स्कूलों का आधुनिकीकरण ::शिक्षा बनाम ब्यवसाय
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तीन लोगों ने मिलकर एक छोटे से स्कूल की स्थापना की थी।इन तीनों में से एक थे रवींद्र सर,जो घूम– घूम कर गांव वालों से अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उनके घर तक चले गए।इस स्कूल का नाम था–सर्वयोदय विद्यालय।अपनी उम्र के 30वें बसंत से ये जिम्मेदारी उठाया। पढ़ाना इनके लिए पूजा से कम नहीं थी।एक स्याह ब्लैकबोर्ड में चॉक चलाने से जैसे अक्षरों की माला बनती है,उसी तरह से अपने खून–पसीने से सींचकर इस विद्यालय को बढ़ाया था।
सर के स्वभाव के कारण धीरे– धीरे यहां बच्चों की संख्या भी बढ़ने लगी।कुछ पैसे और इकट्ठे हुए तो स्कूल की आधारभूत सुविधाओं का इंतजाम भी होने लगा।उस दिन रवींद्र सर अपनी कक्षा में हाजिरी ले रहे थे,सभी बच्चों ने हां!सर की आवाज़ लगाई,पर उसी कक्षा की एक लड़की कविता की तरफ से कोई आवाज़ नहीं आई।इसी तरह से तीन दिन बीत गए।बाकी बच्चों से पूछा गया तो एक लड़के ने बोला कि सर!कविता के बापू उसकी शादी करवा रहे हैं।इसलिए उसका घर से निकलना बंद है।
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सर को यह बात ठीक नहीं लगी।कक्षा समाप्त होने के बाद कविता के बापू से मिले,उन्हें समझाया।लड़कियां किसी से कम नहीं होती है,ये बात बोली।पहले तो उसके पिताजी नहीं माने पर रवीन्द्र सर के स्वभाव के कारण उन्होंने अपनी बेटी को वापस पढ़ने के लिए भेज दिया।इतनी इज्जत थी सर के लिए गांव वालों के दिल में।
धीरे– धीरे इस विद्यालय के बच्चे बाहर भी प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगे। रवींद्र सर के दो और साथी का नाम था–जतिन और कमलनाथ।विद्यालय में बच्चों की संख्या भी बढ़ने लगी।स्कूल की जो भी आमदनी होती,रवींद्र सर स्कूल की भलाई में ही लगा देते।इस बात पर कमलनाथ से हमेशा उनकी बहस होती रहती थी।कमलनाथ का कहना था कि कुछ आमदनी तो अपने पॉकेट में भी जाना चाहिए,जतिन सर खुल्लम– खुल्ला तो नहीं पर पीठ पीछे कमलनाथ का समर्थन किया करते थे।अपने दोनों साथियों की मंशा को बदलते देख रवींद्र सर को बहुत दुख होता।पर स्कूल के लिए अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी।
सर्वयोदय विद्यालय की चर्चा धीरे– धीरे गांव से बाहर भी फैलने लगी थी।जाने कितने उद्योगपति की नज़र इस स्कूल पे थी।सभी बड़े से बड़े लालच देकर स्कूल को अपने अधिकार में करना चाहते थे। उनलोगो का लक्ष्य था– स्कूल को आधुनिक रूप देना।AC वाले कमरे हों,बड़ा सा खेल का मैदान हो,बड़ी– बड़ी मंजिलें हो और भी ना जाने कितनी सारी चीजों का लालच दिया गया तीनों को।जतिन और कमलनाथ की आंखें चौंधिया गई पर रवीन्द्र सर को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
ट्रस्टीज ने जतिन और कमलनाथ के साथ मिलकर योजना बनाई उन्हें रास्ते से हटाने की।सीधे तौर पर हटाते तो छात्रों के अभिभावक ही विद्रोह कर डालते।इसलिए सबने राजनीति खेली। रवींद्र सर की उम्र 45साल की हो चुकी थी।अपने जीवन के 15साल उन्होंने स्कूल को दे दिए थे।जतिन और कमलनाथ ने मिलकर स्कूल के पैसों के गबन का आरोप लगा दिया।साथ में कुछ और लोगों को भी मिला लिया था। उनलोगो का कहना था कि स्कूल के लिए ब्लैकबोर्ड, चॉक पेंसिल आदि सामान खरीदने के लिए जो पैसे उनके पास रखे हुए थे, उसका कोई थाह नहीं लग रहा है।चारों तरफ से उंगलियां उठने लगी।
अपनी ईमानदारी पर शक होते देख सर को बहुत दुख हुआ।जिस स्कूल के लिए उन्होंने अपनी उम्र के 15साल बिना कुछ पाए झोंक दिया,आज वहीं से ये सिला मिला उनको।कंधे पे थैला लटकाए,अपने आंसुओं को पोंछते हुए चश्मा ठीक किया और टकटकी लगाते हुए ब्लैकबोर्ड की तरफ देखने लगे।शायद अब यहां से निकलने का समय हो चुका था।
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