मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
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मुंह ढकना हमारी नहीं नियति
अपनी अस्मत के लिए हमेशा लड़ती
जन्म से पहले कोख दगा दे जाता है
जन्म के बाद शरीर बुरी नज़रों से बच नहीं पाता है
इज्जत तार – तार करने वाले बचकर निकल जाते हैं
हम बस सुनी आंखों से इंसाफ की आस में रह जाते हैं
जिस्म के साथ – साथ आत्मा भी कराह उठती है
हमारे लिए भी कैंडल मार्च की कतारें लगती हैं
सीता,दुर्गा,लक्ष्मी की ये हमारी धरती
यहां की बेटियां खुद के लिए जीने की वजह है मांगती
हमारी लूटी अस्मत की खबरों से अख़बार का कोई कोना होता नहीं है खाली
हम भी सुरक्षित रहें,दूर – दूर तक विश्वास की नज़रें घुमा ली
काश ऐसा भी कोई जहां हो
जहां उन्मुक्त गगन में हमारे भी पंख फैले हों
क्यूंकि मुंह ढकना हमारी नहीं नियति
हमें भी जीना है,हर सांस हमारी है कहती
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Nice…
Such an irony of society.. Hats off to ur writing..
Good one👌👌