मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –6)
...
सदियों से औरतों पर बहुत से बंधन लादे गए हैं। कई तरह की अपेक्षाओं से गुजरती औरत आजादी के झरोखों से अपने अस्तित्व को आसमान में उड़ते देखने लगी है, पर कुछ जकड़न को आज भी कुछ औरतें अपने मन से निकाल नहीं पाई है, चाहे वह कितनी भी ऊंचाई पर पहुंच क्यों न जाए। जरूरी नहीं है कि औरत हमेशा नायिका ही साबित हो। सामाजिक ढर्रे पर चलना केवल उसकी मजबूरी ही नहीं होती है। कुछ बंधन, कुछ सोच खुद भी बदलने होते हैं।
ऐसी ही एक औरत की कहानी है,जो समाज की नजर में भले ही नायिका हो पर अपने निजी जीवन में अपने ही द्वारा सिखाई बातों का शायद ही पालन किया हो।वृद्धाश्रम के दरवाजे पे अपने समान के साथ खड़े छोड़ने आए अपने बेटे को जाते हुए अवाक निगाहों से देख रही उस महिला के मुंह से यही निकल रहा था कि–––
जाते हुए तुझे देख रही थी
आंसू बस निकलने को चाह रही थी
ना कसूर है तेरी
बस यही सजा है मेरी
अपनी ही कोख की थी हत्या
जिसे मेरी कुंठाओं ने जन्म होने ही नहीं दिया
सूनी आंखें और मेरा सूना चितवन
वृद्धाश्रम में ढूंढ रहा है घर का आंगन
जा बेटा ,जा
अब यही है मेरी सजा
अवनिका, चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थी। दोनों बहनों की अपेक्षा मां – बाप का थोड़ा ज्यादा प्यार उसे मिला, पर इस कारण से नहीं कि उनकी बेटी थी बल्कि इस कारण से कि उसके बाद भाई का जन्म हुआ था। बचपन से ही ऐसा विभेदीकरण देखती आई थी, इसलिए मन के किसी कोने में ऐसी बातें दबी रह गई, जो अनजाने में ही उसके जीवन का हिस्सा बन गई थी।इस कुंठा की खबर शायद उसे भी नहीं थी।
कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद पापा ने कह दिया कि अब आगे की पढ़ाई बंद,वरना भाई की उच्च शिक्षा में पैसे की समस्या आड़े आ जाएगी।दोनों बड़ी बहनों ने तो इस फरमान को चुपचाप सुन लिया। पर अवनिका इस अंतर को पचा नहीं पा रही थी।अपनी बिंदास सोच को उसने रुकने नही दिया। उसे यह स्वीकार ही नही था कि लड़कियां लड़कों से कहीं कम भी होती है।वह अपने पापा से भी लड़ गई।
समय यूं ही पंख लगा कर उड़ चला। दोनों बहनों की शादी हो गई पर अवनिका को तो कुछ बनना था। उसने शिक्षक ट्रेनिंग ली और किसी विद्यालय में शिक्षिका बन गई। बच्चों को अच्छी शिक्षा देना, लैंगिक समानता पर जोर देना यह सब उसके उसूल थे,क्योंकि बचपन से झेली मानसिकता से वह लड़ना चाह रही थी।पर शायद वह गलत थी,या यों समझो कि उसकी कथनी और करनी में बड़ा ही अंतर था।
मां-बाप ने अच्छा घर देख कर उसकी शादी कर दी। पर उसके ससुराल वाले बड़े ही रूढ़िवादी निकले।कुछ बातों को लेकर सास बहू में खटपट होती थी,तो कुछ बातें दोनों में समान थीं।मतलब कि सास को उसका काम करना पसंद नहीं था और ना ही आधुनिक कपड़ों में रहना। उसका पति नवीन एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था पर उसकी सोच रूढ़िवादी नहीं थी। हंसी– खुशी जिंदगी चल रही थी दोनों की।
शादी को 2 साल हो गए।सास की तरफ से जोर दिया जाने लगा दो से तीन होने के लिए।दबाव ने अवनिका– नवीन को भी इस बारे में सोचने को मजबूर कर दिया। फिर एक दिन बच्चे के आने की खबर ने सबको खुश कर दिया। अब अवनिका का ध्यान रखा जाने लगा।हां एक बात सास– बहु की एकसमान थी और वह बात थी लड़का होने की। अवनिका ,जिसने बचपन से इस अंतर को देखा था,महसूस किया यहां तक कि इन सब बातों से लड़ने को अपना आदर्श बनाया, वहीं जब बात अपने पे आई तो सारे सिद्धांत हवा हो गए।
बच्चे के आने की खुशी में अवनिका के बचपन का डर अब उस पर हावी होने लगा था। अंतस के विचारों ने उसकी मानसिकता ही बदल दी। लड़के की चाह ने उसकी ममता पर उंगली उठा दी। उसकी एक सहेली थी डॉ राधिका, उससे उसने बात की और अपने बच्चे का लिंग परीक्षण करवाने को बोला। पहले तो राधिका ने इसे गैरकानूनी बताया, पर अवनिका ने अपनी दोस्ती का हवाला देकर अपनी बात मनवा ही ली।
नवीन से उसने पहले ही बात कर ली थी।पहले तो उसने अवनिका को ये सब करने के लिए मना किया पर उसकी ज़िद के आगे हार गया।सास को भी बता दिया।वह तो झट से मान गई। इसी में उसे पता चला कि उसकी कोख में पलने वाली संतान बच्ची है, बच्चा नहीं, सुनकर उसे धक्का लगा।उसे लड़की को जन्म नहीं देना था। नवीन से बात की और अबॉर्शन करवाने को कहा। नवीन ने लाख बोला कि लड़का और लड़की बराबर होते हैं पर उस ने एक ना सुनी।सास तो उसके साथ थी ही। आखिर हो ही गया उसका अबॉर्शन। ना उसकी रुह कॉपी और ना ही ममता ने आवाज दी। एक मां का निर्णय होता है कि उसका बच्चा इस दुनिया में आए या ना आए।ईश्वर ने यह अधिकार उसे दिया, केवल औरत को पर अवनिका ने इसका मान नहीं रखा।
घर के सारे लोग दुखी थे,सिवाय नवीन के, अबॉर्शन करवा कर नहीं बल्कि लड़के की जगह लड़की होने की खबर सुनकर। कितनी हास्यास्पद बात है ना कि एक लड़की ही लड़की की दुश्मन होती है। अवनिका की जिंदगी उसी ढर्रे पर चलने लगी थी। शिक्षिका के रूप में उसने बहुत नाम कमाए अच्छी बातों को सिखाया, बच्चों को प्यार से रखा।उसके आदर्शों,उसके स्वभाव की स्कूल में बढ़– चढ़कर तारीफ होती, जो उसके पर्सनल लाइफ से बिल्कुल मेल नहीं खाते थे।
इसी तरह से अवनिका चार बार प्रेग्नेंट हुई और चारों बार उसने लिंग परीक्षण करवाकर अबॉर्शन करवा लिया। ईश्वर भी देते थक नहीं रहा था और अवनिका भी ईश्वर के पास अपनी संतान को भेजने में नहीं थक रही थी।
उसने अब सोच लिया कि अब वह बच्चा नहीं करेगी, पर कहते हैं ना कि ईश्वर को अगर किसी को उसके पापों की सजा देनी होती है तो वह रास्ता निकाल ही लेता है। छठी बार उसकी प्रेगनेंसी को सुनकर उसकी सास ने टोने– टोटके करवाने शुरू कर दिए और एक शिक्षक होने के नाते अवनिका ने इसका विरोध भी नहीं किया।
इस बार जांच में उसकी मन की बात पूरी हो गई। लड़के के आने की खुशखबरी को सुनकर मानो घर में लगा कि दिवाली आ गई हो। अभी बच्चे का जन्म भी नहीं हुआ तो ऐसी खुशी? बेचारी मरी हुई पांचों लड़कियों का क्या कसूर था?एक लड़की होने का अभिशाप या अवनिका के बचपन का डर, चाहे जो भी हो ,इस बात को अपनी मजबूरी का चादर नही ओढ़ा सकती थी अवनिका।वह दोषी थी और हमेशा रहेगी।
9 महीने के दौरान अवनिका की इतनी सेवा हुई, मानो वह इंसान को नहीं भगवान को जन्म देने वाली हो।आखिर लड़का और लड़की के खून का रंग तो लाल ही होता है न,तो फिर अवनिका का खून सफेद क्यों हो गया? आखिर लल्ले का जन्म हो ही गया इतनी सारी हत्याओं के बाद। अवनिका बहुत खुश थी । अगर कोई खुश नहीं था तो वह था नवीन। उसने अपने आप को कभी माफ नहीं किया।
अवनिका की जिद के आगे वह हार गया था। पर उसकी पत्नी को इस बात से कोई लेना– देना नहीं था।पर कहते हैं ना कि ईश्वर की लाठी में आवाज़ नहीं होती है। बच्चे का नाम रखा गया अवतार। सभी का लाडला अवतार अपनी हर बात मनवा लेता था।
दादी तो बलैया ही लेती रहती। अवनिका ने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया था।घर का लाडला अवतार पूरे घर में उछल– कूद मचाते रहता। अधिक दुलार ने उसे जिद्दी बना दिया था।लड़के को जन्म देने के बाद अवनिका शायद निश्चिंत हो गई थी।शायद यही सोच रही होगी कि लड़के का भविष्य तो अच्छा ही होता है,तभी तो उसे अपने काम से फुर्सत ही नहीं थी।
बच्चे को जन्म देना ही काफी नहीं होता है। मां-बाप के संस्कार से ही बच्चे के संस्कार बनते हैं। दिन इसी तरह बीतते गए। नवीन अपने आपको काम में व्यस्त रखने लगा। अवतार से वह घुल– मिल ही नहीं पा रहा था। एक अपराध बोध से दवा नवीन बस अपने पिता की जिम्मेदारियों का वहन ही बस कर रहा था। अवनिका इस बात को समझकर भी ना समझने का दिखावा करती रही,अपनी गलतियों को छिपाने की नाकाम कोशिश।
15 साल बीत गए इस बात को। अवतार की स्कूल की पढ़ाई खत्म हो चुकी थी। उसकी दादी का भी देहांत हो गया।एक दिन नवीन ऑफिस के लिए निकला तो पीछे से अवनिका ने आवाज दी कि क्या आज वह उसे स्कूल ड्रॉप कर देगा।नवीन ने हामी भरी । दोनों के रिश्ते के बीच में एक अनजाना दरार आ चुका था,जिसे पाटना नामुमकिन था।
अवनिका को स्कूल छोड़ने के बाद जब वह अपने ऑफिस के लिए निकला, तभी रास्ते में एक 2 साल की बच्ची उसकी गाड़ी के ठीक सामने आ गई, जिसको बचाने के क्रम में उसकी गाड़ी एक बड़े ट्रक से टकरा गई। मौके पर ही नवीन की मौत हो गई थी पर मरते समय वह जरूर सोच रहा होगा कि जिस बेटी को वह उस समय बचा नहीं पाया, आज ईश्वर ने उसी के हाथों इस बेटी को बचा लिया। उसके जीवन की सारी उलझनों का अंत हो गया था।
जैसे ही यह खबर अवनिका के पास पहुंची, गश्त खाकर गिर पड़ी वो।बहुत मुश्किल से अवतार ने उसे संभाला।नवीन के जाने के बाद एक सूनापन आ गया था उसके जीवन में।बेटा अपने जीवन में व्यस्त रहने लगा।ऐसे भी वह नवीन से भावनात्मक रूप से तो जुड़ा नहीं था।इसलिए अपने पापा के जाने का उतना गम भी नहीं सता रहा था।पर अवनिका को इस कमी की अहसास अब होने लगी थी।
साल बीतते गए।अब अवनिका उसी स्कूल की प्रिंसिपल बन गई अपने कामों की वजह से।अवतार भी काम करने लग गया।अब जीवन की सांध्य बेला में अवनिका नवीन को बहुत याद करने लगी थी।नवीन किस अपराधबोध से जिंदगी जिए जा रहा था,शायद उसने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की।अब जब वह नहीं है तो अपनी गलतियों का अहसास होने लगा है उसे।
सोचा कि अवतार की शादी कर दूं।बहु के आने से शायद इस निरवता का अंत हो।बेटे की बहू को चाह रही थी।सालों पहले अपनी बेटियों का अंत नहीं करती तो ये अकेलापन उसे नसीब भी नहीं होता।इस तरह से अवतार की शादी के बाद उसने एक जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली।हां! उसका ये सोचना गलत साबित हुआ कि बहू उसके अकेलेपन की साथी बनेगी।बल्कि बहू के आने से तो बेटा और भी दूर– दूर रहने लगा।
आज सुबह से ही अवनिका बहुत उदास थी,उसके रिटायरमेंट का दिन जो था।स्कूल में farewell पार्टी थी,जहां उसे सम्मानित किया जाना था।अब किसमे व्यस्त रहेगी अवनिका ?उसने बेटे– बहू को भी स्कूल चलने के लिए कहा पर दोनों ने बहाना कर दिया।
पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।पर इन आवाजों में वह अपने परिवार की आवाज ढूंढ रही थी।नवीन आज होते तो कितना खुश होते।आंचल के कोर से आंसूओं को पोछती अवनिका ने सबकी बधाई स्वीकार की।आज उसे पहली बार अपनी गलती का एहसास होना शुरू हुआ था। स्टेज से उतरते समय उसके पैर लड़खडा गए,पर इन हाथों को संभालने वाला बेटा आज इतनी बड़ी खुशी के मौके पे पास नहीं था।
बड़े भारी मन से वह घर के लिए रवाना हुई।घर आकर देखा तो बेटे – बहू आराम से सोफे पे बैठे टीवी देख रहे थे।किसी ने कुछ भी पूछने की जहमत नहीं उठाई।जब तक पढ़ाती रही,तब तक दिन कट जाते थे।पर यही दिन अब पहाड़ जैसे लगने लगे। बहू कुछ ना कुछ हमेशा सुना दिया करती।बेटे की तरफ देखती,तो वह मुंह फेर लेता।
एक रात अवनिका पानी पीने के लिए उठी,तो देखा कि बेटे के कमरे में बत्ती जल रही है और कुछ बातें करने की आवाजें आ रही थीं।उसे लगा कि कुछ झगड़ा हो रहा है दोनों में,पर पास आकर सुना कि बातें तो उसी के बारे में चल रही थी।
बहू –मां जी! तो अब रिटायर हो चुकी हैं।जो पैसे हर महीने आते थे,वो भी नहीं मिलेंगे।
बेटा–तो अब मैं क्या करूं?मां का खर्चा कहां से उठाऊं?
बहू–किसी बहाने से वृद्धाश्रम में छोड़ आओ।मेरे से तो तुम्हारी मां के नखरे सहे नही जाते हैं।
बेटा–सही बोलती हो। कल ही मां से बात करूंगा।
दोनों की बातचीत को सुनकर अवनिका के हाथ से ग्लास छूट गया।अवतार ने बाहर आकर देखा तो मां खड़ी थी। दोनों ने यही सोचा कि ,चलो अच्छा ही है,मां ने खुद ही सारी बातें सुन ली।
अवनिका अपने कमरे में आई और फूट– फूट कर रो पड़ी।अब तो यहां रहने का सवाल ही नही होता है।बेटा पैदा करने की सजा आज उसे मिल गई थी।अवतार को बुलाया और सारी प्रॉपर्टी उसके नाम कर दी।फिर बोली कि मुझे वृद्धाश्रम छोड़ आओ।मेरा यहां मन नहीं लगता है।वहां अपने जैसे लोगों को देखूंगी तो बाकी जिंदगी कट जाएगी।बेटे को और क्या चाहिए,मन की बात जो पूरी हो गई थी।जिस बेटे के लिए उसने अपने आदर्शों का खून कर दिया था,आज उसी बेटे के लिए वह भार बन गई थी।
आज अवनिका को इस बात का अहसास हुआ की कुदरत की लाठी में सही में आवाज नहीं होती है।
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Bahut khoob likha aapne…👌👏🏼👏🏼👏🏼
thank u
Marvelous story 👏
Thanks
Excellent story….
Thank u