तलाश(वैंपायर लव–स्टोरी)अंतिम भाग
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
आसिफ़ मियाँ की आँखों से बहती अविरल आंसू की धाराएं इस बात को चीख -चीख कर कह रही हैं कि कोई गहरी बात उनके दिल को साल रही थी | लाहौर में उनका अपना घर था ,जहाँ वे अपने परिवार के साथ रहते थे | मकान दो मंजिला थी | ऊपर की मंजिल में वे खुद रहते थे और नीचे किरायेदार | मकान ऐसा बना था कि दोनों मंजिल वाले लोग एक -दूसरे को देख सकते थे | नीचे एक हिन्दू परिवार था ,जिसमें पति -पत्नी और दो बच्चे थे | आसिफ मियाँ का परिवार भी कोई खास बड़ा नहीं था | पति -पत्नी और दो बच्चे ,जिसमें से एक की शादी हो चुकी थी और दूसरा पढ़ाई कर रहा था | आसिफ मियाँ की पदवी पति -पत्नी से बढ़कर ” दादा -दादी “पर पहुँच गयी थी | आयशा और अयान दो प्यारे -प्यारे बच्चों की किलकारियाँ पूरे घर में गूंजा करती थी |
किराएदार के भी दोनों बच्चे बहुत प्यारे थे ।ईशान और इला भी पूरे दिन भर मस्ती करते रहते थे ।चारों बच्चों की उम्र लगभग एक – सी थी।जाहिर सी बात है कि उनके बीच में दोस्ती होनी थी ।वे मासूम दोस्ती करने के पीछे ये नहीं सोचे कि कौन हिन्दू है और कौन मुस्लिम ।ऐसे भी उनके माता – पिता को भी इस चीज से कोई शिकवा नहीं थी ।
अयान और ईशान को देखकर तो लगता था कि दोनों सगे भाई हों।इन दोनों की दोस्ती को देखकर ही तो आसिफ़ मियां अपने आप को रोने से रोक नहीं पाए थे और अपने पुराने दिन में खो- से गए।
बचपन के वे सुनहरे दिन कैसे भूल सकते थे ,तब भारत आज़ाद नहीं हुआ था | उनके अब्बाजान की posting पंजाब में थी | जहाँ वे रहते थे ,ठीक दो घर के बाद एक hindu family भी रहने आई थी ,जिसके दो बच्चे थे | बड़े बेटे की उम्र और आसिफ मियाँ की उम्र लगभग एक सी थी | जैसा कि हम सभी जानते हैं हमउम्र बच्चों में दोस्ती हो जाती है ,सो हो गयी दोस्ती | जात -पात और धर्म की दीवारों से ऊपर उठकर दो मासूम बच्चे आपस में सौहाद्र की भावना रखने लगे | हिन्दू बच्चे का नाम था “अमरदीप ” | वैसे तो दोनों के school अलग -अलग थे | एक मदरसा में जाता था तो दूसरा स्कूल में | पर छुट्टी होने के बाद दोनों हमेशा साथ -साथ खेलते थे | एक -दूसरे के लिए इतना प्यार बढ़ा था ,जिसे कोई धर्म बाँध नहीं सकता था |
उससमय भारत में बग़ावत की आंधी चल रही थी | सन 1947 के पहले का भारत जात -पात ,मजहब के बीच बंटा था | आजादी की लहर चारों तरफ उठ चुकी थी | समय -समय पर दंगे होते रहते थे | आसिफ़ और अमरदीप के पिता भले ही ऊँचे ओहदे पर थे ,पर उनकी मानसिकता ऊँची नहीं थी | उन दोनों को बच्चों की दोस्ती पसंद नहीं थी | इस मसले पे दोनों परिवारों के बीच अनबन होती रहती थी | वहीँ दूसरी तरफ नफरतों के बीच में दोस्ती और परवान चढ़ रही थी |
एक दिन की बात है अमरदीप स्कूल से लौटा तो उसने आसपास नजर दौड़ाई| पर आसिफ़ उसे कहीं नज़र नहीं आया | मतलब दोनों बच्चे स्कूल से लौटने पर एक -दूसरे का इंतज़ार का इंतज़ार करते थे | पर जब आसिफ बहुत देर तक नज़र नहीं आया तो अमरदीप को चिंता होने लगी | वह आनन -फानन में आसिफ के घर की ओर दौड़ चला वहां उसने देखा कि आसिफ़ के घर के पास एक बड़ी सी ट्रक लगी है ,जिसमें उसके घर का सारा सामान चढ़ रहा था | आसपास के लोगों से उसे पता चला कि आसिफ दूसरे शहर जा रहा था | उसके अब्बाजान की posting कहीं और हो गयी थी | ये सब देखकर उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गयी | उसने आव न देखा ताव ,सीधे घर के अंदर घुस गया | अंदर आसिफ़ मियाँ औंधे मुंह लेते हुए थे |
जैसे ही अब्बाजान की नजर अमरदीप पर गयी ,उनका खून खौल उठा | एक हिन्दू को अपने घर में देखकर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर जा चढ़ा | पर दोस्ती अगर मासूम हो तो ये सब कहाँ देखती है ? वह “आसिफ़ आसिफ़ “चिल्ला रहा था | पर आसिफ़ भी क्या करते | आखिर बगावत करते भी तो किससे | अमरदीप रुआँसा होकर घर वापस आ गया |
। गाड़ी पे सामान लद चुके थे | जाने की सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं | पर ऐन मौके पर दंगे छिड़ गए | सारे शहर में कर्फ्यू लग गया | जो जहाँ था ,वहीँ ठहर गया | आजादी की लड़ाई ऐसे ही भड़की हुई थी | कहीं -कहीं से विद्रोह की आवाजें आती रहती थीं | धर्म को लेकर भी लड़ाईयां हो रही थीं | पूरे शहर में ऐलान में कर दिया गया कि जो जहाँ है ,वहीँ पे रहेगा | किसी को शहर से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी | अब तो आसिफ़ और अमरदीप के लिए और भी मुश्किल हो गयी | अब तो दोनों खुले -आम मिल भी नहीं सकते थे | आजादी के पहले का भारत धर्म के नाम पर बँट गया था ,जो दंगों के रूप में सामने आता रहता था |
हिन्दुओं के घर में मुस्लिम और मुस्लिमों के घर में हिन्दू हाहाकार मचाने लगे | इंसानियत से तो जैसे किसी को कोई सरोकार ही नहीं था | मतलब था तो बस अपने -अपने धर्म को सिद्ध करने की | कानून नाम की कोई चीज़ थी ही नहीं | एक -दूसरे से लड़ने को हमेशा आतुर रहते थे | कानों -कान से पता चला कि दंगे की मुख्य वजह एक ब्राह्मण के घर में दलित का चले जाना था | झगड़े का कारण कुछ और था | लेकिन खामियाजा सबको भुगतना पड़ा | सबने अपने -अपने धर्म को आड़े हाथों लिया और उसके समर्थन में खड़े हो गए | इसके साथ -साथ आजादी का बिगुल भी चारों तरफ बज रहा था |
अच्छाई और बुराई हर किसी में होती है चाहे वह हिन्दू हो या मुस्लिम | कर्फ्यू लगने से दोनों दोस्तों को ये तो तसल्ली हो ही गयी थी कि चलो कुछ दिन ही सही ,पर एक ही शहर में तो हैं | हाँ !मिलने में खतरा जरूर था | वैसे दंगा हिन्दू -मुस्लिम के बीच नहीं हुआ था ,पर दंगाइओं का क्या ,उन्हें तो बस मौका मिलना चाहिए | आग लगाते रहो और एक -दूसरे से लड़वाते रहो |
3 -4 दिन के बाद जब सारा शहर सन्नाटे में था ,उससमय आसिफ़ को अमरदीप की बहुत याद आ रही थी | अमरदीप तो उसदिन हिम्म्मत करके आसिफ़ के घर तक पहुँच गया था | अब बारी आसिफ की थी | बहुत दिनों से अमरदीप का हाल -चाल नहीं मिला था | रात के अंधेरों में छुपते -छुपाते वह अमरदीप के घर तक पहुँच गया | वहां उसने जो देखा ,वह उसकी सोच से परे था |इंसानियत भी यह दृश्य देखकर दया की भीख मांग रही थी |
अमरदीप के माता -पिता खून से लथपथ जमीन पर पड़े थे | कुछ अनजान लोगों ने अमरदीप को बंधक बना लिया था और कुछ उसके घर के एक -एक समान को फेंक रहे थे | पता नहीं वे बेरहम लोग उसके घर में क्या ढूंढ रहे थे | जब कुछ नहीं मिला तो उसे एक तरफ फेंककर बिजली -सी भाँति घर से निकल गए |
उनलोगों के जाते ही आसिफ़ ,जो छुपकर सारी घटनाओं का अवलोकन कर रहा था ,दौड़ कर घर के अंदर घुसा और अमरदीप के हाथ -पैर को रस्सियों से आजाद किया | जैसे ही अमरदीप की नज़र आसिफ़ पर गयी एक छोटे बच्चे की तरह वह फफक -फफक कर रोने लगा और उसके गले लग गया | उसकी नज़रें अपने छोटे भाई को ढूंढ रही थीं | सोचिए जरा उस बच्चे की मानसिकता क्या होगी ,जब उसकी आँखों के सामने उसके माता -पिता को मार दिया गया | अपना कहने वाला बस एक छोटा भाई बचा था ,वो भी लापता था | पता नहीं कहाँ होगा ,किस हाल में होगा ? आसिफ तो यह सब देखकर अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं कर पा रहा था | आपसी मनमुटाव इतना भयानक होता है ,यह उसकी सोच से परे था |
अब आसिफ़ के सामने बहुत बड़ा धर्मसंकट आ गया था | वह अपने हिन्दू दोस्त की सहायता कैसे करे ? एक तरफ उसके अब्बा को अपने घर में हिन्दुओं का आना मंजूर नहीं था | दूसरी तरफ शहर में मजहब के नाम पर दंगे फैले हुए थे | अपने दोस्त को बीच मंझधार में छोड़ भी नहीं सकता था | अमरदीप के पास तो अपना कहने वाला आसिफ ही तो था | आसिफ़ ने दिल ही दिल में निर्णय ले लिया कि वो अपने दोस्त का साथ नहीं छोड़ेगा ,भले ही उसे अपने माता -पिता से लड़ना क्यों ना पड़े |
उसने अमरदीप को सांत्वना दी और उसे अपने घर ले आया | उसकी अम्मी ने जब अमरदीप को देखा तो उनका कलेजा काँप उठा | आसिफ़ पे बहुत गुस्सा आ रहा था उन्हें पर जब उन्होंने अमरदीप की करुण कहानी सुनी तो उनका कलेजा मुंह को आ गया | | अब उन्हें इस बात की चिंता थी कि आसिफ़ के अब्बाजान का सामना कैसे होगा ?
शाम हुई ,अब्बाजान घर आए | अमरदीप पर नज़र पड़ते ही उनके घर का धर्मांध इंसान जाग उठा | वो अमरदीप को बाहर निकालने ही जा रहे थे कि आसिफ़ पैरों पर गिर पड़ा और सारी कहानी सिलसिलेवार सुना दी | कहानी सुनकर उनके अब्बा थोड़ा ठिठके | आखिर थे तो एक इंसान ही | इसके साथ -साथ एक पिता भी थे | अब आसिफ़ के पिता को चिंता थी कि अपने धर्म को क्या जवाब देंगे | ये बात तो छुप नहीं सकती कि एक मुस्लिम के घर एक हिन्दू भी रह रहा है | ये कैसी बिडम्बना है कि ईश्वर जन्म के समय किसी बच्चे पर धर्म का ठप्पा लगाकर नहीं भेजता | पर हम लोग एक -दूसरे को धर्म के नाम पर बाँट लेते हैं | अमरदीप की हालत वैसी नहीं थी कि उसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाए |
बस एक कड़े फैसले का इंतज़ार था | आसिफ़ के अब्बा ने रातों -रात शहर छोड़ने का फैसला कर लिया | दूसरे शहर में कौन उन्हें पहचानता और ये बात छुप भी जाती | आखिर इंसानियत की जीत हो ही गयी | कर्फ्यू खत्म होते ही रातों -रात आसिफ़ परिवार दूसरे शहर पहुँच गया |
दिन बीतते गए ,आसिफ़ और अमरदीप की दोस्ती भी गाढ़ी होती गयी | अब तो दोनों एक ही छत के नीचे रहते थे | अमरदीप की जिंदगी भी normal होने लगी थी | कहते हैं ना कि समय बड़े -से -बड़े घाव को भर देता है | दोस्ती ने अमरदीप के घाव को भरने में बहुत सहायता की |
पर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था | समय ने करवट ली और भारत आज़ाद हो गया | लेकिन आजादी ने लाखों लोगों को एक -दूसरे से अलग कर दिया | मेरे कहने का मतलब यह है कि भारत आज़ाद तो हुआ पर आज़ाद के साथ -साथ विभाजित भी हो गया | भारत और पाकिस्तान दो कौम हो गए और इस विभाजन ने कितने घरों को बेघर कर दिया |
भारत वैसे ही धर्मवाद देश रहा है और एक धर्म के साथ दूसरे धर्म के होने की बात ज्यादा दिन तक छुप नहीं सकती थी | आखिर वही हुआ जिसका डर था | दो देश के साथ -साथ दो देश भी अलग हो गए | आसिफ़ को हिन्दुस्तान छोड़कर पाक़िस्तान जाना पड़ा और अमरदीप को मिला हिन्दुस्तान |
सोचिए जरा ,इतने मुसीबतों को झेलते हुए इन दोनों के चेहरे पे मुस्कराहट आयी थी ,वो भी सियासती दाँव -पेंच ने खत्म कर दिया | आसिफ के साथ तो उसका पूरा परिवार था ,पर अमरदीप के पास क्या था ? कहने के लिए एक भाई था ,जो अभी तक लापता था | पर अब कुछ नहीं हो सकता था ।इस विभाजन के दंश को जाने कितने लोग झेल रहे थे।
कलम के एक हस्ताक्षर ने लाखों लोगों को दो कौमों में तब्दील कर दिया था।कितनी लाशें गिरी, कितने परिवार बर्बाद हुए,इसका हिसाब कौन करेगा? लाखों लोग घर से बेघर हो गए।
सोचिए जरा,अमरदीप ने अकेले आप को कैसे संभाला होगा ? उससमय तो यह भी सुविधा नहीं थी कि एक देश में रह रहे लोग दूसरे देश के लोगों का हाल – चाल पता करें।
दो कौमों के बीच फैली नफरत ने घर – बार ,देश – गांव के साथ – साथ एक दोस्त को दूसरे दोस्त से अलग कर दिया था । अमरदीप ने कितनी दुश्चिंताओं , डर और बेबसी में अपने आगे का सफर तय किया होगा ,यह उससे बेहतर कोई नहीं जान सकता था ।उधर आसिफ़ के लिए भी ट्रेन के डिब्बों में खचाखच भरे जिंदा और मुर्दा लोगों से ज्यादा उसके दुखों की गठरियों का वजन था।
दिन बीतते गए और माहौल भी शांत हो गया | आसिफ़ के पके बाल इस तरफ इशारा कर रहे थे कि समय मरहम होता है | वक़्त से बड़ा कोई नहीं होता | धीरे -धीरे वे भी अपने बचपन के वे स्याह दिन भूलने लगे थे | अमरदीप से दुबारा मुलाक़ात भी नहीं हुई |
तभी ईशान दादू -दादू कहते हुए उनके गोद में बैठ गया | उनकी तन्द्रा भंग हुई और वे वर्तमान में लौट आये | इन बच्चों के आपसी प्यार में उन्हें अपने दोस्त की छवि नज़र आ गयी थी ,तभी तो ईशान और अयान को देखकर उनकी आँखों में आंसू आ गए थे | नियति ने एक बार फिर चक्र को उसी जगह पर घुमा दिया था | पर अब वो नफरत नहीं थी | बस उनके दिल से एक ही आवाज आ रही थी कि जो मेरी दोस्ती के साथ हुआ ,वो इन बच्चों की दोस्ती के साथ ना हो | उनके ख्यालों में अमरदीप जिन्दा था और हमेशा रहेगा |
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
अब तक आपने पढ़ा–– जयंत को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे कैसे पता करें निधि के बारे में? हर दिन ...
अब तक आपने पढ़ा...... जयंत के सामने हर दिन नई– नई सच्चाई सामने आ रही थी। वह निधि से पीछा छुड़ान...
अब तक आपने पढ़ा…… हर दिन घटने वाली नई-नई घटनाऐं अब जयंत को परेशान करने लगी थी...
Really A heart touching story…
Aajaadi ke baad kitne parivaaro ko ye dansh jhelna pada hoga…haar baar ki trah aapne ache topic ko uthaya.
👌👌