मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
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उस दिन रात में जोरों का तूफ़ान आया था।हवा सांय – सांय बह रही थी।सारे शहर में सन्नाटा पसरा था। बस एक ही घर ऐसा था जो अपने अंदर भी तूफ़ान समेटे हुए था। मुट्ठी में पड़े रेत की तरह रिश्ते भी फिसलते जा रहे थे। चारदीवारी के अंदर सारिका और सिद्धार्थ एक – दूसरे पर आरोप – प्रत्यारोप करते जा रहे थे। उनकी आवाज के बीच में सायं- सायं करती हवा भी रुक – सी गई थी,मानों दोनों के बीच के रिश्ते को समझने की कोशिश कर रही हो। 6 साल हो गए थे शादी को। पता नहीं वो ठहराव,वो स्थिरता,आपसी समझ ने रिश्ते को कसैला कैसे कर दिया था?पर कहते हैं ना कि रिश्तों को चटकने में एक मिनट भी देर नहीं लगती।दोनों की लव मैरेज थी। साथ जीने- मरने की कसमें खाते थे। अब क्या हो गया? शांत नदी में कंकड़ मारने से जो उथल – पुथल उत्पन्न होती है वही स्थिति दोनों के जीवन में भी आ गई थी।
ममता ही नाम था उसका। सिद्धार्थ की सेक्रेटरी। क्या तूफान का आगाज वहीं से हुआ था? किस्सा यूं था कि ममता एक बहुत ही आधुनिक लड़की थी,जो सिद्धार्थ के दिल में रच- बस सी गई थी। इसके सामने सारिका उसे फीकी नजर आने लगी। धीरे-धीरे दोनों के प्रेम प्रसंग चलने लगे। अफवाहों को उड़ने में देर नहीं लगती।आखिर घर तक यह हवा अंदर आ ही गई। सारिका ने जब सिद्धार्थ से जवाब- तलब किया तो उसने बात को अनसुना कर दिया। चुराती नजरों को सारिका ने भांप लिया था। आखिर कब तक सच्चाई से मुख मोड़ पाता सिद्धार्थ। एक ना एक दिन मन का गुबार बाहर आना ही था।
रात के 2:00 बज रहे थे, तभी सिद्धार्थ के फोन की घंटी बजी। सिद्धार्थ की तो नींद नहीं खुली। फोन सारिका ने ही उठाया। ममता ने फोन किया था। उसको काटो तो खून नहीं। ऐसा तमतमाया चेहरा लेकर उसने सिद्धार्थ को पल भर में जगा दिया और फोन सामने पटक दिया। अब बारी सिद्धार्थ की थी। पानी सर के ऊपर जा रहा था। ऐसे भी वह इस रिश्ते से ऊब- सा गया था। रिश्तो की उथल- पुथल के बीच में उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि सारिका की 6 महीने की प्रेगनेंसी थी।आने वाले बच्चे का सपना दोनों ने बराबर से देखा था। जब कोई पुरुष के विवाहेत्तर संबंध हो जाते हैं, उस समय सही- गलत की पहचान,उसके दृष्टिकोण भी बदल जाते हैं।अब सारिका में उसे हजारों कमियां नजर आने लगी थी। धीरे-धीरे दोनों के बीच की खाई और बढ़ने लगी।अब एक घर में रहना मुश्किल हो गया था।
ऐसे ही एक तूफानी रात में सिद्धार्थ सारिका को अकेला छोड़कर चला गया। 6 साल के रिश्ते यूं रेत की तरह बिखर गए। बहुत बड़ा धक्का पहुंचा था सारिका के मन- मस्तिष्क में। ससुराल वाले भी उसका साथ छोड़ दिए। मायके के नाम पर केवल उसके पापा थे। मां का देहांत बचपन में ही हो गया था। बचपन में ही उसके साथ इतनी बड़ी tragedy हो गई थी। पापा ने ही उसे पाला-पोसा और एक मजबूत इंसान बनाया जो जिंदगी के थपेड़ों का सामना डटकर करें। पर क्या पता था कि इतनी जल्दी बेटी के जीवन में ऐसा दुःख आन पड़ेगा।
अपने पापा के घर में वो आ गई।ऐसी हालत में वह अकेली कैसे उस घर में रह पाती। धीरे-धीरे 3 महीने बीत गए। अब उसकी डिलीवरी का समय नजदीक आ गया। फूल जैसे बेटे को जन्म दिया था उसने, बिल्कुल सिद्धार्थ की कॉपी। कुदरत के द्वारा दोहरी मार पड़ी थी उस पर,क्योंकि बेटे का चेहरा उसे बार – बार अपनी अतीत की याद दिलाता था। पर अपने बेटे के लिए उसने इस चीज को सकारात्मक रूप से अपनाया। एक सिंगल मदर के रूप में उसने अपने आप को पूरी तरह से तैयार कर लिया था। अमन नाम रखा अपने बेटे का। एक मां- बाप के दोनों रूप एक- साथ अमन को सौगात में मिले। बेटे के 5 साल होने के बाद सारिका के पापा भी चल बसे। अब वह नितांत अकेली हो गई।
उसके सामने सबसे बड़ा संकट आर्थिक था। घर- खर्च के साथ-साथ अमन की पढ़ाई भी शुरू हो गई थी। जितने भी जमा पैसे थे, वो इतने दिन तक काम आए।अब नौकरी की तलाश जरूरी थी। उसने अपनी डिग्रियों को इकट्ठा किया और जुट गई काम की तलाश में।दफ्तरों के चक्कर काटते- काटते काटते अंततः एक छोटे से फर्म में उसकी नौकरी लग ही गई। बस जी- जान से काम में लग जाना था, क्योंकि इसी काम के सहारे दोनों का भविष्य टिका हुआ था। जिस तरह से समय किसी के लिए नहीं रूकता, सारिका भी अपने जीवन के झंझावतों को समेटने में लग गई।
सुबह 6:00 बजे उठकर जल्दी-जल्दी अमन को बस स्टॉप पर स्कूल के लिए छोड़ना, फिर वहां से लौटकर अपने लिए लंच बनाना, उसके बाद ऑफिस के लिए तैयार होना।मानों जिंदगी एक धुरी पर घूमने लगी थी। इस व्यस्त- सी जिंदगी में उसने अपनी कितनी इच्छाओं को मार लिया था।समय कितना बड़ा मरहम होता है,इस ताकत को सारिका ने बखूबी जान लिया था।
पर समाज के बारे में क्या कहिएगा। अकेली औरत जब अपनी सारी जिम्मेवारीयों को अपने दम – खम पर पूरा करती है,तो उसे हमारा समाज भी शंका भरी निगाहों से देखता है। मदद के लिए तो कोई आगे नहीं आते पर उंगली जरूर उठाते हैं। अमन के स्कूल के एडमिशन के समय में भी कई सारी बातें उठाकर उसके जख्म को हरा कर दिया था।ये तो हमारे कानून ने इस बात की हरी झंडी दे दी है कि एडमिशन के समय पिता का ही नाम जरूरी नहीं होता।एक मां के नाम से भी बच्चा अपनी जिंदगी में आगे बढ़ सकता है।पर हमारे पुरुष प्रधान समाज में,जो केवल स्त्री – पुरुष की बराबरी की बात करता है, व्यावहारिकता में ऐसा दिखता नहीं है।तभी तो सारिका जैसी सिंगल मदर को कदम – कदम पर परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।ऐसी कितनी जगहें थी,जहां पति के नाम की जरूरत महसूस होती थी,पर अपनी हालात से लड़ती उस औरत ने सबको करारा जवाब देकर चुप कर दिया।सिद्धार्थ अब उसके लिए कोई मायने कैसे रख सकता था,जबकि उसने एकबारगी सारिका की जिंदगी में झांकने का कोई कष्ट नहीं किया था।जब स्कूल में सब बच्चे के पापा उन्हें लेने आते थे, उससमय अमन एक कोने में सूनी आंखों से उन्हें देखा करता था।सारिका ने भी अमन के इस दर्द को महसूस किया था।पर दुनिया की सारी खुशियां वह ला सकती थी,पर पापा वह कहां से लाती? इस सच्चाई से अभी तक अमन अनजान था कि उसके पापा ने उसकी मां के साथ क्या किया था?जब भी वह कोई सवाल करता,सारिका बात को इधर – उधर कर देती थी।उसे सही समय का इंतज़ार था।
समय ने अपनी गति पकड़ी और देखते – देखते अमन कॉलेज में आ गया।बचपन से ही उसने अपनी मां को काम करते देखा था।उसने पापा के बारे में भी पूछने की कोशिश की थी।अब अमन को इस सच्चाई से अवगत कराने का समय आ गया था।धीरे – धीरे उसने अमन के सामने अपनी जिंदगी के कड़वे पल को उजागर कर ही दिया।अब किस्मत सुधारने की बारी अमन की थी।
सारिका के जीवन में पतझड़ के सिवा कुछ नहीं रहा।समय के थपेड़े सहते – सहते कब चेहरे पे झुर्रियां दिखने लगी,उसे भी पता नहीं चला।अपने बेटे और उसके अच्छे भविष्य के लिए उसने अपने अरमानों का गला हर कदम पर घोंटा।ऐसे भी उसे रिश्तों पर विश्वास नहीं रहा।समाज के ताने सहे।चाहे स्कूल हो या ऑफिस सभी जगह उससे सवाल किए गए।उसपे तिरछी उंगलियां उठीं।
हमारी सामाजिक संरचना ही ऐसी है कि single mother को हर कदम पर परीक्षाएं देनी होती हैं।पुरुष से कोई सवाल नहीं करता।और हम बात करते हैं स्त्री – पुरुष की समता की।होना तो यही चाहिए कि अगर आप किसी का सहारा नहीं बन सकते तो कम – से – कम उसकी जिंदगी पर सवाल न उठाएं।एक अकेली औरत को,जो एक मां भी है ,कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है,उस दर्द को सारिका ने बखूबी झेला था।ऐसे समय में जब उसे अपने पति की सबसे ज्यादा जरूरत थी,अपने आपको अकेला पाया।ऐसे में वो किस पे विश्वास करे।कम से कम एक single mother ये तो अपेक्षा कर ही सकती है कि अपनी जिंदगी बिना सवालों के गुजारे।
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Very nice 👍
Interesting Story
Hamare samaj ki yehi to widambna hai…kewal kehne ko stree purush saman hain…hum abhi bhi ek pichhde samaj ka hii ek hissa hain…
Jabardust….👌👌👌👌👌👌👌