मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
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समाज में गुस्सा आज फिर चरम पर है,इस बात की ओर इशारा है कि कानून व्यवस्था से लोग संतुष्ट नहीं हैं।देश में बलात्कार के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं।लोगों को अपनी सोच और मानसिकता बदलनी ही होगी।साथ ही प्रशासन को भी चुस्त – दुरुस्त करने की जरूरत है।केंद्र और राज्य सरकारें दोनों मिलकर दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाएं।और इन सबसे बढ़कर सभी राजनीतिक दल अपने – अपने राज्य में ऐसे अपराधों को काबू में करने के हरसंभव प्रयास करें,तो इससे बढ़कर आज कोई दूसरी राष्ट्र – सेवा नहीं होगी।
ये क्या ! मैं अख़बार की चंद लाइनें क्यों बयां कर रही हूं। पर एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि ऊपर लिखी हुई ये 4-5 लाइने महज इत्तेफाक से नहीं लिखी गई है बल्कि हर Rape- Case के बाद ये चंद सांत्वना के शब्द देश की जनता को जरूर सुनने को मिलते हैं। और केवल ये चंद शब्द उन बेबस मां – बाप के मुंह पर एक करारा तमाचा है जिनकी बेटियां इन हादसों का शिकार होती हैं।
आज से कुछ महीने पहले मैंने एक पोस्ट किया था ——— बलात्कार::एक अनचाहा दंश। इसमें भी मैंने यही लिखा था कि लोगों की सोच को बदलना होगा, प्रशासन को अपनी जिम्मेवारियों का भान होना चाहिए आदि – आदि। अब तो ये सहानुभूति के शब्द भी सुनने में अच्छे नहीं लगते हैं। आखिर कब तक हम ये उम्मीद के दिए जलाते रहेंगे, जिसकी लौ में ही फड़फड़ाहट है।
जिस देश में लड़कियों के अपमान का बदला लंका को जला कर और महाभारत करवा कर लिया गया हो उसी देश की लड़कियों के लिए मोमबत्ती जलाकर इंसाफ मांगा जाता है यह मजाक नहीं तो और क्या है? इस कैंडल मार्च में कानून का खोखलापन हमें हंसने के लिए मजबूर कर देता है। जब निर्भया कांड हुआ था उस समय तो लगा था कि देश में क्रांति आ गई है। अब आगे से इस तरह का कोई जघन्य अपराध नहीं होगा। दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी ताकि आगे इस तरह की घटना ना हो। पर हुआ क्या, आप समाचार पत्र उठाकर देख लीजिए ऐसा कोई कोना नजर नहीं आएगा जो इस कुत्सित अपराध का साक्षी ना बना हो।
हमारी कानूनी प्रक्रिया की बेबसी तो देखिए सजा मिली भी तो कितने सालों बाद। उसमें से भी एक अपराधी को नाबालिग होने की वजह से rejunivile court भेज दिया जाता है। मैं पूछती हूं कि जब एक नाबालिग भी इस तरह का कांड कर सकता है तो उसे अलग से सजा क्यों मिलती है? इस काम को करने में जब उसकी उम्र आड़े नहीं आती तो फिर सजा पाने में क्यों? अब इसे हम अपने कानून की बेबसी नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे।
अब तो अपराध इतना जघन्य होता जा रहा है कि रेप करने के बाद पीड़िता को बेरहम तरीके से मार दिया जाता है जिसे सुनकर ही सिहरन होती है। सोचिए जरा घटना स्थल पर उन बेबस लड़कियों की आंखों में जिल्लत और मौत का कैसा नंगा दृश्य उभरता होगा। हमारे शासन तंत्र की बेचारगी का आलम यह है कि बहुत ही कम पीड़िता अपने साथ दुष्कर्म करने वाले दोषियों को सजा पाते हुए देख पाती होगी।
बलात्कार और इंसाफ कभी खत्म ना होने वाला इंतजार बनते जा रहा है, हमारी बेबसी खुद का ही दम घोंट रही है। अपनी बेटियों पर नजर डालते हैं तो एक अनजाना डर हमेशा आस-पास मंडराते रहता है जिससे विकल होकर दिल उन्हें बार-बार छाती से लगा लेता है। हर एक दिन की घटना इस बात की ओर इंगित करती है कि हम एक बार फिर अपनी बेटियों को बचा पाने में नाकाम रहे हैं।
आजादी का आलम तो देखिए पीड़िता को रिपोर्ट लिखवाने में हजारों सवालों से गुजरना पड़ता है, वहीं अपराधी खुलेआम अपनी जिंदगी जी रहा होता है। हमारी न्यायिक प्रक्रिया है ही ऐसी कि रेप पीड़िता के सामने यह प्रश्न उठता है कि वो अपने ऊपर हुए अत्याचार को साबित करें बजाय इसके कि बलात्कारी अदालत में खुद को निर्दोष साबित करें।
अभी हाल में जो हाथरस कांड हुआ है, उसकी नृशंसता को सुनकर कलेजा छलनी हो जाता है। पुलिस की हरकतें तो देखिए,बिना परिवार की अनुमति के उसकी लाश को जला दिया गया।पर इस घटना के बारे में सतही तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता,क्यूंकि कई राजनीतिक पार्टियां इसमें अपनी – अपनी रोटियां सेंक रही हैं।मामला अभी विचाराधीन है,जिस पर हर दिन नए – नए रिपोर्ट सामने आ रहे हैं।मुख्य सच्चाई यह है कि पीड़िता एक दलित थी और अपराधी स्वर्ण समुदाय का।इसलिए हर दिन एक नए कयास लगाए जा रहे हैं।देश में ऐसे भी नीची जातियों को कुचला जाता है।इस मामले के बारे में ये कहना बिल्कुल सटीक है कि — आंखों से मंजर ओझल हो रहे हैं।हर गुजरता लम्हा वारदात की तस्वीर को भी धुंधला कर रहा है।बाजरे के खेत,लाश को आनन – फानन जलाने का ठिकाना और वो खुद गांव भी।
बड़े-बड़े लोगों का कॉलर पकड़ना हमारे देश में कहां संभव है, तभी तो सुशांत सिंह राजपूत की पूरी केस हिस्ट्री ही बदल गई है। अब उन्हे इंसाफ दिलाने की जगह पर ड्रग्स के नए नए मामले सामने आ रहे हैं जिसमें कई बड़ी-बड़ी हस्तियां भी शामिल हैं, पर यह सबको पता है कि अधिकांश बॉलीवुड नशा का उपयोग करता है। किस किस को पकड़ा जाएगा बॉलीवुड को तो छोड़िए, देश के कई नामी गिरामी लोग इस नशे की गिरफ्त में हैं। क्या सब पर कानून की पकड़ जाएगी? नहीं! इस सच्चाई को भी झुठला नहीं सकते हैं कि इस केस में जो बड़े-बड़े लोग गिरफ्त में हैं वह सभी आज नहीं तो कल सफेद कॉलर में आ ही जाएंगे।
ये मैं कहां आ गई? रेप केस से उठकर सुशांत केस में अपने विचार क्यों डाल रही हूं पर क्या करूं ताजातरीन परिस्थितियां भी इस ओर इशारा कर रही हैं कि देश में इंसाफ पाने के लिए कतारें लगी है जिन पर ध्यान देने की जरूरत है।
इस देश की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहां पे अत्याचार हो या अपराध, सभी गरीबों के माथे पर पड़ता है। मेरा मतलब है कि रेप – केस में जल्दी ही संज्ञान लेने की जरूरत है।
अब जरा रेप मामले पर फिर से पर्दा उठाते हैं। इस साल देश कोरोना से त्रस्त रहा है, पर लोगों की मानसिकता इतनी गिरी हुई है कि इंसानियत अपने आप पर भी शर्मिंदा होती हैं। कोरोना से संक्रमित लड़कियों तक को नहीं छोड़ा गया। केरल में एक एंबुलेंस चालक ने कोविड-19 पीड़ित लड़की से रेप किया। लड़की की हालत एकदम नाजुक थी। यह केवल अकेला केस नहीं है जिसमे इंसानियत ने समाज की बेबसी पर तमाचा मारा है। ऐसे कितने कोविड केयर सेंटर हैं, जहां कोरोना पॉजिटिव से रेप की घटना सामने आई है चाहे वह दिल्ली के छतरपुर इलाके के सरदार पटेल कोविड केयर सेंटर की बात हो या बिहार के गया जिले में एक गर्भवती महिला के साथ रेप हुआ हो। उसकी तो मौत भी हो गई। यह सभी मानवता को शर्मसार करने के लिए काफी है। बात यही पर खत्म नहीं होती है।
अलीगढ़ की भी कहानी सुन लीजिए — 28 साल की एक मरीज अलीगढ़ के डीडीयू हॉस्पिटल में एडमिट हुई,जहां रात में ड्यूटी पर जो डॉक्टर नहीं था, उसने उसके साथ दो बार रेप करने की कोशिश की। जब रक्षक ही ऐसा करने लगे तो किस- किस पर विश्वास करें ये बेबस बेटियां।
जब पूरा देश लॉकडाउन में था,तब एक घटना किसी मासूम का लॉकडाउन करने के लिए मुंह बाए खड़ी थी। झारखंड के दुमका में 16 साल की एक लड़की गैंगरेप की शिकार हुई।यह घटना इसलिए भी डराने वाली है कि लड़की अपने जिस दोस्त के पास मदद के लिए गई थी, उसी ने खुद उसके साथ रेप किया।फिर उसकी परिस्थितियों का गलत फायदा उठाकर 10 लोगों ने उसके साथ रेप किया।जब पूरा देश इस कोरोना से जूझ रहा था,उस समय यह घटना भी हैवानियत की सारी सीमा पार कर गई थी।
सबसे मजाक वाली बात यह होती है कि चाहे इस तरह के कितने cases हो, सब में एक चीज जरूर होती है कि रिपोर्ट दर्ज कर लिया गया, अपराधियों को पकड़ लिया गया है या सभी आरोपियों को जल्द पकड़ लिया जाएगा आदि आदि। यहां पर यह सवाल जरूर उठाना चाहिए की सजा कब मिलेगी? बेटियों को इंसाफ कब मिलेगा या अपनी बेबसी पर अत्याचार सहना ही इनकी नियति है ?आखिर कब तक अदालत में अपने लिए अपराधियों के खिलाफ सजा ढूंढती रहेंगी?
देश में घट रही हर दिन की ताजा तरीन घटनाओं से तो यही पता चलता है कि यह सिलसिला थमने वाला नहीं है। क्या मुझे भी अपने हर दूसरे तीसरे पोस्ट में ऐसे ही घटनाओं का जिक्र करना होगा? ऐसे- ऐसे कई सवाल मन में तूफानों को उठाते हैं कि क्या केवल सांत्वना के चंद शब्द बेटियों के जिस्म पे पड़ने वाले ज़ख्मों को मिटा सकेंगे, जो बाद में अंतर्मन को भी छलनी कर देता है। देखते हैं भविष्य में क्या स्थिति रहती है? मानसिक विचार बदलेंगे, न्याय तंत्र में सुधार होगा या बेबसी का आलम ही बरकरार रहेगा ! सोचने वाली बात है।
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