मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –6)
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तवायफों का वह मुहल्ला, जहां शरीफों के कदम रात के अंधेरों में चहलकदमी करने जरूर आते हैं।भले ही दिन के उजाले में यहां आने से कतराते हों पर दिन ढलते ही जाम से जाम टकराने लगते हैं। कई अट्टालिकाएं थीं, जहां दिनभर मुजरों का आयोजन होता रहता तथा पैरों में बंधी घुंघरुओं की आवाज चारों तरफ गूंजती रहती।तवायफों के नृत्य–संगीत और रूप का रसपान करने को आतुर जाने कितने शरीफ हाथ में जाम का प्याला लिए टल्ली अवस्था में जरूर नजर आ जाएंगे।
🎵🎶मुझे कोई मिल गया था सारी रात चलते– चलते🎶🎵, पाकीजा फिल्म के गाने की स्वर लहरियां इन्हीं भवनों से कहीं आ रही थी। उस आवाज में जो कशिश थी, जो रूमानियत थी उससे हर कोई खींचा चला आता। अपनी मदमस्त आवाज़ और नृत्य से अपने चाहने वालों के दिल में झंकार उत्पन्न कर देती थी सुरैया बेगम।उनकी एक झलक पाने में उनके चाहने वाले सुरैया के मुरीद हो जाया करते।शाम की बैठक में मुजरे होते,संगीत होता ,जाम से जाम छलकाए जाते।
पर एक बात तो थी, सुरैया बेगम ने अपनी कला को कभी वासना का शिकार नहीं होने दिया। बस नृत्य और मुजरा ही उनकी महफिल की शान बनते थे।सच्चाई भी यही है कि गलत तवायफें नहीं होती हैं,बल्कि उन पर पड़ने वाली नजरें गलत होती हैं।
सुरैया बला की खूबसूरत थी। उनकी दो पुश्तों का दाना– पानी यहीं से चलता आ रहा
तभी दासी ने पीछे से आवाज़ लगाई–बीबी जी!बैठकखाने में लोग तशरीफ़ ला रहे हैं,मुजरे का वक्त हो चला है।ये सुनकर अपनी आंसुओं को पोंछते हुए उठी ।भले ही उनका दामन पाक था पर लोग तो उन्हें गलत नजरों से देखा करते ही थे।महफिल में छींटाकशी भी होती,जाम से जाम टकराए जाते फिर नशेड़ियों का बड़ बोलापन भी सहना पड़ता।
उस दिन शाम को सुरैया सज– धज के महफ़िल में आई। उनके चाहने वालों की नजर जैसे ही उन पर पड़ी, मुंह से निकला–शुभानल्लाह! क्या खूबसूरती है!सुरैया ने सबका अभिवादन कुबूल किया ।महफिल सजने लगी और सुरैया नृत्य में व्यस्त हो गई।
🎵🎶चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो🎵🎶इस गाने पे नृत्य चल रहा था।तन्मय होकर सुरैया जाने किन ख्यालों में खो गई थी। उस दिन बैठक खाने में एक खानसाहब भी आए हुए थे। हर एक ठुमके पे एक नज़राना देना सबकी आंखें चौंधिया रही थी।पर इन सबसे बेखबर सुरैया के घुंघरू की छनक रुक ही नहीं रही थी। सभा खत्म हो गई थी और लोग टेढ़ी चाल में चलते हुए वापस जाने लगे। उस समय सुरैया भी अपने घुंघरुओं को उतारने में लगी हुई थी।
पीछे नजर गई तो देखा कि एक साहब अभी भी जमे हुए हैं। हुजूर! आप अभी तक उठे नहीं, सुरैया ने आवाज लगाई। खान साहब नशे की हालत में आगे आए और उनकी जुल्फों को छूते हुए बोले कि आज तो आपने हमारा दिल जीत लिया। उनकी इस हरकत से सुरैया दो कदम पीछे हट गई। आज तक कभी भी उनके जिस्म को कोई छू नहीं सका था। उसने अपने नौकरों को आवाज लगाई कि इन्हें इनके घर तक छोड़ आओ। पर खानसाहब जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे।नौकरों से पता चला कि शहर के सबसे रईस आदमी थे वे।
पर ना जाने क्यों सुरैया उस दिन के बाद से बहुत बेचैन रहने लगी। खानसाहब की आंखों की कशिश ने उसके दिल के तार झंकृत करने शुरू कर दिए। एक शाम अपने कमरे में शीशे के सामने बैठकर अपनी जुल्फों को सुलझा रही थी, तभी एक दासी ने खान साहब के आने की सूचना दी। उनके आगमन की सूचना ने सुरैया को सकपकाहट में डाल दिया।
अपनी पल्लू को संभालते हुए वह कुर्सी से उठने लगी, तभी खानसाहब कमरे में प्रवेश कर गए। इस समय, बताइए हुजूर! कैसे आना हुआ? खानसाहब ने सुरैया का हाथ पकड़कर उसे बिस्तर पर बैठाया और खुद कुर्सी पर बैठ गए। उन्होंने बड़े ही अदब से उनका हाथ पकड़ा और बोला कि बेगम उस दिन जब आपको पहली बार देखा, तभी दिल आप पर आ गया। आप बला की खूबसूरत हैं।आपकी कला के कद्रदान हैं हम। उस दिन भले ही मैं नशे की हालत में था लेकिन आज मैं आपसे कुछ कहने आया हूं।आपके नृत्य– संगीत में ऐसा जादू है ,जो असंख्य दीयों को एक साथ जला दे। मुझे आपसे मोहब्बत हो गई है। मैं अपनी शादीशुदा जिंदगी से खुश नहीं हूं। आपकी पनाहों में मुझे एक अदद सुकून की तलाश है।
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3.बेबसी
सुरैया तो सकपका गई इन बातों को सुनकर। शहर के नामी– गिरामी आदमी थे खानसाहब। लेकिन तवायफों को कोई अपने घर की इज़्ज़त नहीं बनाता है,इस बात से वो भी भली भांति परीचित थी। लोग उनसे मोहब्बत तो करते हैं पर कोठे पर ही। यहां से बाहर की दुनिया में इन पे बस उंगलियां ही उठती है।सच जानते हुए भी सुरैया दिल के किसी कोने में हसरत पाली हुई थी कि उसका अपना परिवार हो, शौहर हो, बच्चे हों।पर दूसरी सच्चाई यह भी है कि तवायफों को ये मयस्सर कहां हो पाता है। अगर ऐसा होता तो उनकी नानी ,मां सभी कोठे पर ही दफन नहीं हो गए होते।
शादी तो हुई नहीं थी इन लोगों की। खान साहब जैसे कितने लोग इनकी जिंदगी में आए होंगे, प्यार का भरोसा देकर इनकी आबरू से खेल कर वापस उसी दलदल में छोड़ गए। सुरैया को तो पता भी नहीं था कि उसका पिता कौन है? एक तन्हाई भरा जीवन हमेशा वह जीती आई है।इन मर्दों से उसे बहुत चिढ़ थी, तभी तो आज तक उसने अपने जिस्म को किसी को छूने नहीं दिया था।
खान साहब शादीशुदा थे पर इस शादी से कोई खुशी नहीं मिली उनको।सुरैया ने जब बोला कि आप अपना दुख हल्का करने यहां आते हैं और मेरी ओट में अपनी खुशी तलाश रहे हैं तो भूल जाइए कि मैं आपके मोहपाश में बंधूंगी भी। खानसाहब ने उससे बार-बार कहा, भरोसा दिलाया पर वह टस से मस नहीं हुई। ना जाने कितनी लड़कियों को बर्बाद होते देखा था उसने। अपना दुपट्टा संभाला और चल पड़ी। खान साहब सुरैया– सुरैया चिल्लाते रह गए पर उसने पीछे देखा ही नहीं।
उस दिन सुबह से ही बारिश हो रही थी। आज सुरैया का सर भी बड़ा भारी– भारी लग रहा था। खिड़की के फानूस को हटाकर उसने बारिश की बूंदो को छूना चाहा, तभी नीचे जीने पे नजर गई। उसने देखा कि खानसाहब पानी में भींगते हुए खड़े हैं और लगातार छींकें जा रहे हैं। उसका कलेजा मुंह को आ गया। उसने नौकरों को आवाज दी और खुद भी अपनी दुशाला उठाया और भागी।
खानसाहब सर्दी से कांप रहे थे, जाने कितने समय से पानी में भीग रहे होंगे, सोच– सोच के सुरैया परेशान हो रही थी।जल्दी से उन्हें ऊपर ले गई, लोआन जलाया, जिससे पूरे कमरे में गर्माहट आ गई। थोड़ी देर के बाद खान साहब जब सामान्य होने लगे,तब जाकर सुरैया की जान में जान आई। सुरैया तो उनकी इस हरकत पर इतने गुस्से में थी कि उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया करें। चेहरे पर चिंता, मुंह पर हवाइयां और मुंह से निकले शब्द मीठी झिड़की वाले,खानसाहब तो लगातार उन्हें घूरे जा रहे थे।अब उन्हें मस्ती सूझ रही थी। उनकी इस हरकत पर सुरैया ने बुरा सा मुंह बनाया और जाने लगी तो गाना गुनगुनाते हुए🎵🎶 ना जाओ छोड़ के कि ये दिल अभी भरा नहीं🎶🎵 उसका दुपट्टा पीछे से पकड़ लिया।
सुरैया ने अपने हाथों से शरमाते हुए अपने चेहरे को ढंक लिया।उसके हाथों को हटाते हुए खान साहब ने बोला कि बेगम आप मुझपे भरोसा कर सकती हैं। मैं आपसे बेइंतहा प्यार करता हूं और इसके लिए मैं जमाने से भी लड़ जाऊंगा। बचपन से ही सुकून की तलाश को एक मंजिल मिलते देख सुरैया को भरोसा ही नहीं हो रहा था कि उसका भी एक घर होगा, जहां बच्चों की किलकारियां घर को गुंजायमान करते रहेंगी।
शाम हो चली थी खान साहब घर जाने के लिए जैसे ही उठे सुरैया ने उनके हाथों को कस कर पकड़ लिया।एक अनजाना डर उसके मन में साए की तरह बसा हुआ था। भरोसा रखो बेगम, मैं हमेशा आता रहूंगा और आपको इस दलदल से जरूर निकाल लूंगा, कहते हुए वे जाने लगे। समय और प्यार दोनों को परवान चढ़ते देर नहीं लगती। दोनों के प्यार के किस्से पूरे तवायफों के समाज में चर्चा का विषय बन गए थे।सुरैया के मुजरे अधिकतर खान साहब के लिए ही होते थे। जाने कितनी रातें इनकी यहीं कोठे पे ही बीतती।
सुरैया हमेशा उन पर दबाव बनाती रहती कि कब आप मुझसे शादी कीजिएगा कितना वक्त बीत गया पर आप हमेशा टालते जा रहे हैं। खान साहब ने उन्हें समझाया कि बस 1 महीने की बात है,अम्मी मक्का से वापस लौट आएं ,फिर उनसे बात करूंगा।अब उनका मन धीरे –धीरे कोठे से उचट रहा था।उन्हें ऐसा लगता था जैसे वो खानसाहब की अमानत हो और कोई उसपे नजर न डाले।
आज उनकी तबियत कुछ ढीली– ढाली लग रही थी।हकीम को बुलाया तो जांच करने पर पता चला कि वो मां बनने वाली है।ये सुनकर तो जैसे उनके कदम धरती पे पड़ ही नहीं रहे थे।वो खानसाहब के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी।जैसे ही खानसाहब ने जीने पे अपना पहला कदम डाला ,सुरैया बेगम तो जैसे पलक पांवड़े बिछाए दरवाजे पे ही खड़ी नज़र आई।
आज तो आप बहुत खुश लग रही हैं,देखते ही खानसाहब ने टोका।जब सुरैया ने ये खबर सुनाई तो ऐसा लगा जैसे उनके चेहरे पे हवाइयां उड़ने लगी हो। ऐसी प्रतिक्रिया की कोई उम्मीद नहीं थी सुरैया को। उस दिन तो बात आई गई हो गई। पर सुरैया को खान साहब की हरकतों पे अब संदेह होने लगा था। उनका भरोसा हिल सा गया था। खानसाहब पहले तो हर दिन आते– जाते थे। कितनी रातें तो उनकी यहीं गुजरी है।पर इधर कुछ दिनों से उनका आना कम हो रहा था।
एक दिन खानसाहब जब सुरैया से मिलने आए तो उसने पूछा कि देख रही हूं मैं आजकल, जब से मेरी मां बनने की खबर आई है, आपके तोते उड़ने लगे हैं।दोजख भरी जिंदगी से निकालने आए थे आप मुझे।इज्जत भरी जिंदगी की तलाश में मैंने आपसे पनाह मांगा था।उस समय तो आपने भी बड़ी– बड़ी बातें की थीं।अब क्या हो गया?जनाब जिंदगी भाषणबाजी से नहीं चलती है।बोलिए,अब आप चुप क्यों हैं?बहुत देर के बाद खान साहब ने बोला कि मुझे भरोसा ही नहीं हो रहा है कि तुम्हारे पेट में पलने वाला बच्चा मेरा ही है तो मैं कैसे यकीन कर लूं?जाने कितने लोगों से रिश्ते रहे हैं तुम्हारे।
सुरैया को तो जैसे काठ मार गया हो। जिस चीज का डर था वही हुआ। एक तवायफ महफिल की शान तो बन सकती पर किसी के घर की इज्जत नहीं।अब कहने सुनने का वक्त ही नही रहा। आंखों में अग्नि की ज्वाला धधकाए तुरंत उसने खानसाहब को वहां से जाने को कह दिया। आइंदा से कभी अपनी शक्ल मत दिखाना। आपके लिए मेरे दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए। आप भी औरों की तरह ही निकल गए।
उनके जाने के बाद सुरैया फूट-फूट कर रो पड़ी।आखिर जमाने ने उसे उसकी औकात दिखला ही दी।वह जार– जार रोए जा रही, तभी किसी औरत की आवाज सुनाई दी, जो उसका नाम लेकर पुकारे जा रही थी। अपने आंसू को पोंछते हुए जब उसने पीछे देखा तो नूर बेगम खड़ी थी,उसकी दूर की मौसी। पान चबाते हुए उसने अपने सामान को एकतरफ रखा और उसके आंसू पोंछते हुए उससे सारी कहानी सुनी।एक आह भरते हुए,ढांढस बंधाते हुए कहा कि क्या करोगी बेटी हमारा जीना– मरना सब यहीं पर होता है। कोई भी हमें इस दलदल से बाहर नहीं निकाल सकता।हम केवल लोगों की मनोरंजन के साधन हैं।आखिर तुम्हारी मां भी तो यहीं दफन हो गईं।
रोते हुए सुरैया ने पूछा कि क्यों मौसी,आखिर हम इज्जत की जिंदगी क्यों नहीं जी सकते?नूर बेगम के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।चुप हो जा बेटी,इस दुनिया में आने वाली अगर बेटी हुई तो तुम्हारा काम वही बढ़ाएगी।खुदा से दुआ कर कि बेटी हो ताकि तेरा पेट पाल सके।हम तवायफों को तभी तक पूजा जाता है,जब तक हमारा यौवन होता है।
पर सुरैया ने कहा कि नहीं!मौसी मैं अपनी बेटी को इस दलदल में नहीं रहने दूंगी।जो मुझे नहीं मिला ,वो मैं उसे दूंगी।इसी तरह से समय बीतते गया। नवां महीना चल रहा था।कभी भी कुछ भी हो सकता था।आखिर वो घड़ी भी आ गई।सुरैया ने चांद सी बेटी को जन्म दिया।तेरे जैसे ही तेरी बेटी भी है सुरैया, नूर बेगम ने बच्ची को पुचकारते हुए कहा।
जैसे ही उसने अपनी बेटी को अपने सीने से लगाया,उसकी ममता हजारों सवाल खुद से ही करने लगी।उसका नाम रखा गया चांद।एक महीना बीत गए थे चांद को पैदा हुए।एक दिन सुरैया अपनी दासी से अपने बालों में तेल लगवा रही थी,उसी ने बताया कि शहर के सबसे बड़े सेठ दीनालाल को एक नवजात बच्चे की तलाश है।उनको अभी तक बच्चे नहीं हुए हैं।उम्र भी ढलान पर है।
दासी बोले जा रही थी और सुरैया के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था।उसने सेठ के घर का पता ले लिया।एक घनघोर रात्रि में एक औरत अपनी आंचल में अपने बच्चे को छुपाते हुए बड़ी ही तीव्र गति से आगे बढ़ रही थी।फिर सेठ दीनालाल के घर के आगे उसने बच्चे को रख दिया।हां!वह सुरैया ही थी,जिसने कलेजे पे पत्थर रखकर अपने टुकड़े को किसी और की गोद में डाल दिया था,ताकि उसकी जिंदगी नरक होने से बच जाए।
आज उसके कलेजे पर से बहुत बड़ा बोझ उतर गया था।अपनी बेटी को उसने इस नरक भरी जिंदगी से बचा लिया।इस बात को 20साल बीत गए।सुरैया की जिंदगी की शाम हो चली थी।ऐसे भी बेटी के जन्म के बाद उसके कद्रदान भी कम हो गए थे।अब वह लड़कियों को नृत्य सिखलाया करती थी।
आज उसकी बेटी भी 20साल की हो गई होगी।सेठ दीनालाल शहर के नामी गिरामी आदमी थे।उनके घर की कोई भी बात पूरे शहर में फैल जाती थी।आज उनकी बेटी का 20वां जन्मदिन था।इसलिए पूरे शहर में चर्चा का विषय बन गया।गीत– संगीत का आयोजन किया गया।सुरैया बेगम को इस महफिल में संगीत देने के लिए आमंत्रण आया था। उम्र ने नृत्य को तो पीछे छोड़ दिया था पर गले में अभी भी वही जादू थी।जबसे ये बात सुरैया को पता चली,उसकी ममता अपनी बेटी को देखने के लिए उतावली हो उठी।
सारे लोग जमा थे।बहुत सारे लोगों के बीच में एक सुंदर सी लड़की केक काटने के लिए खड़ी थी।सुरैया ने जब चांद को देखा तो देखती ही रह गई।आंखों से आंसूओं की धारा अनवरत बहती चली गई।तभी किसी ने गाने के लिए टोका,तो वह सकपका गई।आज उसे अपनी जिंदगी की मंजिल मिल गई थी।🎵🎶तुम आए तो आया मुझे याद कि गली में आज चांद निकला🎵🎶सुरैया की मदमस्त आवाज़ में सभी खो गए।कार्यक्रम समाप्त होने के बाद सुरैया अपने समान को समेट रही थी,तभी दूर से उसे अपनी ओर चांद आती दिखी।पता नहीं यहां उसका क्या नाम होगा?यही सब सोच रही थी,तभी चांद ने कहा कि आंटी आप बहुत अच्छा गाती हैं।पिता जी आपसे बहुत खुश हुए हैं और ये उपहार आपके लिए उन्होंने भेजा है।
सुरैया ने चांद को नजदीक से छुआ,उसकी बलैया लीं।मजबूरी क्या होती है,सुरैया से बेहतर कोई नहीं बता सकता था।सच किसी को बता नहीं सकती थी।एक इज्जत भरी जिंदगी चांद को मिली थी,एक मां कैसे उससे छीन सकती थी।उसके सर पे हाथ रखा और वहां से चल पड़ी,फिर कभी न मिलने की आशा लेकर।
घर आई तो उपहार खोल कर देखा तो लगा जैसे उसे उसकी जिंदगी वापस मिल गई हो।एक मां बच्चे को गोद में पुचकार रही थी,ऐसी तस्वीर उसे उपहार में मिली।आंसू भरी आंखों से उसने तस्वीर को अपने सीने से चिपका लिया।सच ही कहा गया है कि जब बात अपनी संतान की जिंदगी का हो तो एक मां हर सितम सह लेती है।आखिरकार उसने अपनी बेटी को जिल्लत भरी जिंदगी से बचा ही लिया था।
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Such an emotional story.. It’d true that a mother can go to any extent to protect her child.. Hats off to your writing.. 👍