🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
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हर दिन ना जाने कितनी सारी आवाजें हमारे कानों में पड़ती हैं।जो हमारा दिल सुनना चाहता है ,वो कर्णप्रिय होती हैं मगर जो आवाजें हमारी जिंदगी को एक नए मोड़ पे खड़ी कर देती हैं,वो कब शोर में बदल जाती हैं ,पता ही नहीं चलता है।ध्यानचंद के साथ भी तो यही हो रहा है।आवाजों ने शोर का रूप अख्तियार किया और इनके बीच में ख़ामोशी ने अपना घर बना लिया,कितनी अजीब बात है ना।
कोलाहलों के बीच उनके दिल की धड़कन एकदम से बढ़ जाती थी।पता नहीं एक बेचैनी सी होने लगती है इन आवाजों से।ऐसा नहीं है कि ध्यानचंद को ये परेशानी बरसों से थी।चार – पांच साल पहले की ही तो बात है।बड़े ही हंसमुख स्वभाव के थे।इस्पात के कारखाने में मैनेजर के पद पर नियुक्ति हुई थी,जहां हर समय मशीनों की घरघराहट के बीच में ही उठना – बैठना होता था। शोर इनकी जिंदगी का एक अटूट हिस्सा बन गई थी।पर परिस्थितियों के भंवर जाल ने चारों तरफ एक सन्नाटे का ताना – बाना बुन दिया।अब यही आवाजें उन्हें बेचैन कर देती हैं। मौन मुखरित होकर दिमाग पे हावी होने लगा था।परिस्थितियों का संजाल ही ऐसा था कि खुद अपने अक्स को ही समझ नहीं पा रहे थे।
पति ,पत्नी और एक बेटा — छोटा परिवार सुखी परिवार।बेटा जल – सेना में कार्यरत था।पानी के बहाव के साथ ही उसकी जिंदगी भी आगे बढ़ रही थी।हमेशा तो नहीं पर कुछ सालों के अंतराल पर घर आया – जाया करता था।ध्यानचंद जब काम पर चले जाते तो पत्नी कमला घर में अकेले रह जाती थी।पूरे दिन भर घर में अकेलेपन से उकताहट होने लगी थी उन्हें।कारखाने से लौटते – लौटते भी रात के 10 बज ही जाते।
एक की शोरों के बीच में तो दूजे की सन्नाटों के बीच में जिंदगी की गाड़ी हिचकोले खाते- खाते आगे बढ़ रही थी।सुबह 6बजे कमला बिस्तर छोड़ देती थी।पूरे घर की साफ – सफाई में अपने आप को व्यस्त रखती। पति ने कामवाली को रखने के लिए बहुत दबाव बनाया पर कमला का कहना था कि वैसे ही घर में काम कम होते हैं।थोड़ा झाड़ू – पोछा कर लूंगी तो शरीर भी ठीक रहेगा।ध्यानचंद तो निरुत्तर हो गए।गृहस्थी की गाड़ी कमोबेश ठीक – ठाक चल रही थी उनकी।उस दिन काम से लौटते – लौटते बहुत रात हो गई।वैसे तो ध्यानचंद ने फोन करके कमला को बता दिया था और साथ में हिदायत भी दे दी थी कि वो इंतजार ना करे और खाना खा कर सो जाए।पर जब तक पति आ ना जाए ,किसी भी पत्नी को शांति कैसे मिल सकती है।बेचैनी की ही अवस्था में सोफे पर टीवी के सामने बैठी तो थी पर ध्यान कहीं और था।तभी कॉलबेल बजी,ध्यानचंद ही होंगे यही सोचकर उसने दरवाजा खोला।
सामने पति को देखकर सांस में सांस आई।अत्यधिक काम के कारण थकान उनके मुखमंडल पर हावी था।पर एक अप्रत्याशित खुशी उनके चेहरे पे साफ दिखाई दे रही थी,जिसे वे कमला के साथ बांटना चाहते थे। उनके कामों को देख कर उन्हें मुंबई के सबसे बड़े इस्पात के कारखाने में बड़े पोस्ट पर नियुक्त किया गया था। कमला तो सुनकर फूली नहीं समाई। मशीनों की घड़घड़ाहट के साथ रहते- रहते ध्यानचंद भी बहुत तेज बोलने लगे थे। ऐसे भावातिरेक में शोर के साथ अपनी उपलब्धियों को प्रस्तुत करना उन्हें बड़ा भाता था। मतलब दोनों को अपनी गृहस्थी दूसरे शहर में बसानी थी।
पैकिंग शुरू हो गई। 3 दिन के बाद की ट्रेन थी। कंपनी की तरफ से एक फायदा यह मिला कि रहने के लिए क्वार्टर मिल गया। कम से कम अनजान शहर में मकान के लिए दर-दर की ठोकरे तो नहीं खानी पड़ेगी। गाड़ी सायं-सायं पटरी पर दौड़ते जा रही थी। आवाजें ध्यानचंद की साथी बन गई थी पर पता नहीं ऐसा क्या हुआ जब इन आवाजों ने शोर का रूप ले लिया।
मुंबई आए हुए ज्यादा दिन नहीं हुआ था। पोस्ट बढ़ा तो काम भी बढ़ा। मशीनों की आवाजें उनकी जिंदगी का एक अभिन्न अंग बन गई। व्यस्तता बढ़ने से दोनों के संबंधों में एक खामोशी – सी आ गई। दिन भर कमला बोर होती रहती। ध्यानचंद मशीनों के बीच में ऐसे फंसे कि इनकी व्यस्तता और महानगर के शोर ने दोनों के बीच में खामोशी ला दिया। अपनी पत्नी को बहुत कम समय देना उनकी आदत में शुमार हो गया। ना ही इस तरफ कभी उनका ध्यान गया और ना ही कमला की खामोशी कुछ बयां ही कर पाई।
समय शनै: – शनै: आगे बढ़ रहा था, तभी एक दिन ऐसा वाक्या हुआ, जिसने ध्यानचंद के जीवन की दिशा ही बदल दी। और दिन की तरह ही उस दिन भी उन्हें आने में देर हो रही थी। कमला इंतजार की घड़ियां गिनने के लिए सोफे पर बैठ गई, तभी फोन की घंटी बजी।जैसे ही उसने फोन उठाया,उधर से अपने बेटे की घबराहट भरी आवाज सुनकर उसकी तो रूह ही कांप उठी। तूफानी आवाज में कुछ सुनाई हीं नहीं दे रहा था। उधर से मां – मां की आवाज आ रही थी, पर कुछ अस्पष्ट से वाक्य जहाज और तूफान के शोर में मानो गुम हो जा रहे थे।तुरंत कमला ने टीवी का चैनल बदला, जो खबर सामने आई उसे देखकर तो उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। जल सेना का एक जहाज तूफान के थपेड़ों में फंस गया था। धीरे-धीरे उसके सारे सिग्नल टूटने लगे। वह बार-बार फोन मिलाने की कोशिश कर रही थी पर सारे प्रयास व्यर्थ जा रहे थे किस मानसिक वेदना से वह जूझ रही थी ये उसका दिल ही बता सकता था।
आज ध्यानचंद को भी आने में काफी वक्त लग गया। कमला ने तुरंत उनके पास फोन लगाया। फोन तो उठा पर मशीनों के शोर के बीच में उन्हें कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। वह हेलो – हेलो कर रहे थे, पर आवाज सुनाई दे तब ना। कमला बदहवास सी फोन करते जा रही थी पर ध्यानचंद को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।कमला को समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर वह क्या करें। वह अपना दिमागी संतुलन खोने लगी। पति और बेटा दोनों आवाजों के बीच में फंसे थे जिनके बीच में कमला की आवाज दब गई।
घर से बार बार फोन आ रहा था सोच कर ही एक अनजानी आशंका से रूह कांप उठी। ध्यानचंद तुरंत घर के लिए निकल पड़े। रास्ते में इतना लंबा जाम लगा हुआ था जिसमें गाड़ियों की धुआंधार आवाज उनके कानों में गर्म शीशे की तरह पिघल रही थी, पर क्या करते?शोर यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ रहा था। इसी तरह से वह घर पहुंचे। मन किसी अनहोनी आशंका से आतंकित हो गया।बेल बजाते – बजाते उंगलियां थक गई पर कमला ने दरवाजा नहीं खोला।
अचानक से उनका ध्यान गया कि घर की एक चाबी तो उनके पास भी है। जैसे ही दरवाजा खोला सामने कमला बेहोश पड़ी थी और टीवी पर बेटे के जहाज का तूफान में फंसने की खबरें आ रही थी। तुरंत ही माजरा समझ में आ गया। बेटे के जहाज का कोई अता-पता नहीं था। तूफान ने कितनों की जिंदगी को अस्त-व्यस्त कर दिया था पर अभी समय गंवाना ठीक ना था। वह कमला- कमला चिल्ला रहे थे, पानी के छींटे पागलों की तरह चेहरे पर डालते जा रहे थे पर थोड़ा भी स्पंदन उसके शरीर पर नहीं दिखा। तुरंत ही ध्यानचंद कमला को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े।
वहां जाकर पता चला कि गहरे सदमे के कारण उनका ब्रेन हेमरेज हो गया जिसके परिणाम स्वरूप बोलने और सुनने की शक्ति खत्म हो गई। उनकी याददाश्त पर भी गहरा असर पड़ा।जीवन के कितने पलों को वो विस्मृत कर चुकी थीं।उन्हें यह याद ही नहीं रहा कि उनके बेटे के साथ क्या हुआ। ध्यानचंद को काटो तो खून नहीं कैसी घड़ी में वे मुंबई आए और अपने आपको इतना व्यस्त कर लिया कि पत्नी पर ध्यान ही नहीं गया। काश उस दिन एक ही बार में कमला की आवाज सुन लेते तो यह दिन ना देखना पड़ता।ये आवाजें भी अजीब होती है जो कानों को सुनना अच्छा लगता है वह मीठी धुन लगती है पर यही आवाज जब हमारे जीवन के किसी नाजुक पल से जुड़ जाती है तो हमारे दिल को बेचैन कर देती है।उस समय ये आवाजें तब कोलाहल में बदल जाती हैं। उस समय कमला अपने आप को कितनी अकेली महसूस कर रही होगी, ये उसका दिल ही जानता होगा।
पर कहते हैं ना कि समय हर घाव को भर देता है कमला की हालत में भी धीरे-धीरे सुधार हो रहा था। बड़ी अजीब सी स्थिति पैदा हो गई थी।कमला कुछ महीने हॉस्पिटल में रहकर घर तो आ गई पर अपने साथ खामोशी भी लेते आई। ध्यानचंद ना कुछ बोल सकते थे और ना सामने आंसू ही बहा सकते थे। जो खामोशी धीरे-धीरे उनके जीवन को निगल रही थी उस से पार पाने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। कुछ दिनों तक कारखाने से छुट्टी ले ली ताकि कमला को उनका सानिध्य मिल सके।बेटे का अभी तक कोई पता नहीं था।कमला की यादें तो धूमिल हो गई थीं,पर ध्यानचंद की गमजदा का क्या?सामने पत्नी की खामोशी और उधर बेटे का लापता होना,ये मानसिक यंत्रणा किसी के लिए भी संताप का कारण बन सकती है।
अगर सच कहा जाए तो एक तरह से ध्यान चंद को मशीनों के शोर से नफरत हो गई थी। इसी शोर ने उन्हें ऐसा सदमा दे दिया जिसकी उन्होंने कभी कोई कल्पना भी नहीं की थी। अभी तक बेटे का पता नहीं चला। अपना दुख कहां बोलते। कमला की खामोशी ने उनके अंदर के शोर को जगा दिया था।मन स्थिर ही नहीं हो पाता। अब जहां भी कोलाहल होता वहां से बचकर निकलना चाहते थे। एक बेचैनी दिल में घर कर गई थी। अब ना तो कमला उनकी बात सुन सकती थी और ना बोल सकती थी। तूफानों के शोर ने बेटे को छीन लिया और मशीनों के शोर ने पत्नी की आवाज को।
पर कब तक वह काम से छुट्टी लेते। जब कभी वह अपने अंदर के कोलाहल से परेशान होते सामने के पार्क में चले जाते। कमला की एकटकी निगाहें उन्हें हमेशा द्रवित करती रहती थी। एक बेटा था वह भी लापता था। एक दिन यूं ही चिंता मग्न होकर पार्क में बैठे हुए थे और अपनी समस्याओं का समाधान तलाश कर रहे थे।जिंदगी बोझिल सी हो गई थी। सामने बच्चों के खेलने की आवाजें आ रही थी। पहले तो इन चिल्लाहटों से उन्हें बेचैनी होने लगी पर धीरे-धीरे अपने आप को संयत कर उन खेलते कूदते बच्चों को देखने लगे। आंखों की चमक इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि जल्द ही उन्हें अपनी समस्याओं से लड़ने की ताकत मिल जाएगी।परिस्थितियों हमेशा ही विपरीत थोड़े ना होती है। जो इन तूफ़ानों से पार पा लेता है,जीवन की नैया भी उसी की पार लगती है।
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Bahut hi shaandàar likha aapne….dil ko chu gaya…👌👌👌👌👌
Kya likha hai…Dil ki gehraee tak chhu liya iss kahani ne…
Mind blowing di….jabardust…saandaar…