तलाश(वैंपायर लव–स्टोरी)अंतिम भाग
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
थक गया हूं मैं, हाँ! थक गया हूं मैं,
केवल एक सुकून की तलाश में
कहां से चला था और आज कहां हूं मैं,
मुझे तो यह भी पता नहीं कि
जिंदगी मुझे ले जा रही है कहाँ,
थक गया हूं मैं, हाँ! थक गया हूं मैं,
हर गम समेटे अपने में, सभी की खुशी के लिए
जिंदा हूँ मैं केवल अपनों की हंसी के लिए,
हर सुबह निकल पड़ता हूं ये सोचकर
कि शाम तक फिर आऊंगा
एक बार फिर से अपनी शाम अपनों के साथ बिताऊँगा,
थक गया हूं मैं, हाँ! थक गया हूं मैं,
रोज़ सोचता हूँ कि अब अच्छा होगा,
अपने खुश रहेंगे तो सब अच्छा होगा,
पर किस्मत का भी क्या कहना,
इतने ठोकर खाकर भी जिन्दा हूँ,
क्या ख़ाक अच्छा होगा,
थक गया हूं मैं, हाँ! थक गया हूं मैं,
कभी तो मेरे भी दिन सुधरेंगे,
दिन ठीक होगा तो सब ठीक होंगे,
ऐसा समय मेरा भी आएगा,
एक पल में सब ठीक हो जायेगा,
सोचता हूं मैं, हाँ! अब यही सोचता हूं मैं।
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे लोग पता नहीं कहां चले गए और बस भी अंधेरे को चीरती पता...
अब तक आपने पढ़ा–– जयंत को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे कैसे पता करें निधि के बारे में? हर दिन ...
अब तक आपने पढ़ा...... जयंत के सामने हर दिन नई– नई सच्चाई सामने आ रही थी। वह निधि से पीछा छुड़ान...
अब तक आपने पढ़ा…… हर दिन घटने वाली नई-नई घटनाऐं अब जयंत को परेशान करने लगी थी...
Nicceeeee
sunder rachna hai aapki