चलिए ,आज आपको एक नए चलन के बारे में बताते हैं | आगजनी का नाम तो सुना ही होगा | वैसे इसका विस्तृत वर्णन देने की जरुरत नहीं है | सब कुछ सामने आकर विस्तृत हो रहा है ,इससे बड़ी जानकारी और क्या हो सकती है ? आजकल rape case की अगली परिणीति आगजनी ही तो है | वैसे आगजनी का मतलब तो गैरकानूनी तरीके से किसी के मकान ,खेत आदि में आग लगाना होता है | पर जरा सोचिये किसी इंसान को जिन्दा जला दिया जाए तो उसकी मनोस्थिति उससमय कैसी होती होगी ? किस दर्द से वह गुजर रही होगी ,सोचकर ही रोम -रोम सिहर उठता है | हमारा हाथ थोड़ा -सा भी जल जाए तो हम चिल्लाने लगते हैं | जरा कल्पना कीजिए कि एक लड़की का gang rape हो और अपना अपराध छिपाने के लिए उसे जिन्दा जला दिया जाए ,कैसी शारीरिक और मानसिक पीड़ा से गुजरती होगी ,शायद सबकी सोच से बाहर की बात है | उस दर्द की तो व्याखया ही नहीं की जा सकती ,जिन मजबूर आँखों ने अपनी इज़्ज़त और मौत का तमाशा साथ -साथ देखा होगा |
उन्नाव case को ही ले लीजिए।एक नाबालिग लड़की की इज्जत तार – तार होती है ।आरोप – अप्रत्यारोप का दौर दोनों तरफ से चलता है ।धमकियां मिलती हैं ,वो अलग ही है ।हिम्मत करके लड़की के परिवार वाले police case करते भी हैं तो उससे क्या होता है?एक – एक करके लड़की के परिवारवालों की मौत होने लगती है । अंत में लड़की का फैसला आता है कि वह न्याय के लिए cm के आवास के सामने आत्मदाह करेगी ।उसकी कार को आरोपियों द्वारा टक्कर भी मारा गया ,जिसमें वह लड़की और उसके वकील बुरी तरह से घायल भी हो गए ।SC की दखल से लड़की और उसके वकील को इलाज के लिए Delhi के AIIMS में लाया गया ।पर दोनों की हालत गंभीर है।वकील comma में है और लड़की ventilator के सहारे जिंदगी की डोर पकड़े हुए है ।ये तो वही बात हुई कि इंसाफ की उम्मीद जगी तो जिंदगी जीने की वजह ही बुझ रही है।
हिम्मत तो उन लड़कियों में है ,जो अपने साथ घटी घटनाओं से कमज़ोर ना पड़कर इन्साफ के मैदान में कूद पड़ती हैं | शारीरिक पीड़ा के साथ -साथ मानसिक वेदना भी झेलती हैं | जगह -जगह गंदे -गंदे सवाल पूछे जाते हैं ,शब्दों के जाल में उलझाया जाता है ,पर इन्साफ की उम्मीद नहीं छूटती |
हमारे समाज ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी हैं | ऐसा नहीं है कि केवल दिल्ली ही सुर्ख़ियों में आती है | कुछ दिन पहले ही तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में घटी एक लेडी डॉक्टर के हत्याकांड ने सबको सकते में डाल दिया | एक पढ़ी -लिखी लड़की भी सुरक्षित नहीं है | चाहे वह कितने भी ऊँचे ओहदे पर हो |एक तरफ हम “बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ “का नारा लगाते हैं ,दूसरी तरफ वही बेटियाँ सुरक्षित नहीं है ,जो अपने दम पर कुछ बनकर दिखाती हैं | आखिर हम किस समाज में जी रहे हैं ? शायद ये प्रश्न का उत्तर हम खोज ही ना पाएं ,क्यूंकि ये यक्ष प्रश्न हमारे सामने मुंह बाए खड़ा है और हमेशा रहेगा |
एक पढ़ी -लिखी डॉक्टर अपनी two wheeler को खड़ी करती है | उसी समय अपराधियों ने अपना अमली -जामा पहना दिया था पिछले टायर की हवा निकालकर | ये सभी अपराधी नशे में चूर थे | एक बात यहाँ पर सोचने को मजबूर करती है कि जब हैदराबाद पुलिस हर तरह की technology से लैस है तो अपराधी अपराध को अंजाम कैसे दे दिए ? यहाँ पर ये बात बिलकुल सटीक बैठती है कि चाहे जितनी भी security लगा दो ,हम तो गलत काम करने के लिए रास्ता निकाल ही लेंगे |
जब डॉक्टर ने टायर पंक्चर देखा तो उसने अपनी बहन को फ़ोन किया करके सारी बात बताई | साथ में उसने यह भी बोला कि उसे बहुत डर लग रहा है | कुछ अजीब नजरें उसे घूर रही हैं | उसने अपनी बहन से कहा कि वह उससे फ़ोन पर बात करती रहे | थोड़ी देर के बाद डॉक्टर का फ़ोन switch off हो गया | सोचिये जरा ,रात के सन्नाटे में किस डर से गुजर रही होगी | शायद उसे इस बात का इल्म ही नहीं होगा कि अगले कुछ मिनटों में उसके साथ क्या होने वाला है और ना ही उस लड़की के परिवार वालों को भी |
पुलिस ने गुमशुदगी की report दर्ज कर ली उन सारे रिपोर्टों की तरह ,जो हर समय फाइलों में दर्ज होते हैं | जिस जगह पर डॉक्टर को आखिरी बार देखा गया था ,अगले दिन सुबह वहां से 30 km दूर एक किसान को जला हुआ शव मिला | पुलिस को सूचित किया गया और पुलिस ने डॉक्टर के परिवार वालों को घटनास्थल पर बुलाया | शव की शिनाख़्त हो चुकी थी |
फिर से वही gang-rape | हैवानियत की सारी हदें पार करते -करते डॉक्टर की मौत हो गई | बात यहीं पर समाप्त नहीं हुई थी | अपने जुर्म को छिपाने के लिए हैवानों ने केरोसिन डालकर आग लगा दी |
एक बार फिर से निर्भया हार गयी | साथ में देश को भी एक बार फिर से शर्मसार होना पड़ा | शुरू हो गया विरोध प्रदर्शन ,इन्साफ की मांग ,कैंडल मार्च आदि -आदि |
ना जाने कितनी बेटियों को उसे खोना पड़ेगा | स्थिति तो यह हो गयी है कि बड़ी लड़कियों को तो छोडो ,छोटी -छोटी बच्ची तक महफूज नहीं है | 8 माह की बच्ची ,1 साल की बच्ची ,5 साल की बच्ची आदि आदि | कहाँ तक ये गिनती जायेगी ,ये कोई नहीं जानता | हद तो यह हो गयी है कि जितने भी rape case आते हैं ,उसमे ज्यादातर ये मासूम ,अबोध ,नाबालिग बच्चियां ही होती हैं | और जो अपराधी होते हैं ,उसमे भी ज्यादातर नाबालिग ही होते हैं |
लेकिन हमारा कानून इतना लचीला है कि एक नाबालिग rape करने पर उम्र को आड़े आने नहीं देता है | पर जब सजा की बात आती है तो उसे juvenile court भेज दिया जाता है सुधरने के लिए | ये कितनी हास्यास्पद बात है ना और साथ में हमारी न्यायिक व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह भी है |
अब कठुआ कांड को ही ले लीजिये ,जिसे सुनकर कलेजा काँप जाए | शायद यही कारण है कि कितने माँ -बाप नहीं चाहते हैं कि उनकी औलाद बेटी हो | कब किस समय किसकी बेटी पर गाज गिरेगा ,ये कोई नहीं जानता ? मानवता कब शर्मसार हो उठेगी,किसे कब खबर है ?
जम्मू -कश्मीर के कठुआ में 8 साल की मासूम बच्ची के साथ गैंगरेप और हत्या ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया | आश्चर्य वाली बात तो यह है कि इस घटना में पुलिस का एक जवान भी शामिल था ,जो देश के रक्षक समझे जाते हैं | और तो और घटना घटी भी तो कहाँ—— धार्मिक स्थल पर |
एक बच्ची घर से निकलती है अपने कुछ काम से | उसके बाद उसका कुछ पता नहीं चलता है | पिता ने पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई | लेकिन रिपोर्टों पर कभी संजीदगी से ध्यान दिया जाए तब ना | अगर हमारी पुलिस किसी भी रिपोर्ट पर तुरंत कार्यवाही करे ,तो हो सकता है अपराधिक ग्राफ कुछ कम हो जाए |
10 जनवरी को घर से निकली बच्ची 17जनवरी को जंगल में मृत पाई गई ।इस एक हफ्ते में बच्ची के साथ क्या – क्या सुलूक किया गया ,ये सब रोंगटे खड़े कर देने वाली बात है ।उसे मंदिर में बंधक बनाकर रखा गया था ।नशे की गोलियां खिला – खिलाकर उसका gang-rape किया जाता था ।भूख से तड़पती बच्ची नींद की गोली खाकर कैसे उस समय मानसिक यंत्रणा से गुजरती होगी ,ये हम आप सोच भी नहीं सकते ।शर्म की बात तो तब हुई ,जब एक पुलिसवाले ने कहा कि अगर बच्ची की हत्या करनी ही है तो मुझे भी ये काम कर लेने दो ।उसके बाद फिर से उसका gang-rape किया गया ।ऐसी घिनौनी हरकत तो किसी को भी शर्मसार करने के लिए काफी है ।पर शर्म और डर तो उन्हें होगी ना ,जो इसका मतलब समझते हों ।जिनके अंदर इंसानियत नहीं ,उसका तो कुछ हो ही नहीं सकता ।उसके बाद आरोपियों ने पत्थरों से उसका सिर कुचला और गला घोंट कर हत्या करने के बाद लाश को जंगल में फेंक दिया ।
मजे की बात तो यह है कि आरोपियों में सभी बड़े -बड़े ओहदे वाले लोग शामिल थे | पुलिस जो हमारे लिए रक्षक का काम करती है ,वो भी भक्षक के रूप में शामिल थी |
ये सब तो हुआ बड़े -बड़े cases | ऐसे -ऐसे छिट -पुट cases तो आम हैं हमारे देश में | चाहे वह metro-cities हो या छोटा शहर | गांवों में तो ऐसी कितनी सारी घटनाएँ घटती हैं ,जो समाचार की सुर्खियां भी नहीं बन पातीं |
अब तो बात यहाँ तक आ गयी है कि rape करो और उसे जिन्दा जला दो | ऐसे कई cases हैं जिन्दा जलाने के ,जिनकी लपटों में इन लड़कियों के सारे सपने स्वाहा हो गए | साथ में स्वाहा हो गए इनके माँ -बाप के अरमान |
जब भी इस तरह की वारदात सामने आती है तो उसके समर्थन में नारेबाजी होती है ,विरोध प्रदर्शन होते हैं ,राजनीतिक गहमागहमी रहती है | कुछ दिन तक ये उथल -पुथल होती रहती है | फिर वही सन्नाटा | ये सिलसिला रूकती नहीं है बल्कि अगली घटना के रूप में फिर सामने आ जाती है | अगर रिपोर्ट पर कार्यवाही होती भी है तो दोषियों को सजा मिलने में वर्षों लग जाते हैं | इसका सबसे बड़ा उदाहरण निर्भया काण्ड है ,जिसमें दोषियों को सजा मिलने में 7 साल लग गए | ये हमारी धीमी न्यायिक प्रक्रिया पर कई सवाल भी उठाती है |
आज लडकियां कहीं भी सुरक्षित नहीं है | 8 महीने की बच्ची से लेकर ६० साल की औरतें —ये सभी इन दरिंदों के चपेट में रहती हैं | जो बड़े -बड़े cases होते हैं ,उसे तो बाहरी लोग अंजाम देते हैं पर जरा गौर कीजिये अधिकतर cases तो पारिवारिक होते हैं ,जिन्हें घर की चारदीवारियों के अंदर अंजाम दिया जाता है | लोक -लाज के भय से ये सब बात बाहर आती ही नहीं है | लड़की अंदर ही अंदर घुटती रहती है | परिवार की इज़्ज़त के नाम पर उन्हें चुप करा दिया जाता है | छोटी -छोटी बच्चियों को तो ये तक पता नहीं होता है कि उनके साथ क्या हो रहा है ?
यहाँ ये सबसे बड़ा सवाल यह है कि लड़कियां जाए तो कहाँ जाए ? किस पर विश्वास करे ?घर में भी हैवान और बाहर भी हैवान | कानून का ढीलापन इनके अपराध को और बढ़ावा देता है |
आप paper उठा कर ही देख लीजिये | ऐसा कोई भी दिन नहीं होगा ,जो rape की घटनाओं से भरा ना हो | अपराधी अपराध करके सरे आम घूमते रहते हैं | हमारा समाज भी कम दोषी नहीं है | एक लड़की ,जिसके साथ ऐसी घटना घटती है ,उसे सम्बल देने की जगह ओछी नजरों से देखा जाता है | प्रश्न भरी निगाहें इन्हें सामान्य जीवन जीने नहीं देती |सबके सवालों का जवाब देते -देते ये लडकियां थक जाती हैं| सजा मिलने में भी सालों -साल लग जाते हैं | हमारी धीमी क़ानूनी कार्यवाही इनके लिए वरदान बन जाती है |
आखिर यह समाज का किस तरह का आइना है ,जिसकी तस्वीर देखकर हमें अपने आप को सभ्य कहलाने का हक़ हो ही नहीं सकता |
आज हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि ऐसा क्या किया जाए ,जिससे महिलाएं अपने आप को सुरक्षित महसूस करें ?क्या लड़कियों के जन्म पर ही रोक लगा दिया जाए?हम high technology की बात करते हैं और देश की आधी आबादी को ही असुरक्षित कर देते हैं ।लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर महिलाओं को बाहर सुरक्षित कर भी दिया जाए तो उससे क्या होगा?घर में अपने रिश्तेदारों ,जानकारों से कैसे निपटा जाए ?कब और कैसे पता चलेगा कि किस चेहरे के पीछे कौन सा शैतान छुपा है ?अब सरकार तो घर – घर जाकर हैवानों से निपटेगी तो नहीं। इन सारी समस्याओं का एक ही हल है कि लड़कियों को आज के माहौल के हिसाब से तैयार किया जाए । अबला वाला रूप छोड़ना ही होगा उन्हें ।उन्हें इस काबिल बनाना होगा ,ताकि वह अपनी सुरक्षा खुद कर सकें ।किसी की ओर ताकना ना पड़े।अब प्रश्न यह उठता है कि दुधमुंही बच्ची सुरक्षा कैसे की जाए।इसके लिए तो खुद को भी तैयार करना जरूरी है ।जब किसी की नियत का पता नहीं है तो हमें भी भरोसा करना छोड़ना होगा अपने रिश्तेदारों पर।क्यूंकि बाहरी दुश्मनों से तो निपटा जा सकता है ,पर दुश्मन अगर घर पे ही हो तो खुद को ही अलर्ट रहना होगा।छोटी – छोटी बच्चियों को ये बताना बहुत जरूरी है कि कौन सी और कैसी नज़र गंदी होती है ।touch के प्रकार को समझाना होगा ।साथ में सरकार का भी यह दायित्व बनता है कि वह सख़्त से सख्त कानून लागू करे ,ताकि अपराधी उसे खेल ना समझकर भय महसूस करे ।
हमारी ,हमारे समाज की ,हमारे सरकार की यही कोशिश होनी चाहिए कि निर्भया कांड की पुनरावृत्ति ना हो ।कभी किसी की बेटी हैवानियत का शिकार ना हो ।Rape के बाद एक लड़की जो मनोस्थिति से गुजरती है ,उसमे वह अकेली नहीं होती है।उसका परिवार भी मानसिक यंत्रणा से गुजर रहा होता है ।अगर आधुनिकता है तो उसे अपने विचारों में भी लाना होगा ।ऐसे बुरी त्रासदी को झेल रही इन लड़कियों का साथ देना ,उन्हें अपने भंवर से बाहर निकालना हमारा ही काम है ,ताकि वो अपनी जिंदगी फिर से जी सकें।
“गिद्धों और भेड़ियों के देश में एक चिड़िया झुरमुटों से झांकती हुई
यह सोचते हुए कि ये ज़िन्दगी है मेरी
उसने पंख फैलाने में ज़रा भी ना की देरी
वो उड़ना चाहती थी ,दुनिया देखना चाहती थी, ज़िन्दगी जीना चाहती थी
फिर अचानक गिद्धों के झुण्ड ने उस उन्मुक्त चिरैया को देख लिया
उसके पंखों को तार -तार कर दिया
वो चीखती रही ,चिल्लाती रही ,मदद की गुहार लगाती रही
लेकिन किसी ने उसकी ना सुनी
वो सारे थे ताकत के नशे में चूर
और शायद ऊपरवाले को भी उसकी ज़िन्दगी ना थी मंज़ूर“
शायद इसे ऐसे समझ लीजिये कि ऐसी ही हालत हमारे देश की भी है | इनसे तो यही मतलब निकलता है कि यहाँ बेटियों की सुरक्षा की कोई जगह नहीं है | ना तो बेटी बचाओ और ना ही उसे पढ़ाओ | और तो और कन्या भ्रूण हत्या के कानून को ही बदल डालो | ना रहेंगी बेटियां और ना ही लूटी जायेगी उनकी अस्मत | पर ये कोई समस्या का हल नहीं है | हमें हमारी बेटियों को जिंदगी देने में ,जिन्दा रखने में ,उन्मुक्त आकाश में विचरण करने में कोई परेशानी ना हो ,इस बात पर विचार करना हो होगा | अनथ्या बेटा और बेटी के संतुलन को बिगड़ते जरा भी देर ना लगेगी | |
बेटियों की सुरक्षा और उनके अस्तित्व को बचाने की एक उम्मीद के साथ।
The most ghastly crime in this world is rape.. Our slogan should be "bete padhao aur beto ko samjhao" instead of beti padhao beti bachao..
Hats off to ur writing skill 🙌🙌
Really nice piece of writing. Well done
Nice one Priyanka ji