जज़्बात
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अगर मगर और काश में हूं,
मैं खुद अपनी तलाश में हूं
दिन के उजालों को सहने की नही है ताकत,
इसलिये मैं बुझते हुए दीये की प्रकाश में हूं
खेलती है दुखों के साथ,
ज़िन्दगी बड़ी शरारती है,
सताती है, तड़पाती हैै, गिराती और उठाती है,
नासमझ सा हो गया हूं मैं,
अब ना किसी की अह्सास में हूं,
अगर मगर और काश में ,
मैं खुद अपनी तलाश में हूं,
अब तो करवटें भी नींद का कत्ल करने लगी हैं,
आखें खोल के रख दिया है मैंने,
अच्छे की नही, मैं कयामत की आस में हूं
अगर मगर और काश में हूं
मैं खुद अपनी तलाश में हूं
संवरने का सवाल ही नही उठता,
जुड़ने का मतलब नही,
मेरी तो शब और सुबह खराब है,
क्योंकि हम तो बिखरे ही लाजवाब हैैं,
मुफलिसी के ये दिन भी जायेंगे गुज़र,
अब बस इसी विश्वास में हूं
अगर मगर और काश में हूं
मैं खुद अपनी तलाश में हुँ ।।
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Very very nice Di…….👌👌👌
Waah !! Very beautiful creation.. Sab apni Talash me hai…
Waah !! Very beautiful creation.. Sab apni Talash me hai…
Extraordinary Poem written by you…👌👌👍👍👏👏
It’s really nice 👍
Bahot bahot saandaar