मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
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पर वह करे भी तो क्या करे ? कौन उसकी जरूरतों को पूरा करेगा ? उसका पेट कौन पालेगा ? हम -आप सहानुभूति करके कभी -कभी कुछ -कुछ चीज़ें इन बच्चों को दे देते हैं | पर कब तक ये सहानुभूति का खेल चलता रहेगा | सच्चाई तो ये भी है अगर हम इन बच्चों को कुछ देते भी हैं तो अपने घर की काम ना आने वाली चीज़ें और ये सब करके अपने आप को दयावान समझने की बहुत बड़ी गलती करने लगते हैं |
ये तो हुई कबीर का घर -घर जाकर कचरा उठाना | आप ऐसे भी बच्चे को देखे होंगे ,जो स्टेशनों पर ,प्लेटफॉर्मों पे कचरा बीन रहे हैं | यहाँ तक कि झूठे प्लेटों ,गिरे हुए खाने को भी उठाने से ये बच्चे नहीं चूकते | जिन खानों को हम आप फेंक देते हैं ,उनसे ये अपनी पेट की आग बुझाते हैं |
आजाद भारत के मजबूर और गरीब बचपन की यह तस्वीर बहुत ही त्रासदी वाली है ,जिसको रोकने का सदियों से काम चल रहा है ,पर हुआ कुछ नहीं है |
कचरा उठाते अगर इन बच्चों के चेहरे पे देखिये तो आपको कहीं से भी अफ़सोस की भावनाएं नजर नहीं आएँगी ,क्यूंकि इसतरह की जिंदगी जीने के ये मासूम भी आदी हो चुके हैं | मस्त होकर गंदगी उठाते हैं | ऐसे भी इंसान की फितरत होती है अपनी परिस्थितियों में ढलने की |
दीवाली आने वाली थी | पर कबीर के लिए क्या दीवाली क्या दशहरा ? पर जब वह दूसरे बच्चों को नए -नए कपडे और खिलौनों से खेलते देखता तो उसके अंदर का बालपन शायद चीत्कार कर उठता होगा | दादी की बूढी हड्डियों में इतनी जान नहीं बची थी कि वो अपने पोते के बचपन को यूँ छीनने से बचाती | उसके पास जो भी जमा -पूंजी थी ,वो सब बीमारियों और घर की जरूरतों को पूरा करते -करते खत्म हो गयी थी |
उस दिन त्योहारों की झिलमिलाहटों के बीच में कबीर मायूस होकर ना जाने किन ख्यालों में खोया हुआ था | आज वह काम पर भी नहीं गया | पता था उसे कल ताने सुनने को जरूर मिलेंगे | सुन लेगा वह ताना ,पर आज काम पर नहीं जायेगा |
पहली बार उसे अपनी गरीबी का एहसास हो रहा था | दादी से अपने पोते का दुःख नहीं देखा गया और वह चली गयी पड़ोसियों से उधार मांगने |
पर इस दुनिया की रीत यही है कि कमजोरों की कोई मदद नहीं करता | गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है | ख़ास कर के उन बच्चों के लिए ,जिसके सर पे से माँ -बाप का साया उठ चूका हो | उस दिन पूरी रात कबीर यूँ ही मायूस होकर बैठा रहा| शायद त्योहारों की कोलाहल में उसके दिल की सन्नाटों को कोई सुन नहीं पा रहा था या यूँ समझिए कि किसी को उसके दुःख से कोई मतलब नहीं था |
बचपन जीवन की सबसे मधुर अनुभूति है | बड़े होते -होते और जीवन की आप -धापी के बीच में कभी -कभी हमें महसूस होता है कि काश बचपन वापस आ जाए | लेकिन जरा सोचिए ,क्या कबीर जैसे बच्चे अपने बचपन को वापस पाना चाहेंगे ?
हम पार्टी करते हैं ,जश्न मनाते हैं | इन सबमें कूड़ा बहुत इकट्ठा हो जाता है | आपको पता है इन ढेरों के बीच में कुछ बच्चे अपना एक वक़्त का भोजन तलाश रहे होते हैं | क्या ये हमारी तरक्की पाती जिंदगी का अभिशाप नहीं है ? ये बच्चे शायद बचपन में कदम रखते ही जिंदगी का कूड़ा उठाने को मजबूर हो गए थे |
भारत में कूड़ा उठाने वाले बच्चे पर बहुत कम काम हुआ है | शायद इन पर किसी की नज़र जाती ही नहीं है ,क्यूंकि कचरा उठाने के लिए कोई कौशल की जरुरत तो होती नहीं है | | ज्यादातर बच्चे अपनी पारिवारिक कमजोरियों के चलते इधर आते हैं और कूड़ा उठाते -उठाते उनकी जिंदगी भी खुद एक कूड़ा हो जाती है | गंदगी में रहते -रहते वे कई बीमारियों के भी शिकार हो जाते हैं | शोषण जो होता है ,वह अलग ही है | गन्दी आदतें इनके साथ जुड़ जाती हैं | आप ही जरा सोचिए ,जिन कचरों को हमलोग पैदा करते हैं ,उसे ये बच्चे एक -एक करके चुनते हैं | अगर इन कचरों के ढेर से इन्हे कुछ काम की चीज़ें मिल जाती हैं ,तो उसे अपने पास रख लेते हैं | गंदगी में हाथ डालते हुए ना उन्हें घिन आती है और ना ही शर्म | और आएगी भी क्यों ,हम इनका पेट थोड़े ही ना पालते हैं | उल्टे हमारी फेंकी हुई चीज़ों को ये उपयोग में ले आते हैं | हमारे ग्लोबल होते समाज की कितनी बड़ी कड़वी सच्चाई है ,जरा कभी अपने जेहन में डाल के तो देखिये |
बालश्रम कानूनों में भी इन बच्चों का कोई चेहरा नहीं नज़र आता | जब हम अपने आस -पास बच्चों को कचरे में अपना रोजगार या यों कहिये कि एक वक़्त का भोजन ढूंढते देखते हैं तो ऐसा लगता है मानों विकास की चमक हमारे समाज के एक हिस्से को छू भी नहीं सकी है |
दीवाली के अगले दिन कबीर रुआंसा होकर अपनी थैली उठाता है और ताने सुनने के लिए उसकी गाड़ी फिर से पटरी पर चलने के लिए तैयार उठती है,क्यूंकि उसने एक दिन की छुट्टी कर ली थी।लोग पूछेंगे ही क्यूं नहीं आए?अगर वह सही जवाब देता भी है तो कौन करेगा गौर उसकी बातों पर।बहुमंजिला इमारतों के हर फ्लैटों की घंटी बजाते – बजाते उसकी जिंदगी अपने रस्ते पर बढ़ रही थी। उसने इसे ही अपनी नियति मान लिया था।
बच्चों से काम करवाना सबसे बड़ा अपराध है और सरकार ने इसके लिए कई कानून भी बनाए हैं ।पर जब तक हम – आप सचेत नहीं होंगे समाज के हर वर्ग में विकास की रोशनी नहीं जा सकती ।खासकर उन मासूमों से काम करवाना तो सबसे बड़ा अपराध है।इनकी गरीबी और तंगहाली इनके बचपन को छीन लेती है ।साथ ही साथ शोषण करने वाले भी कम नहीं है।
पर यहां दिक्कत की बात यह है कि हमारे कानून की नजर इन कचरों में अपनी रोटी ढूंढ़ते बचपन पे नहीं गई है और ना ही कानून का लाभ इनको मिला है ।क्या होली ,क्या दशहरा सब दिन इनके लिए एक जैसे होते हैं ।कभी किसी के घर जश्न होता है ज्यादा कचरा देखकर ये आस इनकी आंखों में लगी होती है कि शायद खाने को कुछ मिल जाए ।एक फ्लैट से दूसरे फ्लैट ,फिर तीसरे फ्लैट की घंटी बजती है और यही सिलसिला चलता रहता है और इनकी जिंदगी यूंही कटती रहती है ।
कुछ एनजीओ इस दिशा में कुछ अच्छे काम भी कर रहे हैं ।उनकी कोशिश है कि इन बच्चों की साफ – सफाई और स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए ।इनकी कोशिशों ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि हम उस बचपन के बारे में सोचें , जो सामान्य बचपन से बिल्कुल अलग है ।यह बचपन हर पल हमें हमारे समाज का एक ऐसा चेहरा दिखाता है ,जो निर्दयी है ।ये बचपन भी शिक्षा का अधिकार मांगता है ।अपने लिए जरूरत की वो सारी आधारभूत सुविधाएं मांगता है ,जो हर बच्चे का अधिकार होना चहिए ।आखिर कब तक ये कचरों के ढेर में अपना बचपन खोते जाएंगे।इनकी जिंदगी को कूड़ा बनने से हमें रोकना ही होगा।
जब तक देश का बचपन श्रम करने और अपने परिवार को पालने में लगा रहेगा ,तब तक बाल – श्रम से मुक्ति नहीं मिल सकती ।अब भारत बालश्रमिकों के हित के लिए लड़ने में विश्वस्तरीय पुरस्कार का हकदार बना है ,फिर भी ये कितने श्रम की बात है कि आज भी बच्चे कूड़े में जीने का सहारा ढूंढ़ रहे हैं ।ये आभासी सफलता किसके लिए है ? हमें अपने देश के भविष्य को कूड़ेदान में जाने से रोकना ही होगा ,तभी कबीर और उस जैसे हजारों बच्चों की आंखों में अपनी खुशियों को पाने की चमक आएगी ।कोई भी दीवाली इनके लिए काली रात नहीं होगी ।वे भी आम बच्चों कि तरह हसेंगे,खेलेंगे और अपनी उम्मीदों को आगे बढ़ते हुए देख पाएंगे ।
दोस्तों,ये महज केवल कहानी नहीं है,अपितु आज के ग्लोबल होते समाज का आइना है,जिसमें हम अपने देश के भविष्य की सच्चाई देख सकते हैं। कबीर तो बस एक माध्यम है अपनी बात कहने का ,जिसे मैं सबके सामने लाना चाहती हूँ |
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Wowww…What a thought…You are an amazing writer…Keep writing like this…Your writing skill is amazingly superb….������������
This is the best one written by you.. Amazing thought process.. I am speechless.. Continue to inspire us.. 👌
A very broad and deep insight of the social stigma prevailing in our country.
मार्मिक दृश्यों से भरपूर कचरा बिनता बचपन ।सभ्य समाज पर एक जोरदार तमाचा।काबिले तारीफ तुम्हारी सोच
You have chosen a very good topic….Good writing skill….Along with society, we also need to think on this…..👏👏👏👏👏
Maan ko jhakjhor diya…hamare country ke liye dhabba hai…