🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
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नीलिमा आज बहुत खुश लग रही थी। वैसे खुश होने वाली बात भी थी। तीन- चार महीने तो हुए ही थे शादी को। संजय और नीलिमा दोनों की अरेंजड मैरिज हुई थी, पर दोनों को देखकर लगता था कि कितने सालों से वे दोनों एक-दूसरे को जानते हैं।शादी के तुरंत बाद संजय नीलिमा को लेकर शहर चला गया था। पुलिस की नौकरी थी संजय की। इतनी छुट्टी कहां से मिलती। हर समय व्यस्त रहता वह। नीलिमा पूरे दिन भर बोर हो जाती। रात में भी उसके आने का कोई निश्चित समय नहीं था। पर इधर कुछ दिनों से वह बहुत खुश रहने लगी थी, शादी के बाद का पहला सावन जो आ रहा था। बारिश की फुहार सोचकर ही उसके मन में गुदगुदी पैदा कर रही थी। सपनों के ताने-बाने में वह इतना उलझ गई कि उसे यह भी ध्यान नहीं रहा कि कब से कॉलबेल बज रही थी। दरवाजा खोला तो देखा कि सामने संजय खड़े थे। इतनी जल्दी ड्यूटी से वापस आते देखा तो समझ गई कि जरूर कोई बात है। पर बार- बार पूछने पर भी संजय ने कोई जवाब नहीं दिया। जवाब भी कैसे देता, जब नीलिमा ने दरवाजा खोला तो उस समय उसके चेहरे पर जो नूर थी, वो नूर धूमिल नहीं कर सकता था वह। ऐसे भी अपने व्यस्त समय में नीलिमा को बहुत कम समय दे पाता था, जिसका उसे मलाल था।
जब संजय ने अपनी तरफ से बात की कोई पहल नहीं की तो नीलिमा ने समझ लिया कि लगता है बात कोई सीरियस नहीं है वरना संजय जरूर बता देते। बस अब शुरू हो गई नीलिमा अपने सपनों के बारे में बताने को। चहक- चहक कर अपने पहले सावन के बारे में बताते जा रही थी कि क्या-क्या करना है उसे इस बार। हरी चूड़ियां, बारिश में अपने आपको संजय के साथ भिंगोना, गरम-गरम पकोड़े, मोर की तरह नाचने लगी थी वो। वैसे तो शादी के बाद का पहला सावन मायके में ही होता है, पर घर से इतनी दूर संजय की ड्यूटी थी कि इतनी जल्दी जा भी नहीं सकती थी। कोई बात नहीं सावन में साजन हो,चेहरे पर पड़ती पानी की बूंदे हो और क्या चाहिए उसे।
संजय को पता था कि नीलिमा को बारिश बहुत अच्छी लगती है। बारिश की बूंदे आपके जीवन साथी को पास में लाने में बहुत बड़ी सहायक होती है। खिल – खिला कर अपने मन की बात कहते ही जा रही थी नीलिमा। संजय बड़ा असमंजस में था कि कैसे वह अपनी बात नीलिमा के सामने रखे। बहुत ही ईमानदार और कड़क इंस्पेक्टर था संजय। अपराधी उससे थरथर कांपते थे। इसके चलते उसके दुश्मन भी बहुत हो गए। नीलिमा को वह बहुत प्यार करता था और यह बात उसके बर्दाश्त के बाहर की थी कि कभी उस पर आंच भी आए।
लगातार बोलते हुए अचानक से नीलिमा को ध्यान में आया कि संजय से तो मैंने चाय- पानी के बारे में पूछा तक नहीं। बस अपने पहले सावन में ही उलझ कर रह गई। वह भागे थोड़े ही ना जा रहे हैं। सर पर हल्की सी थपकी लगाते हुए वह किचन की तरफ भागी। फटाफट पकोड़े और चाय के साथ उसने संजय के सामने ट्रे रख दी। इतनी जल्दी ड्यूटी से आ ही गए हो तो चलो साथ में चाय पीते हैं और बातों की गर्माहट जारी रखते हैं। ऐसा समय पता नहीं कब आए।
संजय ने सोच लिया था कि रात के खाने के समय वह अपनी बात रखेगा। दोनों फिर बातों में मशहूर हो गए। अचानक से बिजली कड़कने की आवाज हुई तो दोनों की बातचीत रुकी। मौसम खराब हो चला था। मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। दरवाजे, खिड़कियां बंद करते हुए नीलिमा ने बोला कि अच्छा किया कि घर आ गए। इतनी बारिश में कहां अपराधियों के पीछे भागते- फिरते। संजय मूक बना हुआ था। 1- 2 घंटे की बारिश के बाद सूरज भी आसमान पर चमकने लगा। यह धूप- छांव का खेल जीवन में भी तो चलता ही रहता है। सूरज की प्रखर किरणों ने बारिश को शांत कर दिया था। मौसम देखकर एहसास ही नहीं हो रहा था कि थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी।
सांझ हो चली थी। पर नीलिमा के दिल के किसी कोने में यह कसक जरूर उठ रही थी कि संजय कुछ कहना चाहते हैं। एक- दो बार उसने कुरेदने की कोशिश भी की ,पर बात नहीं निकली। रात के खाने की तैयारी करने लगी नीलिमा।किचेन में काम करते – करते अचानक से संजय ने उसे पीछे से पकड़ लिया।घबरा- सी गई वह ।फिर उसे खींचते हुए सोफे पे बैठाया और चेहरे पे बिखरी लटों से खेलने लगा। नीलिमा समझ गई कि जरूर कोई बात कहना चाहते हैं संजय। अपनी लड़खड़ाती आवाज में जब संजय ने बोला कि वह 1 सप्ताह के लिए दूसरे शहर जा रहा है तो नीलिमा को “काटो तो खून नहीं” जैसी हालत हो गई। क्या-क्या सपने देख रही थी वह कि संजय के साथ ऐसे करना है, वैसे करना है। बस आंखें फाड़े संजय को देखते जा रही थी। हैरानी तो उस समय और हो गई जब उसने बताया कि कल सुबह ही उसे निकलना है।
अब एक हफ्ता अकेली इस घर में क्या करेगी नीलिमा। संजय ने उसे दिलासा दिया कि बहुत जरूरी काम के कारण ही वह जा रहा है। जल्द ही लौटकर उसके सारे सपनों को पूरा करेगा।थकी- थकी सी नीलिमा उठी और किचेन का काम समेटने चली गई साथ ही अपने बेडरूम में संजय का बैग पैक करने को भी।संजय हर उस चीज से नीलिमा को हंसाता जा रहा था,जो उसे पसंद थी,पर पता नहीं नीलिमा कहां खोई थी।
सुबह चिड़ियों के चहचहाने से उसकी आंखें खुली। देखा संजय तैयार होकर किचन में उसके लिए चाय बना रहे थे। उनके निकलने का समय हो गया था। पर क्या किया जा सकता है। प्यार अपनी जगह है, ड्यूटी अपनी जगह। बस संजय को चिंता थी कि उसकी अनुपस्थिति में नीलिमा पर आंच ना आए। मुरझाए हुए चेहरे के साथ नीलिमा ने संजय को विदा किया।पर पता नहीं क्यों उसका दिल घबराया हुआ लग रहा था, शायद अकेले का डर।
तीन-चार दिन बीत गए थे संजय को गए हुए। बस दो-तीन दिन और था। किसी तरह से यह समय कट जाए, फिर तो सपनों को उड़ने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसे ही एक रात मूसलाधार बारिश होने लगी। पानी के छींटे घर में घुस रहे थे। दरवाजे- खिड़कियों को बंद करने लगी नीलिमा।अचानक से दरवाजे पे थपाथप की आवाज़ होने लगी। कांप – सी गई नीलिमा। इस समय इतनी रात को कौन होगा। डरते हुए उसने दरवाजा खोला। सामने कुछ नकाबपोश लोग खड़े थे, जो झट से अंदर घुस गए और दरवाजे को बंद कर दिया। फिर तो जो हुआ वह दिल को दहला देने वाला था। क्षत-विक्षत सी जमीन पर पड़ी हुई थी नीलिमा और उसका शरीर चिथडा – चिथडा होकर दरवाजे से अंदर आती पानी की बौछारों में भीग रहा था। उसका गैंगरेप हुआ था। वह चीख रही थी, पर उसकी चिल्लाहट को बारिश में सुनने वाला कोई नहीं था। अगले दिन ही संजय आने वाले थे। जैसे ही दरवाजे पे थाप लगाई, वह अपने आप खुल गया। किसी अनहोनी की आशंका से संजय ने जब नीलिमा को खोजा, तो वहीं जमीन पर फटे कपड़ों और खून की छींटों के साथ नजर अाई वह। अपना सर पकड़ कर वहीं बैठ गया संजय। किस मुंह से उसके पास जाता। शादी के बाद का पहला सावन ऐसा झूम कर आएगा सोचा भी नहीं था उसने। दरवाजे- खिड़कियां सांय – सांय करते हुए बंद- खुल रहे थे और वहां से आती पानी की बौछारें दोनों को भिंगो रही थी, शायद पहला सावन इसी रूप में आना था।
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