मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
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एक औरत बदहवास – सी,चेहरे पे बिखरी लटें मलिन मुखमंडल लिए नजर आई है
पता चला बदनाम मुहल्ले से एक बदनाम औरत सभ्य समाज में बदली बनकर छाई है
सुनकर मन विचलित हुआ,तलाशने लगा इनकी बदनामी का सच
क्या इन औरतों को ईश्वर ने विशेष प्रक्रिया से गठित किया है
या यूं समझो कि हमारे सभ्य समाज ने ही इसे विघटित किया है
जहां इनका बसेरा है,समाज के प्रहरियों द्वारा घोषित है रेड लाइट एरिया के रूप में
वहां दिन के उजाले में हर प्रवेश निषेध है हमारे सभ्य समाज के अघोषित रूप में
वर्जित जगह पे जाने से इनपे तोहमत लगती है
हर तरफ से इनके लिए हेय दृष्टि उठती है
औरत और मर्द के बीच एक लकीर खींची गई है
जिसका प्रहरी पुरुष है,पांव तले औरत की आबरू रखी गई है
इनको समझना मेरी कल्पना का नया आयाम हुआ करती है
सभ्य कहे जाने वाले समाज में ये बस बिकता हुआ सामान समझी जाती है
जब सभ्यता का सूरज ढलता है,रात के अंधेरे में इनकी भी महफिलें सजती हैं
तब आंखों पे महानता का चश्मा पहने यही सभ्य समाज के कदम इस रूप के बाजार की शान बनते हैं
जहां रात के अंधेरों में समाज के प्रहरी बदनाम मुहल्लों को गुलजार करते हैं
वहीं इन बदनाम औरतों के गर्भ से जन्म लेने वाली संतानें इन्हीं सभ्य संस्कृति की देन होते हैं
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पर किस्मत तो देखो इनका ,जन्म लेते ही इन्हें नजायाज घोषित करते हैं
अपने दामन पर दाग ना लगे,बस इन बदनाम औरतों पर उंगली उठाते हैं
इनकी दुनिया में समाज के हिसाब से उल्टी धारा चलती है
बेटे नहीं बल्कि बेटियों के जन्म की खुशी यहां मनती है
क्योंकि कहीं – न – कहीं सच को ये भी स्वीकारती हैं
बेटे ही बनाते हैं इन्हें बदनाम औरतें,बेटियां कभी बदनाम नहीं होती हैं
ब्याहता ना होते हुए भी ब्याहता हैं
जीवन के हर सुख को पाने की उल्लासिता है
चढ़ती रात में हमारा सभ्य समाज निशाचर बनकर इनकी गलियों में घूमता है
वहीं दिन के उजाले में वहां जाना भी पाप समझता है
छोटी बच्चियों के मासूम बचपन को भी यहां बेआबरू किया जाता है
आखिर इन बदनाम मुहल्ले का निर्माण ही क्यूं होता है
एक बड़ा सवाल गूंजता रहा है सालों से कानों में
क्यों औरतों को उपभोग की वस्तु बनाकर बैठाया जाता है बाजारों में
आखिर क्यों सामाजिक व्यवस्था में बनाया गया है ऐसा बाज़ार
जहां औरतों की इज्जत होती है तार – तार
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औरत मर्द की समानता की बात करता है समाज
आखिर क्यूं नहीं सजते हैं बदनाम पुरुषों के मुहल्ले का ताज
नैतिकता, संस्कार और संस्कृति के नाम पर जीते हैं दोहरी मानसिकता का जीवन
औरतें बस उपभोग की वस्तु ना समझी जाएं,उम्मीद से देख रहे हैं इनके नयन
समाज की मुख्यधारा में इनको भी शामिल करना होगा
इसके पहले सामाजिक व्यवस्था की हर दीवार को तोड़ना होगा
बदनाम औरतें भी इंसान होती हैं,इज्जत पाने का हक उनका भी है
ऐसे – ऐसे कितने अनुत्तरित प्रश्न मन के कोने में भी हैं
क्योंकि औरतें कभी बदनाम होती नहीं,बदनाम तो होती है उन पर पड़ने वाली बदनाम दृष्टि
जहां इन्हे बिकाऊ सामान समझकर दिया जाता है नजराना
उसी बदनाम औरतों के मुहल्ले के अस्तित्व को है मिटाना
पर एक अनकही सवाल की परछाइयां मन में उकरती हैं
इन बदनाम औरतों की सरगना भी तो एक औरत ही होती है
अपने गिरोह की संख्या बढ़ाने की साज़िश क्यों इनके मन में चलती है
चकाचौंध और रोशनी के संजाल में हर दिन बन – ठन के इनकी रातें सजती हैं
पैसे और किस्मत के घेरे में फंसकर इनकी इज्जत हर दिन नीलाम है होती
क्योंकि औरतें कभी बदनाम होती नहीं,बदनाम तो होती है उन पर पड़ने वाली दृष्टि
इन बदनाम औरतों की आंखें कई सवाल उठाती हैं
समाज के दृश्य को बदल डालो,ये इंसाफ मांगती हैं
समाज से इतर इनके जीवन वृत्त को सभ्य समाज से जोड़ना होगा
आंख उठाकर ये भी चल सकें,ऐसी परम्पराओं का आगाज करना होगा
क्योंकि औरतें कभी बदनाम होती नहीं,बदनाम तो होती है उन पर पड़ने वाली दृष्टि
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Nice👌👌👌👌
[…] बदनाम औरत🧕🧕 […]
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