मनाली की वो रातें😳😱😳😱(Part –6)
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एक चमचमाती हुई कार एक ढाबे के सामने आकर रुकी। शीशा हटा और अंदर से एक रौबदार आवाज ढाबे वाले के कान में पड़ी, अरे! माखनलाल, जरा 1kg बर्फी pack कर देना। ढाबे वाले ने तुरंत अपने नौकर को भेजा मिठाई लेकर। कार के शीशे से छन कर आती सूरज की रोशनी वहीं ढाबे के बाहर बर्तन धो रहे एक 10 साल के लड़के की आंखों में पड़ी,जो अनमने ढंग से बरतन को उठा– पटक कर रहा था।
कार के मालिक ने जब पूछा कि कितने पैसे हुए तो ढाबे वाले ने बोला 200₹। पॉकेट से तुरंत 2000 का नोट निकाला और ढाबे वाले को पकड़ा दिया। नोट देखते ही ढाबे वाले ने बोला कि, साहब! छुट्टे हो तो दे दो। सुबह से अभी तक बोहनी नहीं हुई है। तभी इन दोनों की बातें सुनकर अचानक से कार के मालिक के पॉकेट में पड़ी 100₹ की नोट खिलखिला कर हंस पड़ी।
असल में हुआ कि पॉकेट में पड़ी 2000 और 500 के नोट अपने आप पर इतना रही थी और 100 की नोट को हिकारत भरी नजर से देख रही थी। 2000 के नोट ने सीना ठोकते हुए बोला कि मेरे सामने तुम्हारी औकात ही क्या है? जब से मेरा जन्म हुआ, गुलाबी रंगों के पीछे सारा देश भाग रहा है।उसकी इस खिलखिलाहट में 500 के नोट ने भी साथ दिया।
मेरे रहने का ठिकाना ये गरीब और बेसहारे लोग नहीं बल्कि ऊंचे और बड़े-बड़े लोगों की जेबों में होती है।अपनी औकात तो देखो,यह कहते हुए ठठाकर दोनों हंस पड़े। बेचारा 100 का नोट रोनी सूरत बनाए हुए एक कोने में पड़ा था,अपनी औकात से वाकिफ।
पर कहते हैं ना कि इस संसार में घमंड कभी किसी का नहीं टिकता।दूसरों पे हंसने वाले भी समय की मार से बच नहीं सकते। तभी तो ढाबे वाले की बात सुनकर 100 का नोट हंस पड़ा। अपने कॉलर को सीधा करते हुए 2000 से बोला कि भैया छोटे के महत्व को कभी कम नहीं समझना चाहिए।
देखा तुमने !! कैसे तुम्हें एक किनारे कर दिया गया। शायद तुम भूल गए कि अपने देश की आधी से ज्यादा आबादी इन गुलाबी रंगों से मेल नहीं खाती है। तुम इन गरीबों के आंसू नहीं पोंछ सकते, क्योंकि तुम्हे पाने के लिए उन्हें अपनी पूरी जिंदगी लगानी पड़ेगी। ऐसे कितने घर हैं जिनको 1 जून की रोटी तक नसीब नहीं होती है,फिर तुम्हें कैसे पहचानेंगे🤔 कहते हुए 100 के नोट ने ढाबे वाले के हाथ में खुद को समर्पित कर दिया।
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बेचारा 2000 और 500 के नोट एक– दूसरे का मुंह ही देखते रह गए। लगता है अपनी जिंदगी इन जेबों में ही गुजरने वाली है। सेठ ने जब 100–100 के दो नोट ढाबे वाले को पकड़ाए तो इस आवाजाही में 100 का एक– दूसरा मुड़ा– तूड़ा नोट गलती से कार के नीचे घुस गया। इस नोट पर किसी की नजर तो नहीं पड़ी पर उस बच्चे की आंखों की चमक उस नोटों पर गड़ी हुई थी।
जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी, वह बच्चा बर्तन छोड़कर नोट पकड़ने के लिए दौड़ा। तभी पीछे से ढाबे वाले ने घुड़की लगाई, कहां जा रहा है यह झूठे बर्तन छोड़कर ? अगर आधे घंटे में सफाई नहीं हुई तो आज की पगार काट ली जाएगी। आंखों में आंसू भर कर उस मासूम ने अपने पैर पीछे कर लिए।
कितनी बेबस होती है जिंदगी।शायद वह मासूम बच्चा रास्ते पे पड़े हुए उस नोट में अपना भविष्य ढूंढने की कोशिश कर रहा हो,जो उसके बिखरे सपनों को थोड़ा जोड़ सकें। रास्ते पे गिरे हुए उस सौ के नोट के अंदर भी यही विचार–मंथन चल रहा था कि काश उस गरीब के आंसू वह पोंछ सके।
उस बच्चे के बाप की मौत कोविड-19 से हो गई थी। उसे तो यह भी पता नहीं होगा कि कोविड-19 आखिर होता क्या है? बस अपनी आंखों के सामने अपने पिता का साया अपने सर से जरूर हटते देखा। मां को भी तीन-चार दिन से बुखार था। गरीबी और अज्ञानता इस महामारी को कहां से समझ पाएगी। साथ में 1 साल की बहन भी थी उसकी। उस दिन जब मां की तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी, तो पैसे के लिए उस मासूम ने जगह-जगह हाथ पसारे। पर हर जगह दुत्कार दिया गया। बहन भी दूध के लिए रो रही थी।
उस नन्ही सी जान के कंधों पर ऐसी विपदा आन पड़ी और निकल पड़ा वह काम की तलाश में। और इस ढाबे वाले के यहां काम करने लगा। उस दिन जब उसने 100 का नोट गिरा देखा तो शायद उसमें अपनी बीमार मां की दवा और बहन के लिए दूध दिख रहा होगा।
कई बार काम से बचकर उस नोट को पकड़ने की कोशिश की, पर हर बार मालिक की नजर पड़ जाती थी। 100 का नोट भी अभी तक वहीं पड़ा हुआ था। शायद किसी की नजर ना पड़ी हो या स्वयं 100 का नोट इस बच्चे के आंसू को पोंछना चाह रहा हो। 2000 के नोट से बड़ी ही जद्दोजहद की थी उसने। अमीरों की जेब में रहने से कहीं अच्छा उसे इन मजबूरों के आंसू पोंछना सही लग रहा था।
आखिर उस बच्चे ने अपने प्रयास को मंजिल तक पहुंचा ही दिया। हाथों में 100 का नोट दबाया और किसी दवा की दुकान में सरपट भागा। छोटी मुट्ठी में बंद 100 का नोट मुस्कुरा उठा। पीछे से ढाबे वाला चिल्ला रहा था, पर बच्चे को तो कान में अपनी मां और बहन की रुदन ही सुनाई दे रही थी। दवा लेकर जैसे ही वह अपने छोटे में घर में घुसा, हाथ से सारी दवा नीचे गिर गई। मां जमीन पर निढाल पड़ी हुई थी और वहीं पास में उसकी बहन जमीन की मिट्टी को कुरेदकर खा रही थी।
गरीबों और मजबूरों की बेचारगी ने सोचने पर विवश कर दिया कि हमारी अर्थव्यवस्था का स्तर कितना भी बढ़ जाए,पर क्या देश का यह तबका अपनी जिंदगी भी जी रहा है या नहीं,सोचने वाली बात है। 2000 और 500 के नोट बाजार में आएं या चले जाएं,इनके लिए क्या फर्क पड़ता है।जब 100 के नोट तक इनकी पहुंच नहीं है तो फिर हमारी जीडीपी बढ़ने का क्या मतलब?????सोचनीय प्रश्न है।
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Very very heart touching story.. 👌👌