🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
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हरिया,अरे ओ हरिया! क्या कर रहा है भाई? जैसे ही दीना की आवाज सुनी,हरिया झट से गमछा कंधे पे डाल कर मुंह साफ करते हुए बाहर निकला। उसे पता था कि दीना उसे क्यूं बुला रहा है। असल में रोपनी का समय नजदीक आ रहा था, बीज की व्यवस्था करनी थी, पास में पैसे नहीं थे इसलिए दोनों मिलकर रामधन महाजन से कर्ज लेने की बात करने के लिए जाने वाले थे। फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक जो व्यवस्था करनी पड़ती है वह एक किसान ही जान सकता है। पिछले साल ओलों ने फसलों को बर्बाद कर दिया। नतीजा औने- पौने दाम पर बचे – खुचे अनाजों को बेचना पड़ा। अपने बच्चे की तरह फसलों की सेवा करो और उसका परिणाम अच्छा ना आए तो किसानों के लिए बड़ा दुखदाई हो जाता है। उनकी पूरी आर्थिक दशा इन खेतों पर ही तो निर्भर करती है। पैसों की बहुत जरूरत थी। हरिया की बीवी सुखदा के शरीर को ढके हुए धोती पर दिखने वाले पेबंद उनकी गरीबी की कहानी बोल रहे थे।
हरिया को पता था कि महाजन से कर्ज लेने का परिणाम क्या होता है। ब्याज पर ब्याज का बढ़ता जाना, पर इसके सिवा कोई चारा भी तो नहीं है। सरकारी सुविधाओं का हम किसानों तक पहुंचना बहुत बड़ी बात है। हरिया और दीना दोनों हाथ जोड़कर महाजन के पास खड़े थे। वहां और भी किसानों की भीड़ लगी हुई थी। दीना,ओ दीना! महाजन ने गला साफ करते हुए जब आवाज लगाई तो दीना कांपती आवाज में बोला “माई – बाप रोपनी का समय नजदीक आ रहा है। घर में पैसे नहीं है। कुछ उधार दे देंगे मालिक तो हम गरीबों का भी भला हो जाएगा। अगली फसल को बेचने के बाद जो रकम मिलेगी उससे पाई- पाई चुका दूंगा।” महाजन ने जब पिछले बहिखाते को देखा तो आंखें तरेर कर बोला कि “पहले का कर्ज तो चुकाया नहीं, अगले कर्ज के लिए हाथ पसारने आ गया।” महाजन किसी भी कीमत पर कर्ज देने के लिए तैयार नहीं हो रहा था, तब दीना ने अपने खेतों को गिरवी रख दिया।अब बारी हरिया की थी।उसके तो खेत भी अपने नहीं थे। किसी और की जमीन पर वह खेती करता था,जो फसल होती, उसका आधा खेत के मालिक को जाता था। रामधन महाजन कर्ज देने में आना कानी कर रहा था।बोला कुछ बंधक बनाओ ,तब दूंगा। अंत में उसने अपने आप को ही गिरवी रख दिया।ऐसा प्रतीत होता है कि इनकी जिंदगी की कोई औकात ही नहीं है।अपने माथे पे ये लोग ऊपरवाले से ही ग़रीबी और दासता लिखवा कर लाए हैं शायद।
कितनी ताज्जुब की बात है ना, जो अनाज हम खरीदते हैं उसके उपज की शुरुआत गरीब अपने खून से सींचकर करते हैं। भारत की आधी आबादी किसानों की है। सरकार ने जो सुविधाएं उन्हें प्रदान की है उन तक पहुंच ही नहीं पातीं। आज भी लोग पुराने तकनीकों से ही खेती कर रहे हैं, इस पर महाजनों का अत्याचार। बेचारे गरीब कहां तक और कब तक सहते रहेंगे? आंसुओं को कोरों से छिपाकर महाजन के यहां से जब दोनों निकले तो एक ठंडी सांस ली।पर आने वाले भविष्य की चिंता उन्हें सता रही थी। हरिया यही सोच रहा था कि भगवान भी तो हम गरीबों की ही परीक्षा लेते हैं।
चलो पैसे का इंतजाम तो हो गया। अब जल्द ही फसलों की बुवाई कर लेते हैं। दिन रात जगकर दोनों ने खेतों की जुताई की। फिर बीजारोपण कर दिया। हरिया को अपने लहलहाते खेतों को देखकर खुशी की कोई सीमा नहीं हो रही थी। फसलें पक कर तैयार थीं बस कुछ दिन में कटाई हो जाएगी। इस साल फसल अच्छी हुई है, दाम भी अच्छे मिलेंगे। यही सब सोचकर हरिया ने मानो कितने महीने बाद चैन की नींद ली। महाजन का कर्जा भी चुकता हो जाएगा।एक किसान को अपने फसलों से कितनी उम्मीदें होती है ,वो हरिया की आंखें बयां कर रही थीं। पर होनी को कौन टाल सकता है?
दीना के गला फाड़- फाड़ कर रोने की आवाज सुनकर हरिया अचानक नींद से जागा। पूरे गांव में कोलाहल मची हुई थी। पता चला कि जंगली जानवरों का एक झुंड रात में आया और जाने कितने खेतों को रौंद डाला। इसमें दीना के खेत भी शामिल थे। बेचारा दीना अब क्या करेगा? कैसे महाजन का कर्जा चुकाएगा और कैसे अपना और अपने परिवार का पेट पालेगा?चारों तरफ से रोने की आवाजें आ रही थी। हरिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि दीना को कैसे समझाएं।
कुछ दिन के बाद ही महाजन ने दीना के खेत पर कब्जा कर लिया। बेचारा किसान क्या करे? जीवन जीने के लाले पड़ने लगे। अपना पेट कैसे पाले,यही दुश्चिंताओं में दीना जिंदगी की घड़ियां गिनने लगा।कई जगह काम के लिए हाथ – पावं मारे पर एक गरीब और अनपढ़ किसान को क्या काम मिलेगा? एक दिन जीवन से हताश हो कर दीना ने आत्महत्या कर ली। उसकी पत्नी छाती पीट-पीटकर रो रही थी। दीना के अलावा गांव के कुछ और किसानों ने भी आत्महत्या की थी। हरिया को सुनकर काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई ।हरिया के खेत बचे हुए थे। बड़े भारी मन से उसने अपनी फसलों की कटाई की जिसमें से आधा तो खेत के मालिक का हुआ और आधे को बेचने मंडी चल दिया।
हमारे यहां जो कृषि – प्रणाली है, वह गरीबों को लाभ ना देकर बिचौलिए को लाभ पहुंचाती है।बिचौलिए मतलब किसान और ग्राहक के बीच के लोग। किसान जो धूप, गर्मी, बरसात को सहकर अपनी फसलों की सेवा करता है और जब इन्हीं फसलों को बेचने मंडी जाता है तो उन्हें औने- पौने दाम ही मिल पाते हैं। ये बिचौलिए किसानों से कम दाम में अनाज खरीद लेते हैं और खुद मंहगे दामों में बेचते हैं। हरिया के साथ भी यही हुआ। जिन फसलों के दम पर उसे अपने कर्ज को खत्म करना था वह निरा साबित हुआ।
महाजन के सामने वह रोया- गिड़गिड़ाया, पर उसके कानों पर जूं नहीं रेंगी।रामधन को तो बस अपने पैसे की ही चिंता थी। हरिया ने तो अपने आप को ही गिरवी रख दिया था। महाजन ने उसे कल से अपने घर में काम करने के लिए रख लिया। बैलों की जगह पर उसे हल में जोतकर खेत जोतने का काम दिया गया। हरिया को अपने परिवार की चिंता हो रही थी। उसके बाद क्या होगा?सुखदा का,बच्चों का खयाल कौन रखेगा? जाने कितनी परेशानियों के साथ इन गरीब किसानों की जिंदगी कटती है। वही बता सकते हैं जिन पर ये गाज गिरती है।जब तक हरिया जिंदा है,कर्ज को चुकाता रहेगा।अगर उसके बाद भी पैसा बच गया,तो उसके बच्चे बंधक बने रहेंगे।अपने पिता की दासता वहीं संभालेंगे,क्यूंकि महाजन का तो ब्याज पे ब्याज लगता है। ऐसी ही होती है किसानों की जिंदगी। सूनी आंखों से अपने बच्चों को सीने से चिपकाए दरवाजे पर टकटकी लगाकर सुखदा खड़ी है, शायद महाजन का दिल पिघल जाए और हरिया वापस आ जाए। पता नहीं अब क्या होगा?😒
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Heart touching story..😐😒
Excellent written 👏