मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
...
हर दिन पत्नी के तानों को सुनने से अच्छा था कि चलों पार्क में थोड़ा दौड़ लगा ही लिया जाए। कम – से – कम गोल होते पेट का आकार तो कम हो ही जायेगा।ये जीभ भी ना स्वाद की गुलाम ही होती है।Healthy food इन्हें अच्छा ही नहीं लगता है। जूते पहने और शुरू हो गई मैराथन।वैसे अगर इन पत्नियों की कमी को उनके सामने दिखाया जाए तो सवाल ही नहीं उठता है कि वे मान जाएं।चीन और पाकिस्तान के रूप अख्तियार कर लेती हैं ,बिल्कुल अपने ही बात पर अडिग।खैर छोड़ो,चुटकी लेते हैं।पार्क में थोड़ा आगे बढ़ा तो देखा कि वहां बेंच पर सुबह – सुबह दो औरतें खुसुर – फुसुर कर रही थीं।उनकी बातों को जानने की जिज्ञासा उथल – पुथल होने लगी नदियों के ज्वार – भाटों की तरह।धम्म से पास के ही बेंच पर बैठ गया।जो मजा इसमें है, वो शरीर को पसीने में नहाने में कहां,(◔‿◔)😝।
संसार के सबसे बड़े झूठ को बिल्कुल सही साबित कर रही थीं ये औरतें कि ” दो औरतें एक साथ बैठकर भी चुप बैठी थीं।”आयी थी टहलने को पर जो मजा गपशप में है,वो टहलने में कहां?आंखों को घुमा – घुमा कर देश के भविष्य की बातें तो हो नहीं रही होंगी।इनकी बातों में तेल – मसाला तो तब लगता है ,जब कोई खबर लाता है कि आखिर पड़ोस के घर में चल क्या रहा है?किसके घर नया सामान आया,या किसकी साड़ी नई है।अरे!आज मेहताइन के गले में नया जेवर देखा।जरूर artificial होगा,ये भी कहने से बाज नहीं आ रही थीं।भले ही अपने घर में हजार कमी हो,पर दूसरों की कमी निकालना बहुत जरूरी है।आखिर क्यूं ये औरतें अपने बातचीत को रोकें।हर साल बारिश के मौसम में नदियां भी अपने पानी के बहाव को कहां रोक पाती हैं।दिल की भड़ास जैसे ये निकालती हैं, नदियां भी तो अपने पानी को उड़ेल देती हैं शहरों और गांवों में। हर साल की वही चिक – चिक।ये कस्बा डूबा ,शहरों का ये भाग जलमग्न हो गया। भई! क्या करें अपनी आदत ही है ऐसी।मानसून तो 3- 4महीने रहता ही है।डूबने दो, जो डूबता है।ज्यादा से ज्यादा क्या होगा,नेताजी हवाई दौरा करेंगे।खाने पीने की वस्तुएं ऊपर से गिराई जाएंगी।देश का पैसा विकास में ना सही,जनता के लिए तो उपयोग हो ही रहा है।इस लपेटे में सरकारी खाजानों से अपनी भी जेब भर जाए,तो कोई गनीमत नहीं। धंधा है भईया ,चलता रहता है।
अब औरतों की बातचीत में यह मानसून कहां से आ गया। थोड़ा कान लगाया तो पता चला कि यह दोनों मिश्रा जी की पत्नी की बातें कर रही थी। इनकी सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मिश्राइन आजकल बड़ा ही सज- धज कर रह रही थी। हर रोज नई नई साड़ियां निकलती थी ।आभूषणों की भी कोई कमी नहीं थी। अब इतनी सारी सौगातें मिली तो अकड़ भी आ गई। बस यही अकड़ इन बेचारियों की आंखों में खटक रही थी। खाने में वेज, नॉनवेज सब पच जाता है। बस दूसरे अगर खुश हैं तो यही बात नहीं पच पाती है। हाजमा बिगड़ जाता है। अब कायम चूर्ण लो या गैस वटी, कोई फर्क नहीं पड़ता।
तभी सामने से एक और औरत इनके बातचीत में शामिल हो गई जैसे एक नेता ने अपनी पार्टी बदली तो भेड़चाल में और नेता भी पहली पार्टी छोड़कर इसमें शामिल हो गए। आने वाली औरत ने बोला कि अरी बहन! नई खबर लाई हूं। ये जो मिश्राइन इतना बन ठन रही है, पता है इनका बेटा विदेश से पढ़ कर आया है और वहीं पर नौकरी भी करता है। छुट्टियों में अपनी मां के लिए ढेर सारा सामान लेता आया है। अब बात समझ में आई ।ऐसे भी मिश्राइन के पांव जमीन पर नहीं रहते थे क्योंकि उनका बेटा विदेश में जो पढ़ता था। अब तो वहीं नौकरी भी करने लगा है। तभी तो खुशी से दोहरी हुई जा रही हैं।ये लो, जेम्स बॉन्ड का काम तो इन्होंने ही कर दिया।अब बेटे की कमाई पर मां नहीं इतराएगी तो और कौन इतराएगा। हां!बस ये होना चाहिए कि अपने सामने दूसरे को कम ना समझें।अब मुहल्ले वाले जल रहे हैं तो जले,अपना क्या?¯\(◉‿◉)/¯
अपने लोगों की बातें हैं ही ऐसी।विदेश का तमगा अगर लग गया तो समझो वह चीज बहुत ही अच्छी है। दूर का ढोल सुहावन वाली बात यहां खूब चरितार्थ होती है। अब मिश्राइन जी को इतना अकड़ने की क्या जरूरत है। क्या यहां पे पढ़ने वाले, नौकरी करने वाले निम्न दर्ज के होते हैं । ऐसे भी अपने यहां बाहर से आने वाले लोगों को इतना तवज्जों दिया जाता है कि वह भारहीनता का अनुभव करने लगता है, उसी तरह से जैसे हम लोग आकाश में भारहीन हो जाते हैं।
अगर हमारे बच्चे विदेशी भाषा सीखते हैं तो दिल हवा की तरह फूल जाता है। वहीं हिंदी जानने वाले को उतना तवज्जों नहीं दिया जाता है। मिश्राइन जी भी तो इसी से फूली हुई थी। यह क्या बात हुई? शुरुआत कहां से हुई और बीच रास्ते में ही भटकाव हो गया। मेरा मतलब है, जरा औरतों की गपशप का मजा लेते हैं। अपने घर में चाहे जितनी समस्याएं हो, उस पर ध्यान ना दे कर अपने पड़ोसियों के जीवन में झांकना कोई इनसे सीखे। आजादी के बाद से लेकर आज तक पाकिस्तान भारत के साथ तांका- झांकी ही तो कर रहा है। भले ही विकास की दौड़ रुक जाए पर भारत के साथ तनकर ही रहेगा।
अब देखिए इन औरतों को एक और मिर्ची लग गई।अपने जो गुप्ता जी हैं,उनकी जिंदगी सही से चल रही थी। हीरे जैसे बेटे और बहू थे,जो उन्हें सर आंखों पर रखते थे।इसी बात का तो दुख था उन्हें।आपस में काना फूसी करके यह बताने की कोशिश कर रही थी कि जरूर गुप्ता जी ही अपने बेटे- बहू के बारे में डींग हांक रहे होंगे,वरना आज के जमाने में मां – बाप को वृद्धाश्रम पहुंचा दिया जाता है,फिर इनकी नाक कैसे ऊंची रह गई।अब देखो,इनको तो किसी चीज में चैन नहीं है।करो तो दिक्कत,ना करो तो दिक्कत।
बातों में मशगूल औरतों को ध्यान ही नहीं रहा कि समय कितना बीत गया।सूरज दादा भी अपने किरणों को मुखरित करने में लगे हुए थे।जब घड़ी पर नजर गई,तो इनमें से एक औरत तो घबरा ही गई।आज उसके बच्चे की परीक्षा थी और वह यहां पर दूसरों की जिंदगी में तांका – झांकी कर रही थी।अच्छा होता ,अगर इस काम को हमारी राजनीतिक पार्टियां अंजाम देती।अपनी छिछलेदार टिपन्नियों को नजरंदाज करके दूसरे खेमे में झांकने और उंगली उठाने की इनकी पुरानी आदत जो है।
वैसे इन औरतों की भी कोई गलती नहीं है।खुद पर उंगली ना उठाकर दूसरे को गलत ठहराना मानव के स्वभाव में ही है।ये तो बस इन परम्पराओं का निर्वाह ही कर रही हैं।सीधा सा फंडा है —- अपने घर के तरफ ना देखकर पड़ोसियों के बारे में जानना ज्यादा जरूरी है।
थोड़ी ही देर में मजलिस हट चुकी थी।सबने अपने अपने घरों की राह ली।धूप निकल चुकी थी।पार्क में सन्नाटा छा गया।एकदम नीरव शांति,जो महानगरों में एकाकी रह रहे लोगों के जीवन में पसरी होती है।शांति का आलम तो यह है कि एक पड़ोसी के जीवन में क्या चल रहा है,बगल की दीवारों तक को पता नहीं होता है।ये सन्नाटे ही इनके जीवन के अभिन्न अंग होते हैं। कम से कम छोटे- छोटे जगहों में पड़ोसियों की खबर तो रखी ही जाती है।भले ही उनकी खुशी को देखकर हमें दुख होता हो,पर सामने मिलने पर एक मुस्कान तो अधरों पर फ़ैल ही जाती है।दिखावे के लिए ही सही पर नजर तो आती ही है।
एक लम्बी सांस भरते हुए वहां से उठने की कोशिश में लग गया,ये सोचते हुए कि कहीं इनकी तांका- झांकी में मेरा ऑफिस ना छूट जाए।पत्नी भी सोच रही होगी कि शायद पेट की गोलाई आज ही कम ना हो जाए।फिर हरेक दिन सुनाने को क्या मिलेगा।रास्ते में मैं भी थोड़ा झांक लूंगा कि किसके घर में क्या चल रहा है,ताकि कल मैं भी इनकी बातचीत का हिस्सा हो जाऊं ।आखिर मनोरंजन भी होनी चाहिए जीवन में😍😍(. ❛ ᴗ ❛.)।
निम्मी! अरी! ओ निम्मी, कहां रह गई है रे, आवाज देते हुए मिताली ने बिस्तर से उठने की कोशिश की, पर उसकी बीमार...
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे ...
अब तक आपने पढ़ा–– जयंत को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे कैसे पता करें निधि के बारे में? हर दिन ...
Hahaha…Bahot Khub…Do auraten chup chaap baithi thin wo bhi ek saath..hahaha
Hahahahaha it very interesting… 💐💐