जज़्बात
...
गुलामी से आजादी तक का सोपान
जब करती हूं देश का ध्यान
#आज हम स्वतंत्र हैं
पर ये प्रश्न ज्वलंत है
देश के वीरों ने जो सपना देखा
जान की बाज़ी लगा
जिसके महत्व को कर दिया है हमने अनदेखा
अपने ही लोगों से देश हो रहा है आहत
भ्रष्टाचार,खून खराबा,बलात्कार की लगी है जमघट
#आज हम स्वतंत्र हैं
पर ये प्रश्न ज्वलंत है
जिस तिरंगे को पाने में सपूतों ने खुद को झोंक दिया
उसी तिरंगे को आंदोलनकारियों ने स्वाहा किया
सीता,लक्ष्मी की पूजा करने वाली धरतीके
अपने ही बेटी–बहुओं की इज़्ज़त नीलाम होते देखती
फिर भी,
#आज हम स्वतंत्र हैं
पर ये प्रश्न ज्वलंत है
नेताओं को देश का ख्याल नहीं होता
तभी तो संसद हमेशा ठप हो जाता
अपनी डफली,अपना राग
स्वदेश के लिए हमारा यही है अनुराग
आंतरिक कलह से देश हो रहा है परेशान
भारतभूमि की यही बातें कर देती है हैरान
राम,कृष्ण की जन्मभूमि
आंदोलनकारियों की बन गई है कर्मभूमि
मांग पूरी ना हो तो
सड़कों पे निकल आते हैं लोग
मुद्दे उछालने की लग गई है रोग
फिर भी,
#आज हम स्वतंत्र हैं
पर ये प्रश्न ज्वलंत है
सत्ता–विपक्ष की होती रहती है मगजमारी
देश के हित को ये नहीं मानते सर्वोपरि
बेमतलब के मुद्दे उछाले जाते हैं
पर बलात्कारियों की सजा में देर लगाते हैं
जिसके लिए कैंडल मार्च निकालते हैं
उसी अग्नि में बेटियों को स्वाहा करते हैं
फिर भी,
#आज हम स्वतंत्र हैं
पर ये प्रश्न ज्वलंत है?????
...
सीधा– साधा दिलहो गई है मुश्किलथी जिंदगी उसकी बेपरवाहहर फिक्र को उड़ा रहा था वहपर अचानक क्या हुआएक एह...
नूतन वर्षसमय का उत्कर्षनई उमंगनई तरंगबढ़ रही है ज़दगी नई तारीख़ के संगनूतन वर्ष अभिनंदनकरते हैं तुह...
घूंघट में छिपी मुस्कानअधरों में फंसी है सबकी जानवो चंचल चितवनजैसे हिरनी स्वछंद विचरती वन वननैनों की...
Wow kya kavya hai
Nice poem…
Kya khoob 👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼
Nice one 👌👌