🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
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जैसे ही मोबाइल पर बीप- बीप 📱📲 की आवाज हुई, आरव के हाथ तुरंत ही स्क्रीन की तरफ बढ़ गए। नए मैसेजेस को देखकर उसकी आंखें ऐसे चमकी, मानो उसे इस पल का इंतजार बेसब्री से था।
आरव आगे की पढ़ाई के लिए शहर आया था। मां- बाप इतने पैसे वाले भी नहीं थे, जो आरव की हर इच्छा को पूरी करते।दिन – रात एक करके तो उसके पिता ने उसे आधारभूत शिक्षा दिलवाई।उसके आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने एड़ियां घिस- घिस कर काम किया तो कॉलेज में एडमिशन के लिए पैसे इकट्ठे हो सके। इसके बाद के खर्चे के लिए उसने अपने पिताजी से वादा किया कि वह स्कॉलरशिप से अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करेगा। सुबह 10:00 बजे की गाड़ी से वह शहर के लिए रवाना हो गया। बस से निकलते धुओं की तरह उसके विचारों ने भी गति पकड़ ली। स्वभाव से अंतर्मुखी आरव कई सारे सपनों के साथ जा रहा था, जिसे पूरा करने के लिए उसे बहुत मेहनत करनी थी।
कॉलेज का पहला दिन था, पर अपने संकोची स्वभाव के कारण अपनी कक्षा के छात्रों के साथ घुलने – मिलने में उसे बहुत सोचना पड़ रहा था,जिसके कारण सब के साथ सामंजस्य नहीं बना पाया और धीरे – धीरे अपने आप को बिल्कुल तन्हा समझने लगा। लेकिन इसमें गलती भी तो उसी की थी। गांव से शहर आया था जिंदगी बनाने पर अपने स्वभाव के कारण वह एकदम अलग महसूस करने लगा।पहले तो कुछ दिन उसने अपना मन पढ़ाई में लगाया।पर कक्षा के सभी छात्र आपस में बात करते थे और वह अकेला होता था अपने संकोच के कारण। इस अकेलेपन को दूर करने के लिए उसने वैसी जगह दोस्त तलाशने की सोची,जहां आमने- सामने बात ना होकर स्क्रीन के पीछे दोस्ती चले। इसके लिए उसने सोशल मीडिया का सहारा लिया, जो एक छलावे की तरह उसकी जिंदगी में घुसा और धीरे – धीरे उसे अपने वश में कर लिया।ऐसी दोस्ती का आलम यह होता है कि लोग खासकर के युवा इस स्क्रीन की दुनिया को ही अपना सब कुछ मान लेते हैं,पर जीवन के धरातल पर जब आपको किसी की जरूरत होती है तो यह दुनिया अचानक से गायब हो जाती है। मुसीबत में आपके साथ वही लोग खड़े होते हैं ,जो आपकी वास्तविक दुनिया के साथी होते हैं।बस इसी चीज को आरव समझ नहीं पाया या यों बोलिए कि समझना ही नहीं चाहा।
आज की युवा पीढ़ी वो चाहे शहर की हो या गांव की, डिजिटल दुनिया के घेरे में ऐसी फंसी है कि इसमें उलझ कर रह गई है। अब हमारी कहानी के नायक को ही देख लीजिए कि कैसे वह धीरे-धीरे इस आदत का शिकार होते गया। वह फेसबुक पर बहुत सारे दोस्तों को खोजने लगा। ऐसे भी यहां इतने सारे फ्रेंड रिक्वेस्ट आते रहते हैं, किसी ना किसी की प्रोफाइल की तरफ उसका झुकाव हुआ ही होगा। ऐसे ही एक मयंक नाम के लड़के से उसकी दोस्ती हो गई। उसका प्रोफाइल आरव को बहुत पसंद आया था।आता भी क्यों ना, सिक्स पैक जैसा गठीला शरीर,चेहरे पे हमेशा ताजगी,अच्छे – अच्छे लोकेशन और हाईप्रोफाइल काम ,ये सब चीजें किसी भी युवा को आकर्षित करने के लिए काफी था।आरव तो बहुत खुश था नए डिजिटल दोस्त को पाकर। दोनों के बीच मैसेजेस का आदान-प्रदान होना शुरू हुआ।
फेसबुक पर किस चेहरे के पीछे कौन सा चेहरा है यह कैसे पता लगा सकता है।आरव तो दिन- भर फोन पर ही लगा रहता। कक्षा में भी उसका ध्यान ना के बराबर था। कहां तो वह स्कॉलरशिप की उम्मीद लेकर आया था और अब अपना ध्यान कहां लगा रहा था। अपनी कक्षा के छात्रों के साथ भी घुलने – मिलने की कोशिश नहीं की थी। एक – दो छात्रों ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया भी पर आरव अपनी स्क्रीन की दुनिया में ही बहुत खुश था। कम- से- कम यह दुनिया उसके मन के लायक तो थी।
आप सोच रहे होंगे कि आरव के पास इतना पैसा आया कहां से, जो इतना महंगा मोबाइल ले सके। जब वह शहर आ रहा था तो उसके पिताजी ने कुछ पैसे भी दे दिए थे, बस ईएमआई पर ही उसने फोन ले लिया। सोचा था साइड में ट्यूशन पढ़ाकर 4-5महीने में फोन का installment पूरा कर लेगा, पर उसके रास्ते ही बदल गए।
हर समय वह मयंक के साथ या ऐसे- ऐसे कितने सारे लोगों के साथ व्यस्त रहता। आदमी भी धोखा उसी को देता है जो खाने लायक होता है। शहरी जीवन को नजदीक से आरव ने पहली बार देखा था। इस चकाचौंध भरी दुनिया उसे बड़ी रास आ रही थी। अब कौन दिन- रात मेहनत करके स्कॉलरशिप लेता, जबकि मयंक जैसे डिजिटल दोस्त उसे नए – नए सब्जबाग दिखाने शुरू कर दिए थे।अब तो आरव अपने पर्सनल बातों को भी शेयर करने लगा। अपनी पारिवारिक हालत, अपने सपनों से वाकिफ कराने लगा उसको।मयंक ने आरव के दिमाग में यह बात बैठा दी कि पढ़ने- लिखने से कुछ नहीं होता। अगर ज्यादा पैसा कमाना है तो मेरे रास्ते पर चलो। मैं तुम्हें बताऊंगा कि क्या और कैसे करना है।आरव को और क्या चाहिए था।ये दोस्ती उसे बहुत खुशी दे रही थी।शायद उसे पता नहीं था कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता।इस आभासी दुनिया का कोई आधार ही नहीं है।यहां रहता है कुछ ,दिखता है कुछ।
पढ़ाई से विमुख होकर आरव दिन – भर मैसेज में बिजी रहता। पहले तो आकर्षित करने के लिए मयंक ने अकाउंट में कुछ- कुछ पैसे ट्रांसफर किए, क्योंकि उसकी माली- हालत से वह वाकिफ हो चुका था, तभी तो कोई- ना – कोई उपहार भेज देता। आरव की तो खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। जो चीज जिंदगी में उसे अब तक नहीं मिल पाई थी,ये स्क्रीन की दुनिया उसे सरलता से दे रही थी। फेसबुक की आभासी दुनिया मिले बगैर एक-दूसरे से जुड़ी रहती है। एक दूसरे के सपने, सुख-दुख बांटती भी है और दूसरे ही पल जब ऐसे रिश्ते बोझिल होने लगते हैं तो उन्हें ब्लॉक कर आगे भी बढ़ जाती है ।आरव और मयंक भी तो आपस में नहीं मिले थे, पर आरव बिना सोचे- समझे मयंक की जाल में फंसता जा रहा था।
कुछ दिनों से मयंक के साथ चैटिंग नहीं हो पा रही थी, क्योंकि वह इधर कुछ दिनों से offline रह रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि कैसे मयंक से contact करें। बिस्तर पर उनिंदी अवस्था में लेट कर वह यही सब सोच रहा था कि तभी फोन की लाइट जली। मतलब कोई मैसेज आया है। तुरंत हाथ स्क्रीन की तरफ बढ़ गए। देखा तो मयंक का ही था। देखते ही उसकी आंखें चमक उठी। Sorry के 2-4 मैसेज थे बात ना करने के। आरव तो खुशी से फूला ना समाया।चलो, कोई तो है जो उसे इतना तवज्जो दे रहा था। उस दिन बात आई- गई हो गई। इधर कुछ दिनों से मयंक उससे मिलने का दबाव बना रहा था। यह कहकर कि उसकी नौकरी के सिलसिले में बात करना चाह रहा है। नौकरी मिलते ही उसकी सारी परेशानियों का हल हो जाएगा।यही सब सोचकर वह मिलने के लिए तैयार हो गया।असल में दोनों के शहर भी एक थे।कहीं बाहर जाने कि जरूरत भी नहीं थी।
एक नियत स्थान तय हुआ शहर के outer area में।थोड़ा मन शंकित तो हुआ,पर नौकरी पाने की लालसा इससे कहीं अधिक बड़ी थी।दिए हुए address पे जाकर आरव ने कॉलबेल बजाई।एक अधेड़ उम्र के आदमी ने दरवाजा खोला,जब उसने उसका नाम लेकर पुकारा,तो उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ।ऐसा लग रहा था,मानों उसी का इंतजार कर रहा था।कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था,पर सफलता पाने के शॉर्टकट ने आरव को अंधा कर दिया था। सोफे पर धम्म से बैठने के बाद उसके सामने ठंडा पेय पेश किया गया, जिसे पीते ही उसे दिन में तारे नजर आने लगे, सिर चकरा गया था उसका। धीरे-धीरे आंखें मूंदने लगी। अब वह अपने होशो- हवास में नहीं था।
जब उसकी आंखें खुली तो अपने आप को सड़क पर लेटा हुआ पाया। पेट में एक तरफ उसे असहनीय पीड़ा हो रही थी। एक अनजान शहर में जहां उसने वास्तविक दोस्ती की जगह डिजिटल दोस्ती को महत्व दिया था, ऐसे समय में मदद करने वाला कोई नहीं था।वो तो उसकी किस्मत अच्छी थी जो उसे सामने से अपनी ही कक्षा के एक छात्र को आते देखा। जैसे ही उस लड़के की नजर आरव पर पड़ी, तुरंत दौड़कर आया और उसे पास के किसी हॉस्पिटल में ले गया।आरव तो बहुत लज्जित हुआ।उसे भरोसा ही नहीं था कि कोई उसकी मदद करने वाला भी हो सकता है। डॉक्टर ने जो बात उसे बताई, उसे सुनकर पैरों तले जमीन ही खिसक गई। उसके शरीर से एक किडनी गायब थी। अब उसकी “काटो तो खून नहीं”वाली हालत हो गई। सिर पकड़कर वहीं बैठ गया। क्या सोचकर गांव से शहर आया था। अब अपने पिताजी को क्या जवाब देगा। उसने पुलिस complain भी किया। वहां जाकर तो उसके सामने डिजिटल दुनिया की सारी सच्चाई सामने आ गई। यह जो फेसबुक पर मयंक का प्रोफाइल था वह कोई युवा नहीं बल्कि 40- 45 साल का व्यक्ति था,जो आकर्षक अकाउंट बनाकर आरव जैसे लोगों को,जो सफलता शॉर्टकट में चाहते थे और ऐसे छलावे पे विश्वाश करते थे,फांसता था।और फिर धीरे-धीरे पर्सनल लाइफ में घुसकर उन्हें नौकरी का झांसा देकर बुलाता था ।उसके बाद शरीर के अंगों की चोरी करता था।ऐसे – ऐसे कितने सारे cases उसके नाम थे।
आरव को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह करे तो क्या करें। सोशल मीडिया पर सोशल ना होकर अपनी दुनिया में social होता तो ऐसी नौबत ही नहीं आती। सिवाय पछताने के और कोई चारा नहीं था उसके पास। स्क्रीन के पीछे का सच आईने की तरह साफ हो चुका था।शायद इतनी बार ठोकर लगने के बाद अब स्क्रीन पे अपना भविष्य तलाशना बंद कर दें। वास्तविक और आभासी दुनिया के बीच का फर्क शायद अब उसे समझ में आ गया था ,पर कुछ खोने के बाद।😒😒
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Wow…what an inspirational story….Everyone needs to aware what you are trying to say….Amazing..👍👍👍
Such a sarcastic topic about today’s generation which has taken the form of an epidemic.I always appreciating your writing skills….. wonderful Di 👌👌🤘🤘🙏
Very very nice story…social networking site ka side effect hai..👌👌👌
Achhi kahani