आज के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो पहली वाली स्थिति रही ही नहीं | आज स्कूल स्कूल नहीं रहा ,एक अनदेखा ,अनकहा व्यवसाय बन चूका है | इस हद तक स्कूलों का आधुनिकीकरण हुआ है ,जो हमारी सोच के दायरे से भी बढ़कर है |
आज से 10 साल पहले के स्कूलों का आकलन कीजिए तो आपको समझ में आ जाएगा कि परिस्थितियाँ कितनी बदल चुकी हैं | ऐसा नहीं है कि 10 साल पहले के स्कूलों में फ़ीस नहीं ली जाती थी या private स्कूलों में extra charges नहीं लिए जाते थे | पर आज की तुलना में बहुत कम था| अब आप बोलेंगे कि महँगाई बढ़ रही है ,तो उसका असर तो इन पर पड़ेगा ही | ये बात भी सही है | पर सबसे बड़ी बात यह है कि changes आने में कोई बुराई नहीं है ,बस changes की हवा समाज के हर तबके के लोगों को लगनी चाहिए | और यही चीज नहीं हो पाता है |
metrocity के स्कूलों की तो बात ही अलग है | इतने सारे ताम -झाम हैं कि माता -पिता की कमर ही टूट जाती है | पर भेड़ -चाल और अपना स्टेटस बनाये रखने के लिए वे हर संभव कोशिश करते रहते हैं |
जहाँ तक मुझे याद है ,पहले स्कूलों में एक बार admission fee ले ली जाती थी | उसके बाद सीधे आप बोर्ड का exam देकर निकलिए | पर आज बात वैसी रही नहीं | अब तो हर साल एक मोटी रकम admission fee के रूप में वसूली जाती है | इसके अलावा bus charges ,extra calculative के पैसे अलग ही जाते हैं | Private school तो ऐसा -ऐसा condition लगाते हैं कि पूछो ही मत | मसलन ,school dress ,कॉपी -किताब, school से related चीजें –इन सबका ठेका वे अपने रिश्तेदारों को दे देते हैं ,जिसका लाभ दोनों को बराबर मिलता रहता है |
विडम्बना यह है कि शिक्षा आज एक ऐसा व्यवसाय बन चुकी है ,जिसने अच्छी शिक्षा को पैसे वाले की बपौती बना दिया है | अब ग़रीब माँ -बाप के बच्चे केवल दूर से ही टक -टकी लगाकर इन स्कूलों को देखते रहते हैं | उनकी सोच बस सोच ही बन जाती है कि काश उनके बच्चे भी यहाँ पढ़ते |
ये नहीं कि केवल metrocity का ही ये हाल है | ये व्यवसायीकरण गावों तक भी पहुंची है | जिस स्कूल के आगे private लग गया ,वह मोटी fees की चलती -फिरती दूकान बन गयी | आप आंकड़ें उठाकर देखिये तो पाएंगे कि सरकारी स्कूलों में ज्यादातर ग़रीब वर्ग के बच्चे ही जाते हैं ,क्यूँकिं मोटी fees भरना इनके बस की बात नहीं होती है |
कभी आपने सोचा है कि इन सबमें कहीं न कहीं आप और हम भी जिम्मेवार हैं | हमारे मन में ये बात बैठी हुई है कि जितना महँगा स्कूल ,उतना अच्छा स्कूल | हम अपने बच्चों को उसी महंगे रेस का हिस्सा बना देते हैं |ऊँची -ऊँची building ,fully A C ,तमाम सुविधाएं ये सब आती कहाँ से हैं ? व्यवसायीकरण की तो बात ही मत पूछिए | अब तो बच्चों को copy ,pencil आदि चीज़ें भी अंदर ही मिल जाती हैं | बाहर से कुछ लेना भी होता है तो इनके अपने ही shop खोले रहते हैं ,जहाँ school dress ,bag ,स्कूल में लगने वाली चीज़ें मिल जाती हैं | इसे हम क्या कहेंगे ? business ही तो है |
जहाँ स्कूलों में admission की लिस्ट निकलती है , माँ -बाप line में घंटों खड़े रहकर धक्के खाते हुए नजर आते हैं| उनकी बस यही कोशिश रहती है कि उनका बच्चा अच्छे -से -अच्छे स्कूल में दाखिल हो जाए ,भले ही उन्हें कितना पैसा भरना पड़े | लेकिन इसके गलत पहलू में सबसे बड़ी बात यह हो जाती है कि ये स्कूल अपनी सीट भी निर्धारित कर देते हैं | सीट अगर full हो गया तो admission नहीं हो सकता | अगर admission हो भी जाता है तो donation के नाम पर ही अचम्भा होने लगता है | Admission के समय जो पैसे लगते हैं ,उसमे पूरे साल में जो भी activity स्कूल में होगी ,उसके भी charges जुड़े होते हैं | पर ये बात parents को धोखा देने वाली होती है | इसके अलावा भी charges लगते रहते हैं | पर इसके खिलाफ आवाज़ कौन उठाये ?न सरकार कुछ करती है और न ही माता -पिता को कोई objection होता है | कई parents तो ऐसे होते हैं जिन्हें ये सब कुछ गलत लगता ही नहीं है |
सबसे आश्चर्य वाली बात तो तब हो जाती है ,जब admission के समय बच्चे के साथ -साथ माँ -बाप का भी interview होता है | मेरा कहना है कि जिनके माँ -बाप पढ़े -लिखे नहीं होते हैं ,क्या उनके बच्चे को अच्छे स्कूलों में पढ़ने का हक़ नहीं है ? क्या English जानने वाले माँ -बाप ही अपने बच्चों को english school में पढ़ा सकते हैं ?
ऐसे भी English और Hindi के बीच में इतना distance है ,जिसे चाह कर भी काम नहीं कर सकते | English जानने वाले मॉडर्न और हिंदी जानने वाले गाँव के माने जाते हैं |
खैर ,बात स्कूलों की हो रही थी न कि इन भाषाओं की | हर माँ -बाप का सपना होता है कि अपनी हैसियत से बढ़कर अपने बच्चों को पढ़ाएं | कुछ माँ -बाप तो अपना status symbol ही बनाते हैं कि शहर के सबसे best school में मेरा बच्चा पढता है ,चाहे उनका बच्चा पढ़ने में ध्यान दे या नहीं |
इसमें सरकार भी कम जिम्मेवार नहीं है | अगर सरकारी स्कूल को वो सभी सुविधाएं मिलें ,जो Private school में दी जाती है तो बात ही कुछ और होती | इस बात को मज़ाक के रूप में लिया जाता है कि अगर पढ़ाई पे ध्यान नहीं दोगे ,तो सरकारी स्कूल में डाल दिया जाएगा | ये सारी images किसने बनायीं ? हमारी व्यवस्थाओं ने | सरकारी स्कूल में न ढंग की पढ़ाई होती है और न ही बच्चों को आगे बढ़ा ने के लिए सुविधाएं दी जाती हैं |
जबकि सच्चाई यह है कि सरकारी स्कूल के teacher बहुत सारे exam cross करके इन ओहदों तक पहुँचते हैं | जाहिर सी बात है कि ये qualified होंगें ही | लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर इन्होने अपना image और उत्तरदायित्व दोनों ख़राब कर लिया है | अपनी जिम्मेवारियों का अगर जरा -सा भी भान इनको होता तो शायद सरकारी और प्राइवेट के बीच के अंतर को कम किया जा सकता था | इसके इतर निजी स्कूलों में ये सब बातें नहीं होती | ऐसा नहीं है कि Private स्कूल के Teacher Qualified नहीं होते हैं | इसके साथ -साथ इन स्कूलों का अपने Teacher पे अँकुश भी रहता है ,जिसका लाभ इन बच्चों को मिलता रहता है | तब माँ -बाप क्या करेंगे ? अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें Private स्कूलों की तरफ रुख करना ही पड़ता है |
ऐसे भी शिक्षा का आधुनिकीकरण हो गया है | जो पढ़ाई हम पढ़े हैं ,वो आज की शिक्षा से मेल नहीं खाती है | पढ़ने और पढ़ाने के तरीके बदल गए हैं | और ये सारी चीज़ें निजी स्कूलों में मिल जाती है | तो क्यों न बच्चे उधर का ही रुख करें | Smart classes ,स्कूल की शानदार building ये सब मृग -मरीचिका की तरह ही काम करते हैं ,भले ही उस स्कूल की faculty अच्छी हो या न हो |
जब देश के हर माता -पिता को लगने लगेगा कि क्या सही है और क्या गलत ,तब तक इन स्कूलों का व्यवसायीकरण नहीं रुक सकता |
वैसे मैं इनके आधुनिकीकरण के खिलाफ नहीं हूँ | ये हमारे बच्चों को अच्छा भविष्य देते हैं | हर क्षेत्र में आगे बढ़ाते हैं | बस दुःख तो तब होता है जब पैसे के कारण किसी बच्चे का इन स्कूलों में admission नहीं हो पाता है | वे बस टकटकी लगाए इन स्कूलों के building को देखते रहते हैं | इन बच्चों के माता -पिता इतनी मोटी रकम रकम कहाँ से लाएंगे? आखिर इनके अंदर भी तो ये उम्मीद रहती ही होगी कि इनका बच्चा भी ऐसे स्कूलों में पढ़ें | साथ -ही साथ जिन बच्चों के माता -पिता इन स्कूलों के interview में पास नहीं हो पाते हैं ,उनका क्या हो ? क्या अनपढ़ माता -पिता के बच्चों को भी इन स्कूलों में पढ़ने का कोई अधिकार नहीं है ? क्या English जानने वाले माता -पिता ही अपने बच्चों का admission यहाँ करा सकते हैं ? बात तो सोचने वाली है | ऐसे कितने सारे प्रश्न हैं ,जो हमें ढूंढने हैं | सरकार को भी इन पर ग़ौर करना ही होगा |
देखते हैं कि बराबरी और बदलाव के दिए की लौ कब और किस तरह प्रकाशमय होती है ,जिसका इंतज़ार शायद देश के हर नागरिक को होगा |
Well written…..
You are right, today's education has become a business…..Well said….
Your style of writing is very good👌👌👌👌👌👍👍👍👍
Bilkul shi baat hai…ye problem hum sabhi logo ko face krna par rha hai..
Selection of topic, words are superb… Great going.. All d best for next blog..
Totally agreed….and these all leads to an another complication of collapsing of our education system day by day.
Ma'am really your words are too much inspirable for our society..plzz make an another blog on the falling of education system…which just become a rat race for marks…