भागदौड़ की ज़िंदगी कितनी अजीब है,
ना साँस लेने की फुरसत, हर कुछ बेतरतीब है,
अहले सुबह ही जिंदगी की आपाधापी,
सड़कों पर गाड़ियों का दौड़ना ,वहीँ फुटपाथ पर लोगों की ताँका -झांकी,
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किसी को ऑफिस जाने की तो किसी को कॉलेज की जल्दी,
तभी गाडी का हॉर्न बजाते बच्चों की स्कूल बस चल दी,
पास ही में कोई बैग लेकर खड़ा है तो,
कोई सिगरेट का कश लगा रहा है,
सरपट भागती जिंदगी जाने क्या तलाश रही है,
हर किसी में आगे बढ़ने की मानो रेस ही लगी है,
भागने की शुरुआत तो घर से ही होती है,
जब घर की औरतें मुंह अँधेरे ही बिस्तर छोड़ती है,
पहले बच्चों के पीछे भागना,
फिर पति के आगे -पीछे करते रहना,
आपा -धापी तो जिंदगी का हिस्सा ही बन गयी है,
एकान्त में खुद को झाँकने की किसी को फुर्सत ही नहीं है,
ये सड़कें भी एकरसता से ऊब -सी गयी हैं,
ऑटो ,टैक्सी ,कार की लाइनें सिलसिलेवार लगी हैं,
जाने कितने लोग पूरे दिन -भर एक -दूसरे से टकराते हैं,
पर एक -दूसरे का हाल -चाल पूछने की जहमत नहीं उठाते हैं,
ये भागती जिंदगी शाम तक भागती रहती है,
सुबह की तरह शाम को भी सड़कें भीड़ से घिर जाती हैं,
रात तक घर पहुंचना ,फिर सो जाना,
अगले दिन के लिए फिर उसी ऊर्जा से काम करना,
मशीनों सी जिंदगी बन गयी है हमारी,
जाने कितने दिन हो गए ,परिवार से बातें करनी थीं ,पर है कुछ खाली -खाली,
इतनी सुविधाओं के बीच भी शहरी जिंदगी में कुछ घुटन सी लगती है,
हमारे अपने कहाँ हैं ,हम कहाँ हैं ,ये नज़रें ढूंढती है,
सच में ,भागदौड़ की जिंदगी कितनी अजीब है,
न चाहते हुए भी अपने आप से दूर हैं ,हर कुछ बेतरतीब है | |
                                 

                                

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