🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
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सुशांत सिंह की मौत के बाद देश में एक नई बहस छिड़ गई है।वैसे इस बहस का जो केंद्रबिंदु है,वो नया नहीं है।जी हां! मैं नेपोटिज्म की बात कर रही हूं,जो हमारे समाज में घुन की तरह घुसा हुआ है,जो शायद ही कभी निकल पाए।इससे पहले भी इसको लेकर जनता उपेक्षित होती रहती है।इक्का – दुक्का बार विरोध होते रहे हैं,पर अभी जैसी बहस social media पे हो रही है,जिसमें बड़े – बड़े लोग भी गिरफ्त में आ गए हैं,एक सकारात्मकता की ओर ही इशारा करता है।
सीधी और समझने वाली बात यह है कि nepotism ऐसी बला को कहते हैं,जिसमें रिश्तेदारों को तरजीह दी जाती है,मतलब योग्यता को शून्य पे रखकर अनैतिक रूप से फायदा पहुंचाया जाता है। यह प्रथा आपको जीवन के हर क्षेत्र में मिलेगी, चाहे वह राजनीति हो, व्यावसाय हो या फिल्मी दुनिया। मान लीजिए अगर आप अपने ऑफिस में काम करते हैं और अपनी योग्यता के हिसाब से प्रोमोशन की तैयारी कर रहे हैं,तो सावधान हो जाइए।जो बॉस का मुंहलगा है या रिश्तेदार,करीबी जो भी है बाजी तो वही मारेगा।भले ही वह बंदा इसके काबिल हो या ना हो।ये तो एक छोटा – सा उदाहरण भर है।
जो भाई – भतीजावाद करते हैं,वे लोग हमेशा बाहर से आए मेहनती लोगों का विरोध करते हैं,उनके कामों में तरह-तरह से बाधाएं डालते हैं,ताकि वे बेचारे हताश होकर इस पेशे को छोड़ कर भाग जाएं और उनके बच्चों को मौका मिल जाए।
जरा अपने अंदर झांक कर तो देखिए,कहीं आप भी nepotism के तरफ आकर्षित तो नहीं है।अगर आप कोई व्यावसाय कर रहे हैं और आपको अपने काम के लिए किसी बंदे की जरूरत है,तो अगर आपकी नजर में आपके करीबी है तो स्वाभाविक है कि आप उन्हें ही प्रमुखता देंगे।इसमें कोई गलत बात भी नहीं है।गलत तो तब हो जाता है जब इसके कारण दूसरे लोगों की योग्यता को ताक पर रख दिया जाता है। उन पर इतना ज्यादा दबाव बनाया जाता है ताकि वे हताश हो जाएं।कभी – कभी तो nepotism के शिकार लोग इतने depressed हो जाते हैं कि अपनी योग्यता भी उन्हें कम लगने लगती है।
अब राजनीति को ही ले लीजिए।यहां भाई भतीजावाद इतना चलता है कि पूछो मत। पूरा का पूरा पेशा ही nepotism का शिकार है। मान लीजिए आपकी किसी नेता से पहचान है तो बस आपका काम बन गया। सिफारिश लगा दीजिए चुटकी में आपका काम हो जाएगा। कहीं का रिजल्ट निकलवाना है, किसी की पोस्टिंग करवानी है, सरकारी दफ्तर से काम निकलवाना है ऐसे- ऐसे कितने सारे काम हैं, जो nepotism के कारण सरलता से हो जाते हैं।अपने करीबियों को आगे तक ले जाने में हमारी राजनीति को खूब महारत हासिल है।अगर आप किसी पार्टी में हैं,तो आप अपने करीबियों को भी जरूर लाइएगा या उन्हें फायदा पहुंचाइएगा।इस nepotism के कारण ही तो कांग्रेस आज तक टिकी हुई है।भारत के ऐसे कितने राज्य हैं,जहां nepotism के आधार पर शासन की बागडोर उन्हीं लोग के हाथों में दी गई है।जानते हैं सभी,समझते भी हैं लोग पर कोई उंगली नहीं उठाता या समझ लीजिए कि सभी को इस चीज की आदत – सी हो गई है।योग्यता को side कर दिया जाता है।
अब हमारा बॉलीवुड इससे अछूता क्यों रहेगा,आखिर आग भी तो यहीं से भड़की थी।इस इंडस्ट्री की एक सच्चाई यह है कि अगर आप फिल्मी परिवार से नहीं है तो आपको काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।ना तो कोई आपसे मिलना चाहता है,ना आपकी बात सुनना चाहता है।आपके काम को देखना तो अलग बात है। जबकि होना यह चाहिए कि आपकी प्रतिभा,कौशल और प्रयास आपके काम में कितने लगे हैं।पात्रता और पक्षपात की भावना कतई नहीं होनी चाहिए। वैसे इसे 100%भी सही नहीं बोल सकते हैं।हर किसी के साथ ऐसा व्यवहार हो ,ये जरूरी तो नहीं।
अगर आपका फिल्मी बैकग्राउंड है तो आपको इस इंडस्ट्री में घुसने में समय नहीं लगेगा। बॉलीवुड का एक खेमा nepotism को बढ़ावा देता है, एक गॉडफादर की तरह काम करता है। यहां एकाधिकार की भावना भी खूब पनपती है, क्योंकि यहां पहला ब्रेक मिलना बहुत बड़ा निवेश हो सकता है। और एक फिल्म किसी का कैरियर बना सकता है या बिगाड़ भी सकता है।
अब जबकि सुशांत सिंह की मौत ने इस प्रथा पर कुठाराघात किया है और एक सकारात्मक चीज की शुरुआत हुई है। कम-से – कम इसे लेकर बातें होनी शुरू तो हुई है। वैसे इसे रातों – रात गायब होने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती, क्योंकि यह आज से नहीं बल्कि सदियों से चला आ रहा है।
हमारे मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर यह nepotism आया कहां से है?क्या यह कोई नया शब्द है?इसने केवल फिल्मी दुनिया पर प्रभाव डाला है या और क्षेत्रों में भी अपना वर्चस्व बनाए हुए है? इसके प्रभाव को हम इस तरह से परिभाषित कर सकते हैं कि ना केवल इसमें रिश्तेदार ही सम्मिलित नहीं होते हैं,बल्कि इसका प्रयोग परिवार से आगे बढ़कर जातीय समुदाय को मजबूत करने के साथ – साथ अपने धर्म को मजबूत करने के रूप में भी दिखाई देने लगता है।तभी तो पायल तडवी जैसे लोग निम्न जाति से उठकर डॉक्टर बनने की योग्यता हासिल कर लेते हैं या फिर रोहित वेमुला जैसे छात्र प्रोफेसर बन जाते हैं तो समाज के अन्य वर्ग स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। ये nepotism नहीं तो और क्या है।
निम्न वर्ग समाज में व्यक्ति जब उचित जगह बनाने लगता है तो उच्च वर्ग अनिश्चितताओं के दौर में अपनी सत्ता सिद्ध करने के लिए अपने प्रभावित क्षेत्र में अपने रिश्तेदारों के लिए रोजगार सुनिश्चित करते हैं। अब अगर कोई बाहरी अपने दम पर एक मुकाम बनाने में कामयाब हो जाता है तो उन्हें असुरक्षा महसूस होने लगती है।वे ऐसे लोगों को उपेक्षित करना शुरू कर देते हैं। बस यहीं से nepotism की नींव पड़ जाती है।
चूंकि फिल्म उद्योग हमेशा से ही भाई- भतीजावाद करता रहा है। यहां जब तक काम मिलता है तब तक ही पैसा और शोहरत है। काम नहीं तो कलाकार भी गुमनामी के अंधेरे में खो जाता है। आप उठाकर देख लीजिए यहां कौन किसका रिश्तेदार निकल जाएगा कुछ पता नहीं होता। इसी बीच बड़े-बड़े लोगों के बीच में अगर कोई छोटे शहरों से आए कलाकार अपनी जगह बनाने लगते हैं तो उन्हें अपनी जगह हिलती हुई नजर आती है। उनका पूरा प्रयास होता है अपने प्रभुत्व को बढ़ाने का। यही तो nepotism है।
ऐसा नहीं है कि सभी nepotism से ही ग्रसित हैं। अगर फिल्म इंडस्ट्री में आलिया है तो कंगना भी है। रणवीर कपूर है तो रणवीर सिंह भी है।अमिताभ बच्चन तक को कितने साल असफलताओं का सामना करना पड़ा था। हालात बदल रहे हैं, सोच बदल रही है।जिनके गॉडफादर होते हैं,माना उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश करने में आसानी होती पर आगे का भविष्य उनकी योग्यता के आधार पर ही होता है। कैमरे के सामने आने के बाद आप राजा के बच्चे हों या रंक के,कोई फर्क नहीं पड़ता।उस वक़्त आपके साथ केवल आपकी कला खड़ा रह जाती है। अगर इसमें है तो वो अपनी पहचान बना ही लेगी।
किसी की मौत कैसे हुई, क्यों हुई यह बाद का प्रश्न हो जाता है। पर इतना तो बात जरूर है कि हमारे समाज में nepotism है।ये एक अच्छी पहल है कि सुशांत की मौत ने इस पर प्रकाश डालना शुरू किया है।तभी तो बड़े बैनरों की फिल्में और बड़े – बड़े superstars की फिल्मों के विरोध की बात भी उठने लगी है।
इस विचार बिंदु में कई कलाकारों ने हिस्सा लिया, जिससे यह बात निकलकर सामने आई कि नए कलाकारों को अपने अभिनय की कीमत किस हद तक चुकानी पड़ती है तभी तो इन्द्र कुमार की पत्नी ने उनकी मौत का कारण nepotism को बताया है।
अब तो यह आगे का बहस ही बताएगा कि कब तक हमारे देश में भाई – भतीजावाद चलता रहेगा। अगर फिल्म उद्योग में माफिया या यूं कहें कि स्थापित सितारों का गिरोह सक्रिय है तो उसकी पहचान कर उस पर प्रहार किया जाना चाहिए।और यह तभी संभव है,जब nepotism पर उपजा राष्ट्रीय आक्रोश एक राष्ट्रीय आंदोलन में बदले।
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Very good thought on a very bad thing “Nepotism”…
Thank you very much for the article.