भाग्य का खेल(Part 3)
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मधुर स्मृतियां
धूप– छांव सी
पतझड़ में लगती वसंत बहार– सी
सालों से जिन यादों को जीती आई
कभी हर्ष तो कभी विषाद की रेखा उभर आई
किसी से गिले तो किसी से शिकवे
कब किन परिस्थितियों में जिंदगी बन जाती है वनवे
यादों की पोटली चितवन से झांकती
पुराने जगह की स्मृति
या नए जगह की प्रतीति
असमंजस में मन की भावनाओं का समुंदर
क्या करूं,कैसे करूं
शुरुआत चल रही है मन के अंदर
स्थानांतरण की प्रक्रिया तो उसी दिन शुरू हो गई
जब खबर दूसरे शहर जाने की आई
धीरे धीरे अपनी गृहस्थी को यहां से समेट रही हूं
बरसों से जमे घरौंदे को इधर– उधर कर रही हूं
नया शहर,नई डगर
हिचकोले खाती मन की नैया
यादों से कर रही है अगर– मगर
आज हो रहा है शहर से जाना
मन बुन रहा है ताना– बाना
किनारों से टकराती लहरें
वर्तमान में अब तू बह ले
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Very nicely written..
Excellent..