चिकित्सीय चुनौती:: आज के हालात

                इस globalization के दौर में जब हर चीज़ का आधुनिकीकरण हो रहा है ,तो चिकित्सा – प्रणाली क्यूँ अछूती रहेगी ? हम जैसे – जैसे विकास की सीढ़ी  चढ़ते जा रहे हैं ,हमारी lifestyle भी उसी अनुरूप होती जा रही है | परिणाम क्या हो रहा है -नई – नई बीमारियां हो रही हैं और साथ में हो रहा है उनके समाधान का इज़ाद | और हो भी क्यों ना | ये जरुरी भी है | भारत भी इसमें पीछे नहीं है | ऐसी कितनी सारी असाध्य बीमारियां हैं ,जिसके इलाज के लिए देश – विदेश से लोग यहाँ आते हैं | अपने देश की ऐसी प्रगति पर खुशी तो होती है पर दुःख तो उस समय होता है जब अपने ही देश के अंदर छोटे -छोटे बच्चों की मौत वैसी बीमारियों से होती है ,जिनका समाधान हमारे पास है | बस कारण क्या होता है — हमारे सरकारी तंत्र की लापरवाही |
                                               दोस्तों ,आप सोच रहे होंगे कि ये मैं क्या कहने जा रही हूँ | कहाँ आधुनिकरण की बात हो रही थी और कहाँ अपने देश में लापरवाही नज़र आने लगी हमें | भारत में 70 % लोग गांवों में निवास करते हैं | स्वाभाविक -सी बात है कि ये अपने इलाज़ के लिए सरकारी हॉस्पिटल पर निर्भर होते होंगे ,जो लाजिमी भी है | लेकिन हाल की मौतों ने पूरे सरकारी संस्थान की पोल ही खोल दी | सच्चाई यह है कि globalization private sector का हो रहा है ना कि हमारे देश की बैकबोन — government hospital का | तभी तो लोगों की मौतों ने इनकी कलई खोल दी है | जाने कितनी सारी कमियां हैं ,जो हमारे विकासीकरण का मजाक उड़ाती हैं | यहाँ सबसे ज्यादा फलीभूत होने वाले दो ही चीज़ तो हैं ,जो एक business का रूप ले चुके हैं —- एक school और दूसरा hospital और वो भी दोनों private | government hospital की सच्चाई तो आप सबके सामने है ही | अब जरा private hospital के structure की बात कर ली जाए | मौतें यहाँ भी होती हैं ,पर कम – से -कम यह तो है कि मूलभूत सुविधाएं तो मिल जाती हैं | हाँ ,ये अलग बात है कि ये सब पैसे का खेल है | जितना पैसा खर्च करोगे ,facility भी आपको वैसी ही मिलेगी |

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                                                           private hospital की तो बात ही मत पूछिए | आजकल जो इनका रूप बदला है ,वो किसी mall  या five-star hotel से कम  नहीं है ,जहाँ आपको जरुरत की सारी सुविधांए मिल जायेगी | cafeteria ,restaurant ,एटीएम machine और इन सबका साथ देने वाला एक मजबूत और महत्वपूर्ण स्तम्भ —- medicine shop | व्यवसाय का रंग हमारी चिकित्सा -प्रणाली पर ऐसा चढ़ा है ,जिसे देख -सुन कर हैरानी होती रहती है | इन private hospital में इलाज़ package के हिसाब से होते हैं | उदाहरण के तौर पर अगर आप normal delivery करवा रहे हैं तो उसका अलग package है ,वहीँ operation से डिलीवरी का अलग  | अगर उस समय कुछ offer चल रहा हो तो आपको discount भी मिल सकते हैं | online payment करने पर इस बैंक से अलग डिस्काउंट तो दूसरे बैंक से अलग छूट मिलती है | एक business के लिए profit के जितने भी आसार होते हैं ,सब एक – दूसरे से connected होते हैं और ये सब आपको globalized होते hospital में मिल जाएंगे | ऐसा लगता है कि वैश्वीकरण के बाज़ार में सब कुछ बिक रहा है | जितने भी तरह के fast food हैं ,वे सब आपको इन हॉस्पिटलों के अंदर मिल जाएंगे | खाने -पीने की ऐसी कोई चीज़ नहीं है ,जो अंदर में आपको ना मिले | एकबारगी बाहर से hospital को देखने से आप भी गच्चा खा जाएँ कि ये मॉल है या कोई होटल |
                                                     facility की बात आती है तो वो किसे अच्छी नहीं लगती | आधुनिकीकरण सबका हो रहा है तो इसका भी होना चाहिए | और ये जरुरी भी है | मरीजों को हर तरह की सुविधाएं मिलनी ही चाहिए | पर दुःख की बात यह है कि इन मरीजों में देश के सभी तबके के लोग नहीं आते हैं | जो पैसे वाले हैं ,afford  कर सकते हैं ,उनके लिए तो सब अच्छा है | पर आम लोग कहाँ जाएँ ? अपनी औकात के हिसाब से या तो वे सरकारी हॉस्पिटल का रुख करते हैं या घिसट -घिसट कर अपनी जान गँवा बैठते हैं | ये बड़े -बड़े हॉस्पिटल भारत के मध्यमवर्गीय लोगों के लिए नहीं बने हैं | अगर मान लेते हैं कि कोई मरणासन्न अवस्था में वहां पहुँच भी जाए तो डॉक्टर तब तक हाथ नहीं लगाएंगे ,जब तक operation के लिए पैसे नहीं जमा हो जाए | माना कि ये सब किसी डॉक्टर के हाथ में नहीं है | पर यहाँ कोई एक दोषी ना होकर पूरा management इसके लिए जिम्मेवार है |
                                   केवल बड़े -बड़े शहर ही क्यों छोटे -छोटे शहर यहाँ तक की गांवों में भी वैश्वीकरण की लहर चल पड़ी है | हर जगह अपने -अपने स्तर पर private clinic को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं | गांवों में तो आप देखिएगा कि थोड़ा -सा भी medicine का knowledge है तो वो अपनी क्लिनिक खोल कर बैठ जाएगा | फिर अपने ना जानते हुए ज्ञान से लोगों को गुमराह करते हैं ,पैसे ऐंठते हैं और अपना हित साधते रहते हैं |
                                    ठीक है कि भारत प्रगति की दिशा में कदम बढ़ाने को आतुर है | यहाँ छोटी बीमारियों से लेकर कैंसर जैसी बड़ी बीमारियों का भी इलाज होता है | पर किसी भी देश की सफलता को तभी सफल माना जाएगा ,जब समाज के हर लोग इस अहसास को महसूस करें |

                                       अब बात करते हैं यहाँ के सरकारी हॉस्पिटल की ,जो किसी भी देश को चिकित्सा मुहैया कराने के लिए बैकबोन माना जाता है ,क्यूंकि देश की अधिकांश जनता इसी पर निर्भर होती है ,जो affordable है | पर सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि ना ढंग से यहाँ साफ़ -सफाई की व्यवस्था है और ना ही पर्याप्त बेड है मरीजों के लिए | जो मशीनें हैं ,वे भी पुरानी जर्जर अवस्था में हैं | डॉक्टरों और कर्मचारियों के अलावा बेड ,दवाओं और अन्य सामानों की कमी के साथ -साथ सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता का सबसे बड़ा उदाहरण भी सरकारी हॉस्पिटलों में ही दिखता है ।

                                                         
                                       ऐसी कई घटनाएं घटित हुई है ,जो इनकी पोल खोलती हैं | अभी हाल ही में कानपुर में एक घटना घटित हुई ,जिसमें एक बड़े अस्पताल में एक व्यक्ति अपने बीमार बच्चे का इलाज कराने ले गया था और वहां एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाने में हुई देर के कारण उसके बेटे की मौत हो गयी | ये लापरवाही नहीं तो और क्या है ?
                 राजस्थान में कोटा जिले के सरकारी अस्पताल J.k.lone में इलाज के जरुरी इंतज़ामों के अभाव में एक महीने में 110 बच्चों की मौत ने पूरे  देश को झकझोर कर रख दिया | सूरतेहाल तो यह है कि ना तो यहाँ नवजातों के लिए i.c.u की व्यवस्था है और ना ही nebulizer ,warmer जैसी सामान्य मशीनें तक की उपलब्धता है |
                                                   

                                              देश की राजधानी दिल्ली को ही ले लीजिये | यहाँ एक तरफ five star hotel की तरह hospital खुले हैं ,तो वहीँ दूसरी ओर सरकारी हॉस्पिटल पर इतना दबाव है कि ventilator के साथ -साथ सामान्य बेड का भी अभाव है | नौबत यहाँ तक आ गयी है कि कई एक अस्पताल तो ऐसे हैं जहाँ मरीजों को ग्लूकोज़ स्टैंड तक नहीं मिल पाता | लोकनायक अस्पताल में वेंटिलेटर बेड न मिलने से कई बच्चों की मौत तक  हो गयी थी |
                                                  ऐसे -ऐसे कितने सारे उदाहरण हैं ,जो हमारी चिकित्सीय सुविधाओं की पोल खोलते हैं | चाहे वह metrocities के बड़े सरकारी हॉस्पिटल हो या छोटे शहरों के हॉस्पिटल ,अपनी दीन -हीन अवस्था में हर जगह उपस्थित रहना इनकी किस्मत बन गयी है| तभी तो इसपर उपचाराधीन बच्चों की मृत्यु के चलते प्रश्नचिन्ह लग गया है | गुजरात के राजकोट के सरकारी अस्पताल में 111 ,जोधपुर में 146 ,और बीकानेर में 162 बच्चों के दम घुटने से हमारे सरकारी तंत्र को कठघरे में ला खड़ा किया है | ना डॉक्टर को अपनी जिम्मेवारियों का भान होता है और ना ही वहां के कर्मचारी अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं |
                                                          सरकारी हॉस्पिटल का आलम यह है कि जो सीनियर डॉक्टर हैं ,वे वार्डों से दूर रहते हैं और मरीजों को मेडिकल प्रशिक्षुओं की दया पर छोड़ दिया जाता है | जब डॉक्टर अपनी responsibility नहीं समझते हैं तो वहां के कर्मचारियों की क्या बिसात ? हद तो तब हो जाती है ,जब मरीजों के परिजनों को ड्रिप और ऑक्सीजन जांचने को कह दिया जाता है | जब 5 महीने का एक बच्चा emergency वार्ड में सांस लेने के लिए जूझ रहा था ,तो उस समय उसकी माँ की पीड़ा और गुहार सुनने वाला कोई डॉक्टर वहां मौजूद नहीं था | उल्टे उसे ही ऑक्सीजन सप्लाई को परखने को कह दिया गया | भला संवेदनहीनता इसे नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे ?
                                 देश भर के अस्पतालों के आंकड़ों पर गौर करेंगे तो ऐसे हालात हर ओर दिख जाएंगे | कहते हैं कि डॉक्टर भगवान् का रूप होता है | लेकिन अपने पेशे के प्रति ईमानदार ना होकर उसे एक व्यवसाय बना लेना कहाँ की समझदारी है ?       
                                                   आप सोच रहे होंगे कि बड़े -बड़े सरकारी हॉस्पिटल्स से शुरुआत करके मेरी घड़ी की सुई सरकारी hospitals पर क्यों अटक गयी | सच्चाई यह है कि देश की आधी से अधिक जनता सरकारी चीज़ों पर निर्भर है | जिनकी औकात बड़े hospital में दिखाने की नहीं है ,तो वे लोग कहाँ जाएंगे ? डॉक्टरों की फ़ीस ही इनका कमर तोड़ देती है | आज के डॉक्टर की बात की जाए तो तो आलम यह है कि अगर आपको साधारण सा भी बुखार है तो उसके लिए भी आपको 10 तरीके के test करवाना पड़ सकता है | फिर आप lab के चक्कर लगते रहिये और डॉक्टरों की जेब भरते रहिये ,क्यूंकि यह प्रक्रिया एक दिन में तो ख़त्म होने वाली नहीं है | विकास का रंग ऐसा चढ़ा है कि अगर आप हर दिन डॉक्टर के पास जाते हैं तो हर बार आपसे फ़ीस वसूली जायेगी | कुछ साल पहले तक एक prescription पे 15 दिन तक दिखाया जाता था | फिर जैसे -जैसे देश ने प्रगति किया ,यह समय -सीमा घटकर 7 दिन तक पहुँच गयी | अब तो विकास इस कदर हावी हो गया है कि अगर डॉक्टर प्रतिदिन बुलाएगा तो आपको हर दिन फ़ीस भी देना पड़ेगा | जनता की कमर तो आधी इसी से टूट जाती है | बाकी का कसर दस तरह के ताम  -झाम पूरे कर देते हैं |
                                            ये नहीं कि केवल बड़े -बड़े शहरों में ही ये सब होता है | छोटे -छोटे शहर भी इससे अछूते नहीं हैं | चिकित्सीय प्रणाली की जितनी भी श्रृंखलाएं हैं ,मेरे कहने का मतलब यह है कि medical shop ,pathology lab ये सब डॉक्टर से जुड़े रहते हैं | एक तरह से sequence बना होता है इनके बीच | और ये सब चीज़ें आज से नहीं पहले से ही चली आ रही है ,बस इनको modified कर दिया गया है |
                                                 बड़ों को तो छोड़िये ,बच्चे तक के इलाज़ में भी इन्ही खर्चों से गुजरना पड़ता है | सोचिये जरा उन माँ -बाप के बारे में जिनकी आँखों के सामने उनके बच्चे इलाज़ के अभाव में दम तोड़ देते हैं | कारण क्या ,वही, बड़े डॉक्टर के पास दिखाने की औकात नहीं और सरकारी अस्पताल के पास फुर्सत नहीं अपनी लापरवाही को ठीक करने की |
                                           मेरा ध्येय हमारे देश की चिकित्सा प्रणाली पर केवल ऊँगली उठाना नहीं है | बस मंशा यही है कि हर एक नागरिक को अपनी मुलभुत आवश्यकताओं के लिए रोना ना पड़े | चिकित्सा हमारी जरुरत है और सही तथा सुविधाओं के साथ पूरा होना हमारा अधिकार भी है | अगर इस जरुरत को ही वैश्वीकरण के बाज़ार में खड़ा कर दिया जाएगा तो देश की जनता कहाँ जायेगी ? क्या सरकार के उन दावों को खोखला माना जाए ,जिसमें यह घोषणा की गयी है कि सरकारी अस्पतालों में हर मर्ज की दवा free मिलेगी और जांच भी मुफ्त में ही होगी |
                                 

                                                               इन सरकारी दावों की सच्चाई यह है कि जिस window से फार्मेसिस्ट दवा देकर मरीजों का दर्द कम करता है ,उसने अपने ही दरवाजे बंद कर दिए हैं | जो window खुली है ,वहां पे मरीजों की लगी लम्बी कतारें सरकारी दावों की पोल खोलती नज़र आती है |
                                             इन सबके लिए केवल डॉक्टर को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है | पूरा मैनेजमेंट और सरकारी तंत्र इसके लिए दोषी हैं | इन अस्पतालों पर मरीजों का इतना दबाव है ,जिसे पूरा  करने में यहाँ की ब्यवस्थाएँ असफल है | ऑक्सीजन सिलिंडर ,वेंटीलेटर ,वार्मर बेड ये सभी मूलभूत  चीजों की भरी कमी है यहाँ | वार्ड भी इतने गंदे होते हैं कि मरीज सही होने की जगह और बीमार पड़  जाए | बच्चों तक के इलाज़ में भी ऐसी ही कोताही बरती जाती है |
                                                            अगर अब भी हमने अपनी अनियमितताओ पर ध्यान नहीं दिया तो राजस्थान ,जमशेदपुर जैसी घटनाएं बार -बार दुहरायी जाएंगी | ये कितनी हास्यास्पद बात है ना कि दूसरे देश के लोग हमारे यहाँ इलाज कराने आते हैं और हमारे ही देश के लोग चिकित्सीय प्रणाली की लापरवाही के कारण मर रहे हैं | अमीरी और गरीबी के बीच की खाई इतनी बड़ी है कि गरीबों की जान की कोई औकात नहीं है | अमीर पैसे के बल पे बड़े -से -बड़े private hospital में इलाज़ करा लेते हैं ,वहीँ गरीब इलाज़ के लिए सरकारी हॉस्पिटल के चक्कर काटते रहते हैं | एक बाप अपने गोद में उठाये बच्चे को ऑक्सीजन सिलिंडर के साथ दौड़ लगा रहा है उसकी जिंदगी बचाने के लिए | सोचिये जरा ,ये लापरवाही और अनियमितता आखिर कब तक गरीबों को मौत की नींद सुलाती रहेगी ?

                                                मेरा तो यही सोचना है कि चिकित्सा हमारी मूलभूत आवश्यकता में आती है और इसे हर नागरिक तक पहुँचाना सरकार की जिम्मेवारी है | private clinic को हर कोई afford नहीं कर सकता है | medical facility की हर सुविधा को देश के हर एक लोगों तक पहुँचने में अभी समय लगेगा | पर हम इतना तो कर सकते हैं कि सरकारी हॉस्पिटल को भी वो सारी सुविधाएं मिलें ,जो किसी गरीब की जिंदगी बचा सके | किसी माँ को खुद ही अपने बच्चे का ड्रिप चेक करना ना पड़े | कोई बाप सड़कों की खाक ना छाने अपने बच्चे की जिंदगी बचाने के लिए |
                                             देश में जाने कितने medical college हैं ,जिसमें से हर साल बच्चे डॉक्टर बनकर निकलते हैं | लेकिन अपने हितों को ध्यान में रखते हुए या तो वे प्राइवेट की तरफ रुख करते हैं या विदेशों की तरफ | कोई वहां नहीं जाना चाहता ,जहाँ वाकई में इसकी जरुरत है | सरकारी हॉस्पिटल में जो डॉक्टर का अभाव है ,वहां पे नई – नई नियुक्तियां की जाएँ | अधिकांश डॉक्टरों का यह हाल है कि आते तो हैं सेवा -भाव लेकर इस पेशे में | पर सुविधाओं और आगे बढ़ने की होड़ में अपना private clinic खोल देते हैं ,जो धीरे -धीरे private hospital में अपना रूप अख्तियार कर लेते हैं | साफ़ -सीधी सी बात यह है कि डॉक्टर को भगवान् का दूसरा रूप माना जाता है तो आपको भी अपने निजी हितों को दरकिनार कर सेवारत होना पड़ेगा | सरकारी तंत्र को भी सबसे ज्यादा बदलने की जरुरत है |अगर सबको अपनी -अपनी जिम्मेवारियों का भान होगा तो किसी को private clinic का मुंह नहीं देखना पड़ेगा ,चाहे वह सरकारी हॉस्पिटल के कर्मचारी हों या नर्स |
                                                            यहाँ देश कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों को मात दे  रहा है ,तो वहीँ दूसरी ओर हमारे यहाँ के बच्चे निमोनिया ,डिप्थीरिया जैसी छोटी बीमारियों से मर रहे हैं ,जो उपचाराधीन है | तो इसे हम क्या समझें ,पूरा प्रबंधन -संस्थान   ही इसके  जिम्मेवार है  हम हर चीज़ में आगे बढ़ रहे हैं , वहीँ हमारे सरकारी हॉस्पिटल को जरुरी चीज़ें मुहैया नहीं हो पा रही है |  या इसे यूँ समझा जाए कि जिधर लाभ की आशा हो ,ध्यान भी वहीँ दिया जाए | कम -से -कम इस मामले में तो हम आधुनिकीकरण को नहीं समझ सकते  | जब तक समाज का हर  तबका अपनी आधारभूत सुविधाओं को नहीं पा लेता ,इसे विकासीकरण नहीं कह सकते ,क्यूंकि ये लोगों की जिंदगी से जुड़ी है और कोई भी व्यवस्था इसे दरकिनार नहीं कर सकती | कई असाध्य बीमारियों का इलाज करके हमारे यहाँ के डॉक्टर ने अपना परचम विदेशों  में लहराया है और ये हमारे लिए गर्व की भी बात है | पर अपना देश तभी मुस्कराएगा ,जब यहाँ के आम आदमी की भी जिंदगी की कीमत समझी जाए | किसी को अनियमितताओं का शिकार ना होना पड़े | यही हमारी ,सबकी मांग है और जरुरत भी |
                           

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