🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
...
ऑफिस के लिए जब भी निकलती,मां एक काला टीका हमेशा कान के पीछे लगा दिया करती ।लाख मना करने के बावजूद ये उनका रोज का काम था।कहती कि बुरी बला से तुम्हारी रक्षा हो।उनका प्रेम देखकर मैं भी चुप हो जाया करती थी।बाबूजी पीछे अख़बार पढ़ते हुए मां की बातों पर चुटकी लिया करते। खैर, इसी तरह से हंसते- खेलते हमारी जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ रही थी।
बस पकड़ने के लिए थोड़ी दूर पैदल चलकर सड़क तक जाना पड़ता था।एक दिन यूंही देर हो गई।भागम भाग करते हुए सड़क पर पहुंची ही थी कि मेरे पैर का एक सैंडल टूट गया। हे भगवान क्या करूं मैं अब?आस पास नजर दौड़ाई कि कहीं कोई मोची मिल जाए।तभी दूर एक मोची नजर आया।अपना सैंडल उसे देकर वहीं पास के ही एक शिला पर जाकर बैठ गई।तभी कानों में ठक-ठक की आवाज सुनाई दी।देखा वहीं पास के एक झोपड़े से ये आवाज आ रही थी।कौतूहलवश आगे बढ़ी तो देखा एक बूढ़ी औरत पत्थरों को तोड़ने का काम कर रही थी।हाथों की कम्पन से पत्थर दूर दूर भाग रहे थे। वो अपने काम में इतनी मगन थी कि एक नजर उठाकर भी नहीं देखा।
तभी मोची ने आवाज लगाई कि सैंडल बन गई है,आकर ले लो।पता नही उस अम्मा में ऐसी क्या बात थी,जो मैं पीछे मुड़- मुड़कर देखने लगी। उस दिन ऑफिस भी देर से पहुंची।पर काम के बीच में अम्मा की जीर्ण- शीर्ण अवस्था मुझे बहुत विचलित कर रही थी।एक भावनात्मक या यों कहिए कि एक बूढ़ी औरत का इस तरह से मेहनतकश काम करना आंखों को खटक रहा था और अनजाने में ही मैं अम्मा से जुड़ती जा रही थी।अब तो मेरा यह रोज का काम हो गया। मैं जानबूझ कर थोड़ा और पैदल चलकर बस पकड़ने लगी,ताकि मुझे हर दिन वो बूढ़ी औरत देखने को मिले।पर ये भी कम आश्चर्य वाली बात नही थी कि आज तक मैंने उन अम्मा का चेहरा नहीं देखा था,हमेशा सर झुकाकर पत्थरों में जो लगी रहती थी।
एक दिन ऑफिस के लिए निकली तो उसी रास्ते से गुजरी।मैने देखा कि अम्मा के झोपड़े के सामने एक चमचमाती कार आकर रूकी। कार के शीशे की चमक जब उनके चेहरे पे पड़ी तो अनायास ही नजरें उठ गईं।उस दिन मैंने अम्मा को सामने से देखा था।शरीर की कंपन उनकी उम्र तो बयां कर ही रही थी, साथ ही कातर निगाहें भी दुख में डूबी लग रही थी।शायद अपनों के बीच फासले हो या किस्मत का कोई खेल जो इन झुर्रियों की सिलवटों के अंदर छुपा था।
समय यूं ही पंख लगा के उड़ चला। हर दिन मां का काला टीका लगाना, बाबूजी का यूं चुटकी लेना और मेरा ऑफिस के लिए भागना, जिंदगी का पहिया घूम रहा था, पर इस भागमभाग में मैंने अम्मा को हर दिन देखना छोड़ा नहीं। ना जाने क्यों एक आत्मीयता सी हो गई थी उनके साथ। सोचा कि किसी दिन फुरसत में बात करूंगी उनसे। एक दिन जब उस रास्ते से गुजरी तो देखा झोपड़ा खाली था। आसपास नजर दौड़ाई पर अम्मा कहीं नजर ना आई। देखते देखते चार-पांच दिन बीत गए। अम्मा का कुछ पता ना चला। मन बड़ा व्याकुल हो रहा था। किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी।
सोचा आसपास के लोगों से पता करूं उनके बारे में। थोड़ा और आगे बढ़ी तो एक घर नजर आया।चलो वहीं पर पूछती हूं, सोच के दरवाजा खटखटाया वहां जाकर घर के मालिक से पता चला कि उनको मरे हुए तीन-चार दिन हो गए। बेचारी को कंधा देने वाला भी कोई नहीं था मोहल्ले वालों ने मिलकर दाह संस्कार किया।एक ठंडी सांस लेकर घर के मालिक ने बताया कि आज से 10– 15 साल पहले अम्मा का भी एक हंसता- खेलता परिवार हुआ करता था। दो बेटे थे जिसकी हमेशा अम्मा नजर उतारा करती थी। प्यार करने वाले पति थे पर जीवन के रंगमंच में हम इंसानों का जो नाच होता है उसकी असली डोर तो ईश्वर के ही हाथों में होती है। अम्मा के साथ भी ऐसा ही हुआ। जो बेटे मां- मां कहते थकते नहीं थे शादी के बाद पत्नियों के गुलाम बन गए। जब अम्मा के पति का देहांत हो गया तो बहुओं की नजरों में वो और खटकने लगी।
हर दिन की तानों से अम्मा की जिंदगी नरक बनते जा रही थी, पर बेचारी जाती कहां बेटे- बहू के अलावा कोई नहीं था उनका दुनिया में।पर इन औलादों से वह भी नहीं देखा गया। निकाल दिया इस बेचारी को घर से बाहर दर- दर की ठोकरें खाने को।कुछ दिन तो पड़ोसियों ने मदद की पर कोई कब तक खर्चा चलाता।जब अपना ही सिक्का खोटा हो ,तो दूसरे का मुंह कब तक देखें। लोगों की मदद से एक झोपड़ा मिल गया जहां पत्थरों को तोड़ने के साथ- साथ मिट्टी के बर्तन बनाकर भी अपना पेट पाल रही थी।बस किसी तरह से जीना था।मानसिक और शारीरिक तकलीफों के कारण इधर कुछ दिनों से शरीर में ताकत नहीं बची थी कि पत्थरों को तोड़ सके। यही पास में ही एक बंगला है जहां अम्मा के दोनों बेटे ठाट- बाट से अपनी पत्नियों के साथ रहते हैं बिना किसी चिंता के। मां कहां है कैसी है कोई मतलब नहीं।
मन बड़ा भारी हो चला था,अम्मा की कहानी सुनकर।दिल में एक कसक सी रह गई कि उनसे मिल ना सकी।पता नही कैसा युग आ गया है,मां बाप कितने कष्ट सहकर बच्चों को पालते हैं,उनकी नजर उतारते हैं,वही बच्चे आगे चलकर मां बाप को ही नजर से हटा देते हैं।ये कहानी केवल अम्मा की ही नही है,बल्कि देश में जितने भी वृद्धाश्रम हैं,वहां पे ऐसे ऐसे कितने मां बाप अपनी संतानों द्वारा छोड़े हुए हैं।साथ में अम्मा जैसे भी कई और भी बुजुर्ग होंगे ,जिनको मरने के बाद अपने परिवार का कंधा तक भी नसीब नहीं होता है।तभी अचानक से मां द्वारा लगाए काले टीके की बात याद आ गई। मन बड़ा व्याकुल हो उठा उनसे मिलने के लिए।
Some more posts
1.सोच
आसराउफ़ ! कितनी भयानक रात है, आसमान म...
Outsiderबालकनी में कुर्सी पे बैठ के बारिश के म...
अभिनेत्रीकैमरे🧑🦰📸 के सामने तिलोत्तमा अपने अभिनय के रंग दिखा रही थी, पर हर बा...
Amazingly written 👌
Samay ke sath sath manav ki vichardhara bhi badalti ja rhi hai.budhe ma bap ko dekhne wala koi nhi.Lagaye gye kala tika se bewafa ho ja rhe hai log.
Very touching story 👌
Dil ko chuu gyi story…kya likha hai aapne..
Heart touching story……👌👌👌👌
Well done 👍