospital के सामने पहुंचा दिया। तुरंत ही stretcher आया और सरला को इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कर लिया गया। कुछ formalities पूरी करने के बाद डॉक्टर ने सरला का चेकअप किया तो उसे पता चला कि blood – pressure बहुत ही ज्यादा बढ़ गया था,जिसके कारण दिमाग के कुछ हिस्से में blood clot कर गया और वह बेहोश हो गई ।जब डॉक्टर ने उसे हिदायत दी कि अगले 24घंटे सरला के लिए बहुत ही critical है तो रमेश की तो मानों सांस ही अटक गई हो।वह कोमा में भी जा सकती थी।
जब आप हॉस्पिटल पहुंचते हैं और आपको यह बताया जाए कि अगले 24 घंटे में आपके परिजन को कुछ भी हो सकता है, उस समय कैसी मनोस्थिति होती होगी यह वही बता सकता है जिसने यह दुख झेला हो। Emergency Ward में जिंदगी और मौत की सही जगह पता चलती है। या तो जिंदगी रूठती है या मौत रूठती है। दोनों में कशमकश चलता ही रहता है। सरला इमरजेंसी वार्ड में शिफ्ट हो गई थी। उसके शरीर के अनगिनत पार्ट मशीनों के सहारे चलने लगे।
वैसे तो हमेशा आने की इजाजत नहीं होती है वहां, पर कुछेक समय के लिए रमेश अंदर- बाहर कर लेता था। जैसे ही वह वार्ड में घुसा, सरला के ठीक बगल वाले बेड पर जो uncle लेटे थे,अचानक जोर- जोर से चीखने लगे। रमेश की तो सांसे ही अटक गई देखकर
किसी ना किसी के सगे संबंधी हर बेड पर लेते हुए थे, जिसके सांसों की डोर उन मशीनों के हवाले थी।वैसे तो वार्ड में इतना सन्नाटा था, मानो पिन भी गिरता तो आवाज सुनाई दे जाती। पर कभी-कभी जब किसी मरीज को परेशानी होती थी तो उसके चिल्लाहट सबकी जान ही निकाल देती थी।
सभी जिंदगी- मौत से कशमकश कर रहे थे। रमेश के लिए तो इमरजेंसी वार्ड में 1 दिन बिताना 1 साल की तरह लग रहा था। दिल में अजब सी उलझन चल रही थी। क्या होगा सरला को? क्या वह ठीक हो जाएगी ?अगर कोमा में चली गई तो? ऐसी- ऐसी अनगिनत सवालें उसके जेहन में उठ रही थी, जिसके जवाब को सुनने में उसे बड़ा डर लग रहा था।
अपने घर का कर्ताधर्ता तो रमेश ही था। अगर वही कमजोर पड़ जाता तो फिर उसके पिताजी का क्या होता? किसी तरह से रात बीती और सुबह के सूरज ने उसे एक आशा से भर दिया। डॉक्टर राउंड पर आ गए थे। उनसे बात करने पर पता चला कि सरला अब खतरे से बाहर है। पर अभी भी उसे कुछ दिन हॉस्पिटल में ही रहना पड़ेगा। Blood clotting की वजह से उसके दिमाग के कुछ हिस्से पर असर पड़ा था, जिसके कारण उसने अपनी जिंदगी की कुछ यादों को अपने दिमाग से हटा दिया था, मतलब वह भूतकाल के कितने बातों को भुला चुकी थी।
रमेश को तो बस इतना ही ढांढस था कि सरला जीवित थी और कोमा में नहीं थी।याद का क्या,कुछ मिट भी जाए तो जिंदगी को आगे बढ़ने से थोड़े ही ना रोकेगी। कितनी सारी परेशानियां आगे सर उठाएंगी,ये तो भविष्य में देखा जाएगा।पर यह खुशी तो उन परेशानियों को झेलने के लिए काफी है कि सरला आज रमेश के साथ है और कुछ दिनों के इलाज के बाद अपने घर वापस जा रही है।
डॉक्टर ने रमेश को सख्त हिदायत दी है कि सरला के दिल पर ऐसा कोई झटका ना दे,जिससे आगे कोमा की स्थिति पैदा हो जाए।
घर लौटते हुए रमेश सोच रहा था कि इमरजेंसी वार्ड का एक दिन उसे जिंदगी भर याद रहेगा। जिंदगी और मौत की असली हकीकत उसने एक दिन में ही जान ली थी,जहां अपनों को खोने का डर हमेशा मन – मस्तिष्क में छाया रहता है ।उस इमरजेंसी वार्ड का सन्नाटा और लोगों की चीखें मानो जिंदगी की असली हकीकत को बयां करती है ।जहां मौत भी कब चुपके से आ जाए, जिंदगी को पता ही नहीं चलता। बस वार्ड में रह जाती है मशीनों के ठक- ठक की आवाज और अजीब- सा सन्नाटा।
रमेश तो अपने इस दर्द में किसी को साझीदार बना ही नहीं सकता था। ना रमेश की पत्नी और ना ही रमेश के पिताजी को।शायद emergency ward का एक दिन रमेश को नया संबल प्रदान करें।
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हताशातंग 🙍आ गई हूं मैं रोज-रोज के प्रदर्शन से, झ...
मूकदोपहर का समय ही ह...
Bahut sahi kha ji aapne.
Nice story…👌👌
Very tragic, emotional but inspirational story..👍👍
A good story explaining the importance of life…….👍👍👍👌👌👌👌
nice..