मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –3)
...
अपने हालात के बारे में,
कुछ सोच रही थी मैं समंदर के किनारे में,
एक तेज लहर का झोंका आया,
पानी की फुहारों ने भी मेरे गालों को नहीं सहलाया,
मेरी उदासी अब मायूसी मे बदलती जा रही थी,
मेरी बेबसी भी मेरा मज़ाक उड़ा रही थी,
आंखों के आंसू भी फुहारों में छिप गए थे,
नजरें भी दूर किसी के इन्तज़ार में खो गए थे,
पता नहीं जिन्दगी अब और कितने इम्तहान लेगी,
जिन्दा भी रखेगी या फिर मौत देगी,
जिस सुकून की तलाश में बचपन बीता, जवानी बीती,
आंखोँ को भी मालूम नहीं, बस वो हैं रोती
संघर्ष करते – करते बीती जाती है जिंदगानी
पर मैंने भी हार मानने की नहीं है ठानी
शिला पे बैठे उठ रही है मन में तरंग
पानी की फुहारों ने भिंगो दिया अंग- अंग
ना रुकेंगे,ना थकेंगे
जिंदगी की हर जंग जीत के रहेंगे
अस्ताचलगामी सूर्य की किरणें
लगे हैं मन को झकझोरने
उठ जा,जग जा
मन के निराशा को हटा जा
निम्मी! अरी! ओ निम्मी, कहां रह गई है रे, आवाज देते हुए मिताली ने बिस्तर से उठने की कोशिश की, पर उसकी बीमार...
अब तक आपने पढ़ा––– जयंत जब बस में बैठा था तो बस ठसा– ठस भरी हुई थी,पर अचानक से बस में बैठे ...
अब तक आपने पढ़ा–– जयंत को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे कैसे पता करें निधि के बारे में? हर दिन ...
Bahot bahot saandaar likha hai aapne…
Excellent written 👏 👌
👌👌
Beautiful piece of art ✨ ❤
👏👏👏👏👏