🌶️🌶️🥵तीखी मिर्ची(Last Part)🌶️🌶️🥵
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सुबह के 10 बज रहे थे, पर शांताबाई का अभी तक कोई पता ठिकाना नही था। इतना तो कोई अपने प्रेयसी का भी इंतजार नहीं करता, जितना मैंने उसके इंतजार में पूरे घर में मैराथन कर लिया था। 🤔🤔कौन है ये शांताबाई, क्या वजूद है उसका हमारे घर में? तो भईया, बात ऐसी है कि शांताबाई हमारी कामवाली है, एक ऐसी जीव जो अगर हमारे घर में दस्तक ना दे तो सारे काम रुक जाते हैं। आज के लाइफस्टाइल का फंडा ये है कि चाहे खर्चे में कितनी कटौती कर लो, पर अपुन के घर में कामवाली तो जरूर होनी चाहिए। वैसे इन कामवालियों के फायदे भी अनेक हैं।
पड़ोसियों के सामने अपना रुतबा बढ़ाने में ये महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मतलब यह कि उस दिन जब नीचे मोहल्ले की औरतें सब्जी ले रही थी तो मैं भी वहीं थी। वहीं पता चला कि मिसेज खन्ना ने तो नौकरानी रखा ही नहीं है। मिस्टर खन्ना की साधारण सी जॉब है, कामवाली का खर्चा कहां से उठाएंगे। खुद अपने हाथों से घर का सारा काम संभालती हैं। बिल्डिंग की सारी औरतें यह सुनकर भौचक्की हो गई थीं, मानो चिड़ियाघर में कोई विलुप्तप्राय जानवर को देख लिया हो। मैं तो अपने पे इतराने लगी,चलो मेरे घर में तो बाई है।
ऐसा है ना कि अब मुख्य मुद्दे पे आते हैं। मैं भी इन नेताओं की तरह बातों को घुमाने लग जाती हूं। आपने बहुत सारी प्रतियोगिताओं के बारे में सुना होगा, पर गला काट प्रतियोगिता तो सबसे अव्वल है। इसमें पड़ोसियों के बीच में रेस होती है। तुम्हारे घर में यह समान है तो मेरे घर में भी होना चाहिए। पड़ोसियों के घर आए नए चीजों पे हमारी गिद्ध दृष्टि होती है।
हां! यहां पे इन कामवालियों का काम बढ़ जाता है। वो ऐसे कि एक घर से दूसरे घर में खबरों का आदान– प्रदान तो इन्हीं के जिम्मे होता है ना। जी न्यूज ,आजतक वाले बेकार में इतनी मेहनत करते हैं खबरों के कवरेज में। इन कामवालियों को ये पदभार दे दिया जाए, तो ये बखूबी निभा सकती हैं। खैर, मैं इस प्रतियोगिता में पीछे रह जाऊं, ये कभी हो सकता है क्या?
समय जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था मैं भी भट्टी की तरह गर्म हो रही थी🌞। सारा काम पसरा हुआ है, पर महारानी जी पता नहीं कहां रह गई है। अगर पड़ोस के घर में पहले चली गई होगी, जैसे ही यह बात मन में आई मैं गुस्से से ऐसे उछली, मानों शेयर बाजार में बहुत बड़ी उछाल आई हो। अपने समय में पड़ोसियों के घर का काम खत्म होना कतई मंजूर नही था मुझे। आखिर जलन भी तो कोई चीज है। दूसरी औरतों को अपने काम से इतनी जल्दी फारिग होना कैसे देख सकती थी मैं।?😱😱
आने दो बताती हूं उसे, कोई मुफ्त में तो काम करती नहीं है। यह सब सोच ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी। कभी खुशी कभी गम में शाहरुख खान को दरवाजे पे खड़ी देखकर जया बच्चन को जैसे खुशी हुई थी, वैसे ही खुशी मेरे अंदर होने लगी। जरूर शांताबाई होगी,यही सोच के दरवाजा खोला। देखा कमर पे हाथ रखकर घंटी बजाए जा रही थी।
शिकायती लहजे में जब मैंने उससे देर से आने का कारण जानना चाहा। बस कहने की देर थी, शुरू हो गई न्यूज चैनलों की तरह अपनी बात रखने को। पतिदेव ऑफिस चले गए थे, बच्चे भी स्कूल जा चुके थे। अब शांताबाई से आराम से गॉसिप करूंगी। पता तो चले आखिर समाज में हो क्या रहा है🤔🤔। मन के सारे मैल शांताबाई की खबरों से धूल जाएंगे। आप सोच रहे होंगे कि यह शांताबाई तो बड़ी काम की चीज है। गिले– शिकवे मिटाने का ठेका भी ले रखा है।
अपनी साड़ी को कमर में खोंसते हाथ चमकाते हुए बोली कि बीवी जी! पता है पड़ोस के जो वर्मा जी हैं उनके घर में 48 इंच की टीवी आई है ।एकदम स्लिम ट्रिम, दीवार पे चिपका दो बस। मिसेज वर्मा तो ऐसे इठला रही हैं मानो Home theatre खरीद लिया हो।
तभी सामने टेबल पर रखी टीवी पर मेरी नजर गई🙄। कंखियो🧐से मैंने शांताबाई के तरफ देखा, जो पहले से ही मुंह बिचकाकर टीवी की तरफ देख रही थी। ये मन भी ना, दूसरों की खुशियों को देखकर रह नहीं पाता है और तुरंत अपने आप को गला काट प्रतियोगिता में शामिल कर देता है, चाहे उसके लिए पति का जेब आवाज़ दे या न दे।
🤨 आने दो शैलू के पापा को थोड़ा रूठ कर, थोड़ा मनाकर टीवी बदलने को कहूंगी। वैसे भी यह outdated हो गया है। शांताबाई के हाथ जितनी तेजी से चल रहे थे, जबान भी कैंची की तरह ही भाग रही थी पड़ोस की खबरों को सुनाने में।
बीवी जी यह लो किचन का काम तो खत्म हो गया अब जरा गंदे कपड़े भी निकाल दो, साफ कर देती हूं। कब से कह रही हूं पगार बढ़ाओ, पगार बढ़ाओ लेकिन आप सुनती कहां हो। आपके घर को छोड़कर जहां-जहां भी काम करने जाती हूं वाशिंग मशीन में कपड़े धोती हूं और वह भी पूरी ऑटोमेटिक।
अब और नहीं, यह दो टके वाली बाई भी मुझे ऐसे सुना रही है मानो मेरी सास हो। अब तो शैलू के पापा को मना कर ही रहूंगी। समाज में अपना भी तो रुतबा बनाना होता है। अब इन पत्नियों को कौन समझाए कि उनका रुतबा हमेशा पड़ोस के यहां सामान आने से कैसे कम हो जाता है। चुनावी सभा के दौरान नेताजी का टेप रिकॉर्डर जैसे चालू रहता है ठीक वैसे ही मैं बड़– बड़, बड़– बड़ किए जा रही थी।रुआंसी होकर रिमोट उठाया और टीवी बंद कर दी।मन बड़ा ही खट्टा हो चला था।
शांताबाई भी काम करके चली गई और साथ में छोड़ गई अपनी खबरों के पुलिंदे। तभी दरवाजे की घंटी बजी, सोचा शैलु के पापा होंगे, दरवाजा खोला तो सामने मिसेज वर्मा खड़ी थी, एकदम चमकती हुई साड़ी पहनकर। अब तो अपने टीवी का बखान कर मुझे नीचा दिखाने में कोई कोर– कसर नहीं छोड़ेगी। खींसे निपोरते हुए किसे नहीं बोलते हुए मैंने दरवाजे से ही उन्हें लौटाना चाहा, पर पड़ोसियों के अंदर जो दिखाने की भावना होती है वह प्याज के दाम की तरह उफान मार रही थी। किसी तरह से अतिथि तुम कब जाओगे की तरह जबरदस्ती अंदर घुस गई। सामने टीवी था ही, राग छेड़ दिया।
बात यहीं पे खत्म होती तो कहा भी जाता।जब उन्होंने अपनी साड़ी की बखान की और बोला कि यहां पास के ही मॉल में साड़ियों की भीड़ लगी हुई है पर तुम कहां से जा पाओगी।तुम तो sell लगने का इंतजार करती हो। कढ़ाई के गर्म तेल में लगे जीरा के छौंक की तरह बस जल के रह गई मैं। उन्होंने तो अपना काम कर दिया था,बस वहां से चलती बनी।
उनके जाने के बाद रिमोट उठाया और टीवी बंद। शाम को शैलू के पापा घर आए तो देखा मेरा मुंह गुब्बारे की तरह फूला हुआ है। मनोहार करने पर पता चला कि मामला कहां फंसा है। मैंने भी कह दिया कि जब तक 48 इंच की टीवी नहीं आएगी टीवी बंद। लाख पतिदेव ने समझाया, अपने सीमित सैलरी की दुहाई दी पर मैं तो गीता पर हाथ रखकर जैसे कसम खाकर ही बैठी थी। पत्नियों को मनाना सही में मुश्किल काम है और जब बात अपनी सहेलियों के सामने अपना स्टेटस दिखाने की हो तो फिर कहना ही क्या।
1 हफ्ते के अंदर 48 इंच की टीवी आ गई और वो भी EMI पर। एक मिडिल क्लास का यही तो सहारा होता है, जो देखने पे तो अच्छा लगता है पर भरने में जान निकल जाती है। मेरी तो खुशियों का कोई ठिकाना ही नहीं था। पति की जान सांसत में चली जाए,पर इस प्रतियोगिता में अव्वल आने की खुशी मेरे चेहरे से टपक रही थी।
पर मन अभी भी शांत नहीं हुआ था। टीवी आए हुए एक महीना हो गया था।पर कहते हैं ना कि आदमी की चाहत कभी खत्म नहीं होती। ठीक यही बात मेरे साथ भी हो रही थी।
अब बस एक वाशिंग मशीन आ जाए तो शांताबाई के सामने मेरी नाक भी रह जाएगी, वरना कब काम छोड़ दे उसका कोई ठिकाना नही है। बड़े ही नखरे सहने पड़ते हैं इन कामवालियों के। पर सबसे बड़ी मुसीबत यह थी कि पतिदेव को मनाऊं कैसे? विपक्षी पार्टियों की तरह सबसे पहले उंगली उठाना शुरू किया। जैसे क्या क्या अरमान लेकर आई थी मैं यहां।सारे सपने अधूरे ही रह गए😒😒। ताने मारना तो अपनी सास से सीखा ही था। ननद से सीखी नमक मिर्च लगाकर कहने की आदत बड़ी काम आई।
पत्नी अभिनय कला में कितनी माहिर होती है यह ब्रह्मा जी भी हमारी रचना करके बड़े प्रसन्न होते होंगे कि कितना समझदारी भरा काम किया है। किसी तरह से शीशे में उतारने के बाद हफ्ता 10 दिन लगे होंगे वाशिंग मशीन को लाने में। पहले तो पति ने कहा कि semi automatic लाते हैं,सस्ता मिल जाएगा।पर मेरे रुतबे का क्या? आखिर आ ही गई fully automatic machine।बेचारे पतिदेव, उनकी तो खून पसीने की आधी कमाई EMI में ही कट जाती थी और उधर मैं अंदर ही अंदर खुश हो रही थी कि सब्जी लेने जाऊंगी तो अपनी चीजों का बढ़– चढ़ कर तारीफ करूंगी। एक नवविवाहिता सावन की पहली झड़ी में जैसे मस्त होकर नाचने लगती है , ठीक वैसी ही खुशी मुझे हो रही थी।
बड़े– बुजुर्ग सच ही कह गए हैं कि इन गला काट प्रतियोगिताओं से जाने कितने घर बेदम हो गए हैं। किसी के पास नई साड़ी है तो उसकी बराबरी में मुझे भी साड़ी चाहिए, ऐसी सोच रखने वाली औरतों की कोई कमी नही है इस संसार में।कोई सोफे की बराबरी कर रहा है तो कोई गहने की। अपने अपने समानों का बढ़ चढ़ कर तारीफ करना सोसायटी में चलन सा हो गया है।
शांताबाई, अरी! वो शांताबाई आज क्या खबर लाई है तू,जैसे ही उसने मुंह खोला ,सामने सोफे पे बैठे मेरे पतिदेव ने माथा हाथ रख लिया। पता नही अब कौन सा सामान घर आने वाला है। मैं तो मस्त होकर उसकी बातों को सुनती जा रही थी।कितना अच्छा लगता है घर– घर की खबरों को सुनना।😇😇
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